सनातन संस्था के आश्रम में परिपूर्ण धर्मशिक्षा दी जाती है !- कुंभकोणम् (तमिळनाडु) के पुरोहित श्री. प्रवीण शर्मा

कुंभकोणम् (तमिळनाडु) के पुरोहित श्री. प्रवीण शर्मा के सनातन के आश्रम के विषय में गौरवोद्गार

१. श्री. प्रवीण शर्मा और अन्य पुरोहितों को ध्यानमंदिर के संदर्भ में जानकारी देते हुए सनातन संस्था की साधिका श्रीमती सौम्या कुदरवळ्ळी

रामनाथी (गोवा) – कोई भी कार्य करना हो, तो उस विषय में शास्त्र जानना आवश्यक है । वह शास्त्र आश्रम में सिखाया जाता है । सनातन के आश्रम में परिपूर्ण धर्मशिक्षा दी जाती है । प्रत्येक कृति परिपूर्ण कैसे करनी है ?, वह यहां आकर सीखना चाहिए, ऐसे गौरवोद्गार कुंभकोणम् (तमिळनाडु) के पुरोहित श्री. प्रवीण शर्मा ने किए । श्री विद्याचौडेश्‍वरीदेवी की आज्ञा से यहां के सनातन आश्रम में २४ से २८ फरवरी तक, लोककल्याणार्थ और हिन्दू राष्ट्र स्थापना के कार्य को आशीर्वाद मिलें, इसलिए शतचंडी याग का आयोजन किया था । इस याग का मुख्य पौरोहित्य कुंभकोणम् (तमिळनाडु) के श्री. प्रवीण शर्मा कर रहे हैं । २५ फरवरी को श्री. प्रवीण शर्मा ने सनातन के आश्रम में चलनेवाले विविध राष्ट्र-धर्म संबंधी कार्य सनातन की साधिका श्रीमती सौम्या कुदरवळ्ळी से समझकर लिया ।

इस अवसर पर श्री. प्रवीण शर्मा के साथ कर्नाटक और तमिळनाडु से आए अन्य पुरोहितों ने भी इस आश्रम में चलनेवाले कार्य को उत्साह से जान कर लिया । श्री. शर्मा के साथ श्री. चेतन, श्री. कृष्णा एस. भट, श्री. सतीश, श्री. योगेश, श्री. कार्तिकेय, श्री. सतीश शर्मा, श्री. योगेश शास्त्री, श्री. धीरज जे., श्री. कार्तिक डी. भट, श्री. चेतन शर्मा, श्री. कार्तिक शास्त्री, श्री. सुब्रह्मण्य भट, श्री. कृष्णा भट एवं श्री. राघवेंद्र, ये सभी पुरोहित शतचंडी याग में सहभागी हुए थे ।

 

श्री. प्रवीण शर्मा का सनातन के आश्रम के प्रति गौरवोद्गार !

आश्रम में निवास करते समय ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे हम सत्संग में रह रहे हैं । मनुष्य जन्म क्यों मिला ?’, यह यहां (आश्रम में) रहने से ध्यान में आता है । आश्रम में बहुत सकारात्मक ऊर्जा प्रतीत होती है । आश्रम के साधकों में बहुत विनम्रता है और सभी आनंदी हैं । आश्रम के वातावरण को शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते हैं ।

 

श्री. प्रवीण शर्मा यांचा परिचय

श्री. प्रवीण शर्मा कुंभकोणम् (तमिळनाडु) के हैं । आयु के १६ वें वर्ष उन्होंने श्री विद्या दीक्षा ली । उन्होंने कुछ समय कांची कामकोटी पीठ में शिक्षाग्रहण की । वे स्वयं कृष्णभक्त हैं । उनके घर में श्री विठ्ठल-रुक्मिणी की मूर्ति है और वे प्रतिवर्ष उनका उत्सव विधिवत् पद्धति से मनाते हैं । गत १० वर्षों से वे यज्ञयाग आदि विधियों का पौरोहित्य कर रहे हैं । अब तक उन्होंने १०० शतचंडी याग और १० से भी अधिक सहस्रचंडी याग किए हैं ।

उन्होंने चंडीयाग के विषय में बताया कि चंडीदेवी में सत्त्व, रज और तम, ये त्रिगुण हैं । इसके साथ ही भक्त चंडीदेवी में श्री कालीमाता, श्री सरस्वतीमाता और श्री लक्ष्मीमाता, इन तीनों देवियों के रूप देख सकते हैं । चंडीदेवी की उपासना से अपनी रक्षा होती है ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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