मनुष्य के विविध कुकर्म और तदनुसार उसे होनेवाली नरकयातना (श्रीमद्भागवत्)

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प्रतीकात्मक छायाचित्र

 

१. मनुष्य के त्रिगुणों के कारण होनेवाले कृत्यों का फल

शुकदेव गोस्वामी महाराज परिक्षित से कहते हैं, यह जग ३ प्रकार के कृत्यों से भरा है । सत्त्वगुण (भलाई के उद्देश्य से किए जानेवाले कृत्य), रजोगुण (वासना के अधीन होकर होनेवाले कृत्य) और तमोगुण (अज्ञान के कारण होनेवाले कृत्य) । इसलिए उन्हें ३ विविध प्रकार के परिणाम भोगने पडते हैं । अच्छे कृत्य कर मनुष्य स्वर्गीय जीवन में आनंदी रहता है । बुरे कृत्यों के कारण और अज्ञान के कारण विविध नरकयातनाएं भोगनी पडती हैं । अच्छे और बुरे में भेद (अंतर) समझते हुए भी जो जानबूझकर बुरा आचरण करता है, उसे कठोर यातनाएं भोगनी पडती हैं ।

 

२. पापी मनुष्य को उसके पापों के अनुसार मिलनेवाला दंड

नरकलोक, यह पाताल लोक के नीचे और गर्भोदक् सागर के थोडा ऊपर है । यह यमराज के अधिपत्य में है । मृत्यु के उपरांत यमदूत पापी लोगों को वहां लाते हैं और फिर यमराज उनके विशिष्ट पापकृत्यों का न्याय कर, उन्हें यथोचित दंड के लिए नरक में भेजते हैं ।

१. जो मनुष्य दूसरे की पत्नी, बच्चे, पैसे लूटता है, उसे ‘तामिश्र’ नरक में डाला जाता है । वहां उसे खाने-पीने के लिए नहीं मिलता । यमदूत उसे बहुत पीटते हैं ।

२. जो मनुष्य दूसरे को धोखा देता है और उसकी पत्नी, बच्चे का उपभोग लेता है, उसे ‘अंधता मिश्र’ नरक में फेंका जाता है । यहां उसे इतना कष्ट भोगना होता है कि वह अपनी बुद्धि और दृष्टि गंवा देता है ।

३. जो मनुष्य रात-दिन काम कर अपने परिवारवालों के उदरभरण के लिए अकारण हिंसा करता है, उसे ‘रौरव नरक’ में फेंका जाता है । वहां उसने जिन प्राणियों की हत्या की थी, वे सभी उससे प्रतिशोध लेते हैं ।

४. जो मनुष्य औरों को दु:ख देकर जीता है, उसे ‘महारौरव’ में फेंका जाता है और ‘क्रव्याद’ नामक प्राणी उसकी चट्टामट्टा करते हैं ।

५. जो मनुष्य अपने जीभ के चोंचले को तृप्त करने के लिए मूक प्राणियों और पक्षियों को जीवित भूनकर खाता है, उसे ‘कुंभीपात’ नरक में फेंका जाता है ।

६. ब्राह्मणों की हत्या करनेवाले को ‘कालसूत्र’ नरक में ले जाते हैं । वहां नीचे से जाल और ऊपर से प्रखर सूर्यप्रकाश के कारण वह मनुष्य जलकर खाक हो जाता है ।

७. वैदिक मार्ग से गिरनेवाले मनुष्य को ‘असिपत्रवन’ नरक में भेजा जाता है । वहां यमदूत रक्त से लथपथ होने तक उसे चाबुक से मारते हैं ।

८. निरपराध नागरिकों को दंड देनेवाले अत्याचारी राजा और सरकारी अधिकारियों को ‘सूकरमुख’ नरक में फेंकते हैं । वहां उन्हें गन्ने समान निचोडा जाता है ।

९. अन्यों की हत्या और धोखा देनेवाले मनुष्यों को ‘अंधकूप’ नरक में फेंकते हैं । वहां उस पर हिंसक प्राणी, पक्षी, सर्प, मच्छर आक्रमण करते हैं और उसका जीना दूभर (कठिन) कर देते हैं ।

१०. घर के वृद्ध, बच्चों और अतिथियों को भोजन दिए बिना जो स्वयं प्रथम खाता है, वह कौए समान होता है । ऐसे लोगों को ‘कृमिभोजन’ नरक में फेंका जाता है । वहां वे १ लाख वर्ष पडा रहता है और आखिर में कीडे-कीटकों का भक्ष्य बनता है ।

११. जो मनुष्य दूसरे का सोना (स्वर्ण), आभूषण चोरी करता है, उसे ‘संदेश नरक’ में फेंकते हैं । वहां तप्त तांबे की गोलियों से उसकी त्वचा और जीभ जलाई जाती है ।

१२. अयोग्य-अकुलीन स्त्री से संभोग करनेवाले को तप्तसूर्मि नरक में फेंकते हैं । वहां उन्हें तांबे की तप्त मूर्तियों को आलिंगन देने के लिए बताया जाता है ।

१३. अनैसर्गिक संभोग करनेवाले को ‘वर्जकंटक शालमली’ नरक में फेंकते हैं । वहां दांतेदार (कंटीले) पेडों से लटकाकर रखा जाता है ।

१४. जो मनुष्य झूठी साक्ष्य देता है, व्यापार-व्यवहार में धोखा करता है, उसे ऊंचे पर्वत से ‘निर्जल नरक’ में फेंका जाता है । वहां वह बहुत घायल होता है ।

१५. जो ब्राह्मण और उसकी पत्नी मद्यपान करते हैं, उन्हें ‘अयःपान’ नरक में ले जाते हैं । वहां यमदूत उनके मुंह में लोहे का तप्त रस उडेलते हैं ।

१६. देवी भद्रकाली को मनुष्यबली देकर जो मांस खाते हैं, उन्हें ‘रक्षोगण’ भोजन नरक में डालते हैं । वहां उनकी चढाई गई बली राक्षसों को रूप धारण कर चीर-फाड करती है ।

१७. जो मनुष्य सर्पसमान द्वेषबुद्धि के और क्रोधी स्वरूप के होते हैं, उन्हें ‘दंदशूक’ नरक में फेंका जाता है । वहां सात फनों का नाग उन्हें चूहे समान खाता है ।

१८. जो पापमार्ग से पैसे कमाकर अपनी शान जताता है, उसे ‘सूचीमुख’ नरक में फेंका जाता है । वहां यमदूत उसकी देह को घोंपकर छिन्न-विछिन्न करते हैं ।

दंड भोगने के पश्चात वे सर्व पापी पृथ्वी पर पुन: जन्म लेते हैं ।

 

३. नरक से बचने के लिए भगवान का सतत नामस्मरण करना ही मुक्ति का सर्वोत्तम मार्ग !

महाराज परिक्षित ने शुकदेव से प्रश्न पूछा, ‘‘नरक से बचने के लिए मनुष्य को वास्तव में कैसे आचरण करना चाहिए ? तब शुकदेव गोस्वामी बोले, ‘‘मृत्यु आनेसे पूर्व मनुष्य की काया (शरीर), वाचा (वाणी) और मन शुद्ध न रहे, तो उसे नरक में ऐसी यातनाएं भोगनी पडती हैं । इसलिए मनुष्य को सदैव शास्त्रानुसार आचरण करना चाहिए । पापकर्म करना और फिर पश्चाताप लेकर क्षालन करना, यह प्रक्रिया किसी हाथी को स्नान कराने समान है । मनुष्य का अज्ञान, यह सर्व पापों का मूल होने से जब तक नष्ट नहीं होता, तब तक पाप होते ही रहेंगे । स्वयं के विश्वसनीय (प्रामाणिक), स्वच्छ चरित्र का, अहिंसक और दानी रहने से सर्व पापों का अपनेआप नाश होता है । उसके सर्व पाप धुल जाते हैं । भगवान श्रीकृष्ण की शरण जाने से व्यक्ति के सर्व पापकर्माें का निश्चितरूप से नाश होता है । उसके लिए भगवान का सतत नामस्मरण करना, यही मुक्ति का सर्वोत्तम मार्ग है । भगवान के चिंतन में रमनेवाले मनुष्य सामान्यतः पापकर्म नहीं करते; परंतु उनके हाथों भूलवश कोई चूक होने पर भगवान उनकी रक्षा करता है । कोई भी नाम और कैसे भी भगवान का नाम ले, उसका फल मिलता ही है । इसमें कोई शंका नहीं ।

– दिवंगत शाम लक्ष्मण तेंडोलकर, बोरिवली (पू.), मुंबई

(संदर्भ : गुरुपूर्णिमा विशेषांक, २०१५)

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