रामनाथी, गोवा के सनातन आश्रम की सूक्ष्म-जगत् की प्रदर्शनी देखकर जिज्ञासुओं द्वारा प्राप्त अभिप्राय

१ . सूक्ष्म जगत् की प्रदर्शनी देखकर यह प्रतीत हुआ कि, वर्तमान में वातावरण की अनिष्ट शक्तियों का प्रभाव सर्वत्र हो रहा है । पवित्र हिन्दु संस्कृति भ्रष्ट होने का यह प्रमाण है । सनातन संस्कृति की पुर्नस्थापना हेतु लोगों के विचार तथा आचार में परिवर्तन लाना आवश्यक है । – श्री. कुरू ताई, अरुणाचल प्रदेश

२. प.पू. डॉक्टरजी द्वारा उपयोग किए गए वस्तुओं में हुए परिवर्तन देखकर यह बात ध्यान में आई कि, निर्जिव वस्तुओं पर दैवी शक्तियों का (चैतन्य) परिणाम होता है । – श्रीमती सुधा एन्. प्रभू, शिमोगा (२०.६.२०१६)

 

प.पू. डॉक्टर का सूक्ष्म-जगत् के संदर्भ में संशोधन अतिमहत्त्वपूर्ण !

‘हमारे हिन्दु धर्म में भी प.पू. डॉक्टर के समान संत है, यह जानकर अत्यंत आनंद प्रतीत हुआ । उनके द्वारा किया गया सूक्ष्म जगत् के संशोधन का ज्ञान अतिमहत्त्वपूर्ण है ।’ – श्री. अमोल प्रकाश टोपलेवार, यवतमाळ, महाराष्ट्र । (२४.६.२०१६)

 

प्रदर्शनी देखते समय हुए कष्ट तथा आई अनुभूतियां !

अ. ‘प्रदर्शनी देखते समय चक्कर आई । सिरदर्द होने लगा । ऐसा प्रतीत हुआ कि, वमन हो रहा है ।

आ. प.पू. डॉक्टर द्वारा उपयोग की गई डिब्बी का सुगंध लेते समय ऐसा प्रतीत हुआ कि, वातानुकूलित यंत्र से आती है, उसी प्रकार की अत्यंत ठंडी हवा का झोंका आ रहा है ।

इ. प.पू. भक्तराज महाराज का छायाचित्र देखते समय यह प्रतीत हुआ कि, वे मेरे साथ बात कर रहे हैं तथा नानाजी के घर जाने के पश्चात् जिस प्रकार नानाजी अपने पोतों की ओर प्यारभरी नजर से देखते हैं तथा बातें करते हैं, उसी प्रकार वे मेरी ओर प्यारभरी नजर से देख रहे हैं तथा बातें कर रहे हैं ।’ – कु. अर्चना कडगंची, सोलापुर, महाराष्ट्र । (२४.६.२०१६)

 

आश्रम का वातावरण चैतन्यमय है !

‘आश्रम स्वच्छ है । साथ ही वहां की सभी रचना शास्त्रशुद्ध है । आश्रम का वातावरण चैतन्यमय है । यहां के साधक अपना कार्य पूरी क्षमता से तथा समर्पित भाव से करते हैं । सभी साधक सभ्य है तथा उनकी साधना में प्रगति हो रही है ।’ – श्री. एस्.आर्. मुंडरगी, बेलगांव (१८.६.२०१६)

 

आश्रम देखकर मैं अत्यंत भावविभोर हुई !

‘यह अत्यंत आवश्यक तथा महत्त्वपूर्ण कार्य है । मुझे यह प्रतीत होता है कि, इस कार्य में सभी को सम्मिलित होना चाहिए ।’ – श्रीमती विभा विकास वीरकर, सिंधुदुर्ग (२३.९.२०१७)

 

आश्रम देखकर मन आनंदित हुआ !

आश्रम में वास्तविक श्रीमंती की एक पृथक-सी अनुभूति प्राप्त हुई । आश्रम में साधक स्वेच्छा से श्रमदान (सेवा) कर रहे थे । उनकी वह सेवा एक प्रकार की पृथक-सी उर्जा देनेवाली है । – श्री. अजय जोशी, उत्तर गोवा (२.१०.२०१७)

सभी समस्याओं का समाधान हुआ !

‘सूक्ष्म जगत् की प्रदर्शनी देखकर अंतर्मन का दर्शन हुआ है । सर्व समस्याओं का समाधान हुआ । ’ – श्री. विवेक नारायण, बुलढाणा, महाराष्ट्र । (१७.६.२०१७)

 

सूक्ष्म प्रदर्शनी देखने के पश्चात् यह पता चला कि, ‘सूक्ष्म कितना प्रभावशाली रहता है !

‘ईश्वरकृपा से इस बात का पता चला कि, सूक्ष्म क्या होता है तथा वह कितना प्रभावशाली रहता है ? साथही इस बात का भी पता चला कि, ‘यह ज्ञान केवल गुरुकृपा के कारण ही साधकों को प्राप्त हुआ है ।’ – श्रीमती सुनिता उत्तम दीक्षित, अकलुज, सोलापुर । (१८.६.२०१७)

 

सूक्ष्म जगत् का ज्ञान केवल संतों को ही रहता है !

‘सूक्ष्म जगत् की प्रदर्शनी देखकर अधिक कुछ सीखने प्राप्त हुआ । साथ ही इस बात की अनुभूति आई कि, स्थूल में सब देखना सहज होता है; किंतु सूक्ष्म जगत् का ज्ञान केवल संतों को ही रहता है ।’ – श्री. प्रकाश कृष्ण कोंडसकर, रत्नागिरी , (१८.६.२०१७)

 

साधना की महानता ध्यान में आई !

‘सूक्ष्म जगत् की प्रदर्शनी देखकर साधना की महानता ध्यान में आई । साथ ही इस बात का पता चला कि, हिन्दु राष्ट्र स्थापना करने के लिए साधना कितनी महत्त्वपूर्ण है ?’ – श्री. अभिषेक विजयराव दीक्षित, श्री शिवप्रतिष्ठान हिन्दुस्थान, अमरावती । (१८.६.२०१७)

सूक्ष्म जगत् का इस प्रकार का ज्ञान विश्व में कहीं भी नहीं है !

‘सूक्ष्म जगत् का इस प्रकार का ज्ञान विश्व में कहीं भी नहीं है । कल्पना भी नहीं कर सकते अर्थात् ‘न भूतो न भविष्यति’ इस की प्रचिती आई । सूक्ष्म प्रदर्शनी देखकर जीवन सार्थक हुआ । हम ईश्वर के चरणों में कृतज्ञ हैं ।’ – श्री. मोहन अंबिकाप्रसाद तिवारी, उपमहानगर प्रमुख, शिवसेना, जलगांव, महाराष्ट्र । (१५.६.२०१७)

 

साधना का महत्त्व ध्यान में आया !

‘वातावरण में अनिष्ट शक्तियों कितनी आक्रमक रहती है तथा साधना को कितना महत्त्व है,’ यह ध्यान में आया । साथ ही ‘साधना करने से हम अनिष्ट शक्तियों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं ’, इस का ज्ञान भी यहां आने के पश्चात् हुआ ।’ – श्री. भागवत पोपलघट, संभाजीनगर, महाराष्ट्र । (१८.६.२०१७)

 

कुछ अन्य अभिप्राय

  • ‘सूक्ष्म जगत् की प्रदर्शनी अद्भुत है ।’ – श्री. विक्रमसिंह मारुति सावंत, शहरप्रमुख, युवा सेना, कोल्हापुर । (१५.६.२०१७)
  • ‘ईष्ट तथा अनिष्ट, इस प्रकार की दोनों अदृश्य शक्तिओं का जीवन पर होनेवाला प्रभाव पहली ही बार देखा ।’ – अधिवक्ता मधुसूदन बी. शर्मा, अकोला (१५.६.२०१७)
  • ‘सूूक्ष्म में घटनेवाली बातें आप ने सामने रखी तथा उसकी जानकारी दी; इसलिए अत्यंत आनंद हुआ ।’ – श्री. प्रशांत बतवल, प्रांत सदस्य, धर्मयोद्वा, संभाजीनगर, महाराष्ट्र । (१५.६.२०१७)
  • ‘यह बात ध्यान में आई कि, परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा उपयोग की गई वस्तु आनंददायी तथा प्रेरणादायी है ।’ – अधिवक्ता गोविंद जानकीराम तिवारी, प्रदेश कार्याध्यक्ष, हिन्दु महासभा, जलगांव, महाराष्ट्र ।(१५.६.२०१७)
  • ‘सूक्ष्म जगत् की प्रदर्शनी देखकर मुझे इस प्रकार के विशेषतापूर्ण अनुभवों का अभ्यास करने की इच्छा प्रतीत हुई ।’ – अधिवक्ता सुशील अत्रे, न्यासी, सावरकर राष्ट्रीय प्रबोधिनी, जलगांव, महाराष्ट्र । (१५.६.२०१७)
  • ‘ऐसी प्रदर्शनी कहीं भी नहीं देखी ।’ – श्री. नागेश्वरानंद प्रधान, अध्यक्ष, धर्मयोद्धा संघ, संभाजीनगर, महाराष्ट्र । (१५.६.२०१७)
  • सूक्ष्म जगत् की प्रदर्शनी देखकर मेरे शरीर पर रोमांच आया तथा मुझे चैतन्य की अनुभूति आई । – श्री. सुरेश यादव, शिरोली, कोल्हापुर (१६.६.२०१७)
  • आश्रम में सूक्ष्म जगत् की प्रदर्शनी में संग्रहित की गई वस्तुएं अच्छी हैं । उनका सविस्तर विवरण किया है । क्यों तथा कैसे हो रहा है, इस विवरण किया जाने के कारण अभीतक जो नहीं देखा था तथा अज्ञात बातों का उपयुक्त ज्ञान मुझे प्राप्त हुआ । (१६.६.२०१७)
  • ‘प्रदर्शनी देखकर यह सीखने मिला कि, अच्छा कार्य करते समय हमें विरोध का सामना करना ही पडता है !’ – श्री. उमेश शिवाजी हजारे, संभाजीनगर, महाराष्ट्र । (१८.६.२०१७)

     

रामनाथी आश्रम का दर्शन करते समय मान्यवरों की अनुभूतियां

आश्रम का दर्शन करते समय यह प्रतीत हुआ कि, ‘भारत के चार धामों में घूम रहा
हूं तथा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी हमें देखकर मार्गदर्शन तथा दिशादर्शन कर रहे हैं ।’

‘मैं प्रत्येक वर्ष अखिल भारतीय हिन्दु अधिवेशन के लिए आता हूं । हर बार आश्रम दर्शन होता है । हर बार आश्रम दर्शन करते समय मुझे पृथक अनुभूतियां आती हैं । इस समय सूक्ष्म में यह प्रतीत हुआ कि, ‘मैं भारत के चार धामों में घूम रहा हूं तथा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी आसंदी पर बैठे हैं । हम आश्रम का दर्शन कर रहें हैं तथा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी हमें देखकर मार्गदर्शन तथा दिशादर्शन कर रहे हैं ।’ हम अपने परिवार को भी आश्रम दर्शन करने हेतु साथ लेकर आएंगे ।’ – श्री. मोहन अंबिकाप्रसाद तिवारी, उपमहानगर प्रमुख, शिवसेना, जलगांव, महाराष्ट्र । (१५.६.२०१७)

अनिष्ट शक्ति : वातावरण में इष्ट तथा अनिष्ट शक्ति यां कार्यरत हैं । इष्ट शक्ति अच्छे कार्य के लिए मानव को सहायता करती हैं, तो अनिष्ट शक्ति यां उसे कष्ट देती हैं । प्राचीन समय में ऋषिमुनियों के यज्ञ में असुरों द्वारा बाधाएं आने की अनेक कथाएं वेद-पुराणों में हैं । ‘अथर्ववेद में अधिकांश स्थानों पर अनिष्ट शक्ति , उदा. असुर, दानव, पिशाच तथा करणी, भानामती का प्रतिबंध करने हेतु मंत्र दिए हैं । अनिष्ट शक्ति यों के कष्ट निवारण करने हेतु पृथक अध्यात्मिक उपाय वेद इत्यादि धर्मग्रंथों में बताएं हैं ।

सूक्ष्म-जगत् : जो स्थूल पंचज्ञानेंद्रियों को (नाक, जीव्हा, आंखे, त्वचा तथा कानों को) अनजान है; किंतु जिसके आस्तित्व का ज्ञान साधना करनेवालों को होता है, उसे सूक्ष्म-जगत् नाम से संबोधित किया जाता है ।

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