बचपन से ही कठोर साधना कर दिव्य तेज प्राप्त किए हुए और श्रीराम मंदिर का निदिध्यास रखनेवाले प.पू. भगवानदास महाराज !

प.पू. भगवानदास महाराज एवं प.पू. रुक्मिणीबाई

११ नवंबर को पानवळ, बांदा, सिंधुदुर्ग के प.पू. भगवानदास महाराज का स्मृतिदिवस था । उसके उपलक्ष्य में …

कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्दशी (११.११.२०१९) को पानवळ, बांदा (जनपद सिंधुदुर्ग, महाराष्ट्र) के प.पू. भगवानदास महाराज (प.पू. दास महाराज के पिता) का स्मृतिदिवस था । उसके उपलक्ष्य में यह लेख प्रकाशित कर रहे हैं ।

प.पू भगवानदास महाराज के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम !

 

१. कर्नाटक राज्य के सीतेमनी गांव में निवास

प.पू. भगवानदास महाराज कर्नाटक राज्य के सीतेमनी गांव में निवास करते थे । उन्होंने वहां एक भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण किया । कुछ दिन पश्‍चात वहां आलमट्टी बांध का निर्माण होना था; इसलिए उन्होंने सीतेमनी गांव से स्थानांतरण किया । उसके पश्‍चात वे महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जनपद में स्थित निसर्गसंपन्न बांदा गांव के पास स्थित पानवळ नामक गांव में रहने के लिए गए । पानवळ का परिसर पहले बहुत घने अरण्य से घिरा हुआ था । वर्ष १९५९ में प.पू. भगवानदास महाराज, उनकी धर्मपत्नी प.पू. रुक्मिणीबाई, पुत्र कु. रघुवीर (प.पू. दास महाराज) इस अरण्य में उपासना हेतु पहुंचे । मुसलाधार वर्षा, आकाशीय बिजली की कडकडाहट और घना अरण्य इनमें से कुछ भी उन्हें इस दृढनिश्‍चय से रोक नहीं सकते । यहां उन्होंने एक पर्णकुटी में साधना आरंभ की । इस घनघोर अरण्य को उन्होंने ‘गौतमारण्य’ नाम दिया । उनके साथ थीं केवल श्रीरामपंचायतन की संगेमरमर की मूर्तियां और अंतकरण में अखंड रामनाम का जाप !

 

२. प.पू. भगवानदास महाराज द्वारा १३ करोड श्रीरामनामजाप की पूर्ति

प.पू. भगवानदास महाराज ने बचपन से ही कठोर साधना की थी । उनका रूप विलक्षण था । उनके नेत्रों में प्रखर तेज था । उनकी श्‍वेत दाडी, उसी प्रकार का केशसंभार, श्‍वेत वस्र और गले में रुद्राक्ष की माला धारण किया हुआ दिव्य रूप देखकर उन्हें देखनेवाले के हाथ अपनेआप जुड जाते थे और उनके सामने नतमस्तक होने का मन करता था । उन्हों ने १३ करोड श्रीरामनामजप पूर्ण किया था । एक धनी परिवार में जन्मीं प.पू. माताजी अपने पति प.पू. भगवानदास महाराज के साथ गृहस्थाश्रमी जीवन व्यतीत कर रही थीं । उनका जीवन वैराग्य, त्याग और सभी के प्रति प्रेमभाव का मूर्तिमंत रूप था ! उनका जीवन श्रीरामस्वरूप बन गया था ।

 

३. ईश्‍वर से विलक्षणरूप से जुडा हुआ रघुवीर !

प.पू. माताजी का यह बालहठ था कि निरंतर खडे रहकर श्रीरामजी के चरण दुख रहे होंगे । आप उन्हें नीचे कब बिठाएंगे ?’ उन्हें श्रीरामजी के कष्ट देखकर रोना आता था । यहां के मंदिर में श्रीराम एवं सीतामाता की सिंहासनपर विराजमान मूर्तियां हैं । ईश्‍वर के साथ इस प्रकार से विलक्षण पद्धति से जुडा हुआ विलक्षण व्यक्तित्व हैं प.पू. रघुवीर महाराज (प.पू. दास महाराज) !

 

४. प.पू. भगवानदास महाराज का महानिर्वाण !

प.पू. भगवानदास महाराज का शरीर थक चुका था । वाल्मीकि रामायण, दासबोध का वाचन और रामनाम की अखंड साधना करते हुए ही श्रीराम मंदिर स्थापना का निदिध्यास लेते हुए वर्ष १९६५ में प.पू. भगवानदास महाराज का महानिर्वाण हुआ । उसके उपरांत प.पू. माताजी एवं श्री. रघुवीर महाराज (प.पू. दास महाराज) ने वहीं निवास किया । इस स्थिति में रामजी की कृपा, प.पू. भगवानदास महाराज की कृपा और पुण्य के कारण उनके भविष्य ने नया मोड लिया । उनके द्वारा श्रीरामनाम और जपजाप्य की नित्य उपासना आरंभ हुई । प.पू. रुक्मिणीमाताजी ने पानवळ में वर्ष १९७२ में श्रीरामपंचायतन की स्थापना कर प.पू. भगवानदास महाराज की अंतिम इच्छा पूर्ण की ।

– श्रीमती शशिकला महादेव सरपोतदार (पू. (श्रीमती) लक्ष्मी (माई) नाईक की बहन), पुणे (३१.५.२०१७)

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