सर्वत्र बढते जा रहे ‘कोरोना’के प्रकोप के कारण भयभीत न होकर निम्‍नांकित स्‍वसूचनाएं देकर आत्‍मबल बढाएं !

पाठक, हितचिंतक और धर्मप्रेमियों से अनुरोध !

‘आजकल भारत के साथ अन्‍य कुछ देशों में भी संक्रमणकारी विषाणु ‘कोरोना’का प्रकोप हुआ है । इसके कारण सर्वत्र का जनजीवन अस्‍तव्‍यस्‍त होकर सर्वसामान्‍य नागरिकों में भय का वातावरण है । ऐसी स्‍थिति में ‘छोटे-मोटे कारणों से मन विचलित हो जाना, चिंता होना, साथ ही भय प्रतीत होकर अस्‍वस्‍थता आना’ आदि प्रकार से स्‍वभावदोषों का प्रकटीकरण होने की संभावना होती है । ऐसी स्‍थिति में योग्‍य स्‍वसूचनाएं देने से प्राप्‍त स्‍थिति से बाहर निकलने में सहायता मिलती है । इस दृष्‍टि से मनोबल बढकर स्‍थिर रहना संभव होने हेतु ‘अंतर्मन को कौनसी स्‍वसूचनाएं दी जा सकती हैं ?’, इसका विवरण आगे दिया गया है ।

 

१. मन में आनेवाले विविध विचार और उन्हें अल्प करने हेतु आवश्यक स्वसूचनाएं

१ अ. अयोग्य विचार : वर्तमान प्रतिकूल परिस्थिति देखकर मन अस्वस्थ होने से दुख होना (परिस्थिति स्वीकार करना संभव न होना)

१ अ १. स्वसूचना : जिस समय ‘कोरोना’ के कारण उत्पन्न प्रतिकूलता को देखकर मुझे दुख होगा, उस समय ‘यह सब ईश्‍वरेच्छा से हो रहा है तथा संकटकाल का सामना करने हेतु भगवान ही हम सभी के मन की तैयारी करवा रहे हैं’, इसका भान होगा और ‘ईश्‍वर मुझे इससे क्या सिखा रहे हैं’, इसका मैं चिंतन करूंगा ।

१ आ. अयोग्य विचार : ‘संकटकालीन स्थिति में साधना के प्रयास करना कठिन है’, ऐसा लगना

१ आ १. स्वसूचना : जिस समय मुझे लगेगा कि ‘संकटकालीन स्थिति में साधना के प्रयास करना कठिन है’ , उस समय ‘वर्तमान स्थिति में भी मन के स्तर पर मैं साधना के सभी प्रयास (स्वभावदोष एवं अहं का निर्मूलन, भाववृद्धि के प्रयास आदि) सहजता से कर सकता हूं’, इसका मुझे भान होगा और शांतिकाल की अपेक्षा संकटकाल में साधना का मूल्य अनेक गुना बढ जाता है और किए प्रयासों का फल भी अधिक मिलता है; इसलिए मैं सकारात्मक रहकर प्रयास करूंगा ।

१ इ. अयोग्य विचार : ‘मैं घर पर रहकर जीवन के इतने महत्त्वपूर्ण दिन व्यर्थ कर रहा हूं’, यह विचार आना

१ इ १. स्वसूचना : जिस समय मेरे मन में विचार आएगा कि ‘मैं घर पर रहकर जीवन के इतने महत्त्वपूर्ण दिन व्यर्थ कर रहा हूं’, उस समय मुझे भान होगा कि ‘वर्तमान स्थिति में कोरोना के कारण सभी नागरिक घर पर ही रहें’, प्रशासन के इस आदेश का अचूकता से पालन करना मेरी साधना है और मैं उत्तरदायी साधकों से पूछूंगा कि मैं घर बैठे व्यष्टि और समष्टि साधना के कौनसे प्रयास कर सकता हूं ।’

१ ई. अयोग्य विचार : ‘मैं घर पर रहकर बहुत ऊब गया हूं’, यह विचार आना

१ ई १. स्वसूचना : जिस समय मेरे मन में यह विचार आएगा कि ‘घर पर रहकर मैं बहुत ऊब गया हूं’, उस समय मुझे भान होगा कि ‘घर के काम यदि मैं सेवा के रूप में करूं, तो उससे मेरी साधना होगी, साथ ही घर बैठे व्यष्टि साधना (स्वभावदोष-अहं निर्मूलन, भाववृद्धि के प्रयास एवं आध्यात्मिक उपाय) करना तथा यथासंभव समष्टि सेवा करना श्री गुरुदेवजी को अपेक्षित है ।’ मैं उसके लिए प्रयास करूंगा ।

१ उ. अयोग्य विचार : ‘मुझे कोरोना का संक्रमण हो गया, तो मेरी मृत्यु हो जाएगी’, यह भय प्रतीत होना

१ उ १. स्वसूचना : जिस समय मेरे मन में ‘मुझे कोरोना का संक्रमण होने पर मेरी मृत्यु हो जाएगी’, यह विचार आएगा, उस समय ‘प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु का समय तो ईश्‍वर ही सुनिश्‍चित करते हैं ।’ अतः केवल कोरोना के कारण ही नहीं, अपितु किसी भी कारणवश मनुष्य की मृत्यु हो सकती है’, इसका मुझे भान होगा और मनुष्य जन्म सार्थक होने हेतु मैं साधना पर अपना ध्यान केंद्रित करूंगा ।

१ ऊ. अयोग्य विचार : ‘इस प्रकार की कठिन परिस्थिति का सामना करने हेतु आवश्यक मनोबल मुझमें नहीं है’, ऐसा लगने से तनावग्रस्त होना

१ ऊ १. स्वसूचना : जिस समय ‘कठिन परिस्थिति का सामना करने हेतु आवश्यक मनोबल मुझमें नहीं है’, ऐसा लगने से मैं तनावग्रस्त होने लगूंगा, उस समय ‘दयानिधि भगवान अच्छी और बुरी दोनों स्थितियों में मेरे साथ हैं । अतः प्रतिकूल स्थिति में भी मुझे क्या करना चाहिए’ यह सुझाकर वे ही मेरा मनोबल बढानेवाले हैं’, इसका मुझे भान होगा और मैं ईश्‍वर पर दृढ श्रद्धा रखूंगा ।

१ ए. अयोग्य विचार : ‘मुझे कारोना विषाणु का संक्रमण होगा’, इस विचार से भय प्रतीत होना ।

१ ए १. स्‍वसूचना : जिस समय मेरे मन को ‘मुझे कोरोना विषाणुओं का संक्रमण होगा’, इस विचार से भय प्रतीत होगा, उस समय ‘मैं आवश्‍यक सावधानियां बरत रहा हूं’, इसका मुझे स्‍मरण दिलाऊंगा और दिनभर अधिकाधिक समय नामजप और प्रार्थनाएं कर मैं सत् में रहूंगा ।

१ ऐ. अयोग्य विचार : औषधीय चिकित्‍सा कर भी लडकी की सरदी/ बुखार न्‍यून न होने से उसकी चिंता होना ।

१ ऐ १. स्‍वसूचना : जब बेटी को कई दिनों से सरदी/ बुखार को लेकर मुझे चिंता होगी, तब मुझे भान होगा कि ‘सरदी/बुखार केवल कोरोना विषाणुओं के संक्रमण के कारण ही नहीं होता’, इसलिए मैं ईश्‍वर के प्रति श्रद्धा रखकर आधुनिक वैद्यों द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार उसे औषधियां दूंगा और उसकी स्‍थिति के संदर्भ में उन्‍हें समय-समय पर सूचित करूंगा ।

१ ओ. प्रसंग : ‘कोरोना विषाणुओं के प्रकोप के कारण मेरे परिवारजन मुझसे मिलने हेतु यात्रा नहीं कर सकते’, इसकी चिंता होना ।

१ ओ १. स्‍वसूचना : जब मुझे चिंता होगी कि मेरे परिवारजन मुझसे मिलने हेतु यात्रा नहीं कर सकते’, तब भान होगा कि यह एक तात्‍कालीन स्‍थिति है । संक्रमणकारी रोग के प्रकोप के कारण सभी की सुरक्षा की दृष्‍टि से यात्रा न करना ही हितकारी है । अत: मैं ‘मुझे और परिवारजनों में कोरोना विषाणुओं का संक्रमण न हो’; इसके लिए सुरक्षा की दृष्‍टि से सरकारी तंत्र द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों का पालन कर अपने स्‍वास्‍थ्‍य का ध्‍यान रखूंगा ।

१ औ. प्रसंग : आजकल यातायात बंदी है और उससे सर्वत्र जीवनावश्‍यक वस्‍तुओं (दूध, अनाज, औषधि आदि) की किल्लत होने से ‘क्‍यो वो मुझे उपलब्‍ध होंगे ना ?’, इसकी चिंता होना ।

१ औ १. स्‍वसूचना : जिस समय ‘आजकल जीवनावश्‍यक वस्‍तुओं की किल्लत होने से क्‍या मुझे ये वस्‍तुएं उपलब्‍ध होंगी ना ?’, इसकी चिंता होती हो, उस समय ‘भारत सरकार ने सभी नागरिकों को ये वस्‍तुएं उपलब्‍ध हों; इसके लिए उनका घर-घर वितरण करने की व्‍यवस्‍था की है’, इसका मुझे भान होगा । इसके कारण मैं निश्‍चिंत होकर नामजप और प्रार्थनापर ध्‍यान केंद्रित करूंगा ।

 

२. स्‍वसूचनाएं देने की पद्धति

हमारे मन में उक्‍त विचारों में से जिन अयोग्‍य विचारों के कारण तनाव और चिंता होती है, उन विचारोंपर १५ दिनोंतक अथवा विचारों के न्‍यून होनेतक संबंधित स्‍वसूचना दें । दिनभर में इन स्‍वसूचनाओं के ५ सत्र करें । एक सत्र में अंतर्मन को एक स्‍वसूचना ५ बार दें ।

 

३. मन एकाग्र कर स्‍वसूचना सत्र करें और
अल्‍पावधि में ही मन के अयोग्‍य विचारों के न्‍यून होने का अनुभव करें !

अनेक लोगों ने इसका अनुभव किया है कि मन एकाग्र कर स्‍वसूचनाओं के सत्र करने से अंतर्मनपर उन सूचनाओं से संस्‍कारित होता है और उससे ‘मन में व्‍याप्‍त तनाव और चिंता के विचार अल्‍पावधि में ही न्‍यून हो जाते हैं । अतः मन एकाग्र कर स्‍वसूचना सत्र करें । मन में आ रहे अर्थहीन विचारों के कारण सत्र एकाग्रता से न होता हो, तो थोडे ऊंचे स्‍वर में (पुदपुदते हुए) स्‍वसूचना सत्र कर सकते हैं अथवा कागदपर लिखी हुई सूचना पढ सकते हैं । इससे विचारों की ओर ध्‍यान न जाकर वो अपनेआप ही न्‍यून होंगे और स्‍वसूचना का परिणामकारी सत्र होगा । ऊंचे स्‍वर में सत्र करते समय ‘उससे अन्‍यों को बाधा नहीं पहुंचेगी’, इसकी ओर ध्‍यान दें । उक्‍त पद्धति के अनुसार अन्‍य किस विचार के कारण तनाव, चिंता आदि उत्‍पन्‍न होते हों, तो हम उसके लिए भी स्‍वसूचनाएं ले सकते हैं ।

(मन की समस्‍याओं को दूर करने हेतु ‘मन को योग्‍य स्‍वसूचनाएं देना’, स्‍वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया का एक भाग है । संपूर्ण स्‍वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया की जानकारी सनातन की ग्रंथमाला ‘स्‍वभावदोष एवं अहं का निर्मूलन (७ खण्‍ड) ग्रंथ में दी गई है ।)

‘आज की इस प्रतिकूल स्‍थिति में ईश्‍वर ही हमारी रक्षा करनेवाले हैं’, यह श्रद्धा रखकर साधना बढाएं !’

– (सद़्‍गुरु) श्रीमती बिंदा सिंगबाळजी, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२७.३.२०२०)

 

४. संकटकालीन स्थिति के कारण चिंता, तनाव
आदि के कारण मन अस्वस्थ होने पर निम्नांकित सूचना लें !

१. मन को स्वसूचना देने का स्मरण कराने हेतु आवश्यक स्वसूचना

जिस समय वर्तमान स्थिति को देखकर मेरा मन अस्वस्थ होगा/मुझे चिंता होगी, तब ‘यदि मैं इस विषय पर उचित स्वसूचना लूं, तो मैं इन विचारों पर शीघ्र विजय पा सकूंगा’, इसका भान होगा और निश्‍चिंत होकर मैं मन को संबंधित स्वसूचना लूंगा ।

२. मन का उत्साह और सकारात्मकता बढाने हेतु निम्नांकित सूचना दी जा सकती है !

‘परात्पर गुरुदेवजी ने कुछ वर्ष पूर्व ही संभावित संकटकाल के संदर्भ में सभी को सूचित किया था और उन्होंने उसके परिणामकारी उपाय भी बता दिए थे । मुझे ऐसे द्रष्टा और सर्वज्ञ गुरुदेवजी का मार्गदर्शन मिल रहा है; इसलिए मैं अत्यंत सौभाग्यशाली हूं । मैं लगन के साथ गुरुदेवजी को अपेक्षित साधना करने का प्रयास करूंगा ।’

यह सूचना देने से गुरुदेवजी के प्रति कृतज्ञताभाव उत्पन्न होकर साधना के प्रयास अधिक उत्साह के साथ होंगे ।

मन अस्वस्थ होने के कारण अन्य प्रयास करना संभव न हो, तो उक्त क्रमांक १ और २ की सूचना ५-५ बार लेनी आवश्यक है ।

३. ईश्‍वर के प्रति श्रद्धा बढाने हेतु निम्नांकित सूचना पढें !

ईश्‍वर के प्रति श्रद्धा हो, तो किसी भी संकट से तरने का बल मिलता है । श्रद्धा बढाने हेतु निम्नांकित सूचनाओं में से अंतर्मन को स्वीकार्य चयनित सूचनाएं दिन में ३ बार (प्रत्येक बार निम्नांकित सूचनाओं में से २ सूचना) पढी जा सकती हैं ।

अ. संकटकाल से तरने का एकमात्र उपाय है ‘ईश्‍वर के प्रति श्रद्धा !’ श्रद्धा के कारण हमारे आसपास भगवान का अभेद्य सुरक्षाकवच तैयार होता है ।

आ. ‘भगवान जो करते हैं, वह भले के लिए ही करते हैं !’, इस वचन पर मेरी पूर्ण श्रद्धा है ।

इ. गुरु शिष्य को एक बार अपना लें, तो वे किसी भी जन्म में उसका साथ नहीं छोडते । यह गुरु की महानता है और मुझे परात्पर गुरुदेवजी के मार्गदर्शन में साधना करने का अवसर मिल रहा है । अतः मुझे निश्‍चिंत होकर साधना करनी चाहिए ।

ई. मैंने साधना की; इसलिए श्री गुरुदेवजी ने अभी तक मुझे और मेरे परिजनों को सभी संकटों से सुरक्षित रखा है, इसकी मुझे अनुभूति हुई है ।

उ. सनातन के सभी साधक श्री गुरुदेवजी की छत्रछाया में साधना कर रहे हैं । वह ब्रह्मांड का सबसे सुरक्षित स्थान है । प्रत्येक साधक के आसपास गुरुदेवजी की कृपा का/चैतन्य का सुरक्षाकवच है । अतः सूक्ष्मातिसूक्ष्म विषाणुओं के लिए साधकों को स्पर्श करना भी असंभव है ।

ऊ. यदि मेरे अंतर में भक्त प्रल्हाद के समान अटल श्रद्धा उत्पन्न हो जाए, तो बाह्य परिस्थिति भले ही कितनी भी प्रतिकूल हो जाए; मेरे अंतर्मन पर उसका कोई परिणाम नहीं होगा । मेरा मन आनंदित, स्थिर और सदा भगवान के आंतरिक सान्निध्य में रहेगा ।

संपूर्ण स्‍वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया की जानकारी के लिए यहाँ CLICK करें ।

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