श्रीक्षेत्र नीरा-नृसिंहपुर की महिमा

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भक्त प्रह्लाद पूजित श्री नृसिंह भगवान की बालुकामय मूर्ति

 

१. पद्मपुराण में श्रीक्षेत्र नीरा-नृसिंहपुर स्थान का उल्लेख है ।

पुणे जनपद के पूर्व-दक्षिण कोण की दिशा में नीरा और भीमा नदियों के संगम तट पर श्रीक्षेत्र नीरा-नृसिंहपुर बसा है । जिनके कुलदेवता ‘नृसिंह’ हैं, वे इस तीर्थक्षेत्र में जाकर श्री नृसिंह के दर्शन करें । पद्मपुराण में लिखा है कि इंद्रदेव ने हिरण्यकशिपु की पत्नी कयाधु का हरण किया था । उस समय वह गर्भवती थी । इस नृसिंहपुर क्षेत्र के पास नीरा नदी के तट पर उस काल में नारदमुनि का आश्रम हुआ करता था । नारद ने वहां इंद्र को रोककर कहा कि कयाधु के पेट से भगवान के भक्त का जन्म होनेवाला है । तब इंद्र ने कयाधु को नारद के आश्रम में रखा । आगे, इसी आश्रम में कयाधु के गर्भ से भक्त प्रह्लाद का जन्म हुआ । नारदमुनि के साथ रहने से प्रह्लाद में भक्ति दृढ हुई ।

 

२. प्रह्लाद की भक्ति से प्रसन्न श्री नृसिंह भगवान का उसे दर्शन देना

कुछ बडा होने पर प्रह्लाद ने नीरा-भीमा नदियों के संगम की बालू से श्री नृसिंह भगवान की मूर्ति बनाई और उसकी प्रतिदिन मनोभाव से पूजा करने लगा । इस पूजा से प्रसन्न होकर श्री नृसिंह भगवान से उसे दर्शन दिए और वर दिया कि जो भी तुम्हारी भांति इस बालुकामूर्ति की पूजा-अर्चा करेगा, उसकी मनोकामना पूरी होगी ।

बताया जाता है कि वही मूर्ति आजकल इस मंदिर में पश्मिमाभिमुख विराजमान है । यहां के एक शिलालेख में लिखा है कि इस मंदिर का निर्माण ई.स. १६७८ में आरंभ हुआ था ।

 

३. श्री नृसिंहमूर्ति की विशेषताएं

यहां की श्री नृसिंहमूर्ति पश्‍चिमाभिमुख है और बालू की शिला से बनाई गई है । भक्त प्रह्लाद से पूजित यह मूर्ति वीरासन मुद्रा में है, जिसके दोनों हाथ जंघों पर हैं और ऐसा लगता है कि भगवान नृसिंह सामने के मंदिर में स्थित भक्त प्रह्लाद की मूर्ति तथा भक्तों की ओर बहुत करुणाभाव से देख रहे हैं । इस मूर्ति के बाईं ओर स्थित गर्भगृह में ही ब्रह्मदेव पूजित अति प्राचीन श्री नृसिंह शामराजा की उत्तराभिमुखी मूर्ति है । यह देवस्थान बहुत जागृत है ।

 

४. क्षेत्रमाहात्म्य

इस क्षेत्र में नृसिंह भगवान सदा निवास करते हैं । इस मंदिर के केवल दर्शन से भी चारों पुरुषार्थ प्राप्त होते हैं और मृत्यु के पश्‍चात वैकुंठलोक में स्थान मिलता है । यह स्थान, पृथ्वी के केंद्र में स्थित है । पद्मपुराण के एक श्‍लोक में नीरा-नृसिंहपुर क्षेत्र के विषय में लिखा है –

सुदर्शनमित्यभिहितं क्षेत्रं यत् वेदविद्वरैः ।
तन्नाभिरेव भूगर्भे क्षेत्रराजो विराजते ॥

अर्थ : वेदों के ज्ञाता जिस तीर्थक्षेत्र की प्रशंसा में ‘सुदर्शन’ शब्द का प्रयोग करते हैं वह (नीरा-नृसिंहपुर क्षेत्र), क्षेत्रराज है और पृथ्वी के केंद्र में विराजमान है ।

(संदर्भ : ‘श्री नृसिंह पुराण’ और श्री लक्ष्मी-नृसिंह देवस्थान का प्रकाशन ‘श्री क्षेत्रराज नीरा-नृसिंहपुर’)

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