आनंद, चैतन्य एवं निर्गुणतत्त्वकी अनुभूति करानेवाला रामनाथीके सनातन आश्रममें संपन्न अद्वितीय संतसम्मान समारोह !

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सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी तथा
सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजीके माता-पिता संतपदपर विराजमान !

बाईं ओरसे सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी, पू. सदाशिव परांजपेजी,
पू. (श्रीमती) शैलजा परांजपेजी, पू. हिरा मळयेजी एवं सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी

 

जिनके गर्भसे जन्मीं सद्गुरुद्वयी ।
आज विराजित संतपदपर वे मातृद्वयी ।
सद्गुरुद्वयीके पिता भी आज बन गए संत ।
साधकोंने इन सुवर्णक्षणोंको किया हृदयपर अंकित ॥
कृतज्ञ है सनातन परिवार इन संत माता-पिताआेंके प्रति ।
जिन्होंने प्रदान कीं हमें दोनों सद्गुरुद्वयी ॥

रामनाथी (गोवा) : वैशाख कृष्ण नवमी अर्थात १३ मई २०१९ को सनातनके इतिहासमें सुवर्णाक्षरोंसे लिखी जानी चाहिए, ऐसी अद्वितीय घटना यहांके सनातनके रामनाथी आश्रममें घटित हुई । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीकी आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, सनातनके साधकोंके लिए परमवंदनीय तथा गुरुस्वरूप सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी एवं सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजीके माता-पिताके संतपदपर विराजमान होनेका शुभसमाचार आश्रममें संपन्न एक भावसमारोहमें मिला । सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजीके पिता पू. सदाशिव परांजपे (आयु ७६ वर्ष) सनातनके ८९वें तथा उनकी माता पू. (श्रीमती) शैलजा परांजपे (आयु ७१ वर्ष) ९०वीं, साथ ही सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजीकी माताजी हिरा मळये (आयु ८२ वर्ष) ९१वीं व्यष्टि संत तथा उनके पिता स्व. वसंत मळये के ९२वें संत बन जानेकी घोषणा की गई ।

पू. सदाशिव परांजपेजी (दाहिनी ओर) को सम्मानित करते हुए पू. (डॉ.) मुकुल गाडगीळजी

इस मंगल अवसरपर इन सभीके द्वारा ७१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किए जानेकी घोषणा की गई । वर्ष २०१६ को एक ही दिन सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी द्वारा सद्गुरुपद प्राप्त किए जानेकी घोषणा की गई थी । अब इन दोनोंके माता-पिताओं द्वारा भी संतपद प्राप्त किए जानेकी घोषणा एक ही दिन की गई । माघ मासमें सद्गुरुद्वयीका परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीकी आध्यात्मिक उत्तराधिकारी होनेकी घोषणा किए जानेके पश्‍चात वैशाख मासमें यह संस्मरणीय समारोह संपन्न होनेसे साधकोंका उत्साह द्विगुणित हुआ ।

पू. (श्रीमती) शैलजा परांजपे (दाहिनी ओर) को सम्मानित करती हुईं सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी

एक ही दिन ४ संतरत्न प्रदान कर गुरुमाताने साधकोंपर भर-भरकर कृपाकी वर्षा की । ऐसे अमूल्य क्षणोंका अनुभव करानेवाली गुरुमाता, सद्गुरुद्वयी तथा उनके संत माता-पिताओंके चरणोंमें अक्षय आनंद देनेवाले इस समारोहका समाचार हम अत्यंत कृतज्ञतापूर्वक समर्पित कर रहे हैं । इन शब्दरत्नोंके माध्यमसे सर्वत्रके साधकोंको मानो हम सभी इस समारोहका प्रत्यक्षरूपसे अनुभव कर रहे हैं, इसकी अनुभूति करना संभव हो; तथा उनके लिए भी इस समारोहमें विद्यमान निर्गुणतत्त्वका लाभ उठाना संभव हो जाए, यही कृपालु गुरुमाताके चरणोंमें प्रार्थना है !

पू. हिरा मळयेजी (दाहिनी ओर) को सम्मानित करती हुईं सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी

इस संतसम्मान समारोहमें पू. सदाशिव परांजपेदादाजीके जमाई पू. (डॉ.) मुकुल गाडगीळजी, पुत्री श्रीमती कल्पना सहस्रबुद्धे, छोडी पुत्री श्रीमती शीतल गोगटे, नातिन श्रीमती सायली करंदीकर (सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजीकी पुत्री), पौतजमाई श्री. सिद्धेश करंदीकर, नातिन कु. निधी गोगटेसहित उनके समधी, सनातनके गोवाके आश्रममें पूर्णकालीन सेवा करनेवाले ६८ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त श्री. माधव गाडगीळ तथा ६३ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त श्रीमती माधुरी गाडगीळ एवं अन्य परिवारजन उपस्थित थे । पू. हिरा मळयेजीके पौत्र श्री. सोहम् सिंगबाळ (सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजीके पुत्र) भी इस समारोहमें उपस्थित थे । इस समारोहमें सनातनके संत पू. महेंद्र क्षत्रिय, पू. सीताराम देसाई एवं पू. (श्रीमती) मालिनी देसाईकी वंदनीय उपस्थिती थी । सनातनके ६३ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त साधक श्री. विनायक शानभागने इस समारोहका उत्स्फूर्त, सहज, सुंदर एवं भावपूर्ण सूत्रसंचालन किया ।

पू. (डॉ.) मुकुल गाडगीळजीने पू. सदाशिव परांजपेजीका, तो सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजीने पू. (श्रीमती) शैलजा परांजपेजीको माल्यार्पण कर सम्मानित किया । सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजीने पू. हिरा मळेजीको माल्यार्पण कर सम्मानित किया ।

ऐसे हुई संतपद प्राप्त किए जानेकी घोषणा

१. कार्यक्रमके आरंभमें साधकोंने १३ मई २०१९ को आयोजित परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके ७७वें जन्मोत्सवके मंगलदिवसपर साधकोंको श्रीगुरुदेवजीके श्रीसत्यनारायण रुपमें दर्शन हुए । इस संस्मरणीय भावसमारोहकी अनुभूतियां बताईं ।

२. श्रीमती परांजपेदादीदी जब अपनी मधुरवाणीमें उन्हें प्राप्त अनुभूतियां विशद कर रही थीं, उन्हें सुनते ही रहें, ऐसा साधकोंको लग रहा था ।

३. इसके पश्‍चात श्री. परांजपेदादाजीने भी जन्मोत्सवके समय उन्हें प्राप्त अनुभूतियां बताईं । श्री. विनायक शानभागने दादाजीको व्यासपीठपर आकर और अनुभूतियां बतानेका अनुरोध किया ।

४. व्यासपीठपर सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी, उनके माता-पिता श्री एवं श्रीमती परांजपे दादा-दादीजी एवं सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी आसंदीमें बैठे हुए थे । वहां एक आसंदी खाली थी । सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजीने बताया, इस समारोहमें सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजीकी माताजी भी उपस्थित हैं और उन्हें देखनेका अवसर मिलना, यह एक सुवर्णक्षणही है, ऐसा बताया और उन्हें भी व्यासपीठपर आनेका अनुरोध किया ।

५. श्री. विनायक शानभागने पूछा कि व्यासपीठपर आसनस्थ सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी, उनके माता-पिता एवं सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी और उनकी माताजीकी ओर देखकर क्या लगता है ? तब एक-एक साधक व्यासपीठकी ओर देखकर क्या प्रतीत होता है ?, इसके संदर्भमें अनुभूतियोंका विश्‍लेषण कर रहा था । इस अवसरपर सनातनकी सूक्ष्म-ज्ञानप्राप्तकर्त्री साधिका कु. मधुरा भोसलेने समारोहस्थलका वातावरण जनलोकके वातावरण की भांति होनेका बताकर परांजपे दादी-दादाजी और श्रीमती मळयेदादीजीद्वारा संतपद प्राप्त किए जानेका रहस्य अज्ञातवशही उजागर किया ।

सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजीने ‘परात्पर गुरु डॉक्टरजीका एक शब्द सुननेके लिए हम कितने आतुर होते हैं न ! गुरुदेवजीका एक-एक वाक्य हमारे लिए ब्रह्मवाक्य होता है ।’ इन भावयुक्त शब्दोंसे अपने मनोगत का आरंभ कर परांजपेदादा-दादीजीके संबंधमें परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीका एक संदेश पढकर सुनाया और उनके संतपदपर प्राप्त किए जानेका शुभसमाचार दिया ।

पू. परांजपेदादाजी एवं दादीजीमें विद्यमान संतत्वको उजागर
करनेवाली सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी द्वारा बताए गए सूत्र

संतमाता पू. (श्रीमती) शैलजा परांजपेजीको नमस्कार करती हुईं उनकी पुत्री सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी

अ. पू. परांजपेदादादी एवं दादीजी द्वारा एक-दूसरोंके साथ विविध नातोंका अनुभव किया जाना

मां जब पिताजीको चलें हम नामजपके लिए बैठें, ऐसा कहती हैं, तब पिताजी किसी छोटे बच्चेकी भांति उसका आज्ञापालन करते हैं । कभी मां पिताजीकी मां बन जाती है, तो कभी दोनों एक-दूसरेके भाई-बहन बन जाते हैं । इस प्रकारसे मां और पिताजी एक-दूसरेके साथ विविध नातोंका अनुभव करते हैं ।

आ. निरंतर समष्टिका विचार करनेवाले पू. परांजपेदादाजी एवं पू. दादीजी !

मां और पिताजीकी बातें और उनकी कृतियां समष्टिके लिए ही होती हैं । दोनों सदैव साधकोंका विचार करते हैं और उनके लिए नामजप करते हैं ।

इ. दंड भुगतनेमें भी मिठासका अनुभव करनेवाला परांजपे परिवार !

हमारे बचपनमें हमसे कोई चूक होनेपर मां हम तीनों बहनोंको धूपमें खडे रहनेका दंड देती थी । तब पिताजी कब आएंगे ?, ऐसा हमें लगता था ।, जिससे कि हम उनके पीछे धीरेसे घरमें जा सकेंगे । पिताजी आनेपर हमें कहतें, थोडा रुको । धीरे-धीरे वह शांत होगी । आप तुरंत अंदर न आएं । कभी-कभी मांके क्रोधित होनेपर पिताजी हमें कहतें, आज तो वातावरण गर्म है । राम-राम कहिए । हमें मिलनेवाले दंडमें भी इस प्रकारकी मिठास और सुंदर समन्वय था ।

सहजता, निर्मलता, भाव एवं तडप इन गुणोंके
साथ अध्यात्मकी सप्तपदी चलते समय सनातनके ८९वें
तथा ९०वें संतपदपर विराजमान सांगलीके पू. (श्री.) सदाशिव
परांजपे (आयु ७६ वर्ष) और श्रीमती शैला परांजपे (आयु ७१ वर्ष) !

सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजीके पिता सांगलीके निवासी श्री. सदाशिव परांजपे (आयु ७६ वर्ष) एवं उनकी माता श्रीमती शैलजा परांजपे (आयु ७६ वर्ष) पहलेसे ही धार्मिक वृत्तिके हैं । उन्होंने ढलती आयुमें साधना आरंभ की और प्रशंसनीय बात यह कि इस आयुमें भी उन्होंने संगणक सीखकर वे तडपके साथ संगणकीय सेवाभी करने लगे । वे दोनोंभी साधनामें एक-दूसरेकी सहायता करते हैं । वे एक-दूसरेके साथ इतना एकरूप हो चुके हैं कि वे पति-पत्नी के नातेसे परे जाकर भी उनमें एक आध्यात्मिक नाता बन गया है ।

उन्होंने सभीके सामने गृहस्थिके दायित्वका उत्तमरूपसे निर्वहन करते हुए आध्यात्मिक जीवन कैसे जीना है ?, इसका आदर्श रखा है । इन दोनोंमें विद्यमान सहजता, निर्मलता एवं भाव के कारण उनके घरमें भी चैतन्य उत्पन्न होकर उनका घर मानो आश्रममें परिवर्तित हुआ है ।

परांजपेदादाजीमें अव्यक्त भाव है, तो दादीजीमें व्यक्त भाव है । वास्तवमें देखा जाए, तो दोनोंकी प्रकृति भिन्न होते हुए भी उनमें विद्यमान तडप एवं भावके कारण वह साधनाके लिए पूरक सिद्ध हुई हैं । इसके कारण ही इन दोनोंने आध्यात्मिक सप्तपदी चलते हुए स्वयंकी संतपद प्राप्त करनेतक की उन्नति करवा ली । श्री. सदाशिव परांजपेजी सनातनके ८९वें, तो श्रीमती शैलजा परांजपेजी सनातनकी ९०वें संतपदपर विराजमान हुए हैं । इन दोनोंके संतपद प्राप्त किए जानेके कारण आज सनातनके इतिहासमें एक विलक्षण घटना घटित हुई और वह यह कि पू. परांजपे दंपतिकी पुत्री सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी सद्गुरु पदपर, तो उनके जमाई पू. मुकुल गाडगीळजी संतपदपर विराजमान हैं । पू. सदाशिव परांजपेजी एवं पू. (श्रीमती) शैलजा परांजपेकी आगेकी उन्नति भी इसी तीव्र गतिसे होगी, इसके प्रति मैं आश्‍वस्त हूं ।

– परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

 

निर्मलता, निरपेक्षता एवं भगवद्भक्ति इन गुणोंके कारण
सनातनकी ९१वीं संतपदपर विराजमान श्रीमती हिरा मळये
(आयु ८२ वर्ष), तो निरासक्त कर्मयोगीकी भांति संपूर्ण जीवन
व्यतीत करनेवाले मडगांव, गोवाके स्व. वसंत मळयेजी सनातनके ९२वें संतपदपर विराजमान !

सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजीकी माताजी गोवानिवासी हिरा वसंत मळयेकी वृत्ति मूलतः सात्त्विक है । बचपनसे ही उनपर दत्तभक्तिके संस्कार हुए हैं । मैं जहां जाऊं आप मेरे साथ हैं, इस प्रकारसे भगवानके प्रति दृढ श्रद्धा होनेके कारण वे किसी भी कठिन प्रसंगका धीरजके और दृढताके साथ सामना करती हैं और उन्हें कदम-कदमपर ईश्‍वरकी अनुभूतियां भी प्राप्त होती हैं ।

भगवद्गीताके कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।, इस वचनकी भांति किसी भी प्रकारके फलकी अपेक्षा न रखते हुए उन्होंने भी पारिवारिक कर्तव्योंका निरपेक्षतासे निर्वहन किया । लौकिक जीवनके कर्तव्योंका निर्वहन करते समय उन्होंने ईश्‍वरके अखंडित अनुसंधानमें रहकर बिना किसी बाह्य मार्गदर्शनसे एकलव्यकी भांति साधना की ।

वर्ष २०१५में दादीजी ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर जन्म-मृत्युके चक्रसे मुक्त हुईं । निर्मलता, निरपेक्ष प्रेमभाव, ईश्‍वरके प्रति दृढ श्रद्धा, अल्प अहं आदिके कारण केवल ४.५ वर्षोंमें ही उन्होंने ७१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर वे सनातनकी ९१वीं व्यष्टि संत बनी हैं । दादीजीके मुखमंडलपर विद्यमान सात्त्विकताका तेज तथा उनकी आनंदावस्थाको देखकर कुछ साधकोंकोभी उनमें स्थित संतत्वकी प्रचीती हो रही थी ।

उनके पति स्व. वसंत मुळये अर्थात सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजीके पिताजीने वर्ष २०१३में देहत्याग किया । अन्यायके विरुद्ध क्षोभ तो उनके रक्तमें ही था । स्वतंत्रतासैनिकके रूपमें उन्होंने निरपेक्षता ए‍वं क्षात्रभावके साथ अपने कर्तव्यका निर्वाहन करते समय उन्हें कारागृहमें भी जाना पडा । देशसेवा करते-करते वे दूसरोंकी सहायताके भी तत्परताके साथ दौडे चले जाते थे । त्याग उनका स्थायीभाव होनेसे तथा सभीका आधारस्तंभ बने स्व. वसंत मळयेजीने किसी निरासक्त कर्मयोगीकी भांति अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत किया । अब उनका आध्यात्मिक स्तर ७१ प्रतिशत हो चुका है और अब वे सनातनके ९२वें संतपदपर विराजमान हो गए हैं ।

सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं उनके पति पू. नीलेश सिंगबाळजी ये दोनोंके भी संतपदपर विराजमान होनेसे एकही परिवारके चारों लोगोंका संतपदपर विराजमान होना सनातनके इतिहासमें एक अद्वितीय घटना है । उनके पौत्र श्री. सोहम् सिंगबाळ (आयु २२ वर्ष) भी रामनाथी आश्रममें पूर्णकालीन साधना कर रहा है ।

अनेक दैवीय गुणोंसे युक्त पू. हिरा मळयेजी एवं पू. वसंत मळयेजीकी आगेकी उन्नति भी इसी तीव्र गतिसे होगी, इसमे प्रति मैं आश्‍वस्त हूं ।

– परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

पू. परांजपेदादाजी एवं पू. दादीजीमें विद्यमान सहजभावको
उजागर करनेवाले सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी द्वारा बताए गए सूत्र

१. पू. परांजपेदादाजी एवं दादीजीमें बहुत सहजता और खुलापन है । अन्य समयपर आश्रममें कुछ दिनोंके लिए आनेवालोंका नियोजन करना पडता है; परंतु पू. परांजपेदादाजी एवं दादीजीके संदर्भमें अलगपन अनुभव होता है । उन्हें किसी बातकी आवश्यकता पडी अथवा उन्हें कुछ पूछना हो, तो वे स्वयं ही पूछेंगे, ऐसा लगता है ।

२. पू. परांजपेदादीजी में विद्यमान विनम्रता एवं नेतृत्वगुणोंका वर्णन करते हुए सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजीने कहा, पू. परांजपेदादीजीने उनके सांगलीके भजन मंडलकी महिलाओंका रामनाथी आश्रमके अवलोकनका नियोजन किया था । उस समय पू. परांजपेदादीजीमें विद्यमान नेतृत्वगुण ज्ञात हुआ । वे भजन मंडलकी महिलाओंको आश्रममें कैसे रहना चाहिए, इस संदर्भमें उनकी समझमें आएगा, इस प्रकारसे तथा विनम्रतासे बता रही थीं ।

समारोहकी क्षणिकाएं

१. समारोहके समय सद्गुरुद्वयी इन साधकोंको अपनी अनुभूतियोंके कथनके लिए प्रोत्साहित कर रही थीं । सद्गुरुद्वयीने अपने मार्गदर्शनमें कहा, प्रत्येक विचार एवं अनुभूति ईश्‍वरद्वारा प्रदान की जाती है । वह केवल स्वयंके लिए नहीं, अपितु समष्टि हेतु होती हैं । अतः सभी साधक उत्स्फूर्ततासे अपनी अनुभूति बताएं । यह एक तनावमुक्त करनेवाली अध्यात्मकी एक परीक्षा ही है और समय-समयपर इस परीक्षाके पेपरमें परिवर्तन आता है । साधनामार्गपर अग्रसर होते समय हमें एक-एक क्षणमोतीको चुनते हुए आगे जाना होता है । इस प्रकारसे मार्गक्रमण करते समय ईश्‍वर हमें अपनी शरणमें लेते हैं । सद्गुरुद्वयी साधकोंको बीच-बीचमें क्या आपको वातावरणमें विद्यमान भावतरंगोंका अनुभव होता है न ?, ऐसा पूछकर साधकको भावविश्‍वमें ले जा रही थीं । इस समारोहमें उपस्थित साधकोंको गुरुसमान इन सद्गुरुद्वयीयोंका प्रत्यक्ष रूपसे सिखाना तथा उसके अनुभवका सौभाग्य प्राप्त हुआ ।

२. सूक्ष्म-ज्ञानप्राप्तकर्ता साधक श्री. निषाद देशमुखको समारोहके स्थानपर सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजीके दिवंगत पिताजी सूक्ष्मसे उपस्थित हैं, ऐसा प्रतीत हुआ । सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी द्वारा अपने पिताके संदर्भ में बताए जा रहे भावपूर्ण सूत्र वे (पिता) सुन रहे हैं और इसके लिए परात्पर गुरुदेवजीके प्रति उन्हें कृतज्ञता प्रतीत हो रही है, ऐसा भी श्री. निषाद देशमुखको प्रतीत हुआ ।

३. श्री. सोहम् सिंगबाळने अपनी प्रवाहित वाणीमें और धीमी लयमें उनके दादाजी पू. वसंत मळयेजी एवं दादी पू. हिरा मळयेके विषयमें अनुभवकथन किए । उस समय एक साधकको वहां साक्षात् श्रीदत्तगुरुका अस्तित्व प्रतीत हुआ ।

४. समारोहमें अधिक मात्रामें निर्गुण तत्त्व कार्यरत था । समारोहके घटनाक्रम पूर्वनिर्धारित नहीं, अपितु अपनेआप घटित हो रहा था । साधकोंको जन्मोत्सवकी अनुभूतियोंका सहजतासे स्मरण हो रहा था । सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजीने बताया कि सहजतासे सूझना निर्गुणकी अनुभूति होती है ।

५. सद्गुरु एवं संतोंमें विद्यमान लीनभावका दर्शन करानेवाले समारोहके अविस्मरणीय क्षण ! : सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजीद्वारा पू. (श्रीमती) परांजपेदादीजीको सम्मानित किए जानेके पश्‍चात पू. (श्रीमती) परांजपेदादीजीने सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी, सद्गुरु (श्रीमती) बिंदादीदीजी एवं पू. मळयेदादीजीके चरणोंपर मस्तक रखकर नमस्कार किया, साथ ही पू. परांजपेदादाजीने भी सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी, सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं पू. (श्रीमती) मळयेदादीजीका चरणस्पर्श कर तथा हाथ जोडकर प्रणाम दिया । सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी एवं (श्रीमती) बिंदादीदीजीने भी पू. परांजपेदादा-दादीजी तथा पू. मळयेदादीजीके चरणोंपर मस्तक रखकर नमस्कार किया । इस अविस्मरणीय क्षणसे एक-दूसरेको प्रणाम करनेवाले वंदनीय सद्गुरु एवं संतोंमें विद्यमान अत्युच्च लीनभावके दर्शन हुए ।

६. इस समारोहमें पू. परांजपेदादीजीने कुठे गुंतलासी योगियाचे ध्यानी, यह मराठी भजन भावपूर्ण को पद्धतिसे गाया ।

७. समारोहमें श्रीमती विमल आगावणेने मराठी भजन टाळ बोले चिपळीला गाया ।

८. श्री. सोहम् सिंगबाळ अपनी मां सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजीके कानोंमें कुछ कह रहे थे, तब श्री. श्रीरामप्रसाद कुष्टेको मानो वह उन्हें आप सगुणसे निर्गुणमें आएं, ऐसा तो नहीं कह रहा होगा न !, ऐसा प्रतीत हुआ ।

९. व्यासपीठकी ओर देखकर क्या प्रतीत होता है ?, इस विषयमें प्रयोग लेनेपर पू. डॉ. मुकुल गाडगीळजीको सूक्ष्मसे एक अरण्य दिखाई दिया । उसमें स्थित एक पर्णकुटीमें परांजपे परिवार तथा दूसरी पर्णकुटीमें मळये परिवार था । पू. (डॉ.) मुकुल गाडगीळजीको तब भी ये दोनों परिवार एकत्रित होनेका प्रतीत हुआ ।

१०. सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी द्वारा पू. परांजपेदादीजीको सम्मानित किए जानेके पश्‍चात दोनोंने एक-दूसरेको अलिंगन दिया । ये माता-पुत्री एक दूसरेके साथ, साथ ही जगन्मातासे एकरूप हुई हैं, ऐसा श्री. श्रीरामप्रसाद कुष्टेको प्रतीत हुआ ।

११. साधिका कु. कल्याणी गांगणने कहा, हिन्दू राष्ट्र स्थापनाके लिए परांजपे एवं मळये ये दोनों परिवार आदर्श हैं । हमने उनकी भांति आचरण किया, तो हम सभी की आध्यात्मिक उन्नति होगी ।

पू. परांजपेदादाजी एवं पू. दादीजीके परिजनोंद्वारा व्यक्त मनोगत

बाईं ओरसे बैठे हुए पू. (डॉ.) मुकुल गाडगीळजी, सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी, पू. सदाशिव परांजपेजी, पू. (श्रीमती) शैलजा परांजपेजी, श्रीमती कल्पना सहस्रबुद्धे, श्रीमती शीतल गोगटे, बाईं ओरसे खडे श्री. सिद्धेश करंदीकर, श्रीमती सायली करंदीकर एवं कु. निधि गोगटे

१. श्रीमती शीतल गोगटे (छोटी पुत्री)

माता-पिताके संतपदपर विराजमान होनेके कारण कृतज्ञता प्रतीत हुई । पहले माता-पिता मायासे संबंधित बातें करते थे; किंतु अब उनकी चर्चा केवल आध्यात्मिक विषयोंपर ही होती है ।

२. कु. निधी गोगटे (नातिन)

दादा-दादीजीके संत बन जानेके कारण मैं बहुत आनंदित हूं । दादाजी बहुत अनुशासित हैं । जब मैं कक्षके दीप बंद करना भूल जाती हूं, तब वे मुझे उसका स्मरण करा देते हैं । दादीजी कठोर हैं; किंतु वे जो सीख देती हैं, उसका मुझे भविष्यमें बहुत उपयोग होगा, ऐसा लगता है ।

३. श्रीमती सायली सिद्धेश करंदीकर (नातिन )

ऐसा लगता था कि सभीको ऐसे दादा-दादी मिलने चाहिएं । दादीजीमें तो प्रेमभाव पहले से हैं; किंतु उसके साथ उनमें तत्त्वनिष्ठाभी है । मुझसे कोई चूक होनेपर वे मुझे तुरंत उसका भान कराती हैं । वे मेरे प्रति प्रेमके कारण ही मुझे मेरी चूकें बताती हैं; इसलिए मुझे बुरा नहीं लगता । दादीजी सदैव हमें ईश्‍वरका विचार करना चाहिए, ऐसा बोलती हैं । वे सुबह घरके अन्य कामोंकी अपेक्षा पूजाघरकी सेवाओंको प्रधानता देती हैं । देवतापूजन करते समय जब दादाजी देवताओंको ठंडे पानीसे स्नान कराते थे, तब दादीजीने उन्हें कहा कि हम गर्म पानीसे स्नान करते हैं, तो देवताओंको ठंडे पानी से स्नान क्यों कराएं ? इससे मुझे दादीजी में विद्यमान भक्ति सीखनेके लिए मिली । दादीजी जो बताती हैं, उसका दादाजी किसी छोटे बच्चेकी भांति आज्ञापालन करते हैं । ऐसे परिवारमें मेरा जन्म होना, मेरा सौभाग्य है और मैं उसके लिए कृतज्ञता व्यक्त करती हूं ।

४. श्री. सिद्धेश करंदीकर (पौत्र जमाई)

४ अ. पू. परांजपे दादी-दादाजी द्वारा सद्गुरु (श्रीमती) गाडगीळदीदीजीको शुद्ध संस्कार दिए जाना ! : पू. परांपजे दादा-दादीजीको देखकर शुद्ध बीजसे रसीले फलोंकी उत्पत्ति वचनका स्मरण होता है । उनके द्वारा दिए गए शुद्ध संस्कारोंके कारण सद्गुरु (श्रीमती) गाडगीळजी बनीं है ।

४ आ. प्रेमभावसे आदरातिथ्य करनेवाले पू. परांजपे दादा-दादीजी ! : मैं जब सांगलीमें उनके निवासपर जाता हूं, तब दादा-दादीजी मेरा बहुत आदरातिथ्य करते हैं । मुझे किसी बातकी न्यूनता न हो; इसकी ओर वे ध्यान देते हैं ।

४ इ. विनम्रभाव : मैं दादाजीकी अपेक्षा आयुमें बहुत अल्प होते हुए भी वे मुझे आदरसे बुलाते हैं । इससे उनमें विद्यमान विनम्रता का गुण सीखने के लिए मिलता है ।

४ ई. बेकार वस्तुओंसे टिकाऊ एवं उपयोगी वस्तुएं बनानेवाले परांजपे दादाजी ! : रामनाथी आश्रममें कमलपीठपर दीपस्थापना की गई है । उस दीपके लिए दादाजीने बहुत कुशलतासे आच्छादन बनाया है । उन्होंने खर्चा न्यून करने हेतु बेकार वस्तुओंसे अनेक टिकाऊ वस्तुएं बनाई हैं । उन्होंने दादीजीके लिए पहंसुल रखनेका स्टैन्ड बनाया है ।

४ उ. पू. दादा-दादीजीमें विद्यमान उच्च भक्तिके कारण ईश्‍वर द्वारा उन्हें दी गई अनुभूति

एक बार दादा-दादीजी दूसरे किसी गांव गए थे । उन्होंने घरसे निकलनेसे पूर्व पूजाघरमें लड्डू रखा था, वह उन्हें गांवसे लौटनेके पश्‍चात दिखाई नहीं दिया । उस समय प्रत्यक्ष ईश्‍वरनेही वह लड्डू ग्रहण किया, यह दादा-दादीजीमें उच्च कोटिका भाव था ।

४ ऊ. दादा-दादीजीके संत बननेके संदर्भमें प्राप्त पूर्वसूचना : परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके जन्मोत्सवके उपलक्ष्यमें ५ मई से आश्रममें विविध धार्मिक विधि किए गए । उस समय एक विधिके विषयमें बात करनेके लिए मैं परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके पास गया था । तब उन्होंने पूछा, क्या सायलीके दादा-दादीजी आए हैं ?क्या वे सदैव आनंदित हैं न ? इससे मुझे दादा-दादीजीके संत बन जानेका प्रतीत हुआ ।

५. कु. मोक्षदा कोनेकर (पौत्र जमाई श्री. सिद्धेश करंदीकरकी भांजी)

दादा-दादीजी प्रत्येक बातको ठीकसे समझाकर और प्रेमसे बताते हैं । वे कभी क्रोधित नहीं होते । उनके प्रति मुझे बहुत कृतज्ञता लगती है । (यह बताते समय कु. मोक्षदाकी बहुत भावजागृति हो रही थी । सद्गुरु (श्रीमती) गाडगीळजीने बताया कि कु. मोक्षदा महार्लोकसे पृथ्वीपर जन्मी है; इसलिए उसकी बातोंसे उसमें विद्यमान प्रगल्भता और भावकी प्रचीती होती है ।)

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