समलैंगिकता हिन्दू धर्मशास्त्रानुसार पाप ! – चेतन राजहंस, प्रवक्ता, सनातन संस्था

समलैंगिक संबंध अपराध नहीं है ! – सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

नर्इ देहली – सर्वोच्च न्यायालयाने ६ सितंबर को निर्णय देते हुए कहा कि, समलैंगिकों को भी समान अधिकार हैं । इसलिए २ वयस्क व्यक्तियों द्वारा रखे गए संबंध निजि होने के कारण वह अपराध सिद्ध नहीं होता । परस्पर सहमति से रखे जानेवाले समलैंगिक संबंधों को अपराध सिद्ध करनेवाली भारतीय दंड संविधान की धारा ३७७ के संवैधानिक वैधता को आवाहन देनेवाली याचिकाआें पर न्यायालय ने यह निर्णय दिया है ।

१. केंद्र सरकार ने २ प्रौढ व्यक्तियों ने परस्पर सहमति से किए गए अप्राकृतिक संभोग को अपराध कहने से संबंधित दंडात्मक व्यवस्थाआें के संवैधानिक वैधता का सूत्र न्यायालय की विवेकबुद्धि पर छोडा था । अवयस्क बच्चे तथा प्राणियों से अप्राकृतिक संभोग के संबंध में दंडात्मक व्यवस्थाआें के अन्य सूत्र कानून में वैसे ही रखे जाएं, एेसी भूमिका ली थी । उसके अनुसार न्यायालय ने समलैंगिक संबंध को अपराध नहीं बताया है तथा उसी समय अवयस्क बच्चे तथा प्राणियों के साथ अप्राकृतिक संभोग को धारा ३७७ अंतर्गत अपराध है, बताया है ।

२. संसारभर के कुल ७३ देशों में समलैंगिकों को परस्पर सहमति से शारीरिक संबंध रखने की कानूनी मान्यता है । इसमें प्रमुखता से मध्य पूर्व के देश, आफ्रिका, एशियार्इ देशों का समावेश है । अमेरिका में वर्ष २०१५ में समलैंगिक संबंधों को मान्यता दी गर्इ है ।

थॉमस बेबिग्टंन मॅकोले द्वारा बनाया गया कानून

‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ का अधिकारी थॉमस बेबिग्टंन मॅकोले ने वर्ष १८५२ में भारतीय संविधान में ‘धारा ३७७’ अंतर्भूत की थी । इस कानून में प्राकृतिक नियमों के विरुद्ध कोर्इ भी लैंगिक कृत्य करने पर उसे आजीवन कारावास अथवा १० वर्षों का दंड देने की व्यवस्था की गर्इ थी ।

समलैंगिकता हिन्दू धर्मशास्त्रानुसार पाप ! – चेतन राजहंस, प्रवक्ता, सनातन संस्था

समलैंगिकता के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का हम पूर्ण आदर करते हैं, तब भी समलैंगिक संबंध न्याय दृष्टिकोण तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता के दृष्टिकोण से न्यायालय को योग्य लगते होंगे, तब भी हिन्दू धर्मशास्त्र की दृष्टि से यह पाप है । अपने धर्मग्रंथों के अनुसार मानव का विकास संस्कृति की दिशा में होना चाहिए न कि विकृति की दिशा में । हमारी संस्कृति में लैंगिक संबंध विशेषतः संभोग केवल एकमात्र उद्देश्य प्रजोत्पत्ति के लिए किया जाता है । समलैंगिक संबंधों में प्रजोत्पत्ति का उद्देश्य नहीं है, वहां केवल भोगवाद है । हमारी संस्कृति भोगवाद का समर्थन नहीं करती । यद्यपि न्यायदेवता ने जो भी निर्णय दिया है, वह आज की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के दृष्टिकोण से है, तथापि पाप करने से मृत्यु के उपरांत जीव की दुर्गति होती है, यह धर्म पर श्रद्धा रखनेवाले समाज को ध्यान में रखना चाहिए ।

 

भारतीय संस्कृति को समलैंगिकता मान्य न होने के कारण हम
इसे अपराध ही मानेंगे ! – स्वामी नरेंद्रगिरी, अध्यक्ष, आखाडा परिषद

न्यायालय के निर्णय का हम सम्मान करते हैं; परंतु हमें लगता है कि इसके कारण समाज में अनुचित संदेश न पहुंचे । इस निर्णय पर सरकार को विचार करना चाहिए । समलैंगिकता पाश्चात्य विकृति है तथा भारत में फैल रही है । इसका प्रसार हमारे समाज में नहीं होना चाहिए ।

 

यदि यह अपराध नहीं है, तो ३-४ विवाह करने को भी
अपराध न माना जाए ! – मौलाना कल्बे जव्वाद, शिया धर्मगुरु

समलैंगिकता को यदि धर्म से अलग किया जाए, तब भी भारतीय संस्कृति इसके विरोध में ही है । यदि यह अपराध नहीं है, तो ३-४ विवाह करने को भी अपराध नहीं माना जाए । प्रत्येक व्यक्ति स्वयं के मनानुसार कुछ भी करता रहेगा । सरकार को इस पर रोक लगानी चाहिए ।

 

प्रधानमंत्री मोदी समलैंगिकता को अपराध माननेवाला
कानून बनाए ! – स्वामी चक्रपाणी महाराज, राष्ट्रीय अध्यक्ष, हिन्दू महासभा

 

न्यायालय का निर्णय समाज एवं राष्ट्र के हित में हो ही नहीं सकता । इसलिए समाज में अराजकता उत्पन्न हो सकती है तथा उससे समाज के चरित्र का आैर युवकों का पतन हो सकता है । अपराध भी बढ सकते हैं । किसी भी धर्मानुसार यह निर्णय उचित नहीं है । प्रधानमंत्री मोदी से विनती है कि, वे इस निर्णय पर रोक लगाएं तथा इसे अपराध माननेवाला कानून बनाएं ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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