लहसुन के औषधीय उपयोग

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भोजन में रूचि उत्पन्न करनेवाले पदार्थों में लहसुन का स्थान महत्त्वपूर्ण है । पदार्थ के पाचन हेतु लहसुन का उपयोग किया जाता है । लहसुन की जडें तीखी, पत्ते कडवे, तने नमकीन, झिल्ली कसैली और बीज मधुर (मीठा) स्वादवाले होते हैं । लहसुन में कुल ६ रसों में से खट्टा रस अंतर्भूत नहीं है ।

 

१. लहसून किसे नहीं खाना चाहिए ?

अ. लहसुन गर्म और तीक्ष्ण (उग्र अथवा भेदक गुणोंवाला) होने से जिन्हें पित्त का कष्ट होता है, उन्हें लहसुन नहीं खाना चाहिए ।

आ. गर्भवती महिलाओं के लिए लहसुन वर्जित है ।

इ. नाक-मुंह से रक्त बहता, तो लहसुन नहीं खाना चाहिए ।

 

२. लहसुन के औषधीय उपयोग

२ अ. गला बैठना

घी में तला हुआ लहसून खाने से बैठा हुआ गला खुल जाता है ।

२ आ. खांसी

ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को खांसी लगनेपर उनके गले में लहसून की माला डाली जाती है ।

२ इ. दम लगना

दम लगनेपर लहसून खाने से दम लगना न्यून होता है ।

२ ई. हिचकी

एक बार भोजन के पश्‍चात मुझे हिचकी लगी और वह रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी । तब मैने लहसून की २-४ कलियां खाकर उसपर थोडा पानी पिया और उसके कुछ समय पश्‍चात चीनी खाई, तब मेरी हिचकी तुरंत रुक गई ।

२ उ. क्षय (टी.बी.)

प्रतिदिन लहसून की कलियों को हलका कुचलकर सिरहाने के पास रखने से टी.बी. के जीवाणु नष्ट होते हैं ।

२ ऊ. अपचन

कोंकण क्षेत्र के एक व्यक्ति का १-२ वर्षों से चावल खानेपर पेट फूलता था । चिकित्सा के उपरांत भी कुछ ही दिनोंतक अच्छा लगता था । तब आधुनिक वैद्यों ने उस व्यक्ति को चावल न खाने का सुझाव दिया, जो उसे अस्वीकार था । तब मैंने उस रोगी को कुछ औषधियां दीं और कुछ दिनोंतक घी में तली हुई लहसून की कलियां डालकर पके हुए चावल खाने का सुझाव दिया, जिससे उसमें अच्छा सुधार हुआ । अपाचन में लहसून को घी में तलकर ही उपयोग करें; परंतु इसे अधिक दिनोंतक न खाएं ।

२ ए. कृमी

छोटे बच्चों में होनेवाले कृमियों के लिए लहसून एक अच्छी औषधी है । लहसुन तीखा होने से बच्चे उसे नहीं खाते; इसलिए लहसुन की कलियों को दिनभर दही में भिगोकर उन्हें छीलें और उन्हें घर में बनाए गए देशी घी में लाल होनेतक तलें । इससे बच्चों में भूख बढती है और कृमियों की मात्रा न्यून होती है ।

२ ऐ. महिलाओं के विकार

प्रतिदिन लहसुन का सेवन करनेवाली महिलाओं की सुंदरता, बल और जीवनकाल बढता है; परंतु लहसुन को उचित मात्रा में ही खाएं ।

२ ओ. वेदना

लहसुन की कुटी हुई कलियां आधा कटोरी, १ लीटर सरसों का तेल और २ लीटर दही का पानी (दही से श्रीखंड हेतु पनीर बनाते समय शेष बचा पानी) को एकत्रित कर धीमे गैसपर केवल तेल के शेष रहनेतक सुखाएं । शरीर के वेदनावाले स्थानपर हल्के हाथों से कुछ समयतक इस तेल से मर्दन करें ।

२ औ. ठंड लगकर बुखार आना

बुखार की संभावना प्रतीत होते ही उक्त पद्धति से बनाए गए लहसून के तेल को शरीरपर लगाएं ।

२ अं. कीडे का डंस जाना

कीडा डंस जानेपर उस स्थानपर लहसुन घिसें । इससे कीडे का विष न्यून होने में सहायता मिलती है ।

– वैद्य विलास जगन्नाथ शिंदे, जिजाई आयुर्वेद चिकित्सालय, खालापुर, जनपद रायगढ (महाराष्ट्र)

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