शास्त्रों के अनुसार श्राद्धकर्म न करने से होनेवाली हानि

हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार मृत व्यक्ति के श्राद्धविधि प्रतिवर्ष करने के लिए कहा गया है । कुछ निरीश्‍वरवादी इसे विरोध करते हैं । श्राद्ध-विधि न करने पर क्या हो सकता है और जीवन में साधना का महत्त्व इस लेख द्वारा समझ लेते है ।

अविधवा नवमी

पति के निधन से पूर्व मृत स्त्रियों के श्राद्ध पितृपक्ष की नवमी को (अविधवा नवमी को) ही क्यों करें ?

श्राद्ध के विषय में प्राचीन ग्रंथों के संदर्भ

मृत पूर्वजों को भू और भुव लोकों से आगे जाने के लिए गति प्राप्त हो; इसके लिए हिन्दू धर्म में श्राद्ध करने के लिए कहा गया है । श्राद्ध न करने से व्यक्ति में कौन-से दोष उत्पन्न हो सकते हैं, इसका भी वर्णन विविध धर्मग्रंथों में मिलता है ।

नारायणबलि, नागबलि एवं त्रिपिंडी श्राद्ध

ये अनुष्ठान अपने पितरों को (उच्च लोकों में जाने हेतु) गति मिले, इस उद्देश्य से किए जाते हैं । शास्त्र कहता है कि उसके लिए ‘प्रत्येक व्यक्ति अपनी वार्षिक आय का १/१० (एक दशांश) व्यय करे’ । यथाशक्ति भी व्यय किया जा सकता है ।

श्राद्धविधि : इतिहास, महत्त्व एवं लाभ

इहलोक छोड गए हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए जो कुछ किया, वह उन्हें लौटाना असंभव है । पूर्ण श्रद्धा से उनके लिए जो किया जाता है, उसे ‘श्राद्ध’ कहते हैं ।

श्राद्धकर्म : पितृऋण चुकाने का सहज एवं सरल मार्ग

हिंदु धर्ममें उल्लेखित ईश्वरप्राप्तिके मूलभूत सिद्धांतोंमेंसे एक सिद्धांत ‘देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण एवं समाजऋण, इन चार ऋणोंको चुकाना है । इनमेंसे पितृऋण चुकानेके लिए ‘श्राद्ध’ करना आवश्यक है ।