अत्यंत उच्च तापमानवाले यज्ञकुंड में समर्पित होकर स्वयं के शरीर के तापमान को सर्वसामान्य रखनेवाले तंजावूर (तमिलनाडू) के महान योगी प.पू. रामभाऊस्वामीजी !

महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय का विशेषतापूर्ण अनुसंधान !

प.पू. रामभाऊस्वामीजी के शरीरपर ओढी हुई शॉल का तापमान नापते हुए

 

मिनी रे थर्मामीटर (इस उपकरण की सहायता से ४ फीट दूरीपर स्थित व्यक्ति अथवा वस्तु का तापमान गिना जा सकता है ।

१७.१.२०१६ को उच्छिष्ट गणपति यज्ञ की तापमानमापक (मिनी रे थर्मामीटर) यंत्र द्वारा किए गए निरीक्षण

टीप : इस उपकरण की सहायता से यज्ञकुंड तथा शॉल का ४ फीट दूरी से तापमान गिना गया है । इस उपकरण को सीधे शरीर का तापमान गिनने के लिए नहीं बनाया गया है । अतः शरीरपर ओढी हुई शॉल का तापमान गिना गया है ।

विवरण

परीक्षण के समय यज्ञकुंड का तापमान १४६.५ अंश सेल्सियस था । उस समय यज्ञकुंड में समर्पित प.पू. रामभाऊस्वामीजी के शरीरपर ओढी हुई शॉल का तापमान ३९.५ अंश सेल्यियस था । प.पू. रामभाऊस्वामीजी के आध्यात्मिक सामर्थ्य के कारण अत्यंत उच्च तापमान में भी उनके शरीरपर ओढी हुई चादर का तापमान नहीं बढा है ।

संतों की साधना के कारण दहकता यज्ञाग्नि उनके शरीर को जला नहीं सकता, इसका यह दुर्लभ उदाहरण है । ऐसा केवल आध्यात्मिक साधना से ही संभव हो सकता है । श्रीमद् भगवद्गीता में बताया गया है कि दहकते अग्नि में भी केवल ईश्‍वर की कृपा से ही भक्त प्रल्हाद सुरक्षित रह सके । इसे देखने से हिन्दुआें के धर्मग्रंथ में दिए गए उदाहरण कोई काल्पनिक कथाएं नहीं है, यह सिद्ध होता है ।

– श्री. रूपेश रेडकर, महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय, गोवा (१५.१.२०१६)

प.पू. रामभाऊस्वामीजी को अग्नि स्पर्श नहीं कर सकती, इसका आध्यात्मिक कारण

प.पू. रामभाऊस्वामी में व्याप्त तेजतत्त्व अग्नि से भी अधिक है; इसलिए अग्नि उन्हें तथा उनके वस्रों को तनिक भी स्पर्श नहीं कर सकता । – परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी

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