धर्मजागृति

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‘धर्मो रक्षति रक्षित:’, अर्थात जो धर्म का पालन करता है, उसकी रक्षा धर्म अर्थात ईश्‍वर करते हैं । धर्म का ही नाश हो गया, तो राष्ट्र पर संकट आने में अधिक समय नहीं लगेगा । धर्म के प्रति समाज की उदासीनता दूर करने, धर्म की आड में समाज में घुसी दुष्प्रवृत्तियां रोकने तथा समाज को सच्चा धर्म समझाने के लिए ‘सनातन संस्था’ सक्रिय है ।

 

१. धर्मसत्संग

आजकल हिन्दुओं को धर्म की शिक्षा न होने से उन्हें जीवन में धर्माचरण का अनन्यसाधारण महत्त्व समझ में नहीं आता । धर्मसत्संगों में धर्माचरण का महत्त्व, धार्मिक विधि और उनके शास्त्र आदि की जानकारी दी जाती है । साथ ही धर्मपालन में आनेवाली अडचनों पर मार्गदर्शन किया जाता है । धर्माचरण सुधारने में हिन्दू सक्रिय हों, इस पर बल दिया जाता है ।

 

२. अंधश्रद्धानिर्मूलन के लिए प्रयास

भूत, प्रेत, पिशाच आदि की जानकारी न होने से समाज में अंधश्रद्धा का अज्ञान दिखाई देता है । ढोंगी बाबा, मांत्रिक और भगत लोगों की अंधश्रद्धा का अनुचित लाभ उठाते हैं । आध्यात्मिक कष्टों के निवारण के लिए ढोंगी बाबा आदि के पास न जाकर, नामजप के माध्यम से अनिष्ट शक्तियों से लडकर उनसे स्थायी रूप से कैसे मुक्ति पाएं, यह सिखाने के लिए संस्था ग्रंथ, ध्वनि चित्र-चक्रिका, प्रासंगिक प्रदर्शनी आदि माध्यमों से जनप्रबोधन करती है ।

 

३. सार्वजनिक धार्मिक उत्सवों में अनुचित प्रकरणों के विरुद्ध अभियान

आज कल धार्मिक उत्सवों के नाम पर अनेक दुष्प्रवृत्तियां सर्वत्र पाई जाती हैं, यथा गणेशोत्सव, नवरात्रोत्सव, होली जैसे सार्वजनिक उत्सवों के लिए बलपूर्वक चंदा लेना, उत्सवों में देवताओं की मूर्तियां शास्त्रविसंगत चित्र-विचित्र आकार और पहनावे में बनाना, उत्सवों में राष्ट्र और धर्म से संबंधित कार्यक्रम न रखकर संस्कृतिहीन चलचित्र(सिनेमा), वाद्यवृंद जैसे कार्यक्रम रखना, मद्यपान करना आदि अनुचित प्रकरण होते रहते हैं ।

उत्सव के नाम पर होनेवाला ध्वनिप्रदूषण, सजावट पर होनेवाला निरर्थक व्यय, ये बातें भी चिंतनीय हैं । इन अनुचित प्रकरणों के कारण उत्सव की पवित्रता नष्ट होने के साथ-साथ समाजहित और राष्ट्रहित की भी हानि होती है । इन अनुचित प्रकरणों को रोकने और उत्सवमंडलों को मार्गदर्शन देने के लिए ‘सनातन संस्था’ जनजागृति अभियान चलाती है । इन अभियानों में ऐसे प्रकरण रोकने से संबंधित भित्तिपत्रक लगाए जाते हैं ।

सार्वजनिक उत्सव मंडलों को विषय समझा कर बताया जाता है । विभिन्न सामाजिक संगठन, जनप्रतिनिधि, प्रशासकीय अधिकारी और पुलिस को समस्याओं का गांभीर्य बताकर इन प्रकरणों के विरुद्ध कृति करने की विनती की जाती है । ऐसी समस्याओं पर उद्बोधक चित्रफीत और चित्र-चक्रिकाएं बनाई जाती हैं और वे विभिन्न स्थानों पर दिखाई जाती हैं । इन अभियानों से संबंधित व्यापक जनजागृति करने में दैनिक, साप्ताहिक और पाक्षिक ‘सनातन प्रभात’ का बहुत बडा योगदान है ।

 

४. धार्मिक दुष्प्रवृत्तियों के विरुद्ध न्यायिक मार्ग से लडाई

धर्म, देव, संत, राष्ट्रपुरुष और धर्मग्रंथों की विडंबना करनेवाले धर्मविरोधियों के विरुद्ध न्यायिक मार्ग से लडाई !

अ. देवताओं की विडंबना करनेवाले विज्ञापन, उत्पादन, नाटक, चित्रपट आदि का वैधानिक मार्ग से विरोध करना

आ. देवताओं के चित्रवाले पटाखे चलाने से देवताओं की हो रही विडंबना और देवताओं जैसी वेशभूषा धारण कर भिखारियों के माध्यम से देवताओं की विडंबना रोकना ।

 

५. धर्मविरोधियों के विरुद्ध न्यायालयीन लडाईयां

संत हिन्दुओं को लाभदायक अध्यात्मशास्त्रीय जानकारी देते हैं । ऐसी जानकारी का उपहास उडाना और उस पर हिन्दुओं को संभ्रमित करनेवाली आलोचना, धर्मविरोधी लोग ऐसा करते हैं । ऐसे लोगों को न्यायालय के माध्यम से उत्तर देना ।

 

६. मूर्तियों का भंजन और शासन द्वारा मंदिरों का अधिग्रहण, इनके विरुद्ध जागृति करना

देवता की मूर्ति अर्थात हिन्दुओं की श्रद्धा का प्रतीक । उसका भंजन, यह हिन्दूद्वेषियों की सोची-समझी कृति ! उसी प्रकार मंदिरों पर शासन का नियंत्रण अर्थात मंदिरों की पवित्रता की विडंबना, अर्पण पेटी का अनुचित उपयोग और हिन्दुओं की दुर्गति आदि अन्यायों के विरुद्ध विचार व्यक्त करना ।

 

७. हिन्दुओं को धोखा देकर उनका धर्मांतरण
करनेवालों पर वैधानिक मार्ग से नियंत्रण रखना

वैधानिक मार्ग से नियंत्रण रखना

ईसाई मिशनरी हिन्दुओं का धर्मांतरण करने के विचार से भरे हैं । निर्धन हिन्दुओं को धोखा और प्रलोभन देकर उनका धर्मांतरण किया जाता है । हिन्दुओं को नामशेष करने के षड्यंत्र पहचान कर वैधानिक मार्ग से उन्हें रोकना ।

 

८. मंदिरों की सात्त्विकता और पवित्रता बनाए रखने के लिए मंदिर-स्वच्छता अभियान !

मंदिर-स्वच्छता अभियान

स्वच्छ और पवित्र स्थान में देवता का तत्त्व कार्यरत रहता है । मंदिरों की देखभाल करनेवाले धर्मशिक्षा के अभाव में यह भूल जाते हैं । ऐसे मंदिरों में स्वच्छता अभियान चलाया, तो समष्टि को उसके लाभ हो सकते हैं ।

 

९. मेले में लोगों की धक्का-मुक्की, तथा अन्य
अनुचित प्रकरण टालने के लिए मेला-सुनियोजन अभियान’ !

मेले के समय श्रद्धालुओं की बहुत भीड रहती है, उसमें पॉकेटमारी, महिलाओं के साथ छेडछाड, आदि होता है । ऐसी परिस्थिति में श्रद्धालुओं को शांति से देवता का दर्शन कराने के लिए भीड के नियोजन का विशेष महत्त्व है ।

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