दीपज्योति नमोस्तुते

Article also available in :

१. शाम के समय भगवान के सामने दीप जलाना।

शुभं करोति कल्याणं आरोग्यं धनसम्पदाम् ।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योति नमोस्तुते ॥

अर्थ : दीपक के प्रकाश को मैं नमन करता हूं जो वातावरण में शुभता, स्वास्थ्य और समृद्धि लाता है । जो वातावरण और मन से अनैतिक भावनाओं व नकारात्मक शक्ति को नष्ट करता है । इस दीपक को जलाने से सभी शत्रु भाव का नाश हो ।

हम सभी बचपन से ही शाम के समय हनुमान चालीसा, रामरक्षा, आरती अथवा ‘शुभं करोति कल्याणम्’ स्तोत्र भगवान के सामने दीप जलाकर कहते हैं । आज भी शाम के समय कहीं भी दीप जलाने पर अथवा बस में बत्ती लगाने पर बहुतांश लोग एवं बस के यात्री भी हाथ जोडकर नमस्कार करते हैं । यह दीप के प्रति उनकी श्रद्धा दर्शाती है । दिवाली अर्थात दीपों का उत्सव ! पुरातन काल से ही दीप को सर्वत्र आदर एवं श्रद्धा का स्थान है । आज भले ही बिजली के आधुनिक उपकरणों से सर्वत्र रोशनाई की जगमगाहट होती हो; परंतु जो तेज दीप में है, वह उस कृत्रिम जगमगाहट में तनिक भी नहीं होता । शाम से लेकर उषाकाल तक मानवी जीवन में दीप का विशेष महत्त्व है । फिर वह भले ही कोई भी दीप हो । दीप अथवा बत्ती को सामान्यत: प्रकाश देनेवाले साधन के रूप में मानते हैं । तब भी इसमें कोई संदेह नहीं कि उसका कार्य एवं महत्त्व असामान्य है ।

दीपों के विविध प्रकार

 

२. संतों के समान विवेकदीप का प्रज्वलित होना ही खरी दिवाली है !

दीपविश्व सतत मानव के जीवन से संबंधित होता है । दीपों के बिना जीवन का दीप अपूर्ण है । मनुष्य इन दीपों के विश्व में जी रहा है, जीता रहा है और सदैव जीता रहेगा । मनुष्य जितने दीप लगाएगा, उतनी उसकी स्वयं की, समाज की और राष्ट्र की उन्नति होगी । संत ज्ञानेश्वर महाराजजी ने भी कहा है, ‘मी अविवेकाची काजळी । फेडोनि विवेकदीप उजळी । तै योगिया पाहे दिवाळी । निरंतर ॥’ (मराठी में), अर्थात मनुष्य की यदि अविवेकरूपी कालिख नष्ट हो जाए और उसका विवेकदीप प्रज्वलित हो जाए, तो योगियों समान वह भी निरंतर दिवाली का आनंद ले पाएगा । वही उसकी वास्तविक दिवाली होगी ।’

 

३. दीपों के प्रकार !

मानव ने अनेकानेक शताब्दियों से विविध प्रकार के दीप निर्माण किए और आज भी कर रहे हैं । तब भी प्रमुखरूप से इनके तीन वर्ग हैं । तेल के दीप, गैस के दीप और बिजली के दीप ! इसके अतिरिक्त सौरऊर्जा के दीप भी ‘बिजली के दीप’ के अंतर्गत ही आते हैं ।

 

४. नयन मनोहारी दीपोत्सव !

 

५. श्रीगंगा आरती के समय उपयोग में लाए जानेवाले दीप

अनेक मंदिरों के प्रांगण में आज भी दीपमाला होती है । त्योहार अथवा उत्सवों के दिन दीप जलाए जाते हैं । तब वह दृश्य अत्यंत नयनमनोहारी होता है, जिसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता । मंदिरों की निचली सीढी से लेकर कलश तक की जानेवाली दीपमाला का आकर्षक प्रस्तुतीकरण सभी का मन मोह लेता है । आज भी अनेक मंदिरों में ऐसे दीपोत्सव देखने के लिए मिलते हैं । दीप जलाकर जब नदी में छोडे जाते हैं, तब वह दृश्य अत्यंत मनोहारी होता है । तीर्थक्षेत्र हरिद्वार में गंगा नदी में ऐसे असंख्य दीप छोडे जाते हैं, तब पानी के साथ बहते ये दीप और पानी में उनके प्रतिबिंबों का मनमोहक दृश्य सदा के लिए हमारे मन में बस जाता है ।

 

६. प्राचीन काल के दीप !

अत्यंत प्राचीन काल में समुद्र के सीपों से दीप बनाने की प्रथा थी । दीप बनाने के लिए ज्वार समान वनस्पति का उपयोग किया जाता था । इसके साथ ही कटे हुए पत्थरों का भी उपयोग करते थे । उसमें कपास की बाती एवं तेल होता था ।

Leave a Comment