पोला (बैलोंका त्यौहार – बेंदुर अथवा बेंडर)

 १. तिथि

यह उत्सव प्रदेश-प्रदेशानुसार श्रावण, भाद्रपद अथवा आश्‍विन माहमें मनाया जाता है । महाराष्ट्रमें यह श्रावण माहकी अमावस्यापर मनाया जाता है ।

 

२. उद्देश्य

अ. इस उत्सवद्वारा एक प्रकारसे बैलोंके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है ।

आ. ऐसा मानते हैं कि यह उत्सव मनानेसे खेतमें भरपूर फसल होती है और गोधन बढता है ।

इ. ‘इस उत्सवके दिन, उन प्राणिमात्रोंकी पूजा एवं स्मरण किया जाता है, जिनके परिश्रमसे मनुष्यजीवन चलता है । इससे गुरु द्वारा साधकको बोध होता है कि जैसे उसमें ईशशक्ति कार्य कर रही है, उसी प्रकार इस जगत्में विविध माध्यमोंसे वह ईश्‍वरीय सेवाके रूपमें कार्य कर रही है । ऐसी व्यापक दृष्टि निर्माण करना ही इस उत्सवका उद्देश्य है ।’ – परात्पर गुरु पांडे महाराज, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल.

 

३. उत्सव मनानेकी पद्धति

किसान-समाजमें इस उत्सवका अत्यधिक महत्त्व है । बुआई हो जानेपर खेतीके कामोंसे बैल खाली हो जाते हैं, तब उन्हें रगडकर नहलाया जाता है, उनकी आरती उतारी जाती है एवं नैवेद्य दिखानेके पश्‍चात दोपहरमें उन्हें रंगकर एवं सजाकर गांवमें जुलूस निकाला जाता है ।

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘धार्मिक उत्सव एवं व्रतों का अध्यात्मशास्त्रीय आधार’

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