देवता के ‘तारक’ और ‘मारक’ नामजप का महत्त्व

१. ‘तारक’ और ‘मारक’ नामजप

देवता का नाम जपना, कलियुग में सबसे सरल साधना है । देवता के ‘तारक’ और ‘मारक’ ये दो रूप होते हैं । भक्त को आशीर्वाद देनेवाला देवता का रूप ‘तारक’ होता है, तो असुरों का संहार करनेवाला रूप ‘मारक’ होता है । अतः, देवता के तारक रूप से संबंधित नामजप को ‘तारक नामजप’ और मारक रूप से संबंधित नामजप को ‘मारक नामजप’ कहते हैं । देवता का भावपूर्ण नामजप करनेसे उस देवता के तत्त्व का अधिकाधिक लाभ मिलता हैं, इसलिए कुछ मार्गदर्शन सुत्र आगे दिए हैं ।

 

२. देवता के ‘तारक नामजप’ का महत्त्व

देवता का नामजप करने की दो पद्धतियां हैं, तारक और मारक । ‘तारक नामजप’ करने से जपकर्ता को चैतन्य, आनंद और शांति की अनुभूति होती है तथा उसके मनमें देवता के प्रति सात्त्विक भाव भी उत्पन्न होता है । अनिष्ट शक्तियां जो कष्ट देती हैं, उस कष्ट से रक्षा के लिए देवता के नाम का तारक पद्धति से नामजप करना आवश्यक होता है ।

 

३. देवता के ‘मारक’ नामजप का महत्त्व

मारक पद्धति का नामजप करने पर देवता की ओर से शक्ति और चैतन्य की तरंगें प्रक्षेपित होती हैं, जो जपकर्ता को मिलती हैं । इसी प्रकार, व्यक्ति के शरीर में सूक्ष्मरूप से स्थित अनिष्ट शक्तियों को दूर करने के लिए देवता का मारक नामजप आवश्यक होता है ।

 

४. अपनी प्रकृति के अनुसार देवता का ‘तारक’ अथवा ‘मारक’ नामजप करना महत्त्वपूर्ण

अपनी प्रकृति के अनुसार देवता का तारक अथवा मारक नामजप करने पर जपकर्ता को देवता के तत्त्व का अधिक लाभ होता है । इसलिए तारक और मारक दोनों प्रकार का नामजप कुछ समय कर, अनुभव लेना चाहिए । जिस ढंग से नामजप करने में मन अधिक रमता हो, वैसा करें । जो लोग प्रतिदिन नामजप अथवा साधना नहीं करते, वे भी बारी-बारी से तारक और मारक दोनों प्रकार के नामजप कुछ समय कर, अनुभव लें और जो ढंग अच्छा लगे, उसके अनुसार नामजप करें ।

 

५. कालानुसार देवता के तारक और मारक नामजप का महत्त्व

कोई भी कार्य कालानुसार करने से अधिक लाभ होता है । ‘कालानुसार देवता के तारक और मारक तत्त्व का किस ढंग से नामजप करने पर अधिक लाभ होता है’, इस विषय में अध्यात्मशास्त्रीय अध्ययन कर, कुछ देवताओं के नामजप का अभिलेखन (रिकार्डिंग) किया गया है । इसके लिए परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी के मार्गदर्शन में अनेक प्रयोग किए गए और इन प्रयोगों के आधार पर देवताओं के नामजप तैयार हुए हैं । इस प्रकार से नामजप करने पर उससे कालानुसार आवश्यक भगवान का तारक अथवा मारक तत्त्व जपकर्ता को उसके भाव के अनुसार मिलने में सहायता होगी ।

समाज में नामजप करनेवाले ९० प्रतिशत लोगों की रुचि भावपूर्ण नामजप करने में होती है । शेष १० प्रतिशत लोग, जिनके लिए मारक भाव का नामजप उपयोगी है, वे इस नामजप से वंचित न रह जाएं, इसके लिए इसका अभिलेखन (रिकार्डिंग) किया गया है ।

कु. तेजल पात्रीकर, संगीत विशारद, संगीत संयोजिका, महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.

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