मलेशिया की बटू गुफा में कार्तिकेय का विश्‍वप्रसिद्ध जागृत मंदिर !

१४० फुट ऊंची और सुवर्ण रंग के कार्तिकस्वामी की जगत में सबसे ऊंची मूर्ति !
मलेशिया की राजधानी कौलालंपुर के निकट ४० करोड वर्ष प्राचीन और बहुत ही विशाल बटू गुहा !
कार्तिकेय मंदिर के पुजारी ने रामराज्य की स्थापना के लिए भगवान को दूध का अभिषेक और विशेष पूजा कर मूर्ति को हार पहनाते हुए !
मंदिर के पुजारी द्वारा कार्तिकस्वामी के गले के फूलों का हार और अभिषेक का प्रसाद सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ को देते हुए !

 

१. भारतीय प्राचीन इतिहास का मलय द्वीप अर्थात वर्तमान का
मलेशिया देश और इस स्थान पर १५ वीं शताब्दी तक हिन्दुओं का साम्राज्य होना

प्राचीन काल में जिसे मलय द्वीप कहते थे, वह है आज का मलेशिया देश ! मलेशिया, अनेक द्वीपों का समूह है । मलय भाषा में अनेक संस्कृत शब्दों का उपयोग किया जाता है । मलय साहित्य में रामायण और महाभारत का संबंध दिखाई देता है । १५ वीं शताब्दी तक मलेशिया में इस्लाम आनेतक मजापाहित एवं श्रीविजय नामक हिन्दू साम्राज्यों ने १ सहस्र ५०० वर्ष राज्य किया । २ सहस्र वर्ष पूर्व मलेशिया के इतिहास के विषय में कहीं भी विशेष उल्लेख नहीं मिलता है ।

 

२. ४० करोड वर्ष प्राचीन बटू पर्वत पर बटू गुफा

मलेशिया की राजधानी, कौलालंपुर से १६ कि.मी. के अंतर पर बटू पर्वत श्रृंखला है । इन पर्वतों में चुनखडी की एक गुफा है । वैज्ञानिकों के मतानुसार यह गुफा ४० करोड वर्ष प्राचीन है । इस गुफा में जाने के लिए २७२ सीढियां हैं । सीढियां चढ कर जाने पर हम विशाल गुफा में प्रवेश करते हैं । यह गुफा इतनी बडी है कि उसके अंदर १० माले की इमारत खडी कर सकते हैं । (छायाचित्र क्रमांक २ देखें ।) इस गुफा में ३ स्थानों पर बडे छिद्रों से सूर्यप्रकाश अंदर आता है ।

 

३. विश्‍व में कार्तिकेय के १० स्थानों में से बटू पर्वत का दसवां स्थान

गुफा के अंदर १०० मीटर चलकर जाने पर कार्तिकेय का मंदिर आता है । तमिल हिन्दुओं की श्रद्धा है कि विश्‍व में कार्तिकेय के स्थानवाले १० पर्वत हैं । उनमें से ६ भारत के तमिलनाडु राज्य में और ४ मलेशिया में हैं । इन १० स्थानों में से यह दसवां स्थान है । इस स्थान को तमिल में पत्तू संबोधित किया जाता है । तमिल भाषा में पत्तू का अर्थ है दस । कालांतर में पत्तू शब्द का अपभ्रंश होकर बटू हो गया । इसलिए अब इस पर्वत को मलेशिया के हिन्दू बटू पर्वत और पत्तू गुफा को बटू गुफा नाम से पहचानते हैं ।

 

४. बटू गुफा का इतिहास

१५० वर्षों पूर्व ब्रिटिशों ने भारत के तमिलनाडु प्रांत और श्रीलंका से तमिल लोगों को चाय के बागानों में काम करने के लिए मलेशिया ले गए । ये लोग मलेशिया के विविध प्रांतों में स्थायिक हो गए । इनमें से ही एक हैं श्री. तंबूस्वामी पिल्लै । श्री. तंबूस्वामी देवीभक्त थे । उनके स्वप्न में आकर श्री दुर्गादेवी ने उन्हें बताया कि बटू नामक गुफा कार्तिकस्वामी का तपश्‍चर्या क्षेत्र है । उस स्थान पर भक्तों के लिए उपासना हेतु एक मंदिर की स्थापना करें । उसी अनुसार अगले दिन श्री. पिल्लै हाथ में कार्तिकस्वामीजी का वेल नामक आयुध लेकर अपने कुछ मित्रों के साथ बटू गुफा में गए । श्री. तंबूस्वामी की श्रद्धा देखकर उस गांव के आसपास चाय के बागानों में काम करनेवाले भी उनकी सहायता के लिए गए और इस गुफा में एक छोटे-से मंदिर की स्थापना की । इस गुफा के अंदर इतनी बडी जगह है कि एक समय पर ५ सहस्र भाविक बैठकर पूजा कर सकते हैं ।

 

५. बटू गुफा में कार्तिकस्वामी के मंदिर के वार्षिक उत्सव तायपूसम !

माता पार्वती ने कार्तिकेय को जिस दिन वेल आयुध दिया था, वह दिन है तायपूसम ! इस दिन के स्मरण में प्रत्येक वर्ष बटू गुफा के कार्तिकेय के मंदिर में यहां हिन्दू तायपूसम उत्सव मनाते हैं ।

 

६. बटू पर्वत की तलहटी में कार्तिकस्वामी की जगत में सबसे बडी मूर्ति !

बटू पर्वत की तलहटी में गुफा जाने के लिए सीढियां आरंभ हो जाती हैं । इस स्थान पर वर्ष २००६ में मलेशिया के हिन्दुओं ने १४० फुट ऊंची सुवर्ण रंग की कार्तिकस्वामी की सुंदर मूर्ति खडी की । कार्तिकस्वामी की यह नयनमनोहर मूर्ति जगत की सबसे बडी मूर्ति है । (छायाचित्र क्रमांक १ देखें ।)

 

७. सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ मंदिर में
श्री कार्तिकस्वामीजी के दर्शन लेने के लिए जाने पर वहां के पुजारी
ने रामराज्य की स्थापना के लिए विशेष पूजा करना और उस समय भगवान
को चढाए गए वस्त्र का रंग सद्गुरु (श्रीमती) गाडगीळ की साडी के रंग समान ही होना

महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय की ओर से सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ और ४ साधक-विद्यार्थी मलेशिया में अभ्यास दौरे पर गए थे । तब १.४.२०१८ को सवेरे ९ बजे सब बटू गुफा में कार्तिकस्वामीजी के दर्शन के लिए गए । इस अवसर पर मलेशिया के श्री. पुगळेंदी सेंथीयप्पन भी उपस्थित थे । कार्तिकस्वामी मंदिर के पुजारी को ध्यान में आया रामराज्य का संकल्प लेकर दर्शन के लिए भारत से कोई संत आए हैं । तब उन्होंने स्वयं आकर सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ को कतार से बाहर बुलाकर भगवान के सामने ले गए और रामराज्य की स्थापना के लिए कार्तिकेय को दूध का अभिषेक कर विशेष पूजा की । (छायाचित्र क्रमांक ३ देखें ।) अभिषेक के उपरांत उन्होंने कार्तिकेय को नए वस्त्र पहनाए । आश्‍चर्य की बात हुई कि भगवान को जो वस्त्र पहनाए गए और सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ द्वारा पहनी साडी, इन दोनों का ही रंग एक समान था । दोनों वस्त्रों के किनारी भी एक ही रंग की थी ।

 

८. पुजारी के माध्यम से सद्गुरु (श्रीमती) अंजली
गाडगीळ का सत्कार होते समय अभ्यास दौरे के साधक-विद्यार्थियों
को ऐसा प्रतीत होना मानो प्रत्यक्ष कार्तिकस्वामीजी ने ही उनका सम्मान किया

पूजा के उपरांत पुजारी ने दर्शन के लिए कतार में खडी एक महिला द्वारा सद्गुरु (श्रीमती) गाडगीळ का शाल ओढाकर सम्मान किया और कार्तिकस्वामीजी के गले का पुष्पहार और अभिषेक का प्रसाद उन्हें दिया । (छायाचित्र क्रमांक ४ देखें ।) इस अवसर पर अभ्यास दौरे पर सद्गुरु काकू के साथ आए हम साधक-विद्यार्थियों को स्वयं कार्तिकस्वामी ही वहां आए हैं और वही पुजारी के माध्यम से सद्गुरु काकू का सत्कार कर रहे हैं, ऐसा प्रतीत हुआ ।

– श्री. विनायक शानभाग, मलेशिया

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