हाथ उलटा कर मुंहपर रखकर जोरजोरसे चिल्लाने का शास्त्राधार

सारणी


 

१. होलिकोत्सव

ब्रह्मांड का कालचक्र उत्पत्ति, स्थिति एवं लय, इन तीन स्तरोंमें भ्रमण करता है । प्रत्येक स्तर में विशिष्ट दिनपर विशिष्ट देवता का तत्त्व अत्यधिक मात्रा में कार्यरत रहता है अथवा उस दिन का कुछ विशेष प्राकृतिक, ऐतिहासिक अथवा आध्यात्मिक महत्त्व होता है । इस प्रकार के दिन भारत की हिंदु कालगणना में त्यौहार, उत्सव एवं व्रत इन तीन स्तरोंपर मनाए जाते हैं । इन्हींमें से एक है, हुताशनी पूर्णिमा अर्थात होलिकोत्सव ! होली प्रज्वलनके उपरांत हाथ उलटा कर मुंहपर रखकर जोरजोरसे चिल्लाया जाता है ।

 

२. जोरजोरसे चिल्लाने से होनेवाले सूक्ष्म-परिणाम

२ अ. होली प्रदिपन के उपरांत
मुंहपर उलटा हाथ रखकर चिल्लाने का परिणाम

व्यक्तिद्वारा भावपूर्ण प्रार्थना एवं नामजप किए जाने से उसके आज्ञाचक्र के स्थानपर प्रार्थना एवं नामजप का वलय निर्माण होता है । यह प्रार्थना एवं नामजप प्रवाह के रूप में ईश्वर तक पहुंचते है । चिल्लाने की क्रिया का लाभ होने हेतु ईश्वर की शक्ति के कण व्यक्ति की ओर आकृष्ट होते हैं । चिल्लाने की क्रिया करते समय, शक्ति का गोला निर्माण होता है एवं इस गोलेद्वारा सर्पचक्राकार वलय प्रक्षेपित होता है । इस वलयद्वारा मारक शक्ति के कणोंका वातावरण में प्रसारण होता है । चिल्लाने की क्रिया के कारण नाद का वलय निर्माण होता है । उससे पृथ्वी, वायु एवं आकाश इन तत्त्वोंके माध्यम से ध्वनि के तरंग वातावरण में प्रक्षेपित होते हैं । इस कारण अनिष्ट शक्तियां दूर फेंकी जाती हैं । ईश्वरीय चैतन्य का प्रवाह व्यक्ति की ओर आकृष्ट होता है । उसके आज्ञाचक्र के स्थानपर चैतन्य का वलय निर्माण होता है । चिल्लाने की क्रिया के कारण चैतन्य का वलय निर्माण होता है और इससे वातावरण में चैतन्य के प्रवाह प्रक्षेपित होते हैं । शक्तियुक्त चैतन्य के कणोंका संचार व्यक्ति के देह में एवं वातावरण में होता है ।

२ आ. उलटा हाथ मुंहपर रखकर
जोरजोर से चिल्लाने से व्यक्तिपर होनेवाला परिणाम

चिल्लाने की क्रिया से व्यक्ति पर आध्यात्मिक उपाय होते हैं । परिणाम स्वरूप उसके देह के चारों ओर आया काला आवरण तथा देह में विद्यमान काली शक्ति दोनों प्रवाह के रूप में बाहर फेंकी जाती है एवं नष्ट होती हैं । शास्त्र में बतार्इ गर्इ यह विधि कुछ ही प्रदेशोंमें, विशेष कर महाराष्ट्र में की जाती है; परंतु मूल शास्त्र के अज्ञान के कारण इस कृत्य का स्वरूप आज विकृत एवं विभत्स हो गया है । ‘होली अर्थात अश्लील उच्चारण, अनुचित वर्तन एवं स्त्रियोंका अनादर करने के लिए मिली हुई छूट’, यह विचार समाजमें बढ गया है । इस कृत्यद्वारा दूसरोंको मानसिक कष्ट होता हैं । इस कृत्य का आध्यात्मिक महत्त्व भूलकर विकृत विचार से यह किया जाता है ।

२ इ. हाथ को उल्टा रखकर विकृत पद्धति से चिल्लाने के परिणाम

होली प्रदीपन के उपरांत मुंहपर उल्टा हाथ रखकर चिल्लाने के कृत्य का विकृतिकरण करनेवाले व्यक्ति में तीव्र अहंकार होता है । यह अहंकार गोले के रूप में कार्यरत रहता है । इससे व्यक्ति के अहंकार के साथ जुडे मन की ओर तमोगुणी कंटीला वलय कार्यरत होता है । इस वलयद्वारा व्यक्ति के देह में तमोगुणी कणोंका संचार होता है । अन्योंको चिढाने के लिए किए गए कृत्यद्वारा व्यक्ति मायावी स्वरूप के आसुरी आनंद का अनुभव करता है । इससे उसके अनाहतचक्र के स्थानपर मायावी कंटीला वलय निर्माण होता है । व्यक्ति के देह के सर्व ओर काला घना आवरण निर्माण होता है । अहंकारी व्यक्ति साधना नहीं करता । इसलिए उसकी बुद्धि तमोगुणी बनती है एवं बुद्धि के चारों ओर काला वलय निर्माण होता है । परिणाम स्वरूप वातावरण में विद्यमान अनिष्ट शक्तियां कंटीले तरंगोंके माध्यम से व्यक्ति की बुद्धि को अनुचित विचारोंसे दुष्प्रभावित करती रहती हैं । व्यक्ति की वृत्ति के अनुसार उसका कृत्य होता है एवं उसी प्रकार के विचार उसके मन में आते हैं । विकृत कृत्य से चिल्लाने के कृत्यद्वारा व्यक्ति के मन से उसके मुख की ओर काली शक्ति का प्रवाह प्रसारित होता है । चिल्लाने का कृत्य करते समय विकृत ध्वनि करने एवं अपशब्द बोलने जैसे कृत्योंद्वारा तमोगुणी काले वलयकी निर्मिति होती है तथा इस वलयद्वारा वातावरण में कंटीले वलयोंका प्रक्षेपण होता है । इन काले वलयोंके साथ ही वातावरणमें तमोगुणी काले कणोंका संचार होता है एवं उनका अस्तित्व दीर्घकालतक रहता है । इन वलयोंसे वातावरणमें भंवरसमान काली चक्राकार कार्यरत तरंगें निर्माण होती हैं जिनसे वातावरण दूषित बनता है । इससे स्पष्ट हुआ होगा कि विकृत पद्धतिसे चिल्लाना, मंत्रोच्चारण एवं देवतापूजन इन पवित्र बातोंका अनादर है । इससे हमें देवताकी कृपा प्राप्त कैसे होगी ? इसीलिए शास्त्र समझकर मनमें देवताके प्रति भाव रख उचित कृत्य करनेका हम भान रखें ।

 

३. भावपूर्ण होली मनानेके लाभ

होलीके दिन होली प्रज्वलित करनेके रूपमें यज्ञ करनेसे ब्रह्मांडमें विद्यमान देवतातत्त्वकी तरंगें कार्यरत होती हैं एवं यज्ञ की ओर आकृष्ट होती हैं । मंत्रोंद्वारा इन तरंगोंको आवाहन किया जाता है अर्थात कार्यरत किया जाता है । यज्ञमें हविर्द्रव्य अर्पित करनेसे अग्नि प्रदीप्त होती है । उसकी ज्वालाके कारण उत्पन्न वायुसे आसपासका वायुमंडल शुद्ध तथा सात्त्विक बनता है । इसका अर्थ है, वायुमंडल देवतातत्त्वोंको आकर्षित करनेयोग्य बनता है । पंचतत्त्वोंकी सहायतासे देवतातत्त्वोंकी तरंगें इस वायुमंडलकी कक्षामें प्रवेश करती हैं इससे जीव देवतातत्त्वको अनुभूत कर पाता है । होलीके दूसरे दिन होलीपर, दूध एवं पानी छिडककर उसे शांत किया जाता है तथा उसकी राख शरीरपर लगायी जाती है ।


(संदर्भ – सनातनका ग्रंथ – त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत)

 

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