भोजनपूर्व आचार एवं कुछ सूत्र
‘कर्ता-करावनहार ईश्वर ही हैं । उनके बिना मैं कुछ नहीं कर सकता । उनकी कृपासे ही यह अन्न मिला है। अतः जो भी मिला है, उसे सर्वप्रथम ईश्वरको प्रथम अर्पित करूंगा’, इस कृतज्ञ भावसे देवताको भोजनपूर्व नैवेद्य चढाया जाता है ।
‘कर्ता-करावनहार ईश्वर ही हैं । उनके बिना मैं कुछ नहीं कर सकता । उनकी कृपासे ही यह अन्न मिला है। अतः जो भी मिला है, उसे सर्वप्रथम ईश्वरको प्रथम अर्पित करूंगा’, इस कृतज्ञ भावसे देवताको भोजनपूर्व नैवेद्य चढाया जाता है ।
उचित समयपर भोजन न करनेसे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य असंतुलित हो सकता है । परिणामस्वरूप आध्यात्मिक स्वास्थ्यपर भी इसका दुष्परिणाम होता है ।
‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् ।’ अर्थात साधनाके लिए शरीर आवश्यक है । शरीर हेतु अन्न आवश्यक है । अन्नसे प्राप्त शक्तिका उपयोग केवल आत्मोन्नतिके लिए नहीं, अपितु समाजकी उन्नतिके लिए भी किया जा सकता है ।