भवन जिस विचार अथवा भाव से बनाया जाता है, उसमें वैसी विचार-तरंगें उत्पन्न होती हैं !

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सहस्रों वर्ष से खडे चारधाम का देवालय । यह देवालय आनंद प्रदान करता है ।

१. धनी लोगों को अपने धन का बहुत गर्व होता है । वे धन के बल पर ऊंचे-ऊंचे भवन बनवाते हैं । ये भवन देखनेयोग्य होते हैं । परंतु, वहां से जानेवाले कुछ लोगों को यह भवन अद्भुत लगता है, तो कुछ को इससे इर्ष्या होती है । भवन जिस उद्देश्य अथवा भाव से बनवाया गया होता है, उसमें वैसी विचार-तरंगें होती हैं, जो बाहर भी प्रक्षेपित होती हैं ।

२. देवालय के विषय में भी ऐसा होता है । आयकर बचना चाहिए, बेटा होना चाहिए और अन्य सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए बनाए गए देवालयों में भी ऐसी विचार-तरंगें होती हैं । इसलिए, वहां जाने पर आनंद का अनुभव नहीं होता ।

३. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पास संगमरमर से बना विशाल शिवमंदिर है । वह देखने योग्य है । परंतु, उसमें स्थापित देवतामूर्ति की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता । वहां विशेष भक्तिभाव से पूजा भी नहीं होती । परंतु, हेमाडपंथी देवालय और चारधाम के देवालय सहस्रों वर्ष से खडे हैं और वहां जाने पर लोगों को आनंद होता है ।’
– परम पूज्य पांडे महाराज (दिशाचक्र, पृष्ठ क्र. ९९-१००)

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