संवेदनाओं को नष्ट करनेवाले भ्रमणभाष का व्यसन छुडाने हेतु प्रयास होना आवश्यक !

‘एक ओर माता-पिता चौपाईपर बैठे होते हैं, तो दूसरी ओर बच्चों के हाथ में स्मार्टफोन होता है ! मां अपने बच्चे को खाना खिलाती रहती है । मुंह के सामने निवाला होता है और बच्चा भ्रमणभाषपर खेलने में व्यस्त होता है ! जब बीच में वह अपना मुंह खोलता है, तब उसे निवाला दिया जाता है । उसके पश्‍चात बच्चे भ्रमणभाष में ही लगे होते हैं । कालांतर से उसे अन्यों की भावनाएं ही समझ में नहीं आतीं । संवेदनाएं समाप्त होने की ऐसी घटनाएं बार-बार होती हैं । स्मार्टफोन के कारण मस्तिष्क का पत्थर बनता जा रहा है । ब्लू वेल और पबजी जैसे प्राणघाती खेलों के व्यसन से अभी सतर्क रहिए । अभिभावकों, बच्चोंपर नियंत्रण रखिए !

 

१. प्रौद्योगिकी का उपयोग कैसे किया जाता है, यह महत्त्वपूर्ण !

आज गली-गली और घर-घर पबजी का दिवानापन दिखाई दे रहा है । साथ ही इस व्यसन के अधीन होकर कई विकार आगे आ रहे हैं । आजकल २-३ वर्ष के बच्चों को भी बिना हिचकिचाहट के भ्रमणभाष दिया जाता है । तब ‘हमारे बच्चे कितने स्मार्ट बन गए हैं’, ऐसा कहकर उनकी प्रशंसा की जाती है । इतनी अल्पायु में बच्चों को घंटों-घंटोंतक टीवी के सामने बिठाना और उनके हाथ में भ्रमणभाष देना बहुत घातक है । मैं प्रौद्योगिकी को बुरा नहीं कहता; किंतु उसका उपयोग किस प्रकार किया जाता है, यह महत्त्वपूर्ण है ।

 

२. भ्रमणभाष के खेलों के कारण शिक्षा की अनदेखी !

जीवन चलचित्र की भांति गतिमान नहीं होता । अतः हमारे बच्चे क्या कर रहे हैं और क्या देख रहे हैं, इसकी ओर अभिभावकों को गंभीरता से ध्यान देना चाहिए । निरंतर भ्रमणभाष के साथ खेलने में व्यस्त होने के कारण मस्तिष्क अचेत हो जाता है और उससे अपनी भावनाएं व्यक्त करनी नहीं आतीं, साथ ही दूसरों की भावनाएं भी समझ में नहीं आतीं, यह बहुत खतरनाक है । तो इससे खाने, खेलने और शिक्षा ग्रहण करने की ओर स्वाभाविकरूप से अनदेखी होती है । मदिरा और मादक पदार्थों की अपेक्षा पबजी और ब्लू वेल जैसे भ्रमणभाष के खेलों का व्यसन महाविभिषिक है ।

 

३. उचित समयपर संवाद एवं चिकित्सा आवश्यक

अभिभावकों का बच्चों के साथ संवाद होना चाहिए । ऐसी स्थिति में माता-पिता को चर्चा करनी चाहिए । आज संवाद के लिए समय ही नहीं है । इस जनरेशन गैप (पीढीयों के मध्य अंतर) नहीं, अपितु ‘कम्युनिकेशन गैप’ (संवाद का अभाव) है । बच्चों को विद्यालय-महाविद्यालय भेजा और उन्हें निजी शिक्षावर्ग में भेजा, तो हमारा दायित्व समाप्त हुआ, ऐसा नहीं है । आपको बच्चों के लिए समय निकालना होगा और उनकी आवश्यकताएं समझ में लेनी होगी । ‘जो मांगा जाता है, उसे देना’, ऐसा करने से बच्चों को उनकी आदत लगती है । किसी प्रेम को अस्वीकार किया गया, तो उसे सहन करने की शक्ति नहीं होती । तो उससे हत्या नहीं, अपितु  आत्महत्या होती हैं । इसमें हम समाज और अभिभावक के रूप में अल्प पड रहे हैं । इस व्यसन को छुडाने हेतु उचित समयपर ही चिकित्सा महत्त्वपूर्ण है । न्यूनतम उन्हें मनोविकार विशेषज्ञ की ओर ले जाना चाहिए । चिकित्सा के साथ ही पुनः चर्चा, संवाद, उनकी भावनाओं को समझ लेना और उनमें आत्मविश्‍वास को बढाना महत्त्वपूर्ण है । उसके उपरांत अन्य वैकल्पि क साधन उपलब्ध हैं, इसका उन्हें भान कराएं । यह एक व्यसन है, अतः बच्चों को मानसिक समुपदेशन और व्यसनमुक्ति हेतु चिकित्सा की आवश्यकता है ।’

– पद्मश्री डॉ. राणी बंग, सहनिदेशक, ‘सर्च’, गढचिरोली (महाराष्ट्र) (संदर्भ : दैनिक लोकमत, १५.७.२०१९)

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