साधनाकी तीव्रतासे तडप तथा प्रतिकूल स्थितिमें भी अपनी श्रद्धाको ढलने न देनेवाली सोलापुरकी श्रीमती इंदिरा नगरकरदादी संतपदपर विराजमान !

संतरत्नोंकी प्राप्तिसे साधकजीव हुए आनंदित ।
अंतःकरणमें आया कृतज्ञताका भाव उमडकर ॥

भावाश्रुओंसे करें अभिषेक श्रीगुरुदेवजीके चरणोंपर ।
करेंगे व्यक्त कृतज्ञता गुरुचरणोंमें नतमस्तक होकर ॥

हमें श्रीगुरदेवजीकी इच्छा पूर्ण करनी है,
मनमें यह  निदिध्यास रखें ! – पू. इंदिरा नगरकरदादीजी

पू. दादीजीको नमस्कार करती हुईं विनम्र भावमें स्थित सद्गुरु (कु.) स्वाती खाडयेजी

सोलापुर : दिनरात श्री गुरुदेवजीको पुकारें । आते-जाते नामजप करें । मनमें यह निदिध्यास रखें, हमें गुरुदेवजीकी इच्छा पूर्ण करनी है। अनुसंधानको छूटने न दें । पू. इंदिरा नगरकरदादीजी (आयु ८३ वर्ष) ने साधकोंको यह संदेश दिया । ६ मईको सोलापुर के रसिक सभागार में संपन्न भावसमारोहमें सद्गुरु (कु.) स्वाती खाडयेजीने दादीजीके संतपद प्राप्त किए जानेका शुभसमाचार दिया । तत्पश्‍चात व्यक्त किए गए अपने मनोगत में पू. दादीजी ऐसा बोल रही थीं । इस अवसरपर सद्गुरु (कु.) स्वाती खाडयेजीने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा पू. इंदिरा नगरकरदादीजीके संदर्भमें भेजा गया संदेश पढकर सुनाया । अक्षय्य तृतीयाके दिन लोग सोना खरीदते हैं; किंतु श्री गुरुदेवजीने उसके एक दिन पहले ही सोलापुरके साधकोंको सोनेसे भी बहुमूल्य संतरत्न की भेंट देकर धन्य किया ।

 

ऐसा था भावसमारोह !

१. ६८ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कु. दीपाली मतकर द्वारा बताई गई भावार्चनामें सभी साधक कृतज्ञताके सागरमें डूब गए ।

२. विविध साधकोंने उनके द्वारा परात्पर गुरु (डॉ.) आठवलेजीके जन्मोत्सवके उपलक्ष्यमें किए जा रहे विविध प्रयास, हिन्दू राष्ट्र संगठक कार्यशाला हेतु किए गए विशेष प्रयासोंसहित अन्य प्रयास विशद किए ।

३. एक-एक साधक अपने प्रयासोंके विषयमें बता रहा था और सद्गुरु (कु.) स्वाती खाडयेजी उसका विश्‍लेषण कर रही थीं । अकस्मात ही उन्होंने कहा कि आज श्रीकृष्णजीने हमें एक संतरूपी अमूल्य भेंट दी है । सभी साधक जिस क्षणकी आतुरतासे प्रतीक्षा कर रहे थे, उसकी घोषणा होनेपर सभी साधकोंके मनमें भी एक ही उद्घोष हुआ, कृतज्ञता, कृतज्ञता और कृतज्ञता  !

४. साधकोंने पू. नगरकरदादीजीकी गुणविशेषताएं तथा उनसे सीखने मिले सूत्र बताए ।

५. समारोहके समापनके समय सद्गुरु (कु.) स्वाती खाडयेजीने चि. कृष्णाली बुवाके महर्लोकसे पृथ्वीपर जन्म लिए जानेकी घोषणा की। इसलिए साधकोंके लिए तो यह दुग्धशर्करा संयोग ही सिद्ध हुआ !

 

आध्यात्मिक उन्नतिमें लौकिक शिक्षा आडे नहीं आती,
इसका मूर्तिमंत उदाहरण हैं पू. नगरकर दादीजी ! – सद्गुरु (कु.) स्वाती खाडयेजी

संकटोंकी शृंखलाओंमें भी मनमें श्री गुरुदेवजीके प्रति दृढ श्रद्धा तथा साधनाकी तीव्रतासे तडपके कारर दादीजी संत बबन सकीं । कई लोगोंके बहुत शिक्षित होनेसे आध्यात्मिक उन्नतिमें उनकी बुद्धि बाधा बन जाती है; परंतु पू. दादीजीमें भाव ही बहुत होनेसे उन्हें वह बाधा कभी नहीं आई । आध्यात्मिक उन्नतिमें लौकिक शिक्षा बाधा नहीं बनती, इसका मूर्तिमंत उदाहरण हैं पू. नगरकरदादीजी हैं !

 

समारोहमें सद्गुरु (कु.) स्वाती खाडयेजी द्वारा बताए गए कुछ अनमोल वचन !

१. हमारी व्यष्टि साधना अच्छी होनेसे ही हम समष्टि साधना अच्छे प्रकारसे कर सकते हैं । ये दोनों साधनाएं एकही सिक्के भी २ बाजूएं हैं।

२. कार्यकी गति बढ रही है । समाजसे प्रत्युत्तर बढ रहा है; इसलिए अब साधकोंको भी प्रयास बढाने आवश्यक हैं । श्रीमती नगरकरदादीजी जब सभागारमें आईं, तभी से उनकी आंखोंमें कृतज्ञताका भाव उमडा था । उनके संतपद प्राप्त किए जानेकी घोषणा होनेसे लेकर से समारोह समाप्त होनेतक उन्हें भावाश्रु अनियंत्रित हो रहे थे । उनका मुखमंडल कृतज्ञताके अथांग सागरमें डूब रहा है, ऐसा प्रतीत हो रहा था । वे उनसे मिलने आ रहे प्रत्येक साधकके मुखपर अत्यंत प्रेमपूर्वक हाथ फेरकर उन्हें अलिंगन दे रही थीं । यह अलिंगन मानो श्रीकृष्ण-सुदामाकी भेंट ही प्रतीत हो रही थी ।

शुभसमाचार आया दौडते सद्गुरुजीकी वाणीमें ।
सजा समारोह गुरुचरणोंमें, यह तो कृतज्ञताका पर्व ।
सोलापुरमें चला आया आनंदका क्षण ।
संतरत्न वह प्राप्त हुआ, आज तो सुवर्णदिन ॥

– श्री. सुमित सागवेकर

स्थिरता, सेवाकी तडप एवं ईश्‍वरके प्रति
दृढ श्रद्धा, इन गुणोंके कारण ७१ प्रतिशत
आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर सनातनके ८८वें व्यष्टि संतपदपर
विराजमान सोलापुरकी पू. इंदिरा नगरकरदादीजी (आयु ८३ वर्ष)

भावावस्थामें पू. नगरकरदादीजी

सोलापुरकी इंदिरा चंदुलाल नगरकरमें विद्यमान सिखनेकी तडप बहुत ही प्रशंसनीय है । उन्होंने आयुके ७३वें वर्षमें पढना और लिखना सीख लिया । दैनिक सनातन प्रभात, साथ ही सनातनके ग्रंथ पढना संभव हो; इस तडपके कारण उन्होंने अक्षरोंसे परिचय करवा लिया । उनमें सेवा की तीव्र तडप होनेसे वे आयुके ७५वें वर्ष में भी प्रतिदिन ७ से ८ कि.मी. पैदल चलते हुए प्रसारकी सेवा करती थीं । अब वृद्धावस्थाके कारण घरसे बाहर निकलकर प्रसार करना उन्हें संभव नहीं होता । दादीजीको जीवनमें कई बार प्रतिकूल स्थितिका सामना करना पडा; किंतु ईश्‍वरके प्रति दृढ श्रद्धाके कारण उन्होंने ऐसे प्रत्येक प्रसंगका डंटकर सामना किया । उन्होंने अत्यंत कठिन प्रसंगोंकी ओर साक्षीभावसे देखकर स्वयंकी आध्यात्मिक उन्नति करवा ली । दादीजी द्वारा की गई साधनाके कारण अब उनके शरीरमें दैवीय परिवर्तन आए हैं ।

दादीजीमें विद्यमान स्थिरता, सेवाभाव की वृत्ति तथा ईश्‍वरके प्रति दृढ श्रद्धा ये सभी गुण सभी साधकोंके लिए अनुकरणीय हैं । श्रीमती इंदिरा नगरकरदादीजीने आज ७१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किया है और अब वे सनातनी ८८वीं व्यष्टि संतपर विराजमान हुई हैं। मैं इसके प्रति आश्‍वस्त हूं कि उनकी आगेकी उन्नति भी इसी तीव्र गतिसे होगी ।  – परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

Leave a Comment