फंड की कमी के कारण यहां रेत में ही दबा है हिन्दुओंका प्राचीन गौरवशाली इतिहास !

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जैसलमेर – जैसलमेर से १६ किमी की दूरी पर रेत की परतों के नीचे लोद्रवापुर का गौरवशाली इतिहास दबा है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह नौवी सदी में इस क्षेत्र पर शासन करने वाले भाटी राजपूतों की राजधानी हुआ करती थी। अनेक क्रूर इस्लामी आक्रमणकारियों के बार-बार हमले ने इसके गौरव को क्षीण कर दिया। एएसआई ने इस जगह की खुदाई दस साल पहले शुरू कर दी थी, किंतु कुछ समय बाद फंड की कमी होने के कारण काम को रोक दिया गया।

वर्तमान में पश्‍चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में हजारदुआरी पैलेस म्‍यूजियम में सहायक पुरातत्वविद अधीक्षण के तौर पर कार्यरत, एएसआई ऑफिसर, नयन चक्रवर्ती की निगरानी में लोद्रावापुर में खुदाई का काम दस साल पहले शुरू हुआ था।

खुदाई के दौरान सुंदर वास्‍तु कला के नमूनों, सैंकड़ो मूर्तियां, दीवार, महल के गोदाम व अन्‍य चीजों समेत भगवान गणेश का प्राचीन मंदिर का गुंबद मिला था। चक्रवर्ती ने वहां ८-१० मंदिर के होने की संभावना जतार्इ है, जिसमें से एक भगवान गणेश का मंदिर था। इसके अलावा वहां आठवीं सदी के कई प्राचीन बिल्‍डिंग होंगे।

किंतु उसके बाद फंड की कमी के कारण खुदाई का काम रोक दिया गया। खुदाई के बाद एक नया पर्यटन स्‍थल विकसित हो सकता था जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र होता।

खुदाई में प्राप्‍त हुई प्राचीन वस्‍तुओं को सुरक्षित रखा गया। इसके अलावा, बड़ी संख्‍या में पीले पत्थरों पर कलाकृतियों के अवशेष, भगवान शिव और गणेश आदि की कलात्मक मूर्तियां भी पाए गए।

ऐसा कहा गया कि क्रूर शासक मोहम्‍मद गजनी ही इस राजधानी के विध्‍वंस का कारण है । उसने लोद्रवापुर पर हमला कर सभी हिंदू मंदिरों को तोड दिया। उसने सभी देवी देवताओं की मूर्तियों के नाक काट डाले। खुदाई में मिले सभी भगवान की मूर्तियों के चेहरे क्षतिग्रस्‍त हैं।

चक्रवर्ती ने कहा, ‘भाटियों की राजधानी लोद्रवा, प्राचीन लोद्रवा, ९ वीं से १० वीं शताब्दी ईस्वी के आसपास एक समृद्ध शहर था। इसके अवशेष अभी भी मौजूदा जैन मंदिर के पीछे एक बड़े क्षेत्र में फैले हुए प्राचीन खंडहर के रूप में दिखाई दे रहे हैं। गुज्‍जरों और प्रतिहारस की कला को जानने के लिए इन प्राचीन खंडहरों से काफी मदद मिल सकती है।’

प्रसिद्ध इतिहासकार नंद किशोर शर्मा ने कहा कि करीब ३००साल पहले १२१२ में जैसलमेर की स्‍थापना हुई थी, उस वक्‍त काक नदी के किनारे लोद्रवापुर काफी समृद्ध शहर हुआ करता था। ८००-१२०० इसवी सन पूर्व में इस क्षेत्र पर कई आक्रमणकारियों, शहाबुद्दीन, मोहम्‍मद गजनवी, कुतुबुद्दीन अहमद आदि ने हमला किया।

शर्मा ने बताया कि प्राप्‍त सबूतों के अनुसार, लोद्रवापुर बड़ा शहर था यह १० मील तक फैला हुआ था और इसके १२ प्रवेश द्वार थे। यह शहर मंदिरों से भरा था, विशेषकर यहां शिव मंदिर थे। आज भी, लोद्रवा के आसपास १० किमी के क्षेत्र में रूपसी रामकुंड, वैशाकी तैन जैसे कई तीर्थस्‍थल हैं।

स्त्रोत : नर्इ दुनिया

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