केरल के श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर में अर्पण किया जानेवाला तथा सहस्र वर्ष से भी अधिक परंपरावाला ओणविल्लू

श्री महालक्ष्मीदेवीसहित तथा शेषनागपर लेटे हुए भगवान श्रीविष्णु का चित्र अंकित ओणविल्लू !
‘ओणविल्लू’ बनाने की परंपरा प्राप्त परिवार में से श्री. आर. बीनकुमार (बाईं ओर से दूसरे) तथा उनके सहयोगी

 

१. ‘ओणविल्लू’ क्या होता है ?

‘ओणविल्लू’ शब्द मलयालम् भाषा के ‘ओणम्’ एवं ‘विल्ल’ इन २ शब्दों के संयोग से बना है । भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को वामन एकादशी अथवा वामन जयंती कहा जाता है । इस दिन केरल में ओणम् नामक त्योहार मनाया जाता है । ‘विल्ल’ शब्द का अर्थ ‘धनुष्य’ है । अवतार एवं देवता के चित्र अंकित (विल्ल) ओणम् के दिन केरल के थिरूवनंतपुरम् के सुप्रसिद्ध श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर में अर्पण किए जाते हैं । इन धनुष्यों को ओणविल्लू कहते हैं ।

 

२. ‘ओणविल्लू’ का इतिहास

ओणविल्लू बनाने की परंपरा सहस्रों वर्षों से भी अधिक पुरानी है । एक दंतकथा के अनुसार बलीराजा को श्रीविष्णुजी ने वामनावतार लेकर पाताल भेज दिया । तब बलीराजा ने श्रीविष्णुजी से यह प्रार्थना की, ‘‘प्रतिवर्ष मुझे आपके दर्शन हों’’ इसपर श्रीविष्णुजी ने उन्हें यह आशीर्वाद दिया कि प्रतिवर्ष तुम्हें पृथ्वीपर मेरे अवतारों का चित्ररूप में दर्शन होंगे । बलीराजा को दर्शन करना संभव हो; इसके लिए श्री विश्‍वकर्मा ने कदंब वृक्ष की लकडीपर श्रीविष्णुजी के अवतार के चित्र बनाए । यही है ओणविल्लू ! उसके पश्‍चात प्रतिवर्ष ओणम् के दिन इसी प्रकार से ओणविल्लू बनानकार उसे श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर में रखने की परंपरा आरंभ हुई । (टिप्पणी) विश्‍वकर्मा के वंशज राज्य के थिरूवनंतपुरम् के श्री. आर्. बीनकुमार तथा उनके परिवारजन इस प्राचीन परंपरा का पालन कर रहे हैं ।

टिप्पणी : (संदर्भ : ओणविल्लू जानकारीपत्रक)

 

३. ‘ओणविल्लू’ बनानेवाले श्री. आर्. बीनकुमार एवं उनके परिवारजनों की जानकारी

वर्ष १७२९ में मार्तंड वर्मा जब त्रावणकार के राजा बने, तब उन्होंने श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का नवीकरण किया । (टिप्पणी) उस समय मंदिर में लकडी की कलाकारी करने हेतु तमिलनाडू के थिरूवट्टार’ से श्री. आर्. बीनकुमार के पूर्वज त्रावणकोर जाकर बंस गए। तब से लेकर श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर में जो ओणविल्लू दिए जाते हैं, उन्हें बनाने की सेवा श्री. आर्. बीनकुमार के परिवार के पास है ।

टिप्पणी : (संदर्भ : : http://spst.in/temple-history/ )

 

४. ‘ओणविल्लू’ बनाने की प्रक्रिया

ओणविल्लू बनाना एक पारंपरिक कला है । इस सेवा में लकडी को काटना, उसे रंगाना, उसपर चित्र बनाना आदि विविध चरण तथा उनके क्रम आदि के संदर्भ में परंपरागत आचारों का अचूकता से पालन किया जाता है । ओणविल्लू बनाने के चरण निम्न प्रकार से हैं –

४ अ. धनुष्य के आकार की लकडी काटकर उसे लाल रंग से रंगाना

कदंब वृक्ष की सुखाई गई लकडी को धनुष्य के आकार में काटा जाता है । इसकी लंबाई एक से १.२५ मीटर और चौडाई १० से १५ सें.मी. होती है । धनुष्य के आकारवाली इस लकडी को लाल रंग दिया जाता है ।

४ आ. देवता के चित्र का रेखांकन कर उसे रंगाना

लाल रंग से रंगाई गई लकडी के धनुष्यपर लेखनी से देवता का चित्र बनाया जाता है । उसके पश्‍चात उसे रंगाया जाता है ।

४ इ. देवताओं के मुखपर के भाव दिखाना

चित्र में देवताएं, उनके वाहन आदि विविध घटनों की रेखाकृतियां काले रंग से बनाते हैं । अंततः देवता के मुखमंडलपर नेत्र, मुख, नाक आदि के द्वारा उनपर भाव दिखाए जाते हैं ।

४ ई. झब्बों से सजाना

चित्रकाम पूर्ण होने के पश्‍चात ओणविल्लू के दोनों अग्रों को लाल रंग के धागे से बनाए गए झब्बे बांधे जाते हैं ।

 

५. ‘ओणविल्लू’ की तथा उसे बनाने की प्रक्रिया में निहित कुछ विशेषताएं

५ अ. प्राकृतिक रंगों का उपयोग करना तथा उन रंगों का कुछ विशिष्ट अर्थ होना

ओणविल्लू के लिए प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है । इसमें लाल, पीला, हरा, नीला, काला एवं श्‍वेत इन रंगों का प्रमुखता से उपयोग किया जाता है । चित्रों में उपयोग किए गए रंग तथा उनसे संबंधित भाव निम्नांकित प्रकार से हैं –

रंग भाव
१. लाल धैर्य एवं स्नेह
२. पीला ज्ञान
३. हरा विशालता
४. नीला इच्छाशक्ति
५. काला कठोरता
६. श्‍वेत पवित्रता

 

५ आ. ‘ओणविल्लू’ का प्रकार एवं श्रद्धालुओं की कामना

परंपरा के अनुसार ६ प्रकार की चित्रवाले ओणविल्लू बनाए जाते हैं । ओणम् के दिन श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर परिसर के उस संबंधित मंदिर में इन ओणविल्लूओं को रखा जाता है, उदा. श्री अनंतशयनम् का चित्र अंकित ओणविल्लू ओणम् के दिन श्री पद्मनाभस्वामी के मुख्य मंदिर में, श्री विनायक के चित्रवाले ओणविल्लू श्री गणेशजी करणे मंदिर में इत्यादि । ये ओणविल्लू क्रय के लिए भी उपलब्ध होते हैं । सामान्यरूप से श्रद्धालु उनकी कामनापूर्ति हेतु पूरक ओणविल्लू का क्रय करते हैं । ओणविल्लू, उसपर अंकित देवता का चित्र तथा उससे संबंधित श्रद्धालुओं की कामनाओं की जानकारी निम्नांकित सारणी में दी गई है ।

ओणविल्लू का प्रकार देवता का चित्र श्रद्धालुओं की कामना
१. अनंतशयनम विल्लू श्रीपद्मनाभस्वामी सभी प्रकार की समृद्धि एवं ईश्‍वरीय कृपा
२. दशावतारम् विल्लू श्रीविष्णुजी के १० अवतार शत्रुओं से रक्षा
३. श्रीकृष्ण लीला विल्लू श्रीकृष्णजी के जीवन की विविध लीलाएं निःसंतान दंपति को संतानप्राप्ति
४. श्रीरामपट्टाभिषेकम् विल्लू सीतामातासहित सिंहासनाधिष्ठ श्रीरामजी वैवाहिक सुख की प्राप्ति
५. श्रीधर्मशास्था विल्लू श्रीअय्यप्पन् शनि ग्रहपीडादोष का निवारण
६. विनायकन् विल्लू श्री गणेशजी सभी संकटों से मुक्ति

५ इ. ओणविल्लू के दोनों अग्रों को बांधे जानेवाले झब्बों को
कारागृह के कैदियों द्वारा पापक्षालन हेतु सेवा के रूप में बनाए जाना

ओणविल्लू के दोनों अग्रों को लाल रंग के धागों से बनाए जानेवाले झब्बे कारागृह के कैदी अपने पापक्षालन हेतु सेवा के रूप में बनाते हैं । जो कैदी अपने पापक्षालन हेतु ओणविल्लू के झब्बे बनाने की सेवा बनाने के इच्छुक होते हैं, उन्हें इस सेवा के लिए आवश्यक आचरण के नियमों का कठोरता से पालन करना पडता है । ये कैदी नियमों का कठोरता से पालन कर भावपूर्ण सेवा करते हैं, यह अभीतक का अनुभव है ।

५ ई. ‘ओणविल्लू’ पर अंकित देवताओं के चित्र में मुखमंडलोंपर
कौनसे भाव होने चाहिएं ?, यह चित्रकार को स्वप्नदृष्टांत के माध्यम से ज्ञात होना

ओणविल्लू बनाने की प्रक्रिया में सबसे अंत में देवता के मुखमंडलपर विद्यमान भाव रेखांकित किए जाते हैं । यह सेवा श्री. आर्. बीनकुमार के भाई श्री. सुदर्शन करते हैं । ओणविल्लूपर हाथ के चित्रकाम किया जाता है; इसलिए कोई भी २ ओणविल्लू अचूकता के साथ एकसमान नहीं होते । उनमें अंकित देवताओं के चित्रों में मुखोंपर विद्यमान भाव आदि में थोडा तो अंतर होता ही है । देवताओं के मुखपर कौनसे भाव दिखाने हैं, यह श्री. सुदर्शन को रात में स्वप्नदृष्टांत के माध्यम से ज्ञात होता है और उसके अनुसार वे दूसरे दिन सुबह देवता के मुखमंडल का चित्रकाम पूर्ण करते हैं ।

५ उ. ओणविल्लू बनाना एक कठोर व्रत होना तथा ईश्‍वर द्वारा ही इस सेव को करवाया जाना

श्री. आर्. बीनकुमार, उनके भाई और परिवारजन ओणविल्लू बनाने की सेवा करते समय व्रतस्थ रहकर पारंपरिक नियमों का कठोरता से पालन करते हैं । वे अपने घर के निकट के मंदिर में बैठकर यह सेवा करते हैं । इस सेवा में उनके संपूर्ण परिवार का सहभाग होता है । ओणविल्लू बनाने की सेवा में कोई त्रुटि रह जाती है, तो ईश्‍वर विविध माध्यमों से उन्हें उसका भान करवाते हैं और उन्हें आगे क्या करना है, इसके भी संकेत मिलते हैं । इस परिवार को ऐसी कई अनुभूतियां प्राप्त हैं, जिनमें से कुछ निम्नांकित अनुभूतियां हैं ।

५ उ १. ईश्‍वर द्वारा व्रताचरण के भंग होने का भान काले नाग के माध्यम से करवा देना

श्री. बीनकुमार को उनके पिता ने हाल ही में ओणविल्लू बनाने की सेवा सिखाई थी । इस सेवा की कालावधि में एक दिन उन्होंने एक विवाह समारोह में अज्ञानवश मांसाहारी पदार्थ खा लिया । उसके दूसरे दिन जब वे चित्रकाम कर रहे थे, तब उनके घर के खपडे से काले नाग का एक बच्चा उनके हाथपर गिरा और उसने उनके हाथ में जो ओणविल्लू था, उसे कुंडली मारकर अपना फन निकाला । तब श्री. बीनकुमार को अपनी लापरवाही के कारण व्रतभंग होने का भान हुआ । तब उन्होंने मन ही मन श्री पद्मनाभस्वामीजी से क्षमायाचना की, तब वह नाग का बच्चा तुरंत ही ओणविल्लू से नीचे उतरकर वहां से चला गया ।

५ उ २. सभी श्रद्धालुओं के लिए सस्ता हो; इस प्रकार का छोटा ओणविल्लू बनाने का संकेत मिलना

एक बार श्री. बीनकुमार प्रतिदिन की भांति श्री पद्मनाभस्वामी के दर्शन कर मंदिर से बाहर निकल रहे थे । तब वे ‘ओणविल्लू सभी स्तर के श्रद्धालुओं तक कैसे पहुंचेंगे ?’, इसका चिंतन कर रहे थे । तब पैदल चलते समय उन्हें एक साधु का धक्का लगा । तब उन्होंने रुककर साधु से क्षमा मांगी । वह साधु उन्हें ‘तुम छाती के जितना ओणविल्लू बनाओ’, ऐसा कहते हुए वहां से चला गया । उसके पश्‍चात उन्हें वह साधु कभी दिखाई नहीं दिया; किंतु साधु द्वारा सुझाए जाने के अनुसार उन्होंने लगभग ३० से.मी. लंबाईवाला ओणविल्लू बनाना आरंभ किया । उसका मूल्य भी सामान्य ओणविल्लू की अपेक्षा अल्प था । इस ओणविल्लू का श्रद्धालुओं द्वारा अच्छा प्रत्युत्तर मिला । उससे पहले उनके द्वारा बनाया जानेवाला ओणविल्लू १ से १.२५ मीटर लंबा और १० से १५ सें.मी. चौडा था । उसका मूल्य २५०० रुपए अथवा उससे कुछ अधिक था; इसलिए सभी श्रद्धालुओं को उसका विक्रय करना संभव नहीं होता था ।

५ उ ३. श्री. बीनकुमार की सेवा अन्य व्यावसायियों को दी जाना; परंतु उनके द्वारा बनाए गए ओणविल्लू की त्रुटियों को मंदिर व्यवस्थापन के ध्यान में लाकर देने के पश्‍चात ओणविल्लू बनाने की सेवा पुनः श्री. बीनकुमार के परिवार के पास ही आना

ओणविल्लू  बनाने की प्रक्रिया में जो व्रतस्थता और अन्य नियम होते हैं, उसके कारण वर्ष में कुछ विशिष्ट संख्या में ही ओणविल्लू बनाए जा सकते हैं । श्रद्धालुओं द्वारा ओणविल्लू  की मांग को देखते हुए मंदिर व्यवस्थापकों में से कुछ लोगों को ऐसा लगने लगा कि अधिक संख्या में ओणविल्लू बनने चाहिएं; किंतु श्री. बीनकुमार ने परंपरा से चले आ रहे नियमों को बाजू में रखकर व्यावसायिक पद्धति से ओणविल्लू बनाना अस्वीकार किया । इसके कारण उनके परिवार की इस सेवा को अन्य व्यावसायिक कलाकारों को दी गई । उनके द्वारा बनाए गए ओणविल्लू कई त्रुटियां रह जाती थीं । ओणविल्लू का क्रय करनेवाले श्रद्धालु इन त्रुटियों की ओर व्यवस्थापन का ध्यान आकर्षित करने लगे । श्रद्धालुओं की बढती शिकायतों के कारण मंदिर व्यवस्थापन के अधिकारियों को अपनी चूक ध्यान में आई और उन्होंने ओणविल्लू बनाने की सेवा पुनः श्री. बीनकुमार के परिवार को सौंपी । इस प्रकार ईश्‍वर ने श्री. बिनकुमार को इस सेवा से वंचित नहीं होने दिया ।

– कु. प्रियांका विजय लोटलीकर एवं श्री. रूपेश लक्ष्मण रेडकर, महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय, गोवा
स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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