‘निर्विचार’ अथवा ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप द्वारा निर्गुण स्‍थिति प्राप्‍त करने में सहायता होना

अनुक्रमणिका

 

१. ‘निर्विचार’ अथवा ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप का महत्त्व

‘मन जब तक कार्यरत है तब तक मनोलय नहीं होता । मन निर्विचार करने हेतु स्‍वभावदोष-निर्मूलन, अहं-निर्मूलन, भावजागृति इत्‍यादि कितने भी प्रयास किए, तो भी मन कार्यरत रहता है । उसी प्रकार किसी देवता का नामजप अखंड किया, तो भी मन कार्यरत रहता है और मन में देवता की स्‍मृति, भाव इत्‍यादि आते हैं । परंतु ‘निर्विचार’ अथवा ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप अखंड करने पर मन को अन्‍य कुछ स्‍मरण नहीं होता । अध्‍यात्‍म का नियम है ‘शब्‍द, स्‍पर्श, रूप, रस, गंध और शक्‍ति का सहअस्‍तित्‍व होता है’, इस कारण नामजप करने से मन उस शब्‍द से एकरूप होकर निर्विचार होता है अर्थात प्रथम मनोलय, तदुपरांत बुद्धिलय, उसके उपरांत चित्तलय और अंतत: अहंलय होता है । इसलिए त्‍वरित निर्गुण स्‍थिति में जाने में सहायता होती है ।

१ अ. निम्‍नांकित प्रयोग करें !

१. किसी भी वस्‍तु की ओर देखकर ‘निर्विचार’ अथवा ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप करते हुए क्‍या लगता है ?, यह अनुभव करें । प्रयोग से ऐसा ध्‍यान में आता है कि आनंददायी वस्‍तु की ओर देखकर आनंद नहीं होता, साथ ही दुःखदायक वस्‍तु की ओर देखकर दुःख भी नहीं होता ।

Audio निर्विचार

 

Audio श्री निर्विचाराय नमः

 

Audio ॐ निर्विचार

 

 

२. साधक ‘निर्विचार’ नामजप अथवा यह नामजप करना कठिन हो तो ‘श्री निर्विचाराय नमः’ यह नामजप कुछ मास (महिने) प्रतिदिन अधिकाधिक समय करें और ‘क्‍या अनुभूति होती है ?’, वह [email protected] इस इ-मेल पते पर टंकण कर भेजें अथवा लिखित स्‍वरूप में ‘श्रीमती भाग्‍यश्री सावंत, सनातन आश्रम, २४/बी रामनाथी, बांदोडा, फोंडा, गोवा. पिनकोड ४०३४०१’ इस पत्ते पर भेजें । कुछ समय उपरांत यह नामजप करना संभव होने पर, यह नामजप आगे निरंतर आरंभ रखें । ‘निर्विचार’ अथवा ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप ‘गुरुकृपायोगानुसार साधनामार्ग’ के अंतिम स्‍तर का नामजप है !

 

२. अनिष्‍ट शक्‍तियों के कष्‍ट से पीडित

अनिष्‍ट शक्‍तियों के तीव्र, मध्‍यम और मंद कष्‍ट से पीडित साधक उन्‍हें आध्‍यात्‍मिक उपचारों के लिए बताया नामजप ही करें । इसका कारण यह है कि उन साधकों को हो रहा अनिष्‍ट शक्‍तियों का कष्‍ट समाप्‍त होना महत्त्वपूर्ण है । इसलिए उन्‍होेंने उपचारों की कालावधि पूर्ण होने पर भी उपचार हेतु मिले नामजपों में से एक नामजप शेष समय में चलते-फिरते हुए करें ।

 

३. भक्‍तियोगी और ज्ञानयोगी

देवताओं के नामजप में भक्‍ति हो सकती है, तो ज्ञानयोग में मन की निर्विचार स्‍थिति के कारण निर्विचार स्‍थिति का लाभ होता है; क्‍योंकि अध्‍यात्‍म में अंतत: निर्गुण, निर्विचार स्‍थिति प्राप्‍त करनी होती है । भक्‍तियोगियों को भी अंतत: सगुण भक्‍ति से निर्गुण भक्‍ति की ओर बढना होता है । इसलिए भक्‍तियोग हो, ज्ञानयोग हो अथवा अन्‍य किसी भी योगमार्ग से साधना करनेवाला हो, सभी को ‘निर्विचार’ इस नामजप से लाभ होगा ।

 

४. ‘निर्विचार’ नामजप करते हुए भाव रखना आवश्‍यक न होना

नामजप भावपूर्ण करने से भाव से मिलनेवाले ईश्‍वरीय आशीर्वाद के कारण शीघ्र प्रगति होती है । बुद्धि से भावपूर्ण नामजप करना ज्ञानयोगियों के लिए कठिन होता है; इसलिए उनके लिए ‘निर्विचार’ अथवा ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप करना सुलभ होता है । संक्षेप में ‘निर्विचार’ नामजप करना सभी के लिए सहज संभव है ।

 

५. स्‍वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया के नामजप को ‘निर्विचार’ नामजप की जोड देना

अब तक साधक स्‍वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया द्वारा मन के अयोग्‍य विचारों पर मात करने के लिए प्रयास कर रहे थे; परंतु उस हेतु अनेक वर्ष लगते हैं । दोष अधिक हो तो उन्‍हें समाप्‍त करने में अनेक जन्‍म भी लग सकते हैं । इस पद्धति से एक-एक दोष पर प्रयत्न करने के साथ ही ‘निर्विचार’ नामजप का साथ देने पर एक बार में ही अनेक स्‍वभावदोष न्‍यून होंगे, जिससे शीघ्र प्रगति होगी । अब साधना हेतु कलियुग का आगामी काल अत्‍यंत अल्‍प है । अत: साधकों की शीघ्र आध्‍यात्‍मिक प्रगति हेतु ‘निर्विचार’ नामजप सहायक होगा । इससे ‘एक साधै सब सधै, सब साधै सब जाय ।’ इस हिन्‍दी वचन का स्‍मरण होता है ।

 

६. मुद्रा

इस नामजप के साथ अलग मुद्रा करने की आवश्‍यकता नहीं है; परंतु किसी को मुद्रा करना आवश्‍यक हो तो सुविधानुसार योग्‍य मुद्रा करें ।’

(परात्‍पर गुरु) डॉ. आठवले

 

७. ‘निर्विचार’ अथवा ‘श्री निर्विचाराय नमः’
नामजप करते हुए साधक निम्‍नांकित सूत्र ध्‍यान में रखें

श्रीसत्‌शक्‍ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ

अ. अब तक साधकों को सवेरे अथवा रात्रि ९.३० से १० के समय में बैठकर ध्‍यान अथवा नामजप करने के लिए बताया था । अब से साधकों को इन समयों पर बैठकर ध्‍यान अथवा नामजप करने की आवश्‍यकता नहीं है ।

आ. ‘कोरोना विषाणु के विरुद्ध अपनी प्रतिकारक्षमता बढाने के लिए आध्‍यात्‍मिक बल प्राप्‍त हो’, इसलिए बताया गया नामजप (‘श्री दुर्गादेव्‍यै नमः ।’ (३ बार) ‘श्री गुरुदेव दत्त ।’ ‘श्री दुर्गादेव्‍यै नमः ।’ (३ बार) ‘ॐ नमः शिवाय ।’) प्रतिदिन १०८ बार एक स्‍थान पर बैठकर करें । साथ ही कोरोना के लक्षण दिखाई दें तो उत्तरदायी साधकों से पूछकर आवश्‍यकतानुसार यह जप अधिक संख्‍या में करें ।

इ. कोई साधक कुलदेवता का नामजप कर रहा हो तो वह साधक उसकी इच्‍छानुसार वही जप जारी रख सकते हैं; परंतु यदि उसे अगले स्‍तर का ‘निर्विचार’ अथवा ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप करने की इच्‍छा हो, तो वह यह नामजप कर सकता है ।

ई. समष्‍टि हेतु नामजप करनेवाले संत और साधक : कुछ संत समष्‍टि हेतु कुछ घंटे नामजप करते हैं, साथ ही ६० प्रतिशत से अधिक आध्‍यात्मिक स्‍तर के कुछ साधक हिन्‍दू राष्‍ट्र की स्‍थापना के लिए धर्मप्रचार के उपक्रम करने में आ रही अनिष्‍ट शक्‍तियों की बाधाएं दूर करने के लिए नामजप करते हैं । वे सभी भी आवश्‍यक प्रार्थना कर ‘निर्विचार’ अथवा ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप करें ।’

– श्रीसत्‌शक्‍ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.

 

८.‘निर्विचार’ नामजप सभी चरणों के साधकों के लिए क्यों है ?

गुरुकृपायोग में बताया गया है कि ‘साधना के आरंभ में कुलदेवता एवं दत्तात्रेय देवता का नामजप करना चाहिए ।’ इसके साथ ही गुरुकृपायोग का एक तत्त्व है ‘स्तरानुसार साधना’ । ऐसा होते हुए भी ‘निर्विचार’ यह ‘गुरुकृपायोग में सबसे अंतिम नामजप’ प्रारंभ के साधक से लेकर संत तक कोई भी कर सकता है’ ऐसे क्यों दिया है ?’, ऐसा प्रश्‍न कुछ लोगों के मन में उठ सकता है । इसका उत्तर आगे दिए अनुसार है ।

अध्यात्म में प्रगति करने हेतु साधना के विविध चरण पूर्ण करने होते हैं । उदा. स्वभावदोष-निर्मूलन, अहं-निर्मूलन, नामजप, सत्संग, सत्सेवा, भावजागृति, त्याग एवं प्रीति । ‘नामजप’ का चरण पूर्ण कर ‘अखंड नामजप होते रहना’ इस स्थिति में आने के लिए साधक को १० से १५ वर्ष लग सकते हैं । इसमें ४ – ५ वर्षों में केवल ४-५ प्रतिशत प्रगति ही संभव है । तदुपरांत वह साधना के अगले चरण ‘सत्संग’ में आता है । इस गति से साधना में आगे जानो हो, तो एक जन्म में साधना पूर्ण नहीं हो सकती । इसलिए साधना में जिस चरण पर साधक होगा, उसके अगले चरण का थोडा-थोडा प्रयत्न करता रहे, तो साधक की प्रगति होने का वेग बढता है, उदा. नामजप करते हुए ही ‘सत्संग’ चरण के भी प्रयत्न किए, तो आध्यात्मिक प्रगति की गति बढती है । इसी नियम के आधार पर गुरुकृपायोग में प्राथमिक चरण के साधक को स्वभावदोष-निर्मूलन, अहं-निर्मूलन, नाम, सत्संग, सत्सेवा, भावजागृति, त्याग एवं प्रीति, इन आठ चरणों पर एकत्रित प्रयत्न करने के लिए कहा जाता है । इसलिए इस योगमार्ग में अन्य साधनामार्गों की तुलना में प्रगति शीघ्र होती है ।

यही बात ‘निर्विचार’ नामजप के संदर्भ में भी लागू होती है । यह जप होने हेतु साधक का आध्यात्मिक स्तर न्यूनतम ६० प्रतिशत होना चाहिए, अर्थात उसका मनोलय आरंभ होना आवश्यक है । तदुपरांत वह साधक निर्विचार स्थिति प्राप्त कर सकता है; परंतु यदि वह आरंभ से ही ‘निर्विचार’ नामजप करे, तो उसके मन पर इस नामजप का थोडा-बहुत संस्कार शीघ्रता से होता है । इससे आठ चरणों की साधना कर, आगे मनोलय के चरण पर जाने के लिए आवश्यक अवधि की तुलना में अल्प समय में वह इस चरण तक पहुंच सकता है ।

८ अ. ६० प्रतिशत से अल्प आध्यात्मिक स्तर के साधक को कौन-सा नामजप करना चाहिए ?

‘निर्विचार’ नामजप ‘निर्गुण’ स्थिति तक ले जाता है । इसलिए कुलदेवता का नामजप करनेवाले साधकों को अथवा ६० प्रतिशत से न्यून आध्यात्मिक स्तर के साधकों के लिए यह नामजप करना कठिन हो सकता है । इसलिए वे जो जप सदैव करते हैं, उसके साथ ही यह नामजप करने का प्रयत्न करें । जब यह नामजप होने लगे, तब यही जप निरंतर करें । इसलिए अंततः साधना के अगले चरण में पूरे समय यही नामजप करना है ।

– (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

८ आ. केवल ‘निर्विचार’ जप करना संभव न हो रहा हो,
तो ‘ॐ निर्विचार’ अथवा ‘श्री निर्विचाराय नमः ।’ यह नामजप करें ! !

‘कुछ साधकों को केवल ‘निर्विचार’ जप करना कठिन अनुभव हो सकता है । ऐेसे में वे ‘ॐ निर्विचार’ यह नामजप करके देखें ।
‘ॐ’ में सामर्थ्य एवं शक्ति है । इसलिए ‘निर्विचार’ इस नामजप के प्रारंभ में ‘ॐ’ जोडने से उसके उच्चार से ‘निर्विचार’ इस नामजप का परिणाम शीघ्र होने में सहायता होती है । जिनका ‘श्री निर्विचाराय नमः ।’ यह नामजप सुलभता से हो रहा हो, वे वही नामजप शुरू रखें ।’

८ इ. ‘निर्विचार’, ‘ॐ निर्विचार’ एवं ‘श्री निर्विचाराय नमः’
नामजप आध्यात्मिक कष्ट से पीडित साधक क्यों न करें ?

‘निर्विचार’, ‘ॐ निर्विचार’ एवं ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप निर्गुण की ओर ले जाते हैं । आध्यात्मिक कष्ट से पीडित साधक यह नामजप करें, तो उन्हें अनिष्ट शक्तियों से विरोध हो सकता है । विरोध तीव्र स्वरूप का हुआ, तो कष्ट से पीडित साधक के कष्ट की तीव्रता बढ सकती है और उसके लिए संतों को नामजप करने के लिए समय देना पड सकता है । इसलिए कष्ट से पीडित साधक अपना कष्ट न्यून होने हेतु बताया गया नामजप ही करे ।

६० प्रतिशत अथवा उससे अधिक आध्यात्मिक स्तर के, आध्यात्मिक कष्ट से पीडित साधक यह नामजप उन्हें बताए गए जप के कुल समय में से २० प्रतिशत समय कर सकते हैं ।

– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

 

९. कुलदेवता की सगुण उपासना के नामजप
से गुरुकृपायोगानुसार साधनामार्ग के अंतिम ‘निर्विचार’
इस निर्गुण स्‍थिति में ले जानेवाले नामजप तक साधकों की साधनायात्रा
करवाने वाले परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चरणों में अनंत अनंत कृतज्ञता !

‘कुलदेवता की उपासना करने से वह आगे उपासक को शिष्‍यपद तक ले जाती है; अतः परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी ने साधकों को गुरुकृपायोगानुसार साधना के आरंभ में कुलदेवता का नामजप करने के लिए बताया । साधना का वह चरण पूर्ण होने के पश्‍चात उन्‍होंने कालानुसार विविध जप दिए, उदा. अनिष्‍ट शक्‍तियों के कष्‍ट के निर्मूलन हेतु सप्‍तदेवताओं के जप, पंचमहाभूतों के जप, धर्मसंस्‍थापना के कार्य हेतु पोषक भगवान श्रीकृष्‍ण का जप इत्‍यादि और वह करने के लिए बताकर परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी ने काल के अनुसार आवश्‍यक तत्त्व की उपासना साधकों द्वारा करवा ली । गत वर्ष में हिन्‍दू राष्‍ट्र की स्‍थापना के कार्य को आध्‍यात्मिक बल प्राप्‍त हो, इसलिए उन्‍होंने साधकों को ‘श्री विष्‍णवे नमः’, ‘श्री सिद्धिविनायकाय नमः’ और ‘श्री भवानीदेव्‍यै नमः’, नामजप करने को कहा । इसके साथ ही परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी ने ‘शून्‍य’, ‘महाशून्‍य’, ‘निर्गुण’ और ‘ॐ’ यह निर्गुण स्‍तर के अभिनव जपों द्वारा साधकों को साधना के अगले-अगले चरणों की अनुभूतियां प्रदान की ।

अब परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी गुरुकृपायोगानुसार साधनामार्ग के अंतिम ‘निर्विचार’ अथवा ‘श्री निर्विचाराय नमः ।’ जप करने के लिए बताकर साधकों का मनोलय, बुद्धीलय, चित्तलय और अंत में अहंलय, साधना के इस अंतिम ध्‍येय की ओर शीघ्र गति से मार्गक्रमण करवा रहे हैं । साधना का कुलदेवता की सगुण उपासना के जप से आरंभ कर, परात्‍पर गुरुदेव साधकों को अब निर्गुण स्‍तर की निर्विचार स्‍थिति की ओर ले जा रहे हैं ।

इस प्रकार साधक के साधना की स्‍थिति, कष्‍ट और काल अनुसार नामजप करने को बताकर साधकों को अध्‍यात्‍म के अगली-अगली स्‍थिति तक ले जानेवाले त्रिकालज्ञानी परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी एकमेवाद्वितीय हैं ! काल की प्रतिकूलता जितनी तेजी से बढ रही है, उसके अनंत गुना, गुरुदेवजी साधकों पर कृपा बरसा रहे हैं । संपूर्ण मानवजाति के उद्धार के लिए कलियुग में भूतल पर अवतीर्ण श्रीविष्‍णु के अवतार सच्‍चिदानंद परब्रह्म परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी के चरणों में सर्व सद़्‍गुरु, संत एवं साधकों द्वारा अनंत-अनंत कृतज्ञता !’

– श्रीसत्‌शक्‍ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ

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संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात

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