वास्तुदेवता का क्या महत्त्व है ?

हिन्दूधर्म की महानता हर क्षण हमें ध्यान में आती होगी । अनेक लोग जो ईश्‍वर की कृपा को मानते नहीं, वे कहते हैं कि हिन्दूधर्म में तो ३३ करोड देवी-देवता हैं । किससे-किससे प्रार्थना करें, किसे-किसे पूजें ! परंतु हमारे ध्यान में यह अवश्य आया होगा कि ३३ करोड देवी-देवताओं की कृपा हमें देनेवाला हिन्दूधर्म कितना महान है । देखिए तो, जो भूमि हमें अन्न देती है, फल देती है वह भूदेवी हम पर कृपा ही तो करती है न ! क्या हम जल के बिना जीवित रह सकते हैं ? बिल्कुल नहीं ! फिर तो जल देवता की कितनी कृपा हम पर है कि वे हमें जीवनदान देते हैं । हमारे गांव के ग्राम देवता व स्थान देवता, हमारे गांव की और स्थान की रक्षा करते हैं । अग्निदेवता से हमारा जीवन है, उनकी कृपा का अनुभव हर दिन हमें होता है जब हमें अग्नि पर पका हुआ स्वादिष्ट भोजन मिलता है । इसीप्रकार हमारे संपूर्ण कुल का पालन-पोषण करनेवाली हमारी कुलदेवी की कृपा का हम क्या वर्णन करें ! उदाहरण देते रहे और हर देवता की कृपा का वर्णन करते रहे, तो एक सत्संग पूरा नहीं पडेगा ! परंतु पश्‍चिमी संस्कृति का अंधानुकरण करने से अनेक लोगों को इन देवताओं की कृपा की कोई जानकारी नहीं । वे तो ईश्‍वर को ही मानने को तैयार नहीं । परंतु जिसप्रकार कोई कहे कि ऑक्सीजन तो दिखती नहीं, इसलिए मैं नहीं मानता । तो ऐसे व्यक्ति की जग हंसी ही उडाएगा ! वैसे ही कोई माने अथवा न माने, इन देवताओं की कृपा से ही हमारा जीवन है । हमारा हिन्दूधर्म इतना महान है कि जल, आकाश, अग्नि, अन्न इत्यादि को देवता स्वरूप बताकर हम पर इनके प्रति आदर निर्माण हो, ऐसी व्यवस्था की है ।

इसीप्रकार ३३ करोड देवी-देवताओ में से एक वास्तुदेवता भी हम पर कृपा करते हैं ।

आज हम देखेंगे कि जिस निवास में हम रहते हैं, वहां के वास्तुदेवता का क्या महत्त्व है । वास्तुदेवता की हम पर कृपा बनी रहे, वास्तु के कष्टदायक स्पंदनों को नष्ट करने के लिए हम वास्तु शुद्धि कैसे करें ? यह सब करते हुए हम ईश्‍वर के प्रति अपना भाव कैसे रखें ?

हम सबका रहने के लिए एक निवास स्थान होता है, घर होता है । और सभी का सपना होता है कि हमारा अपना एक ऐसा घर हो जहां हम सुख शांति से, आनंद से रहें ।

हम किसप्रकार के घर में रहते हैं, यह हमारी जीवनशैली पर निर्भर करता है । हम कहां रहते हैं, हमारा घर कैसा बना है, हम इसे कैसे रखते हैं, इन सब बातों पर हमारे घर के स्पंदन निर्माण होते हैं ।

हम जहां रहते हैं, वह एक वास्तु है ।

 

१. वास्तु किसे कहते हैं ?

वास्तु उस स्थान को कहते हैं जो चारों ओर से दीवार से घिरी हो, उस पर छत हो अथवा न हो । यदि चारदीवारी खडी कर दी जाए, तो ऐसी रचना में एक शक्ति का केंद्र बन जाता है और इस शक्ति के केंद्र को हम ‘वास्तु का देवता’ कहते हैं । वास्तु देवता का क्या कार्य होता है ? उनका कार्य होता है वहां पर जो भी घटनाएं हों, अच्छी अथवा बुरी उन्हें शक्ति देना ।

हम जिस घर में रह रहे हैं, वह वास्तुदेवता ही हैं । वास्तु हमें ईश्‍वर से मिला कृपाप्रसाद है । हमारे कुलदेवता सदैव हमारे कुल की रक्षा करते हैं । एक मां समान हमारे कुटंब की चिंता करते हैं । हमारा ध्यान रखते हैं और हमें संभालते हैं ।

कुलदेवता समान ही अन्य देवता अर्थात वास्तु देवता, स्थान देवता व ग्राम देवता भी हमारे लिए कार्यरत रहते हैं और हमारी रक्षा करते हैं ।

प्रत्येक वास्तु के वास्तु देवता और स्थान देवता होते ही हैं । इसकारण जब हम किसी नए घर में प्रवेश करते हैं, तो उससे पहले घर की वास्तुशांति विधि करते हैं, पूजा करते हैं और उसके उपरांत ही घर में प्रवेश करते हैं अर्थात एक प्रकार से उनका कृपा आशीर्वाद लेकर उनके सहवास में हम रहने के लिए जाते हैं । इन सभी देवताओं के प्रति हमारे मन में कृतज्ञता लगनी चाहिए । इसकारण उनके सहवास में रहते हुए हम उनकी कृपा के पात्र हो सकते हैं । प्रत्यक्ष में भगवान ने ही वास्तु देवता को हमारी रक्षा का कार्य सौंपा है । भगवान की आज्ञा से वास्तुदेवता ही हमारी अखंड रक्षा करते हैं । अर्थात ठंडी हवा, वर्षा इत्यादि से हमारी सदैव रक्षा करते हैं ।

घर और परिवार, हमारे जीवन का एक अविभाज्य अंग है । जैसे पक्षी दिनभर उडते रहते हैं । भोजन की खोज में इधर-उधर जाते हैं । परंतु शाम होने पर वापस अपने घर लौट आते हैं । उसीप्रकार मनुष्य भी काम के कारण दिनभर घर से बाहर जाते हैं । परंतु, उनको रात को वापस अपने निवास स्थान पर आने की लगन रहती है । कुछ कारणवश यदि वे गांव से बाहर अथवा दूसरे शहर में गए अथवा हम किसी पर्यटन स्थल. शिमला, ऊटी जैसी नैसर्गिक सौंदर्य से भरे हुए स्थानों पर भी गए, तब भी वापस घर तक पहुंचने की हममें एक लगन रहती है । यह वास्तु का हमारे प्रति और हमारा वास्तु के प्रति एक प्रकार का प्रेम ही है ।

 

2. वास्तु पुरूष की उत्पति कैसी हुई ?

हम जिस वास्तु देवता की बात कर रहे हैं, उस वास्तु पुरूष की उत्पति कैसे हुई ?

मत्स्यपुराण के अनुसार वास्तु पुरुष की एक कथा है । एक बार देवताओं और असुरों का युद्ध हो रहा था । इस युद्ध में असुरों की ओर से अंधकासुर और देवताओं की ओर से भगवान शिव युद्ध कर रहे थे । युद्ध करते-करते दोनों के पसीने की कुछ बूंदें जब भूमि पर गिरीं, तो एक अत्यंत बलशाली और विराट पुरुष की उत्पत्ति हुई । उस विराट पुरुष नें पूरी धरती को ढक लिया । यह देखकर उस विराट पुरुष से देवता और असुर दोनों ही भयभीत हो गए । देवताओं को लगा कि यह अवश्य ही असुरों की ओर से कोई पुरुष है । जबकि असुरों को लगा कि यह देवताओं की ओर कोई नया देवता प्रकट हो गया है । सुर और असुर दोनों ही बहुत विस्मित थे । इस विस्मय के कारण युद्ध थम गया और उसके बारे में जानने के लिए देवता और असुर दोनों ने उस विराट पुरुष को पकड लिया और ब्रह्माजी के पास ले गए ।

ब्रह्माजी ने उस बृहदाकार पुरुष के बारे में कहा, ‘यह भगवान शिव और अंधकासुर में हो रहे युद्ध के समय उनके शरीर से गिरी पसीने की बूंदों से इस विराट पुरुष का जन्म हुआ है । इसलिए आप लोग इसे ‘धरती पुत्र’ भी कह सकते हैं । ब्रह्मदेव ने उस विराट पुरुष को संबोधित किया और उसे अपने मानस पुत्र होने की संज्ञा दी । तदुपरांत उसका नामकरण करते हुए कहा कि आज से तुम्हे संसार में वास्तुपुरुष के नाम से जाना जाएगा और तुम्हे संसार के कल्याण के लिए धरती में समाहित होना पडेगा अर्थात धरती के अंदर वास करना होगा । मैं तुम्हे वरदान देता हूँ कि जो भी व्यक्ति धरती के किसी भी भू-भाग पर कोई भी भवन, नगर, तालाब, मंदिर, आदि का निर्माणकार्य तुम्हें ध्यान में रखकर करेगा, उसके कार्य को देवता सिद्धि, समृद्धि और सफलता प्रदान करेंगे और जो कोई निर्माण कार्य में तुम्हारा ध्यान नहीं रखेगा और अपने मन की करेगा, उसे असुर कष्ट देंगे ।

यही वास्तुपुरूष प्रत्येक वास्तु में निवास करते हुए, उसमें रहनेवाले प्रत्येक प्राणि की रक्षा करते हैं और उन्हें शक्ति भी देते हैं ।

 

3. हमें वास्तुदेवता को प्रसन्न करने की आवश्यकता क्यों है ।

सबसे पहले तो हमें पता होना चाहिए कि हम अपनी वास्तु में वास्तुदेवता की कृपा से ही निवास करते हैं । वास्तुदेवता, हमें निरंतर जो शक्ति प्रदान करते हैं, उसका ऋण तो हम कभी चुका ही नहीं सकते । परंतु उनको प्रसन्न रखने के लिए वास्तु की सात्त्विकता बनाए रखना और वहां के चैतन्य को बढाने का प्रयास तो अवश्य कर सकते हैं ।

वास्तुदोष निर्माण होने पर हम बडे-बडे वास्तुविशेषज्ञ के पास जाते हैं, अनाप-शनाप खर्च भी करते हैं । अज्ञानतावश हमें पता ही नहीं होता कि जाने-अनजाने हमसे वास्तु के प्रति कितनी गलतियां होती हैं । हमें भान ही नहीं रहता कि हम जिस घर में रह रहे हैं, उस घर के एक देवता भी हैं और हम अपना घर गंदा रखते हैं, घर में अनावश्यक वस्तुएं जमा करके रखते हैं, आपस में लडते हैं, ऊंची आवाज में टी.वी. लगाकर रखते हैं, बाहर के जूते अंदर लाते हैं । इससे हम वास्तुदेवता की कृपा से वंचित रह जाते हैं ।

घर में छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर, वास्तुदेवता को प्रसन्न कर सकते हैं और उनकी कृपा से बहुत हद तक अपने घर का वास्तुदोष कम कर सकते हैं ।

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