मुसलमान आक्रामकों से प्रतिशोध लेनेवाली वीर राजकन्याएं !

हिन्दू बंधुओ, इस भ्रम में न रहो कि अब भारत में
मुगलों का शासन नहीं, तो हमारी मां-बहनें सुरक्षित हैं !

१. मुगल काल में हिन्दुआें पर हुए नृशंस अत्याचार !

     सहस्रों वर्ष जिस भूमि की ओर किसी ने टेढी आंख कर नहीं देखा, उस भूमि पर वर्ष ७११ में सिंध प्रांत में जो आक्रमण हुआ, वह महाभयंकर था । उस समय राजा दाहीर सिंध देश के अधिपति थे । लडाई में राजा मारे गए, शील की रक्षा हेतु उनकी महारानी जलती चिता में कूद गईं ।
राजभवन ध्वस्त हो गया । आनेवाले लोग हमसे अधिक शूर थे, ऐसा नहीं था । उनके शस्त्रास्त्र हमसे अधिक श्रेष्ठ हो भी सकते हैं; परंतु उन्होंने जो आतंक मचाया, वह हृदय दहलानेवाला था । सहस्रों यवन गांव-गांव में घुस गए । पहले के युद्ध रणांगण पर होते थे । सशस्त्र लोग सशस्त्रों से ही लडते थे । इन आक्रामक, क्रूर और नृशंस लोगों ने स्त्रियों, बच्चोंे एवं वृद्धों तक को उनके घरों में जाकर काट डाला; मंदिरों का विध्वंस किया, मूर्तियां तोडीं, वेदशालाएं ध्वस्त कीं और युवा महिलाआें पर बलात्कार किए । महाभीषण अत्याचार किए । मनुष्य इतना क्रूर हो सकता है,भारतीय संस्कृति इससे अनभिज्ञ थी । इस राक्षसी आक्रमण से पूरा समाज भयग्रस्त और आक्रामक निरंकुश हो गए ।
      इस स्थिति में बौद्ध मत के अहिंसक विचारों की अति होने से सेना भी युद्ध करने में हिचकिचाने लगी; परिणामस्वरूप सिंध परास्त हुआ । रक्तपिपासु नरराक्षस रक्त से लथपथ भूमि पर नंगानाच कर रहे थे । भारत के पश्‍चिम क्षितिज पर हिन्दूद्वेषी यवनों का प्रवेश हुआ । हमारेे सद्गुण ही दुर्गुण सिद्ध हुए ।

२. मुहम्मद बिन कासिम को यमलोक भेजकर राष्ट्र के
अपमान का प्रतिशोध लेनेवाली स्वाभिमानी दाहीरकन्याएं !

      अंत में राजा दाहीर का हिन्दू राज्य नष्ट हो गया । उनकी दो युवा कन्याएं सूर्यादेवी और परिमलादेवी को भेंटस्वरूप बगदाद के खलीफा के पास भेजा गया । कहां परस्त्री को माता माननेवाली संस्कृति और कहां कन्याआें को अपने धर्मगुरु के पास शय्यासमागम के लिए भेजने तथा मानवजाति को कलंकित करने वाली विकृति ? परंतु ये दोनों युवतियां साहसी थीं । वे खलीफा की विश्‍वासपात्र बनीं और उसका मन जीत लिया । पराधीन हुई ये युवतियां अपनी देह कोे भ्रष्ट होने से बचा नहीं पाईं; परंतु सोचो उन्होंने क्या किया ! खलीफा के हस्ताक्षर और राजमुद्रा के साथ उन्होंने सिंध के मुहम्मद बिन कासिम के सरदारों को पत्र भेजा । पत्र में आदेश दिया, जीवित मुहम्मद को चमडे की बोरी में बांधकर यहां भेज दिया जाए । खलीफा का आदेश !सरदारों ने आदेशानुसार जीवित मुहम्मद को चमडे की बोरी में डाल दिया । बोरी बंद की और जहाज से बगदाद भेज दी । १०-१२ दिनों उपरांत जहाज जब बगदाद पहुंचा, तब तक मुहम्मद बिन कासिम के शव में कीडे पड चुके थे ।

३. अत्यंत स्वाभिमान सेे खलीफा को उत्तर
देनेवाली व क्रूर अत्याचार सहनेवाली भगिनियां !

इसे ऐसे क्यों भेजा गया, इसका खलीफा ने शोध किया । तब उन शूर युवतियों ने कहा, ‘‘हमने ही आपके हस्ताक्षर से पत्र भेजा था । हमारे देश में अनन्वित अत्याचार करनेवाले इस राक्षस से हमने प्रतिशोध लिया है। यह हमने किया है और हमें इसका अभिमान है । हमने राष्ट्रीय कर्तव्य निभाया है । जो परिणाम होगा, वह भोगने के लिए हम तैयार हैं ।
      संतप्त खलीफा ने उनके केश घोडों की पूंछ में बांध दिए और उन घोडों को कोडे लगाकर पूरे बगदाद में दौडा दिया । उन पर घोडों की लातों के प्रहार हो रहे थे । भूमि पर घिसटने से उनके शरीर की खाल छिली जा रही थी, केश खिंचे जा रहे थे और सिर घोडों के घुटने से पिट रहे थे । रक्त से लथपथ दोनों के सिर और शरीर के टुकडे मार्ग में बिखरे पडे थे; परंतु राष्ट्र के अपमान का प्रतिशोध लेने का संतोष था ।
      राष्ट्रतेज की अस्मिता का सूर्य भी उस समय पश्चिम दिशा में उदित हुआ । (भारत को जब स्वतंत्रता मिली, तब सिंध की सीमाआें पर उनकी प्रतिमाएं स्थापित की जानी चाहिए थीं !)
– प्रा. सु.ग. शेवडे (भारतीय संस्कृति, पृष्ठ क्र. ३७)

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