भावी आपातकालका सामना कैसे करें ?

संत-महात्मा, ज्योतिषी आदिके मतानुसार आपातकाल प्रारंभ हो चुका है और इसकी भीषणता अगले 3-4 वर्षोंमें बढती ही जाएगी । आपातकालमें अपनी, अपने परिजनों तथा देशबंधुओं की रक्षा एक बडी चुनौती होती है । इस पृष्ठभूमिपर निम्नांकित विचारमंथन निश्‍चित ही उपयोगी सिद्ध होगा ।

 

महायुद्धके समय कैसी स्थिति होती है ?

द्वितीय महायुद्धमें जब जर्मनीने ब्रिटेनके विरुद्ध युद्ध आरंभ किया, तब ब्रिटेनमें पहले 4 दिनोंमें ही 13 लाख लोगोंको स्थलांतरित करना पडा । युद्ध कालमें प्रकाश भी प्रतिबंधित था । मार्गपर घनघोर अंधेरा रहता । खिडकी अथवा द्वारसे हलका-सा भी प्रकाश बाहर झांकता, तो दंड दिया जाता ! इतना कठोर प्रतिबंध एक-दो दिन अथवा कुछ माह नहीं, अपितु पूरे पांच वर्ष था ! द्वितीय महायुद्धमें जर्मनीने रूसको घेर लिया था । उस आपातकालमें रूसी जनताको पेडके पत्ते, लकडीके भूसेसे बने केक आदि खाकर पेट भरना पडा था !

 

आज भारत तृतीय महायुद्धकी कगारपर खडा है !

विगत दो दशकोंसे अधिक समयसे पाकिस्तान जिहादी आतंकवादियोंके माध्यमसे भारतसे छुपा युद्ध लड रहा है । पिछले कुछ वर्षोंमें पाकिस्तानने अपनी युद्धसज्जता अनेक गुना बढाई है । चीनने तो भारतको निगलनेके लिए सीमा प्रदेशोंमें मार्गोंका जाल बिछा दिया है । दिनदहाडे इतना सब सामने होनेपर भी भारतने अभीतक इन शत्रुराष्ट्रोंके विरुद्ध अबतक कोई ठोस नीति नहीं अपनाई है और आगे भी इसकी संभावना अल्प ही है ।

संक्षेपमें युद्ध अटल है । क्या यह युद्ध केवल दो राष्ट्रोंके बीच होगा ? नहीं, विश्‍व इतना छोटा हो गया है कि आज यदि पाकिस्तान भारतसे युद्ध करने खडा हो जाए, तो विश्‍वके सभी मुसलमान राष्ट्र पाकिस्तानके कंधेसे कंधा मिलाकर खडे हो जाएंगे ।

 

घोर आपातकालके संदर्भमें भविष्यवक्ता, संतों और देवताओंकी भविष्यवाणियां !

तृतीय महायुद्धके इतने स्पष्ट संकेत मिलनेपर भी, भोग-विलासमें लिप्त तथा ‘मैं भला, मेरा काम भला’, ऐसी मनोवृत्तिके भारतीयोंको इस संकटकी गंभीरता समझमें नहीं आती । निम्नांकित विवेचनसे इस विषयकी गंभीरता समझनेमें सहायता होगी ।

1. भविष्यवक्ता

चार सौ वर्ष पूर्व फ्रान्समें नास्त्रेदमस नामक प्रसिद्ध भविष्यवक्ता था । उसकी अनेक भविष्यवाणियां पूर्णतः सत्य सिद्ध हुई हैं । उसकी प्रथम और द्वितीय महायुद्धकी भविष्यवाणियां भी सत्य सिद्ध हुई हैं । उसने तृतीय महायुद्धके विषयमें लिखा है, ‘यह तृतीय महायुद्ध इतना भयानक होगा कि आपको पहलेके दो महायुद्ध खिलौनेसमान लगेंगे !’

2. संत

प.पू. गगनगिरी महाराजने कहा था, ‘आगामी काल इतना भयानक
होगा कि हम संतोंको भी लगेगा कि यह दृश्य देखनेसे पहले आंखें मूंद ली होतीं,
तो अच्छा होता !’

3. परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवले

वर्ष 2012 के उपरांत कभी भी तीसरा महायुद्ध आरंभ हो जाएगा । यह महायुद्ध अत्यंत भयंकर होगा । इसमें भारत उलझ जाएगा । अणुबमद्वारा भीषण संहार होगा । पूरेके पूरे गांव नष्ट हो जाएंगे । तीसरे महायुद्धके पश्‍चात, संपूर्ण पृथ्वीकी व्यापक शुद्धि करनी पडेगी । इसके लिए अनेक संतोंकी आवश्यकता होगी । अतः, साधकोंको साधना बढानी होगी ।

4. देवता

‘त्सुनामी, चक्रवात और भूकंप होंगे । पूरी दुनियामें आग लग जाएगी । मृत्युका तांडव होगा । भारतपर भी संकट आएगा । बडी-बडी आतंकी घटनाएं होंगी । नरसंहार होंगे । दिन-दहाडे डाके और लूटपाट होगी । भूमि बंजर हो जाएगी । नदियां सूख जाएंगी । खेत पानीसे भर जाएंगे । बिजली नहीं होगी । औषधियां नहीं मिलेंगी । महामारी फैल जाएगी । डॉक्टर कुछ नहीं कर पाएंगे । चलते-फिरते मनुष्यके प्राण निकल जाएंगे ।’ – श्री हालसिद्धनाथदेव
(श्री डोणे महाराज, जनपद बेलगांवके माध्यमसे, भविष्य-कथनका स्थान : सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.)

संक्षेपमें, आगामी आपातकालमें जनजीवन व समाजकी भयावह दशा होगी ।

 

आपातकालमें शासनपर निर्भर रहना मूर्खता है !

द्वितीय महायुद्धमें रूसको राष्ट्रपति स्टॉलिन और ब्रिटेनको प्रधानमंत्री चर्चिल जैसे कुशल नेता मिले थे । उसी प्रकार, रूसी और ब्रिटिश जनतामें स्वाभिमान, राष्ट्रप्रेम, राष्ट्रके लिए त्याग और धैर्य जैसे गुण चरम सीमापर थे । इसी कारण, रूस और इंग्लैंड बच पाए ।
भारतकी परिस्थिति इसके विपरीत है । भ्रष्ट और धर्महीन शासकोंके कारण भारत संकटोंसे घिर गया है । शांतिकालमें ही बाढ आनेपर पूरेके पूरे गांव बह जाते हैं । रेल-दुर्घटना होनेपर सहायता दल अनेक घंटोंके पश्‍चात घटना-स्थलपर पहुंचते हैं । शासकीय योजनाओंमें ढिलाई और भ्रष्टाचारके कारण कुंभमेले और यात्रोत्सवोंमें भगदडके कारण अनेक श्रद्धालुओंकी मृत्यु हो जाती है । जब शांतिकालमें यह स्थिति है, तो आपातकालमें क्या होगा, इसका विचार आप ही करें !

 

शवोंके वस्त्रपर भी हाथ मारनेकी दुर्बुद्धि !

आज भ्रष्टाचारकी दीमकने पूरे देशको सभी स्तरोंपर खोखला कर दिया है । देशकी सीमापर प्राण हथेलीपर रखकर लडनेवाले हमारे वीर
सैनिकोंको दिए जानेवाले सुरक्षा-उपकरणोंके क्रयमें भी भ्रष्टाचार होता है ! किसी दिन बस की हडताल हो जाए, तो उस दिन टैक्सी-रिक्शावाले तुरंत भाडा बढाकर बहती गंगामें हाथ धोने लगते हैं । कुछ लोगोंकी रगोंमें भ्रष्टाचार और स्वार्थ इतना घुल-मिल गया है कि आपातकालमें भी अन्न-जल, अन्य जीवनावश्यक वस्तुएं आदिकी आपूर्ति और उनके वितरणमें भ्रष्टाचार होगा । मनुष्यमें नीचता इतनी बढ गई है कि उसकी तुलना पशुसे भी नहीं की जा सकती । केवल अपने स्वार्थ और आस्तत्वकी रक्षा हेतु दुष्ट लोक बुरा-से-बुरा मार्ग अपनानेसे भी नहीं चूकेंगे ।

 

आपातकालका सामना कर पानेके लिए ग्रंथमालाकी उपयोगिता !

आपातकालमें यातायातके साधनोंके अभाववश रोगीको चिकित्सालय पहुंचाना, डॉक्टर अथवा वैद्यसे संपर्क करना और हाटसे (बाजारसे) औषधियां प्राप्त करना कठिन होता है । आपातकालका सामना करनेकी सिद्धताके एक भागके रूपमें ‘आगामी आपातकालमें संजीवनीकी भांति कार्य करनेवाली ग्रंथमाला’ प्रकाशित कर रहे हैं । अभी घनघोर आपातकाल आरंभ नहीं हुआ है । उसकी तुलनामें अभी शांतिकाल ही है । इस कालमें यह विषय ठीकसे समझ कर, शंकाओंका समाधान कर इसके अनुसार आचरण कर लें, तो आगामी
भीषण आपातकालका सामना करना निश्‍चित ही सरल होगा !

ग्रंथमालासे सीखी हुई उपचार-पद्धतियां केवल आपातकालकी दृष्टिसे नहीं, सदाके लिए उपयोगी हैं ।

1. अग्निशमन, प्राथमिक उपचार और आपातकालीन सहायताका प्रशिक्षण देनेवाले ग्रंथ

आजकल प्रत्येक गांवमें चिकित्सालय होते हैं । प्रत्येक नगरमें अग्निशमन विभाग होता है । इसलिए, अनेक लोगोंको अग्निशमन, प्राथमिक उपचार और आपातकालीन सहायताका प्रशिक्षण लेनेकी आवश्यकता प्रतीत नहीं होती । किंतु, संभावित आपातकालकी दृष्टिसे यह प्रशिक्षण अनिवार्य है । तभी हम सुरक्षित रहकर जन-धनकी असीमित हानि रोक पाएंगे । ऐसे प्रशिक्षणसे संबंधित अनेक पुस्तकें उपलब्ध होती हैं; किंतु सनातके ग्रंथोंमें विषयको अत्यंत सरल एवं सुबोध ढंगसे वैज्ञानिक रूपसे समझाया गया है ।

2. ‘बिन्दुदाब-उपचार’, ‘रिफ्लेक्सोलॉजी’ और ‘मर्मचिकित्सा’के विषयमें ग्रंथ

‘बिंदुदाब-उपचार, ‘रिफ्लेक्सोलॉजी’ एवं इसमें शरीरके विशिष्ट बिंदुओंको दबाकर अथवा इन बिंदुओंसे कुछ दूर हाथ रखकर उपचार करना होता है । तथा ‘मर्मचिकित्सा’में शरीरके विशिष्ट ममस्थानोंपर दबाव देना होता है । इससे शरीरकी चेतनाके प्रवाहमें आ रही बाधा दूर होती है । इससे शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक कष्ट दूर किए जा सकते हैं ।

3. प्राणशक्ति प्रणाली उपायसंबंधी ग्रंथ

मानवकी स्थूलदेहमें रुधिरपरिसंचार, श्‍वसन, पाचन इत्यादि विविध प्रणालियोंको कार्य करनेके लिए आवश्यक शक्ति प्राणशक्ति (चेतना) प्रणाली प्रदान करती है । इसमें अवरोध हो, तो रोग उत्पन्न होते हैं । इन अवरोधोंको स्वयं ढूढकर दूर करनेका नवीनतम उपाय इस ग्रंथमें बताया गया है । इस उपाय प्रणालीमें विकार दूर करनेके लिए पंचतत्त्वोंसे सर्ंिबंधित मुद्रा, न्यास और नामजप करते हुए अपने हाथकी
उंगलियोंसे निकलनेवाली प्राणशक्तिका उपयोग किया जाता है ।

4. सम्मोहन उपचारसंबंधी ग्रंथ

अनेक लोगोंको निरर्थक विचारध्यास (चिंता), निराशा, व्यसनाधीनता जैसी मानसिक समस्याएं होती हैं । अनेक बार तुतलाहट, दमा, लैंगिक समस्या जैसी शारीरिक समस्याओंका मूल कारण भी मानसिक होता है । इन समस्याओंपर सम्मोहन उपचार करनेसे उन्हें ठीक
करनेमें सहायता मिलती है ।

5. औषधीय वनस्पतियोंका रोपण

एक कहावत है, ‘प्यास लगनेपर कुआं नहीं खोदा जाता ।’ आगामी आपातकालमें औषधीय वनस्पति उपलब्ध होनेके लिए उन्हें अभीसे अपने आंगन और परिसर में उगाना आवश्यक है । इसी प्रकार, यह विषय अनेक लोगोंतक पहुंचाकर उन्हें भी यह कार्य करनेके लिए प्रेरित करनेकी आवश्यकता है । इसके लिए सनातनने, ‘औषधीय वनस्पतियां लगाएं !’ यह ग्रंथ भी प्रकाशित किया है ।

6. ग्रंथमाला ‘व्याधि-निवारणकी विविध उपचार-पद्धतियां’

इसमें शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक कष्टोंपर उपयुक्त विविध उपचारपद्धतियां भी दी हैं । पाठकको प्रत्येक व्याधि / कष्ट पर उपयुक्त घरेलू आयुर्वेदिक उपाय, आसन, प्राणायाम, मुद्रा-उपाय, देवताओंके नामजप, मंत्रोपचार इत्यादि उपचार-पद्धतियोंसे संबंधित जानकारी एक ही स्थानपर उपलब्ध कराना, इस ग्रंथमालाकी अद्वितीय विशेषता है । इस ग्रंथमालामें दी हुई पद्धतियोंके अनुसार उपचार करनेसे रोगी ठीक हो सकते हैं अथवा उनका कष्ट सहनीय हो सकता है । इस ग्रंथमालाकी कुछ उपचार-पद्धतियोंका संक्षेपमें
विवेचन आगे किया गया है ।

6 अ. सरल घरेलू आयुर्वेदीय उपचार : इसके अंतर्गत घरमें, घरके पिछवाडे तथा आसपासके परिसरमें मिलनेवाली तरकारियां, अन्न, मसाले, फल, औषधीय वनस्पतियां आदि से उपचार करने संबंधी मार्गदर्शन किया है ।

6 आ. पुष्पौषधि : इसके अंतर्गत स्वभावदोष तथा मनोरोगोंमें लाभदायक होमियोपैथी औषधियोंकी भांति दुकानमें मिलनेवाली पुष्पौषधियोंके विषयमें भी विस्तारसे बताया गया है ।

6 इ. ‘फिजियोथेरेपी’के व्यायामप्रकार, योगासन, बंध, प्राणायाम व शुद्धिक्रिया (षट्क्रिया) : आधुनिक जीवनशैलीसे आजकल लोगोंमें रोगों की मात्रा बहुत बढ गई है । 25-30 वर्षके अनेक युवक-युवतियां भी गर्दनपीडा, पीठपीडा, बद्धकोष्ठता, निद्रानाश आदि विकारोंसे ग्रस्त दिखाई देते हैं । ‘एलोपैथी’ की औषधियोंके दुष्प्रभाव भी सामने आ रहे हैं । ऐसी परिस्थितिमें सैकडों वर्षोंकी परंपरावाला ‘योगशास्त्र’ एक वरदान ही है । इसलिए इस ग्रंथमालामें विविध शारीरिक, मानसिक तथा मनोकायिक विकारोंपर योगोपचार पद्धतियोंका (उदा. आसन, बंध, प्राणायाम, शुद्धिक्रिया) प्रयोग कैसे करें, इसका विवेचन किया है ।

6 ई. ‘मुद्रा-उपचार’ : मनुष्यदेह पंचतत्त्वोंसे निर्मित है । देहमें पंचतत्त्वों का अनुपात न्यूनाधिक होनेपर शारीरिक और मानसिक विकार उत्पन्न होते हैं । हाथोंकी उंगलियोंको विशिष्ट स्थितिमें रखकर की जानेवाली मुद्रासे मनुष्यको अपनी देहमें पंचतत्त्वोंका संतुलन बनाए रखना संभव होता है । इससे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कष्टोंका निवारण कर सकते हैं ।

6 उ. देवताओंके नामजप और बीजमंत्र तथा पुराणोक्त एवं वेदोक्त मंत्र : विशिष्ट मंत्रोंके आधारपर जीवनकी समस्याएं दूर करना अथवा व्याधिपर उपचार करना, यह प्राचीन कालसे ही हिन्दू धर्ममें बताया गया है । इस ग्रंथमालामें शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक कष्टोंके निवारण हेतु देवताओंके नामजप तथा मंत्र दिए हुए हैं । उसी प्रकार स्वास्थ्य अच्छा रहे, भविष्यमें आनेवाले संकट टल जाएं आदिके लिए भी मंत्र दिए गए हैं ।

6 ऊ. अन्य उपचारपद्धतियां : चुम्बक चिकित्सा, स्वमूत्रोपचार, रिक्त गत्तेके बक्सोंके उपाय, पिरामिड चिकित्सा, ज्योतिषशास्त्रानुसार उपाय, रेकी इत्यादि उपचारपद्धतियां भी दी गई हैं ।

7. ‘आग्नहोत्र’ विषयपर ग्रंथ : संभावित तीसरे महायुद्धमें आण्विक अस्त्रोंसे निकलनेवाली विनाशकारी किरणोंका प्रभाव नष्ट करनेमें सक्षम सरल और अल्प समयमें होनेवाला यज्ञकर्म है – ‘आग्नहोत्र’ ! सनातनके इस ग्रंथसे आग्नहोत्रका महत्त्व समझकर आपातकालमें परिजनोंकी रक्षा की जा सकेगी ।

 

परात्पर गुरु डॉक्टरजीके मार्गदर्शन और संकल्प का लाभ उठाएं !

आगामी कालके पदचिह्न पहचानकर मानवजातिके कल्याण हेतु ‘भावी आपातकालमें संजीवनी सिद्ध होनेवाली ग्रंथमाला’ प्रकाशित करनेका इतना दूरदर्शी विचार सर्वज्ञ परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी ही कर सकते हैं ! ग्रंथमें उपायोंका विवेचन करनेके साथ ही आपातकालमें रोगीकी मनोदशा, उस समय उपचार करनेवालेका विवेक और सर्वत्रकी प्रतिकूल परिस्थिति ध्यानमें रख रोगका उचित निदान कर, अचूक उपचार करना कठिन है । परंतु इस ग्रंथमालाके लिए परात्पर गुरु डॉक्टरजीका संकल्प हुआ है । अतएव इसमें वर्णित उपचार श्रद्धापूर्वक करनेसे अवश्य लाभ होगा, इसमें संदेह नहीं !

धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां महाजनो येन गतः स पन्थाः ।
– यक्षप्रश्‍न, श्‍लोक 117

अर्थ : धर्म-सिद्धांत सर्वसाधारण मनुष्यकी समझसे परे होते हैं । अतएव, महापुरुष जिस मार्गसे जाते हैं, हमें उसी मार्गपर चलना चाहिए ।
भावार्थ : परात्पर गुरु डॉक्टरजी समान महान विभूतिद्वारा आपातकालमें रक्षाके उपायोंका आचरण करनेमें ही हमारा कल्याण है ।

आपातकाल आनेके कारणोंको समझकर साधना बढाएं और ‘हिन्दू राष्ट्र’की स्थापना करें !

अतिवृष्टिः अनावृष्टिः शलभा मूषकाः शुकाः ।
स्वचक्रं परचक्रं च सप्तैता ईतयः स्मृताः ॥ – कौशिक पद्धति

अर्थ : (राजा धर्मनिष्ठ न हो, तो प्रजा धर्माचरण नहीं करती । प्रजाके धर्माचरण न करनेसे) अतिकृष्टि (बाढ) और अनाकृष्टि (सूखा), टिड्डीदलका आक्रमण चूहों और तोतोंका उपद्रव, गृहयुद्ध और विदेशी शत्रुओंके आक्रमण, ये सात प्रकारके संकट (राष्ट्रपर) आते हैं ।

तात्पर्य यह कि सरकार और जनता दोनोंको धर्मका पालन और साधना करनी चाहिए । ऐसा होनेपर ही आपातकालकी भीषणता घटेगी अथवा आपातकालका कष्ट सहनेकी क्षमता प्राप्त होगी ।

1. मुद्रा-उपाय, मंत्रजाप आदि सूक्ष्म-स्तरके उपाय हैं । इनसे इच्छित लाभ होनेके लिए उपचार करनेवालोंमें ईश्‍वरके प्रति पर्याप्त श्रद्धा, भाव जैसे ईश्‍वरी गुण होने आवश्यक हैं । ऐसे गुण साधना करनेसे ही आते हैं ।

2. वर्तमान धर्मनिरपेक्ष (धर्महीन) शासनप्रणालीके कारण हमारा समाज धर्माचरणसे दूर हो गया है । इसी कारण राष्ट्र और धर्म पर अनेक संकट आए हैं । एक-एक संकटसे लडनेके स्थानपर पूरे समाजको नीतिवान बनानेवाला, अर्थात सर्व संकटोंको समूल नष्ट करनेवाला और विश्‍वकल्याणके ध्येयसे युक्त धर्माधिष्ठित ‘हिन्दू राष्ट्र’की स्थापना ही इसका एकमात्र समाधान है । अतः, आगामी चुनावोंमें धर्माचरणी और नीतिवान राजनेताओंको ही चुनकर दें !

 

प्रार्थना !

‘आगामी भीषण आपातकालके विषयमें सभी गंभीरतापूर्वक विचार करें, सनातनकी ग्रंथमाला पढकर उससे लाभान्वित हों व उनमें आपातकालका सामना करनेकी क्षमता बढे’, यह परात्पर गुरु डॉक्टरजीके चरणोंमें मनःपूर्वक प्रार्थना !

– (पू.) श्री संदीप आळशी, सनातनके ग्रंथोंके संकलनकर्ता, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (23.3.2013)

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