कलियुग मे हमारे ही स्वभावदोषों से हमारा संघर्ष है ! – श्रीमती सविता लेले, सनातन संस्था

डोंबिवली (पश्‍चिम) में साधना शिविर संपन्न !

डोंबिवली : त्रेतायुग में श्रीरामजी ने रावणवध हेतु श्रीलंका जाकर युद्ध किया द्वापरयुग में दो परिवारों में युद्ध हुआ और इस कलियुग में हमारा संघर्ष हममें विद्यमान स्वभावदोषों से चल रहा है । जीवन में स्वभावदोष एवं अहं के निर्मूलन हेतु जीवन को अध्यात्म के साथ जोडना आवश्यक है । स्वभावदोषों के कारण हमें शारीरिक तथा मानसिक कष्टों का सामना करना पडता है । यह कष्ट न हो; इसके लिए स्वभावदोष तथा अहं का निर्मूलन अत्यावश्यक है । श्रीमती सविता लेले ने यह मार्गदर्शन किया । आनंदनगर, डोंबिवली (पश्‍चिम) में सी.एम्.एस्. विद्यालय में आयोजित साधना शिविर को संबोधित करते हुए वे ऐसा बोल रही थीं । इस अवसरपर वैद्य (श्रीमती) दीक्षा पेंडभाजे उपस्थित थीं । दैनिक सनातन प्रभात के २० पाठकों ने इस शिविर का लाभ उठाया । इस अवसरपर दीपावली की कालावधि में स्वदेशी वस्तुआें के उपयोग के संदर्भ में, साथ ही पटाखें टालने के संदर्भ में उद्बोधन किया गया । इस समय ‘आध्यात्मिक उपाय कैसे करें ?’, इसके संदर्भ में ध्वनिचक्रिका भी दिखाई गई ।

ईश्‍वर से प्रार्थना करने से हमारा अहंभाव न्यून होता है ! – वैद्य (श्रीमती) दीक्षा पेंडभाजे

‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के मार्गपर चलनेवाला हिन्दू धर्म विश्‍व का एकमात्र धर्म है । आज हमारे धर्मपर विविध माध्यमों द्वारा आक्रमण हो रहे हैं । धर्म को मिटाने का षड्यंत्र बडी मात्रा में चल रहा है । शबरीमला मंदिर में महिलाआें के प्रवेश का प्रकरण, इसका एक उदाहरण है । ऐसे सभी आघातों को रोकने के लिए हिन्दू राष्ट्र की स्थापना आवश्यक है और उसके लिए साधना आवश्यक है । ‘जितने व्यक्ति, उतनी प्रकृतियां’ तत्त्व के अनुसार गुुरुकृपायोग के अनुसार साधना की जा सकती है । हम हमारी प्रकृति के अनुसार साधना कर सकते हैं । साधना के सिद्धांतों के अनुसार अर्थात अनेक से एक में, स्थूल से सूक्ष्म में तथा काल के अनुसार साधना के माध्यम से हम ईश्‍वर से एकरूप हो सकते हैं । इसमें व्यष्टि तथा समष्टि साधना महत्त्वपूर्ण है । ईश्‍वर को आर्तता के साथ पुकारना प्रार्थना है । ईश्‍वर से प्रार्थना करने से हममें विद्यमान अहंभाव न्यून होता है ।

पाठकों की प्रतिक्रियाएं

१. हम सभी का यह आध्यात्मिक गृहपाठ है, जिसे हम सभी को करना चाहिए । – श्री. भरत कोकजे

२. इस प्रकार का मार्गदर्शन का हम पहली बार अनुभव किया है । इस शिविर में अभ्यासपूर्वक विषय रखे गए हैं । – श्री. जनार्दन कुलकर्णी 

३. हमारी गुुरुकुल शिक्षापद्धति नष्ट हो जाने से हमें धर्मशिक्षा नहीं मिलती । इस मार्गदर्शन से हममें विद्यमान दोष और अहं का निर्मूलन कैसे करना चाहिए, यह पुनः एक बार समझ में आया । – एक पाठक

स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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