नवग्रहों की उपासना करने का उद्देश्य एवं उसका महत्त्व !

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‘जीवन में आनेवाली व्यक्तिगत समस्याओं के निवारण के लिए व्यावहारिक प्रयत्नों को उपासना की जोड देने के लिए हिन्दू धर्म में बताया गया है । आरोग्य, विद्या, बल, सौख्य इत्यादि की प्राप्ति के लिए एवं व्याधि, पीडा, दुःख इत्यादि के नाश के लिए अनेक यज्ञ, मंत्र, यंत्र, स्तोत्र आदि के विधान धार्मिक ग्रंथों में है । ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रहदोषों के निवारण के लिए ग्रहदेवता की उपासना करने के लिए बताया जाता है । इस उपासना करने के पीछे का उद्देश्य एवं उसका महत्त्व इस लेख द्वारा समझ लेंगे ।

 

१. नवग्रहों की उपासना का उद्देश्य

१ अ. ग्रहों की सूक्ष्म ऊर्जा का परिणाम मनुष्य की सूक्ष्मदेह पर होना

आकाश में भ्रमण करनेवाले तेजोगोलों के कारण हम काल नाप सकते हैं । लौकिक दृष्टि से काल का अर्थ ‘अवधि’ ऐसा होने पर भी फल-ज्योतिषशास्त्र में काल का ‘प्रारब्ध’ ऐसा अर्थ अभिप्रेत है । प्रत्येक जीव उसका प्रारब्ध लेकर जन्म लेता है । जीव के जन्म के समय की ग्रहस्थिति पर उसके प्रारब्ध का बोध होता है । भारतीय ऋषियों ने ग्रहों को केवल भौतिक पदार्थ नहीं माना, अपितु उनमें ‘देवत्व’ को समझा । ‘देव’ अर्थात वह जो प्रकाश (ऊर्जा) देता है । ग्रहों की स्थूल ऊर्जा अर्थात उनकी विद्युचुंबकीय शक्ति एवं सूक्ष्म ऊर्जा अर्थात उनमें विद्यमान प्रधान तत्त्व (पृथ्वी, आप, तेज, वायु एवं आकाश) । ग्रहों की सूक्ष्म ऊर्जा जीव की सूक्ष्मदेह पर  (टिप्पणी) शुभाशुभ परिणाम करती है । जीव की सूक्ष्मदेह उसकी स्थूलदेह को प्रभावित करती है ।

टिप्पणी – सूक्ष्मदेह : पंचसूक्ष्म-ज्ञानेंद्रिय, पंचसूक्ष्म-कर्मेंद्रिय, पंचसूक्ष्म-प्राण, मन, बुद्धि, चित्त एवं अहं से जीव की ‘सूक्ष्मदेह’ बनती है ।

१ आ. ग्रहों की उपासना करने से व्यक्ति को आवश्यक सूक्ष्म ऊर्जा का लाभ होना

ऐसा यह ग्रह जीव के जन्म के समय अशुभ स्थिति में होने पर व्यक्ति में संबंधित सूक्ष्म ऊर्जा की न्यूनता होती है । इसलिए उसे शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्वरूप का कष्ट होता है । ‘व्यक्ति में विद्यमान अल्प सूक्ष्म ऊर्जा उसे प्राप्त हो’, इसलिए संबंधित ग्रहों की उपासना करने के लिए ज्योतिषशास्त्र में बताया है । ग्रह से संबंधित शांतिविधि, मंत्रजप, नामजप इत्यादि उपाय करने से व्यक्ति को आवश्यक सूक्ष्म ऊर्जा का लाभ होता है । प्रारब्ध के कारण निर्माण हुई समस्याओं के निवारण करने हेतु आधिभौतिक, आधिदैविक एवं  आध्यात्मिक, इन तीनों स्तरों पर उपाययोजना करना आवश्यक होता है । ग्रहों की उपासना करना भी ‘आधिदैविक’ स्तर पर (सूक्ष्म ऊर्जा के स्तर पर) उपाययोजना है ।

श्री. राज कर्वे

 

२. नवग्रहों की उपासना के प्रकार एवं उनका महत्त्व

ग्रह-उपासना के अंतर्गत ग्रह से संबंधित रत्न धारण करना, यंत्र का पूजन करना, मंत्र अथवा स्तोत्र पठन करना, हवन करना, संबंधित देवता का नामजप करना इत्यादि प्रकार हैं । इन उपासनाओं का तौलनिक महत्त्व आगे दी गई सारणी में दिया है ।

‘ग्रह-उपासना  पंचतत्त्वाें में से कार्यरत तत्त्व कार्यरत तत्त्व का स्तर उपासना का महत्त्व (प्रतिशत)
ग्रह के रत्न धारण करना पृथ्वी  सगुण २०
 ग्रह के यंत्र का पूजन करना  तेज सगुण-निर्गुण ४०
ग्रह के मंत्र का जप करना अथवा स्ताेत्र कहना आकाश सगुण-निर्गुण ५०
ग्रह के लिए हवन करना वायु एवं आकाश सगुण-निर्गुण ६०
ग्रह के अधिपति देवता का नामजप करना आकाश निर्गुण-सगुण ७०
– कु. मधुरा भोसले (सूक्ष्म से मिला ज्ञान), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२.६.२०२१)

२ अ. ग्रह के अधिपति देवता के नामजप के कारण आध्यात्मिक स्वरूप का कष्ट अल्प होना

उपरोक्त सारणी से ध्यान में आता है कि उपासना का स्वरूप जितना सूक्ष्म होगा, उतना लाभ होने की मात्रा अधिक होती है । रत्न धारण करना, यह सगुण स्तर पर उपाय होने से उसका लाभ शारीरिक कष्टों के निवारण के लिए होता है । ग्रह के यंत्र का पूजन करना एवं मंत्रजप करना, इसकारण शारीरिक एवं मानसिक कष्ट दूर होने में सहायता होती है । ‘ग्रह के अधिपति देवता का नामजप करना’ यह निर्गुण स्तर पर उपाय होने से आध्यात्मिक स्वरूप का कष्ट (अतृप्त पूर्वजों का कष्ट, अनिष्ट शक्तियों का कष्ट इत्यादि) दूर होने में सहायता होती है ।

२ आ. उपासना श्रद्धा से, एकाग्रता से एवं नियमितरूप से करना आवश्यक

कोई भी उपासना श्रद्धा से करना आवश्यक होता है । श्रद्धापूर्वक की गई उपासना में मन, बुद्धि एवं चित्त का सहभाग होता है । इसलिए उपासना का परिणाम सूक्ष्मदेह में गहराई तक होता है । एकाग्रता से एवं नियमितरूप से की गई उपासना के कारण सूक्ष्मदेह पर हुआ परिणाम धीरे-धीरे स्थूलदेह पर दिखाई देने लगता है । इसके साथ ही परिस्थिति में भी परिवर्तन आता है ।

 

३. आधिभौतिक उपायों के साथ ही
आधिदैविक एवंं आध्यात्मिक उपाय निर्भर होने का महत्त्व

वर्तमान काल में मनुष्य के जीवन के ६५ प्रतिशत घटनाएं प्रारब्ध के कारण होती हैं । बीमारियां, दीर्घकालीन व्याधियां, पारिवारिक कलह, शैक्षिक असफलता, आर्थिक अडचनें, वैवाहिक सौख्य न प्राप्त होना, अपघात के प्रसंग आने जैसे दुःखद प्रसंग प्रारब्ध के कारण होते हैं । ऐसी समस्याओं के निवारण के लिए भौतिक (स्थूल) उपाययोजना करने में मर्यादा आती है । ऐसी समस्याओं के निवारण के लिए आधिदैविक एवं आध्यात्मिक उपायों का अवलंब करना आवश्यक होता है । आधिदैविक उपाय अर्थात यज्ञ, मंत्रजप, नामजप आदि उपायों द्वारा हममें विद्यमान पंचतत्वों का संतुलन साधकर जीवन समृद्ध करना । आध्यात्मिक उपाय अर्थात जन्म-मृत्यु के फेर से मुक्त होने के लिए गुरु के मार्गदर्शनानुसार साधना करना । आधिदैविक उपाय सकाम साधना है और आध्यात्मिक उपाय निष्काम साधना ! आध्यात्मिक साधना के कारण जीव के चित्त पर से संस्कार धीरे-धीरे लुप्त होते जाते हैं; जिससे सभी दुःखों का मूल ही नष्ट हो जाता है । इसलिए हिन्दू धर्म में बताई गई जीवनपद्धति में अध्यात्म को प्रधानता है ।

सारांश, ‘ग्रह-उपासना’ आधिदैविक उपासना का एक प्रकार है । ग्रह-उपासना द्वारा हमें आवश्यक सूक्ष्म ऊर्जा प्राप्त हो सकती है । प्रारब्ध के कारण उत्पन्न समस्याओं पर केवल भौतिक (स्थूल) उपायों पर निर्भर न रहते हुए आधिदैविक एवं आध्यात्मिक उपायों की जोड देना श्रेयस्कर है !’

– श्री. राज कर्वे, ज्योतिष विशारद, गोवा. (२६.१२.२०२२)

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