पूर्ण एवं अर्धपीठ तथा उनके कार्य

१. पूर्णपीठ

इस प्रकारके पीठ, इच्छा, क्रिया अथवा ज्ञानमेंसे किसी एकके बलपर कार्य करते हैं । ये पीठ माहूर, तुळजापुर एवं कोल्हापुरमें स्थित हैं ।

१ अ. कार्य : क्षात्रधर्म, ब्राह्मधर्म एवं राजधर्मके लिए पूरक तथा पोषक बल दान करना

 

२. अर्धपीठ

इस प्रकारके पीठ, इच्छा, क्रिया एवं ज्ञान के संयोगी, अर्थात मिश्रित शक्तिके बलपर कार्य करते हैं । जहां पूर्णपीठों की शक्तियोंका संगम होता है, ऐसे पीठ वणी (सप्तशृंगी) को अर्धपीठ अर्थात शेष मात्रा कहते हैं ।

२ अ. कार्य : लय करना

 

३. महाराष्ट्रके शक्तिपीठ

३ अ. महाराष्ट्रके शक्तिपीठोंकी देवी तथा पीठोंके तीक, कार्य एवं कार्यका स्तर

देवीका नाम प्रतीक कार्य कार्यका स्तर
१. कोल्हापुरकी श्री महालक्ष्मी (टिप्पणी १) राजतेज देहमें ज्ञानशक्तिके बलपर पितृतंत्ररूपी राजधर्मका मुकुट चढाकर इच्छाकी निर्मिति एवं क्रियाकी जागृति, इन क्रियाओं को आवश्यकतानुसार गति दान कर उनमें निरंतरता बनाए रखनेवाली ज्ञानशक्ति (पूर्ण पीठ)
२. तुळजापुरकी श्री भवानी ब्राह्मतेज देहके सर्व कोषोंको शुद्ध कर देहमें शक्तिका घनीकरण करनेवाली क्रियाशक्ति (पूर्ण पीठ)
३. माहूरकी श्री रेणूका क्षात्रतेज देहके रज-तम कणोंको उच्चाटन कर इच्छाशक्तिके बलपर कार्यकी इच्छा मनमें उत्पन्न करनेवाली इच्छाशक्ति (पूर्ण पीठ)
४. वणीकी श्री सप्तशृंगी संयोगी तेज चैतन्य दान करनेवाली एवं तीनों शक्तिपीठोंकी शक्तितरंगोंका नियंत्रण कर उनका शक्तिस्रोत
आवश्यकताके अनुसार संबंधित दिशाकी ओर मोडनेवाली
इच्छा, क्रिया अथवा ज्ञान मिश्रित संयोगी शक्ति (अर्ध पीठ)

 

महाराष्ट्रमें स्थित ये साढेतीन शक्तिपीठ अपनी संतुलित लयबद्ध ऊर्जाके बलपर संपूर्ण भारतकी आध्यात्मिक स्थिति नियंत्रणमें रखकर इसका अनिष्ट शक्तियोंके कोपसे रक्षा कर रहे हैं । इसीलिए गत अनेक दशकोंसे अनेक कारसे हुए अनिष्ट शक्तियोंके खर आक्रमणोंमें भी भारत संभला हुआ है ।

महाराष्ट्रमें घनीभूत इन स्वयंभू साढेतीन शक्तिस्रोतोंके कार्यरत वाहके परिणामस्वरूप महाराष्ट्रको अनेक संतोंकी परंपरा प्राप्त है तथा वहां आज भी सनातन हिन्दू धर्म बचा हुआ है । महालक्ष्मी पीठ अपने सर्व ओर लट्टूसमान वलयांकित ज्ञानशक्तिका भ्रमण दर्शित करता है । भवानी पीठ अपने केंद्रबिंदुसे क्रियाशक्तिका पुंज क्षेपित करता है, तो रेणुका पीठ क्षात्रतेजसे आवेशित किरणोंका क्षेपण करता है । महाराष्ट्रमें इन तीनों शक्तिपीठोंका स्थान अनुक्रमसे इच्छा, क्रिया एवं ज्ञान शक्तियोंके अनुसार है तथा इनके सिरपर तीनों शक्तिपीठोंका मुकुटमणि निर्गुण शक्तिपीठ, वणीका सप्तशृंगी पीठ है । प्रत्यक्षमें भी अपनी आकृतिसे चारों स्थान महाराष्ट्रके मानचित्रपर मुकुटसमान आकृति दर्शाते हैं । ऐसी है इन शक्तिपीठोंकी परस्पर संतुलित संबंध बनाकर कार्य करनेकी शक्ति महिमा ।

– एक विद्वान [(पू.) श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, (९.९.२००६),सायं. ६.१६]
स्रोत : शक्तिकी उपासना

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