ईश्वरीय राज्य का प्रतिरूप सनातन का प्रत्येक आश्रम, व्यवस्थापन का आदर्श उदाहरण !

श्रीमती सुषमा कुलकर्णी

मेरे मन में रामराज्य से संबंधित विचार आ रहे थे । रामराज्य में कोई असत्य नहीं बोलता था । कोई चोरी और कपट नहीं करता था । लोगों में ईर्ष्या, द्वेष आदि विकार नहीं थे । सब प्रजा सरल मन की, भगवान में अत्यंत आस्था रखनेवाली और साधनारत थी ।

इस राज्य में किसी के पास कोई भी कर्म हो, तब भी उसका अंतिम ध्येय ईश्वरप्राप्ति ही होता था । इसलिए, उसे किसी प्रकार की चिंता अथवा लालसा नहीं रहती थी । इसलिए प्रजा बहुत संतुष्ट रहकर, आनंदसहित जीवनयापन करती थी । तब मन में विचार आया कि यदि ऐसा है, तब हम ईश्वरीय राज्य आने की प्रतीक्षा क्यों कर रहे हैं ? सनातन आश्रम में ईश्वरीय राज्य ही तो है । ऐसी स्थिति कहां देखने के लिए मिलेगी ?’ जब ऐसा विचार मन में चल रहा था, तब सनातन के आश्रमों के विषय में विचार आया –

 

१. सनातन संस्था की आदर्श आश्रम जीवन पद्धति !

१ अ. सनातन के सभी आश्रमों के साधक प्रेमभरे, गुणवान और आचारधर्म के पालक

सनातन के किसी भी आश्रम में जाने पर नहीं लगता कि एक आश्रम से दूसरे आश्रम में आए हैं । सनातन के सब साधक बहुत प्रेमभरे, गुणवान और आचारधर्म का पालन करनेवाले हैं; इसलिए अलग-सा नहीं लगता । क्योंकि, परम पूज्य डॉक्टरजी ने साधकों को गढा ही वैसा है और शिक्षा भी वैसी दी है ।

१ आ. साधकों की खोई वस्तु वैसी-की-वैसी मिलना

सनातन के आश्रम में कभी किसी वस्तु की चोरी नहीं होती । कभी-कभी कोई साधक अपनी वस्तु भूल जाता है; यहां तक कि पैसे का बटुआ भी, तब साधक उसे उठाकर फलक के पास रख देते हैं और उस पर सूचना लिख देते हैं कि यह वस्तु जिसकी है, वह अपना नाम फलक पर लिखकर ले जाए । वह बटुआ अथवा थैली कोई खोलकर नहीं देखता । इतनी सत्यनिष्ठा और सरलता आज के युग में यहां अनुभव होती है ।

१ इ. साधकों का एक-दूसरे से बंधुतापूर्ण व्यवहार

यहां एक-दूसरे के प्रति इर्ष्या, प्रतियोगिता, दूसरों के दोष गिनाना और झगडे आदि हो ही नहीं सकते । यहां तक कि साधक ऊंचे स्वर में बोलना, हंसी-मजाक करना, विनोद करना जैसी व्यर्थ की बातों में भी समय नहीं गंवाते ।

१ ई. समय का सदुपयोग

यहां किसी के पास खाली समय नहीं रहता । सेवा से समय बचने पर साधक तुरंत ध्यानमंदिर में जाकर नामजप के लिए बैठते हैं । जब किसी साधक को कभी थकान लगती है, तब वह अपने कक्ष में जाकर विश्राम करता है ।

१ उ. दी हुई सेवा निष्ठापूर्वक करना

आश्रम का प्रत्येक साधक अपनी सेवा पूरी प्रामाणिकता से करता है । किसी को भी दूसरे की सेवा में ध्यान नहीं देना पडता । यहां कोई किसी का बॉस नहीं है । इसलिए सुपरवाइजरी नहीं करनी पडती । किसी से भी सेवा के लिए आग्रह नहीं किया जाता । साधक समय का, कर्तव्य का और आश्रम की कार्यपद्धतियों का उचित पालन करते हैं । इतना ही नहीं, आश्रम को स्वच्छ भी करते हैं ।

१ ऊ. स्वीकारने की वृत्ति

किसी साधक से चूक होने पर, उसे बहुत प्रेम से समझाया जाता है और उसकी चूक उसके ध्यान में ला दी जाती है । प्रत्येक चूक अयोग्य कर्म होने से, धर्मशास्त्र के कर्मफल नियमानुसार उसका पाप लगता ही है । यह बात समझाते समय उसे उचित दृष्टिकोण भी दिया जाता है । इससे साधक अपनी चूक से हुए पाप के परिमार्जन हेतु प्रायश्चित करता है और आगे वह चूक न हो, इसके लिए सतर्क रहता है । इस प्रकार, आचरण करने से साधक में ईश्वरप्राप्ति की व्याकुलता बढती है । ऐसे साधक की ओर श्रीगुरु का विशेष ध्यान रहता है ।

१ ए. घर के ऐहिक सुखों का त्याग कर, आश्रम में संतोष, आनंद और शांति का अनुभव करनेवाले साधक

आश्रम के सब साधक अत्यंत संतुष्ट और आनंदित रहते हैं । करोडपति साधक भी ऐहिक सुख त्याग कर, सनातन के आश्रम में आए हैं । क्योंकि उन्हें यहां अपने घर से अधिक संतोष, आनंद और शांति मिलती है । इसलिए उन्हें यहां भगवान के निवास का अनुभव होता है ।

 

२. कृतज्ञता

२ अ. आश्रम के बाहर चल रहे कलियुग की आंच से हम सब साधक,
भगवान श्रीकृष्ण और परम पूज्य डॉक्टरजी की कृपा से अति सुरक्षित हैं ।

२ आ. ऐसे आदर्श वातावरण में रहने को मिलना, साधकों का महाभाग्य !

सनातन के आश्रम, ईश्वरीय राज्य के प्रतिरूप ही हैं । परम पूज्य डॉक्टरजी ने हम साधकों को ऐसे आदर्श वातावरण में रखा है, यह हमारा महाभाग्य ही है । जिन्हें ईश्वरीय राज्य की आदर्श जीवनपद्धति देखनी है, वे सनातन के आश्रम में आकर देखें । इस आश्रम के निर्माता का गुणगान करने के लिए शब्द भी अल्प पडते हैं । उनकी लीला अवर्णनीय है । ऐसे में मैं पामर इसका वर्णन कैसे कर पाऊंगी । इस अनंत का सबकुछ अनंत है । जिसका गुणगान करते-करते वेद भी थककर, नेति-नेति कहने लगे, वहां मैं क्या लिखूं और क्या वर्णन करूं ! हे देवता, भगवान, अनंत, गुरुदेव आपके चरणों में कोटि-कोटि नमस्कार और कृतज्ञता अर्पण !

२ इ. साधकों पर कृपाशीर्वाद की अखंड वर्षा

ईश्वरीय राज्य, अर्थात रामराज्य कैसा होता है, यह हम सब साधकों को श्रीगुरुदेव ने केवल दिखाया नहीं, अपितु अनुभव भी करवाया । गुरुदेव हम सबको साधनारत रखकर, हमारा मनुष्यजन्म सफल हो, इसके लिए हम पर कृपाशीर्वाद की निरंतर वर्षा भी कर रहे हैं । इसलिए हम उनके चरणों कृतज्ञता अर्पित करते हैं ।

परम पूज्य डॉक्टरजी ने, मेरे मन में कोई विचार और लिखने की क्षमता न होने पर भी, मुझे लिखने के लिए विचार सुझाए और उन विचारों को लिखवा भी लिया । आपके सुझाए हुए विचार मैं आपके ही चरणों में अर्पित करती हूं ।

– श्रीमती सुषमा कुलकर्णी, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल.

संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात

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