गोपियुष : सुदृढ मानवीय शरीर हेतु ईश्‍वरप्रदत्त अनमोल देन !

गोपियुष अमृततुल्य ही है !

        गोपियुष अर्थात प्रसूती पश्‍चात ४८ से ७२ घंटों में गाय द्वारा प्राप्त प्रथम दूध । गोपियुष और माता द्वारा प्राप्त पियुष में वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत सी समानता पाई गई है । गोपियुष में रोगप्रतिकारक शक्ति और शरीर की सुदृढता के लिए आवश्यक ९० से अधिक पोषकतत्त्व हैं । गोपियुष सुदृढ मानवीय शरीर हेतु ईश्‍वरप्रदत्त अनमोल देन है । आयुर्वेद में इसे ‘अमृततुल्य’ कहा गया है । दस वर्षों से भी पहले विश्‍वविद्यालय तथा मेडिकल रिसर्च सेंटर द्वारा किए गए विविध चिकित्सकीय शोध द्वारा प्रमाणित हुआ है कि गोपियुष में मानवीय शरीर के लिए आवश्यक आण्विक संयोजन एवं विकास घटक समाविष्ट हैं । इसमें शरीर में रोगप्रतिकारक शक्ति विकसित करने की प्रचंड क्षमता भी है ।

 

प्राकृतिक ऊर्जा की अपेक्षा रासायनिक ऊर्जा की पूर्ति करनेवाला मानव !

        रोग का मूल कारण है, रोगप्रतिकारक शक्ति का अभाव । शरीर, प्रकृति द्वारा प्रदान एक अनमोल संपदा है; परंतु बाल्यावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक इसकी उपेक्षा की जाती है । शरीर का प्रत्येक अवयव अत्यंत सावधानीपूर्वक अपना कार्य करता रहता है । इस समय उसे प्राकृतिक ऊर्जा की ही आवश्यकता होती है; परंतु हम रासायनिक ऊर्जा देकर शरीर की कार्यप्रणाली में बाधा लाते हैं । इससे अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं । शरीर प्रकृति द्वारा निर्मित व्यवस्था है, इसलिए वह प्रकृति के नियमों के अनुसार ही कार्य करेगा; परंतु हम इसकी उपेक्षा कर उसे सदैव अपनी सुविधानुसार चलाने का प्रयत्न करते हैं ।

        भाग-दौड भरी जीवनप्रणाली में प्रकृति द्वारा निर्मित संपदा को प्रकृति के विरुद्ध जाकर अपनी इच्छा अनुसार संभालने की भूल मनुष्य द्वारा सदैव होती रहने से गांव-गांव में चिकित्सालय फैले हुए हैं । अंत में अपने बलबूते पर प्रकृति को जीतने की दौड में हम सदैव पराभूत हो रहे हैं । प्रकृति द्वारा निर्मित अनमोल शरीरव्यवस्था को रोगयुक्त बनाकर हम दु:खी जीवन जी रहे हैं ।

 

शरीर निरोगी रखनेवाले ‘गोपियुष’ का सेवन करें !

        प्रतिदिन ‘गोपियुष’ का सेवन करने का अर्थ है, उत्तम रोगप्रतिकारक शक्ति निर्माण करना । गोपियुष अर्थात अवयवों के लिए नित्य आवश्यक ऊर्जास्रोत और रोगों को शरीर में प्रवेश न देने की प्रचंड शक्ति का भंडार । गोपियुष में इम्युनोग्लोब्युुलिन्स, एमिनो एसिड्स, ग्रोथ फैक्टर्स, एन्टी ऑक्सीडेंट, प्रोटीन्स, स्नायु बलवान बनाने के लिए आवश्यक घटक, रक्तपरिसंचार तंत्र, पाचन तंत्र, मानसिक संतुलन उत्तम रहने के लिए आवश्यक घटक, संप्रेरक, ग्रोथ हार्मोन्स आदि होते हैं । परिणामस्वरूप शरीर निरोगी रखने में यह बहुत सहायक होता है । मधुमेह, कर्करोग, अधसीसी, रोगप्रतिकारक शक्ति का अभाव, घुटनों की व्याधियां, थाइरॉईड, महिलाआें की विविध व्याधियां, बच्चों की व्याधियां, वायरल अस्थमा, अल्सर, रक्तचाप, अपच, एच.आइ.वी., फिट्स जैसे विविध भयानक रोगों से गोपियुष हमारी रक्षा करता है । पियुष अमृततुल्य है । गोपियुष के सेवन से एलोपैथी की भांति किसी भी प्रकार के दुष्परिणाम नहीं होते ।

        अनेक लोग गोपियुष से अनभिज्ञ होते हैं । इसलिए इसका वैज्ञानिक दृष्टि से प्रसार होना आवश्यक है । वर्तमान में गायों की संख्या अल्प होती जा रही है । इसलिए दूध का उत्पाद घट रहा है । अतः ‘जहां गांव वहां गोशाला’ इसे वास्तविकता में लाने के लिए शासन, सामाजिक संस्था तथा उद्यमियों को प्रयत्न करना आवश्यक है ।

 

चिकित्सालय के व्यय की तुलना में गोपियुष सस्ता !

        गोपियुष विशिष्ट स्थानों पर ही उपलब्ध होता है । उत्कृष्ट श्रेणी की गोपियुष पाऊडर बनानेवाले कारखाने अत्यल्प हैं । महाराष्ट्र में तो एक भी कारखाना नहीं है । अत्यल्प स्थानों पर मिलने के कारण उसका मूल्य भी अनियंत्रित रहता है । तत्पश्‍चात भी औषधियां, परीक्षण तथा चिकित्सालय के व्यय की तुलना में गोपियुष का मूल्य कई गुना अल्प है । साथ ही वह दुष्परिणामों से भी मुक्त है ।

 

आइए, प्रकृति द्वारा निर्मित आयुर्वेद का स्वीकार करें !

        आयुर्वेद, प्रकृति द्वारा निर्मित है । मानवीय शरीर के लिए उपयुक्त विविध औषधि गुणों से युक्त वनस्पतियों का निर्माण प्रकृति ने हमारे लिए ही किया है । अतः उनका सेवन करना, प्रकृति द्वारा निर्मित व्यवस्था के साथ चलना है । फल, विविध प्रकार की तरकारियां तथा गाय, भैंस, बकरी आदि का दूध मानवीय शरीर के निरोग वृद्धि के लिए ईश्‍वरप्रदत्त प्रकृति निर्मित एक बडी देन है । जैवकृषि, दूग्धजन्य प्राणियों का पालन तथा वन संवर्धन, काल की आवश्यकता हो गई है । प्रकृति द्वारा निर्मित व्यवस्था का स्वीकार करने से निरोगी जीवन जीना संभव होगा; अन्यथा मानवनिर्मित रसायन, औषधालय, रासायनिक औषधियां, शल्यकर्म, परावलंबित्व एवं रोगयुक्त जीवन का ही चयन करना पडेगा । भावी पीढी को प्रकृति द्वारा निर्मित आयुर्रारोग्य देना आवश्यक है ।

        आरोग्यम् सुखसंपदा’, ऐसा कहा जाता है; परंतु आज वह ‘आरोग्यम दु:खसदा’ हो गया है । अभी भी समय शेष है । पुनश्‍च एक बार संकल्प कर आयुर्वेद की ओर ‘घरवापसी’ करने का समय आ गया है । आयुर्वेद का स्वीकार करें । योग-आयुर्वेद, सात्त्विक आहार, सत्संग आदि का अनुसरण कर प्रकृति द्वारा निर्मित आयुर्रारोग्ययुक्त जीवन जीएंगे ! – श्री. गणेश पी. उपाध्ये

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