अग्निहोत्र का साधना की दृष्टि से महत्त्व

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अग्निहोत्र में अग्नि को दी जानेवाली मंत्रयुक्त आहुतियों की सहायता से नित्यनैमित्तिक कर्म के स्तर पर ‘प्रजापति, इंद्र, अग्नि एवं सूर्य के आशीर्वादात्मक साक्षि में प्रत्येक कर्म भावपूर्ण अर्पण किया जाता है । अग्नि यह स्वयं ही तेजोभूत होने से वह जीव की स्थूल आशा-आकांक्षाओं को स्वयं में समाहित करनेवाला होने से अग्निहोत्र-साधना द्वारा जीव की स्थूलदेह से सूक्ष्मदेहतक शुद्धि होकर कालांतर में उसे अग्नि की सहायता से देवताओं के साकारभान में लुप्त होकर देहबुद्धि के परे, अर्थात विश्व को व्याप कर शेष परमात्मा के अंश में विलीन हो जाता है । अग्निहोत्र, यह यज्ञ बंधनमुक्त है ।

 

१. अग्नि का महत्त्व

अ. अग्नि सर्व देवताओं का साकारभान है ।

आ. अग्नि अर्थात ईश्वरीय शक्ति को आवाहन करनेवाला ऋत्विज

‘अग्नि को वेदों ने ‘दिव्य होता’, संबोधित किया है । ‘होता’ अर्थात ईश्वरीय शक्ति को आवाहन करनेवाला ऋत्विज । अग्निहोत्र के स्थान पर जब सूर्योदय-सूर्यास्त के समय हम अग्नि प्रज्वलित कर, हाथ में आहुति लेकर मनोमन परमात्मा का आवाहन एवं चिंतन करते हैं, उस समय अग्नि ईश्वरीय शक्ति को वहां लाकर प्रत्यक्ष उपस्थित करती है । (स देवाँ एह वक्ष्यति) अग्निहोत्र के समय ये दोनों मंगलकारी समय अपने उपास्य देवता अपने सम्मुख, घर में अथवा उपासना के स्थान पर प्रत्यक्ष प्रकट हुए होते हैं । इसलिए अग्निहोत्र के समय वहां अपार पवित्रता एवं मंगलमय वातावरण निर्माण होता है ।

इ. देवताओं के ‘मुख’स्वरूप अग्नि

वेदों ने अग्नि को ‘दैवीय शक्ति का मुख’ अथवा ‘हव्यवाहन’, भी संबोधित किया है । हम भले ही किसी भी स्वरूप में ईश्वरोपासना कर रहे हों । आप भले ही शिवभक्त हो अथवा विष्णुभक्त । आप गणेश, सूर्य, मातृशक्तिदेवी, श्रीरामचंद्र, हनुमानजी में से किसी भी रूप में ईश्वरोपासना कर रहे हों । इन सभी को उद्देशित कर आप जो भी आहुति अर्पण करने के इच्छुक हैं, वे सभी देवताओं के ‘मुख’स्वरूप अग्नि में ही अर्पित करनी होती है । जैसे किसी को कोई पदार्थ खाने की इच्छा हो, तो सहज ही मुख में डालकर ही खाया जा सकता है, उसीप्रकार किसी भी देवता को उद्देशित कर दिया जानेवाला हविर्भाग अग्नि को ही अर्पित करना होता है ।

ई. अग्नि की साक्ष में की जानेवाली साधना के परिणामों की उपयुक्तता

  • अग्नि की साक्ष में किया गया कोई भी कर्म जीव को निर्विघ्न पूर्ण चैतन्य की फलप्राप्ति करवाता है ।
  • जिस समय अग्नि की साक्ष से जीव उसके तत्त्वरूपी ईश्वरत्व को भजने लगता है, उसी समय वह कर्म खरे अर्थ में साधना में रूपांतरित होता है ।

 

२. अग्निहोत्र की व्याख्या

  • अग्निहोत्र अर्थात तेज के आधार पर ईश्वर के प्रत्यक्षरूपी सगुण एवं तत्त्वरूपी निर्गुण स्वरूप चैतन्य आकृष्ट करने के लिए हाथ में लिया व्रतरूपी अनुष्ठान ।
  • अग्निहोत्र अर्थात अग्न्यन्तर्यामी आहुति अर्पण कर की जानेवाली ईश्वरीय उपासना ।

 

३. अग्निहोत्र के प्रवर्तक

अग्निहोत्र के रूप में वेदों द्वारा वर्णित प्राचीन अग्नि-उपासना, आज के आधुनिक युग में कोई भी व्यक्ति सहजता से कर सकता है । ऐसे अग्निहोत्र का पुनरुज्जीवन, सत्यधर्मप्रणेता परमसद्गुरु श्रीगजाननमहाराज (शिवपुरी, अक्कलकोट) ने किया है ।

 

४. अग्निहोत्र का महत्त्व

  • अग्निहोत्र से निर्माण होनेवाली अग्नि, यह रज-तम कणों को विघटित करनेवाली एवं वायुमंडल में दीर्घकाल टिकनेवाली होने से यदि सातत्य से यह किया जाए, तो मनुष्य के सर्व ओर १० फुट के अंतर तक संरक्षककवच बना देती है । यह कवच तेजविषयक बातों के स्पर्श से अत्यंत संवेदनशील होता है । सूक्ष्म से यह कवच कत्थई रंग का दिखाई देता है ।
  • जिस समय अच्छी बातों से संबंधित तेज इस कवच के सान्निध्य में आता है, उस समय कवच कत्थई रंग के तेज के कण इस तेज को स्वयं में समाहित कर अपने कवच को सुदृढ बनाते हैं ।
  • रज-तमात्मक तेजकण, कर्कश स्वरूप में आघात निर्माण करनेवाले होने से वे निकट आने से इस कवच को पहले ही पता चल जाता है और वह स्वयं में से प्रतिक्षिप्त क्रिया के रूप में अनेक तेजतरंगों को वेग से ऊत्सर्जित कर उस कर्कश नाद को ही नष्ट कर देता है । इसके साथ ही उस नाद से उत्पन्न करनेवाले तेजकणों को भी नष्ट कर देता है । इसके परिणामस्वरूप उन तरंगों में विद्यमान तेज इस आघात को सामर्थ्यहीन बना देता है । अर्थात बम में आघातात्मक विघातक स्वरूप में ऊत्सर्जित होनेवाली ऊर्जा की वलय पहले ही मारी जाने से बम किरणोत्सर्ग होने की दृष्टि से निष्क्रीय बनता है । इससे वह भले ही फेंका जाए, तब भी आगे होनेवाली मनुष्यहानि कुछ मात्रा में टल जाती है । बमविस्फोट होने पर उससे वेग से जानेवाली तेजरूपी रज-तमात्मक तरंगें वायुमंड में सूक्ष्मतररूपी अग्निकवच से टकराकर उसी में विघटित हो जाती हैं और उसका सूक्ष्म-परिणाम भी वहीं समाप्त हो जाने से वायुमंडल अगले प्रदूषण के धोके से मुक्त रहता है ।

 

साधकों सहित सामान्य जनता के प्राण बचाने के लिए
प.पू. डॉक्टर (डॉ. आठवले, संकलक) ने बताया उपाय अर्थात अग्निहोत्र !

प.पू. डॉक्टर ने साधकों सहित सामान्य जनता को भी यदि साधना नहीं, तो घर बैठे अग्निहोत्ररूपी प्रक्रिया का उपाय सुझाएं । अग्निहोत्र करने से उन्हें समष्टि साधना का फल मिलनेवाला है एवं अनेक जीवों के प्राण बचेंगे । इसका उन्हें पुण्य मिलेगा ।

संदर्भ : सनातन – निर्मित ग्रंथ ‘अग्निहोत्र’

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