धर्मसम्राट करपात्री स्वामीजी का अलौकिक कार्य !

काशी के केदार घाट पर स्वामीजी द्वारा स्थापित शिवमंदिर में देवताओं की मूर्ति
काशी में स्वामीजी द्वारा स्थापित शिव पिंडी (मध्यभाग में) दिखाई दे रही है ।
समाधी मंदिर में करपात्री स्वामीजी की मूर्ति और पादुका

 

धर्मसम्राट करपात्री स्वामीजी के विषय में उनके शिष्य
गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी द्वारा वर्णित संक्षिप्त जीवनचरित्र

१. करपात्री स्वामीजी का जन्म और उनकी साधना

वर्ष १९०७ में श्रावण शुक्ल पक्ष द्वितीया को उत्तरप्रदेश के प्रतापगड जिले के भटनी ग्राम में करपात्री स्वामीजी का जन्म हुआ था । उनका नाम हरनारायण रखा गया । आयु के १९ वें वर्ष अर्थात वर्ष १९२६ में उन्होंने गृहत्याग किया । तदुपरांत उनका वास्तव्य गंगातट पर था । स्वामी ने विश्‍वेश्‍वराश्रम के निकट वेदशास्त्राध्ययन किया । हिमालय में निवास कर, तपश्‍चर्या की । उन्हें समाधी अवस्था में धर्मसंस्थापना के लिए कार्य करने का दैवी आदेश मिला । आयु के २४ वें वर्ष वे श्रीब्रह्मानंद सरस्वती के पास काशी गए और संन्यास ग्रहण कर, वे हरिहरानंद सरस्वती हो गए ।

२. राष्ट्र और धर्मजागृति के लिए स्वामीजी द्वारा किया गया दैवी कार्य !

  •  वर्ष १९३९ में स्वामीजी ने काशी में ‘सन्मार्ग’ नामक दैनिक एवं ‘सिद्धांत’ नामक साप्ताहिक समाचारपत्र आरंभ किए
  •  तदुपरांत उन्होंने धर्मसंघ की स्थापना कर धर्मयात्रा आरंभ की । सरकार की सेक्युलर प्रणाली की शिक्षा से लोगों को मुक्त करने के लिए इस संघ की स्थापना की गई थी । धर्मरक्षा के लिए उन्होंने भारतभर पैदल यात्रा की । उन्होंने अनेक अधिवेशन, चर्चासत्र, वेदशाखा सम्मेलन, शास्त्रार्थ सभा इत्यादि लीं ।
  • १९ जनवरी १९४० को उन्होंने धर्मयुद्ध सत्याग्रह की घोषणा की । इसके लिए उन्हें ६ माह का कारावास भी भोगना पडा ।
  • स्वामीजी ने धर्मसंघ शिक्षा मंडल, काशी इस संस्था द्वारा काशी, विठूर, चुरु (राजस्थान), मुज्जफ्फरपुर, वृंदावन, बिहार, देहली, अमृतसर और लाहौर, इसप्रकार ५० से भी अधिक स्थानों पर स्वामीजी ने संस्कृत विद्यालय स्थापित किए । जो आज भी कार्यरत हैं ।
  • उन्होंने धर्मवीर दल और महिला संघ की भी स्थापना की । इसके साथ ही सभी वेदशाखा सम्मेलन, धार्मिक पत्रकार सम्मेलन, साधु-सम्मेलनों का भी भव्य आयोजन किया ।

३. देहत्याग

वर्ष १९८० में स्वामीजी ने हरिद्वार में कुंभस्नान और धर्मप्रचार किया । ज्वरग्रस्त होते हुए भी उन्होंने संक्रांतिस्नान किया । ७ फरवरी १९८२ को चतुर्दशी के पुष्य नक्षत्र पर करपात्री स्वामीजी ने गंगास्नान होने के पश्‍चात काशी के केदार घाट पर स्थित आश्रम में शिवऽ शिवऽऽ शिवऽऽऽ नामोच्चारण करते हुए देहत्याग किया ।

संदर्भ : प.पू. गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी वाङ्मय पत्रिका घनगर्जित, तृतीय वर्ष, अंक ४.

 

हिन्दुओं की रक्षा के लिए स्वामीजी अविरत कार्यरत !

१. वर्ष १९४६ में बंगाल में हिन्दुओं का सामूहिक हत्याकांड हुआ । भयंकर नरसंहार हुआ । प्रचंड धर्मपरिवर्तन हुआ । करपात्री स्वामीजी तुरंत बंगाल गए । उन्होंने नौखाली इत्यादि स्थानों पर जाकर हिन्दुओं को धीरज दिया । हिन्दू समाज को धैर्य देकर घोषणा की, ‘कि जो भी संकीर्तन कर रामनाम का उच्चारण करेगा, वह विशुद्ध हिन्दू ही रहेगा’ । इसप्रकार जबरन धर्मपरिवर्तन नहीं होगा, इसकी निश्‍चिती की । करपात्री स्वामीजी ने ३ सहस्र बेघर हुए हिन्दू परिवारों की पुनर्स्थापना की ।

२. करपात्री स्वामीजी ने हिन्दू कोड बिल का कडा विरोध किया । उसके लिए उन्होंने देशभर दौरा किया । हिन्दू कोड बिल के विरोध में घमासान आंदोलन में स्वामीजी के इस कार्य के लिए २ करोड से अधिक रुपए खर्च हुए । स्वामीजीं ने ‘हिन्दू कोड बिल प्रमाण की कसौटी पर’ नामक ग्रंथ भी प्रकाशित किया । उन्होंने संपूर्ण भारत में गोवध बंदी के लिए भी आंदोलन चलाए ।

 

करपात्री स्वामीजी द्वारा लिखित विविध ग्रंथ !

शांकरभाष्य – आक्षेप और समाधान; समन्वय साम्राज्य संरक्षण; संस्कृत ग्रंथ मार्क्सवाद एवं रामराज्य; वेदस्वरूप एवं प्रामाण्य; वेदप्रामाण्य मीमांसा; अहमर्थ व परमार्थ; वेदस्वरूप विमर्श; ज्योतिष्यती कायाकल्प ?; चातुर्वर्ण्य संस्कृति विमर्श; श्रीविद्यारत्नाकर यह तांत्रिक ग्रंथ; ३ सहस्र पृष्ठों का वेदार्थ पारिजात; रामायणमीमांसा इत्यादि ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

3 thoughts on “धर्मसम्राट करपात्री स्वामीजी का अलौकिक कार्य !”

  1. १. उनका नाम ‘करपात्री जी महाराज’ था, ना की करपात्र। २. घाट का नाम ‘केदार घाट’ है, ना की नारायण केदार घाट।

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    • नमस्कार,

      हमें सुधार बताने के लिए धन्यवाद । आपकी सूचनानुसार हमने सुधार किए है ।

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