पति को ’कोरोना विषाणु’का संसर्ग होने के उपरांत श्रीमती भक्ती भिसे को हुए अनुभव एवं अनुभूतियां !

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सौ. भक्ती भिसे

 

१. ‘पति को कोरोना हुआ है’, यह सत्य स्वीकार न कर पाने
से मन में अनेक नकारात्मक विचार आकर भय एवं असुरक्षितता लगना

९.७.२०२० को मेरे पति श्री. नित्यानंद की ‘कोरोना विषाणु’ की जांच की गई । जांच की रिपोर्ट आने पर पता चला कि उन्हें कोरोना हुआ है । तब से मेरे नकारात्मक और डर के विचार बढ गए । जब उन्हें उपचार के लिए अस्पताल में भरती किया गया, तब मेरे मन में भय के विचार और अधिक बढ गए और मुझे असुरक्षित लगने लगा । उस समय पति को ‘कोरोना हुआ है’, यह वास्तविकता मैं स्वीकार नहीं कर पा रही थी ।

 

२. भगवान और संत का अमूल्य मार्गदर्शन

२ अ. आपातकाल में यह प्रसंग सीखने के लिए दिया है कि
आगे ऐसे प्रसंगों में मन की स्थिरता रखनी है ऐसा भगवान द्वारा विचार देना

उसी दिन शाम को मैं और मेरी बेटी दुर्वा (साल साढे तीन वर्ष) (वर्ष २०१८ में चि. दुर्वा का आध्यात्मिक स्तर ५७ प्रतिशत घोषित हुआ था ।) दोनों ने सदैव की भांति आरती की । तदुपरांत मैं भगवान श्रीकृष्ण से मन ही मन बात करने लगी । मैं बोली, ‘‘अन्यों को यह रोग नहीं होता । फिर हमारे ही घर में यह कैसे आ गया ?’’ तब भगवान ने सूक्ष्म से कहा, ‘‘यह आपातकाल है । इस आपातकाल में यह प्रसंग तुम्हें सीखने के लिए दिया है । आगे ऐसे प्रसंगों में मन में स्थिरता रखनी है ।’’

२ आ. यह प्रारब्ध का भाग होने से गुरु प्रारब्ध की तीव्रता कम कर रहे हैं,
अत: अधिकाधिक नामजप कर अनुसंधान में रहने के लिए पू. (श्रीमती) अश्विनी पवार का कहना

तदुपरांत पू. (श्रीमती) अश्विनी पवार का दूरभाष आया । उन्होंने बताया, ‘‘यह प्रारब्ध होने से गुरु प्रारब्ध की तीव्रता कम कर रहे हैं । इसलिए तुम अधिकाधिक नामजपादि उपाय करो और गुरुदेवजी से सूक्ष्म से बात करो ।’’ इस प्रकार उन्होंने मुझे गुरुदेवजी का स्मरण करते रहने के लिए कहा । उस अनुसार मैंने प्रयत्न किए, तब २ दिनों में ही मेरे भय के विचार दूर हो गए ।

चि. दुर्वा भिसे

 

३. पडोसी एवं सगे-संबंधियों द्वारा पूछे जाने पर कि
‘तुम्हें कोरोना के लक्षण हैं क्या ?’, मन की अस्वस्थता बढकर तनाव आना
और उस विषय में जांच करवाएंगे’, ऐसा देवर के कहने पर मन के विचार थम जाना

तदुपरांत ३ दिनों में हमारे पडोसी और सगे-संबंधियों ने पूछा, ‘‘तुम्हें कोरोना के लक्षण हैं क्या ? तुमने जांच करवाई है क्या ?’, ऐसे प्रश्न पूछने लगे । जब ऐसी पूछताछ अनेकजन करने लगे तो पुन: डर के विचार आने लगे । अब तो ऐसे विचार आने लगे कि ‘मुझे और दुर्वा को भी कोरोना हो गया है क्या ?’, इससे मन की अस्वस्थता बढ गई और मुझे तनाव आने लगा । उस समय विचार बहुत बढ गए थे । तब मुझे सूझ नहीं रहा था कि इस विषय में साधकों से बात करूं । आवरण निकालूं अथवा ये विचार कागद पर लिखकर उस कागद को जला दूं ।’ तदुपरांत मैंने अपने देवर से इस संबंध में बात की तो उन्होंने कहा ‘‘हम जांच करवा लेंगे ।’’ तत्पश्चात मेरे विचार थम गए ।

 

४. साधक, पडोसी और सगे-संबंधियों की मिली सहायता

४ अ. साधकों ने नामजपादि उपाय करने के लिए बताकर सतत अनुसंधान बढाने के लिए कहना

साधक बारंबार संपर्क कर हमारी पूछताछ कर रहे थे । तदुपरांत मैंने साधकों के बताए अनुसार मन के सभी विचार लिखकर, वह कागद अग्नि में विसर्जित किया । अगले दिन से मैंने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का छायाचित्र सतत साथ में रखा । मैंने उनसे सूक्ष्म से बोलना आरंभ किया और उनका अधिकाधिक स्मरण करने लगी ।

४ आ. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा के कारण ही
पडोसियों द्वारा सहायता की तैयारी दर्शाना और धीरज बंधाना

श्री. नित्यानंद को अस्पताल में भरती करते ही सोसायटी के अनेक लोगों ने दूरभाष कर कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो । कुछ भी चाहिए, तो हमें बताना । हम सहायता करेंगे ।’ वर्तमान में समाज में कोरोना के रोगियों को उनके घरवालों द्वारा बहिष्कृत किए जाने के अनेक उदाहरण पाए जा रहे हैं, ऐसे में केवल परात्पर गुरु डॉक्टरजी की कृपा से लोगों का सकारात्मक व्यवहार अनुभव हो रहा था ।

४ इ. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के छायाचित्र के सामने
मन के विचार कहने के लिए बहन द्वारा बताया जाना

उस रात मुझे मेरी मां (श्रीमती सुनंदा काते) और बडी बहन (श्रीमती शोभा नटे) का दूरभाष आया । (मां और बडी बहन भी साधना करती हैं ।) तब मैंने उन्हें कोरोना संदर्भ में जांच के विषय में बताया तो उन्होंने कहा, ‘‘यदि तुममें कोरोना विषाणु के लक्षण दिखाई न दे रहे हों, तो तुम जांच क्यों कर रहे हो ? परात्पर गुरुदेव हैं ना ! वे तुम्हें संभालेंगे । तुम उन्हीं को सब विचार क्यों नहीं बताती और ऐसे नकारात्मक विचार करने के बजाय परात्पर गुरुदेवजी का स्मरण क्यों नहीं करती ? तुम परात्पर गुरुदेवजी का छायाचित्र सामने रखकर उन्हें सभी विचार बताओ ।’’

 

५. स्वयं को कोरोना विषाणु का संसर्ग होने के विषय में
और अन्य सर्व विचार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के छायाचित्र के
सामने बैठकर उन्हें बताते समय ‘मां, देखो डॉक्टरबाबा आए हैं !’
ऐसा बेटी का कहना और यह सुनते ही मन के सभी विचार थम जाना

मैंने परात्पर गुरु डॉक्टरजी का छायाचित्र लिया और उन्हें मेरे मन में निर्माण हुआ अकेलापन, असुरक्षितता एवं डर संबंधी विचार, इसके साथ ही हमें ‘कोरोना विषाणु’का संसर्ग हो गया इस संदर्भ में भावना’, ऐसे सर्व विचार उन्हें बताए और मैं उनके छायाचित्र के सामने रोई । तब मेरी बेटी चि. दुर्वा अचानक बोली, मां, डॉक्टरबाबा आए हैं देखो !’’उसके ये उद्गार सुनते ही मेरे मन के विचार क्षणभर में ही रुक गए । परात्पर गुरु डॉक्टर हमारे साथ हैं और वे हमारी रक्षा कर ही रहे हैं, ऐसी मेरी श्रद्धा बढ गई । कुछ क्षणों पूर्व जो अस्वस्थता, नकारात्मकता और अकेलापन था वह दूर हो गया और मुझे अचानक धैर्य आ गया । परात्पर गुरु डॉक्टर किस प्रकार हमें संभाल रहे हैं’ , यह मेरे ध्यान में आया ।

 

६. इस अवधि में भोजन भी न्यून होना और
उस समय परात्पर गुरु डॉक्टर ने ही ‘यह आश्रम का महाप्रसाद है’,
ऐसा भाव रखकर अन्न ग्रहण करने के लिए सूक्ष्म से बताना ।

इस अवधि में मेरा भोजन भी कम हो गया था । तब सूक्ष्म से परात्पर गुरु डॉक्टर ने ही आकर कहा कि ‘यह आश्रम का महाप्रसाद है, ऐसा भाव रखकर अन्न ग्रहण करो ।’ तदुपरांत मैं भोजन करने लगी और मेरे भावजागृति प्रयत्नों में भी वृद्धि होने लगी ।

 

७. चि. दुर्वा के माध्यम से परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का समय-समय पर ध्यान रखना

७ अ. दुर्वा के सहज बोलने से सकारात्मक रहते आना

श्री. नित्यानंद अस्पताल में जाने के उपरांत मुझे जब-जब पडोसी अथवा सगे-संबंधियों के दूरभाष आते, तब मुझे रोना आ जाता था । यह देखकर एक बार दुर्वा अचानक बोली, ‘‘मां, तुम हमेशा रोती क्यों हो ? भगवान का हम पर ध्यान है ।’’ ऐसा कहकर वह फिर खेलने लगी । उसकी बात से मुझे भी कुछ समय सकारात्मक लगा ।

७ आ. दुर्वा का नामजप आदि उपाय करने के लिए कहना

मन के नकारात्मक विचारों के कारण मुझे कुछ करने की इच्छा नहीं होती थी । तभी दुर्वा आकर मुझे नामजप करने के लिए कहती और कपूर लाकर देते हुए उपाय के लिए बताती ।

७ इ. दुर्वा का श्रीकृष्ण के निकट जाकर आर्तता से प्रार्थना करना कि पिताजी को शीघ्र ठीक होकर घर आने दें

‘‘सगे-संबंधियों का दूरभाष आने पर पिताजी ठीक हैं । वे शीघ्र ठीक होकर घर आएंगे’’, ऐसे दुर्वा सभी को बता रही थी । प्रतिदिन संध्याकाल में आरती करने के उपरांत दुर्वा भगवान श्रीकृष्ण से विनती करती कि मेरे पिताजी को शीघ्र स्वस्थ होकर घर आने दें । हमें शीघ्र आश्रमभगवान में (दुर्वा देवद आश्रम को ‘आश्रमभगवान’ कहती है ।) आने दें’, ऐसी प्रार्थना करती थी ।

 

८. श्री. नित्यानंद को बुखार आने से पूर्व ‘कोरोना हुआ है’,
ऐसे दुर्वा के बारंबार बोलने से वह पूर्वसूचना थी, यह ध्यान में आना

श्री. नित्यानंद को बुखार आने के एक दिन पूर्व दुर्वा अपनी बुआ से बात करते समय बार-बार कह रही थी ‘कोरोना हुआ है, कोरोना हुआ है ।’ तब मैंने उसे डांटा; परंतु दुर्वा को मिली यह ‘पूर्वसूचना थी’, यह बाद में मेरे ध्यान में आया ।

 

९. श्री. नित्यानंद को बुखार आने पर उनके कक्ष में
दुर्वा को जाने से मना करने पर उसका वहां न जाना

श्री. नित्यानंद को जिस दिन बुखार आया, तब से वे स्वतंत्र कक्ष में अकेले रहने लगे । हम दोनों बाहर की खोली में रहने लगे । उस दिन मैंने दुर्वा को पिताजी के कमरे में जाने से मना किया । तब से बुखार आने के पश्चात ७ दिन श्री. नित्यानंद उस कक्ष में थे, फिर अस्पताल में भरती हो गए । तदुपरांत वह कक्ष सैनिटाईज किया । पति के अस्पताल में होने तक वह कक्ष बंद था । दुर्वा भी उस कक्ष में नहीं जाती थी ।

 

१०. श्री. नित्यानंद की अलगीकरण की अवधि
समाप्त होने के एक दिन पूर्व वह अपने पिता को
देखकर पूछना कि आप मुझसे तब खेलेंगे ?’’

श्री. नित्यानंद घर आने पर पुन: १४ दिन उस कक्ष में अकेले रहते थे । इस प्रकार संपूर्ण १ मास (महिना) हमारे लिए वह कक्ष बंद था । उस अवधि में दुर्वा ने उस कक्ष में जाने का कभी हठ नहीं किया । श्री. नित्यानंद के घर लौटने पर १४ दिन विलगीकरण में थे । वे केवल प्रसाधनगृह में (शौचालय अथवा स्नान) जाने के लिए बाहर के कक्ष में आते थे । तब दुर्वा उन्हें कहती, तुरंत कक्ष में जाएं, दूर रहें; परंतु १४ दिन समाप्त होने से एक दिन पूर्व से वह पिताजी से पूछने लगी, ‘बाबा, आप बाहर कब आएंगे ? मेरे साथ कब खेलेंगे ।’

– श्रीमती भक्ती नित्यानंद भिसे, देवद गाव, पनवेल (८.८.२०२०)

  • इस लेख में प्रकाशित की गईं अनुभूतियां भाव वहां भगवान, इस उक्तीनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वे सभी को आएंगी ही, ऐसा नहीं है । – संपादक
  • सूक्ष्म : व्यक्तीचे स्थूल म्हणजे प्रत्यक्ष दिसणारे अवयव नाक, कान, डोळे, जीभ आणि त्वचा ही पंचज्ञानेंद्रिये आहेत. ही पंचज्ञानेंद्रिये, मन आणि बुद्धी यांच्या पलीकडील म्हणजे सूक्ष्म. साधनेत प्रगती केलेल्या काही व्यक्तींना या सूक्ष्म संवेदना जाणवतात. या सूक्ष्माच्या ज्ञानाविषयी विविध धर्मग्रंथांत उल्लेख आहेत.
संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात

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