तन, मन एवं धन अर्पित कर गुरुसेवा करनेवाले तथा हिन्दू राष्ट्र स्थापनाका निदिध्यास रखनेवाले डिगस (जनपद सिंधुदुर्ग, महाराष्ट्र)के बन्सीधर तावडे सनातनके ९३वें संतपदपर विराजमान !

पू. बन्सीधर तावडेजीको माल्यार्पण कर सम्मानित करते हुए सद्गुरु सत्यवान कदमजी

कुडाळ : वैशाख पूर्णिमा अर्थात १८ मई २०१९को यहां गुरुपूर्णिमाके उपलक्ष्यमें आयोजित सत्संगसमारोहम में सनातन के सद्गुरु सत्यवान कदमजीने सभीको डिगस (तहसील कुडाळ)के श्री. बन्सीधर तावडे (आयु ७९वर्ष) सनातनके ९३वें संतपदपर विराजमान होनेका शुभसमाचार दिया । तन, मन एवं धन समर्पित कर गुरुसेवा करनेवाले तथा हिन्दू राष्ट्र स्थापनाका निदिध्याससे युक्त पू. बन्सीधर तावडेदादाजीद्वारा संतपद प्राप्त किए जानेके शुभसमाचारसे सभी साधक अभिभूत हो गए और सभीको भावाश्रु अनावर हुए । सद्गुरु सत्यवान कदमजीने पू. बन्सीधर तावडेजीको माल्यार्पण कर तथा उन्हें भेंटवस्तुएं देकर सम्मानित किया । इस आनंददायी समारोहके समय पू. बन्सीधर तावडेजीद्वारा गुरुदेवजीके प्रति व्यक्त कृतज्ञता, साथ ही सद्गुरु सत्यवान कदमजी एवं अन्य साधकोंद्वारा उनके विषयमें व्यक्त मनोगत यहां दे रहे हैं ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीही जगद्गुरु हैं ! – पू. बन्सीधर तावडेदादाजी

सम्मान समारोहके पश्‍चात पू. बन्सीधर तावडेजीने कहा, प.पू. गुरुदेवजीका मुझपर कृपाशिर्वाद है । आज मैं अभिभूत हूं । अब क्या बोलूं, यही नहीं सूझ रहाहै । गुरुदेवजीकी कृपासे ही मुझे संतपद प्राप्त हुआ है । वर्ष १९९७ से लेकर आजतक सनातन संस्थाने मुझे जो प्रेम दिया, उसके कारण ही मैं यहांतक पहुंच सका । मैं अंतिम सांसतक सनातन नहीं छोडूंगा । प.पू. डॉक्टरजी विश्‍वकल्याणहेतु हिन्दू राष्ट्र लानेवाले हैं । वर्ष २०२३ इस कार्यकी गति बढेगी । आज देशमें अनाचार बढा है । आज सर्वत्र बडी हुई समस्याआेंका समाधान हिन्दू राष्ट्रमें ही होगा ।
अपनी साधनाके प्रयासोंके विषयमें पू. तावडेदादाजीने कहा, आरंभमें मैं सनातनके ग्रंथोंका वाचन करता था । उनमें विद्यमान विचार मेरे मनपर अंकित हुए । गुरुपूर्णिमाके प्रसारकार्यमें मुझे इन विचारोंको समाजतक पहुंचानेका अवसर मिला । सनातनमें एक विशेष बात यह है कि यहां साधनाकी शंकाआेंका निराकरण किया जाता है और उसके कारण जिज्ञासु क्रियाशील बन जाता है । अध्यात्ममें जो कृती (साधना) करता है, उसे अनुभूतियां प्राप्त होती हैं, इसका मैं अनुभव कर रहा हूं । प.पू. डॉक्टरजीने मुझे प्रकाशित (आनंदित) किया । सनातन जैसी संस्था विश्‍वमें कहीं नहीं है । यहां किसी प्रकारके भेदभावको कोई स्थान नहीं है । साधक व्यक्तिगत आध्यात्मिक उन्नति करें, यही संस्थाका उद्देश है । प.पू. गुरुदेवजी विश्‍वका विचार करते हैं; इसलिए वे जगद्गुरु हैं ।

पू. तावडेदादाजीकी आनंदकी स्थितिमें पहलेकी अपेक्षा
बढोतरी हुई है ! – सद्गुरु सत्यवान कदमजी, कुडाळ, जनपद सिंधुदुर्ग

इससे पहले जब पू. बन्सीधर तावडेदादाजीसे भेंट हुई थी, तब उन्हें शारीरिक कष्टोंके कारण चलना भी संभव नहीं हो रहा था; परंतु ऐसा होते हुए भी उनके मुखमंडलपर आनंद प्रतीत हो रहा था । दूसरी भेंटमें उनकी आनंदावस्थामें पहलेकी तुलनामें बढोतरी होनेका ध्यानमें आया । उनमें प.पू. गुरुदेवजीके प्रति अपार श्रद्धा है । वे खुलेपनसे तथा अंतर्मनसे बोलते हैं । उन्होंने तन,मन और धन समर्पित कर साधना की है ।

सनातनका एक भी शब्द असत्य नहीं हो सकता, यह
श्रद्धा और धर्मकार्यकी तीव्र तडपसे युक्त पू. बन्सीधर तावडेजी !

अभ्यासी एवं जिज्ञासु वृत्तिवाले डिगस, सिंधुदुर्गके श्री. बन्सीधर तावडेजीने सनातनके ग्रंथ एवं दैनिक सनातन प्रभातके वाचनसे अध्यात्मको समझ लिया और उसका तुरंत क्रियान्वयन भी किया । अध्यात्ममें रूचि होनेके कारण उन्होंने नाम, सत्संग, सेवा एवं तन, मन और धनका त्याग जैसे सभी चरणोंसे साधनाके सभी तत्त्व अपनाएं । इन सभी चरणोंसे साधना करते समय उनके मनमें सनातनका एक भी शब्द असत्य नहीं हो सकता, यह श्रद्धा उनके मनमें उत्पन्न हुई । उनमें विद्यमान दृढ श्रद्धा ही उनकी आध्यात्मिक उन्नतिका रहस्य है । इसके कारण वर्ष २०१२में ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर वे जन्म-मृत्युके चक्रसे मुक्त हुए ।

पू. बन्सीधर तावडेदादाजीकी और एक विशेषता यह है कि उनमें धर्मकार्यकी असीम तडप है । शारीरिक अस्वस्थताके कारण आज वे प्रत्यक्षरूपसे प्रसारसेवा नहीं कर सकते; परंतु उनके मनमें सदैव सेवाका ही निदिध्यास होता है । ईश्‍वरीय राज्यकी स्थापना हो, इसकी उनमें इतनी तडप है कि वे निरंतर उसी चिंतनमें व्यस्त होते हैं और इस विषयपर वे उत्स्फूर्तता और अध्ययनपूर्वक बोलते हैं ।

शारीरिक अस्वस्थता होते हुए भी वे सदैव आनंदावस्थामें होते हैं । दृढ श्रद्धा, त्यागकी वृत्ति एवं धर्मकार्यकी तीव्र तडप इन गुणोंके कारण श्री. बन्सीधर तावडेदादाजीकी आध्यात्मिक उन्नति तीव्रगतिसे हुए हैं और अब वे सनातनके ९३वें संतपदपर विराजमान हुए हैं ।

मैं इसके प्रति आश्‍वस्त हूं कि पू. बन्सीधर तावडेजीकी आगेकी आध्यात्मिक उन्नतिभी इसी तीव्र गतिसे होगी ।

– परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

पू. तावडेदादाजीके संदर्भमें साधकों द्वारा व्यक्त मनोगत

१. पू. बन्सीधर तावडेदादाजी जैसी भावभक्ति रखकर तीव्र साधना करना संभव हो, यह गुरुदेवजीके चरणोंमें प्रार्थना !

२. पू. तावडेदादाजीके संतसम्मान समारोहको देखकर अभिभूत हो गया !

गुरुदेवजीने हमें निरंतर अपना कृपाछत्र प्रदान किया और सूक्ष्मसे हम जैसे किसानोंका हाथ पकडा । गुरुदेवजीकी कृपासे प्राप्त आजका यह संतसमारोह देखकर मैं अभिभूत हूं ।
– श्री. अनंत पवार, डिगस

३. तावडेकाकाजीसे मिलनेपर चैतन्य और आत्मविश्‍वास बढता है ।
– श्री. गजानन मुंज, कडावल, तहसील कुडाळ

पू तावडेदादाजीका बोलना अभिभूत करनेवाला है ! – पू. तावडेदादाजीके सेवक

मैं पिछले ६ मासोंसे उनकी सेवामें हूं । उनकी बातें अभिभूत करनेवाली होनेसे मैने एक भी दिन उनकी सेवा नहीं चुकाई । वे मुझे वाचनके लिए सनातनके ग्रंथ देते हैं । ग्रंथ पढनेके पश्‍चात अब हिन्दू राष्ट्र आकर रहेगा, यह मेरे मनपर अंकित हुआ । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीजैसे अन्य कोई संत नहीं है ।

– श्री. कृष्णा यशवंत मेजारे, डिगस, तहसील कुडाळ (पू. तावडेदादाजीके सेवक)

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