श्री गणपति

१. व्युत्पत्ति एवं अर्थ

गण ± पति · गणपति । संस्कृतकोशानुसार ‘गण’ अर्थात पवित्रक । पवित्रक अर्थात सूक्ष्मातिसूक्ष्म चैतन्यकण । ‘पति’ अर्थात स्वामी । ‘गणपति’ अर्थात पवित्रकोंके स्वामी ।

१. ‘ॐ गँ गणपतये नमः ।’ यह श्री गणेशजी का तारक नामजप सुनें ।


१. ‘श्री गणेशाय नमः ।’ यह श्री गणेशजी का तारक नामजप सुनें ।

२. महत्त्व

२ अ. किसी भी देवताकी पूजामें प्रथम श्री गणपतिपूजन करनेका महत्त्व

अन्य देवता किसी भी दिशासे श्री गणेशकी अनुमतिके बिना पूजास्थानपर नहीं आ सकते । इसलिए मंगलकार्य अथवा अन्य किसी भी देवतापूजनके समय प्रथम श्री गणपतिपूजन करते हैं । श्री गणेशद्वारा दिशाएं मुक्त किए जानेपर, जिस देवताकी हम पूजा कर रहे हैं, वे वहांपर पधार सकते हैं । इसीको ‘महाद्वारपूजन’ अथवा ‘महागणपतिपूजन’ कहते हैं । (गाणपत्य संप्रदायमें ब्रह्मके लिए ‘गणपति’ तथा परब्रह्मके लिए ‘महागणपति’ शब्दका प्रयोग किया जाता है ।)

संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘श्री गणपति’

Leave a Comment