हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता दर्शानेवाली पद्मालय (जिला जलगांव) की अति प्राचीन बाईं और दाईं सूंड की स्वयंभू श्री गणेशमूर्ति !

जलगांव जिले की एरंडोल तहसील ! तहसील में निसर्गरम्य परिसर में पद्मालय नामक इस पवित्र क्षेत्र का श्री गणेशमंदिर सुप्रसिद्ध है । इस मंदिर की मूर्ति १०० से भी अधिक वर्षों पूर्व मंदिर के निकट स्थित जलकुंड में मिली ।

श्री गणेशपुराण की उपासना खंड के ७३, ७४, ९० एवं ९१ वें अध्याय में श्रीक्षेत्र पद्मालय संस्थान के स्वयंभू श्री गणेशमूर्ति का उल्लेख मिलता है । साढे तीन सिद्धीविनायकों में से (पीठों में से) श्रीक्षेत्र पद्मालय पूर्ण पीठ है । मोरगांव, राजूर और पद्मालय पूर्ण पीठ हैं, जबकि चिंचवड अर्धपीठ है, ऐसा उल्लेख पाया जाता है ।

महान संत सद्गुरु श्री गोविंद महाराजजी शास्त्री बर्वे ने शक १८२५ (वर्ष १९०३) में पद्मालय के मंदिर का जीर्णोद्धार किया । यह मंदिर पूर्व के काशी विश्‍वेश्‍वर के मंदिर की प्रतिकृति है । इस मंदिर में बाईं और दाईं सूंड की, दो श्री गणेशमूर्तियां हैं । वे कैसे अवतरित हुईं इस संदर्भ में जानकारी पुराणों में मिलती है ।

आरंभ में बाईं सूंड के गणपति के संदर्भ में जान लेते हैं । समुद्रमंथन से निकला हलाहल विष शंकरजी के प्राशन करने पर उनके शरीर में आग-सी तपिश होने लगी । तब उन्होंने गले में शेषनाग को धारण किया, इससे महादेव के शरीर की आग शांत हो गई । शेषनाग को गर्व हो गया कि मेरे सान्निध्य के कारण महादेव को अच्छा लगने लगा । महादेव को जब यह पता चला तो उन्होंने शेष को पृथ्वी पर फेंक दिया । तब शेष पद्मालयक्षेत्र में आकर गिरे । शेषनाग दु:ख से फुफकारने लगे । उनकी आवाज सुनकर नारदमुनि उनके समीप आए । उन्होंने शेष को पंचाक्षरी श्री गणेश का मंत्र दिया । उनके तपोबल से १२ वर्षों उपरांत बाईं सूंड के आकार के गजानन ने शेषनाग को दर्शन दिए और पृथ्वी का भार भलीभांतिे संभाल पाएं, ऐसी शक्ति दी । तदुपरांत उन्होंने अपने पिताजी को (अर्थात महादेव को) पुन: शेष को गले में धारण करने की विनती की । तब शेषनाग ने भी भगवान श्रीगणेशजी से प्रार्थना करते हुए कहा, जैसे आपने मेरी मनोकामना पूर्ण की, वैसे ही यहां आनेवाले भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने के लिए आप यहीं रुक जाएं । उनकी प्रार्थना का मान रख आज भी बाईं सूंड के गणपति पद्मालय में वास कर रहे हैं ।

दाईं सूंड के गणपति का इतिहास देखेंगे । परशुराम अवतार के समय इस प्रदेश में कृतवीर्य नामक राजा था । उसकी संतान नहीं थी । वह भगवान दत्तात्रेय का भक्त था । श्री दत्त ने पुत्र प्राप्ति के लिए उसे संकष्टी चतुर्थी के व्रत करने के लिए कहा । एक चतुर्थी पर कृतवीर्य को पूजा करते समय उन्हें जम्हाई आई । तब वह बिना आचमन किए ही पूजाविधि करता रहा । इस चूक के परिणामस्वरूप रानी को बिना हाथ-पैर के पुत्र की प्राप्ति हुई । उसका नाम कार्तवीर्य रखा । उन्होंने इस पुत्र की १२ वर्ष देखभाल की । आगे कार्तवीर्य को भगवान दत्तात्रेय ने १२ वर्ष गणेश के बीजमंत्र का जप करने के लिए बताया । पद्मालय के इसी जलकुंड के सामने कार्तवीर्य ने तपश्‍चर्या की । इस जलकुंड से गजानन ने दर्शन दिए । गजानन के कार्तवीर्य को स्पर्श करने पर, उसके सहस्र हाथ और दो पैर तैयार हो गए । उसका नाम सहस्रार्जुन रखा । उसने सहस्र हाथों से भगवान गणेश को वहीं पर रुकने की विनती की । भगवान गणेश भी उसकी बात का मान रख, दाएं सूंड के श्री गणपति उसी स्थिति में यहां रुके हैं ।

मंदिर में मूषक के २ हाथों की १४ उंगलियां १४ सिद्धियों की प्रतीक हैं ।

पद्मालय स्थितअति प्राचीन बाईं और दाईं सूंड की स्वयं भू श्री गणेशमूर्ति ! इन्हीं श्री गणेश भगवानजी ने जिस प्रकार शेषनाग और कार्तवीर्य की मनोकामना पूर्ण की, उसी प्रकार भारत के सहस्रों हिन्दुुत्वनिष्ठों के मन में हिन्दू राष्ट्र स्थापनाकी लगन को मूर्त रूप दें, ऐसी उनके श्रीचरणों में भावपूर्ण प्रार्थना करेंगे ।

पद्मालय, तहसील एरंड, जिला जलगांव में श्री गणेश मंदिर और उसके परिसर का प्राकृतिक जलकुंड ! इस तालाब में ही १०० से भी अधिक वर्ष पूर्व श्री गणेश की दोनों मूर्तियां पाई गईं थीं । सद्गुरु श्री गोविंद महाराजजी ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया । इस जलकुंड की विशेषता यह है कि यहां कमल अपनेआप खिलते हैं ।

मंदिर के प्रांगण में स्थित भगवान गणेश का वाहन मूषक ! इस मूषक की विशेषता यह है कि इसके दोनों हाथों में ७-७ अर्थात कुल १४ उंगलियां हैं । १४ उंगलियां १४ सिद्धियों की प्रतीक हैं ।

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