भौतिक शास्त्र के आधुनिक वैज्ञानिकों के लिए शिवजी के नृत्य का अर्थ है ‘सबएटॉमिक’ कणों का नृत्य !

यूरोप के अत्याधुनिक वैज्ञानिक शोध संस्था के सामने
स्थित नटराज की मूर्ति के कारण स्पष्ट हुआ अणुरेणुओं का तांडव !

मूर्तिपूजा के विषय पर हिन्दुओंका उपहास करनेवाले और हिन्दू धर्म को सडा-गला कहकर ताना मारनेवाले तथाकथित बुद्धिवादी, विज्ञानवादी और नास्तिकतावादियों के लिए यह लेख एक तमाचा ही हैं ! यूरोप के वैज्ञानिकों को हिन्दुओंकी मूर्तियों का वैज्ञानिक रहस्य स्पष्ट होता हैं; किंतु खेद यह कि जन्महिन्दुओंको वैसी जिज्ञासा नहीं !

‘जिनेवा, स्विट्जर्लैंड के ‘दी यूरोपियन सेंटर फॉर रिसर्च इन पार्टिकल फिजिक्स’ के (‘सर्न’ के) मुख्य भवन के बाहर ब्रॉन्ज की एक बहुत बडी नटराज की मूर्ति हैं । भारत शासन ने वह भेंटस्वरूप इस संस्था को प्रदान की हैं । विश्‍व की उत्पत्ति का रहस्य ढूंढनेवाला वैज्ञानिक शोध जहां हो रहा हैं, वहां नटराज की मूर्ति का क्या काम, ऐसा प्रश्‍न स्वाभाविक ही किसी को भी आएगा । उसका कारण विशद करनेवाला यह लेख…

 

१. ‘सबएटॉमिक’ कणों के वैश्‍विक नृत्य के लिए शिवशंकर के नृत्य के
रूपक का प्रयोग करने हेतु भारत सरकार की ओर से नटराज की मूर्ति ‘सर्न’ को भेंट !

‘दी यूरोपियन सेंटर फॉर रिसर्चइन पार्टिकल फिजिक्स’ (सर्न) के बाहर की ब्रॉन्ज की नटराज की मूर्ति ताम्रयुग के किसी शिल्पकार की बनाई हुई नहीं हैं, अपितु आधुनिक समय के शिल्पकारोंने कलात्मक रीति से बनाई हैं । यह मूर्ति भारत शासन की ओर से ‘सर्न’ को उपहार के रूप में दी गई हैं ।

१८ जून २००४ को इस दो मीटर ऊंची नटराज की मूर्ति का अनावरण जिनेवा में भारत के राजदूत के.एम. चंद्रशेखरजी के हाथों हुआ । उस समय भारत के विख्यात अणुवैज्ञानिक डॉ. अनिल काकोडकरजी एवं ‘सर्न’ के संचालक डॉ. रॉबर्ट आयमारजी उपस्थित थे । साथ ही ‘सर्न’ में कार्यरत कई वैज्ञानिक भी वहां उपस्थित थे । भारत ने‘सर्न’ के साथ अपने घनिष्ठ संबंध के प्रतीक स्वरूप यह मूर्ति उपहार में दी हैं ।

नटराज की ही यह मूर्ति उपहारस्वरूप देने में भारत की विशिष्ट भूमिका हैं । नटराज का अर्थ है शिवशंकर की नृत्यमुद्रा । भगवान शिवशंकरजी को हम नृत्य और कला के देवता के रूप में ही जानते हैं । ‘सबएटॉमिक’ कणों के वैश्‍विक नृत्य के लिए शिवशंकर के नृत्य के रूपक का जो प्रयोग किया जाता है, उसका गहन अर्थ ध्यान में रख अत्यंत विचारपूर्वक यह उपहार भारत सरकार ने दिया हैं ।

 

२. शिवशंकरजी का वैश्‍विक नृत्य, ‘द टाओ ऑफ
फिजिक्स’ नामक अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त ग्रंथ की मध्यवर्ती संकल्पना !

सर्न के भौतिकशास्त्र के वैज्ञानिक इन कणों के विषय में ही शोधकार्य कर रहे हैं । शिवशंकरजी का नृत्य एवं सबएटॉमिक कणों के नर्तन की तुलना प्रथम फिट्जॉफ काप्रा नामक लेखक ने अपने ‘द डान्स ऑफ शिवा : द हिन्दू व्यू ऑफ मैटर इन द लाइट ऑफ मॉडर्न फिजिक्स’ इस लेख में की हैं । यह लेख १९७२ में ‘मेन करंट्स इन मॉडर्न थॉट’ में प्रकाशित हुआ था ।

‘शिवशंकरजी का वैश्‍विक नृत्य’, तत्पश्‍चात यह विषय काप्राजी के अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त ‘द टाओ ऑफ फिजिक्स’ इस ग्रंथ की मध्यवर्ती संकल्पना बना । यह ग्रंथ वर्ष १९७५ में प्रकाशित हुआ और तत्पश्‍चात अब तक उसके अनेक संस्करण प्रकाशित हो रहे हैं । इस ग्रंथ के ४० संस्करण अभी तक प्रकाशित हुए हैं। ‘सर्न’ प्रयोगशाला के बाहर स्थापित नटराज की मूर्ति के पास एक विशेष फलक लगाया गया हैं ।

उसपर ‘द टाओ ऑफ फिजिक्स’, इस ग्रंथ के शिवशंकरजी के वैश्‍विक नृत्य संबंधी उल्लेख उद्धृत किए हैं । आनंद के. कुमारस्वामीजी ने अपने ग्रंथ में कहा हैं, ‘‘नटराज की तालबद्ध मूर्ति का अद्वितीय लावण्य, आकर्षकता एवं शक्ति के परे जाकर देखने पर ईश्‍वर के अस्तित्व की स्पष्ट कल्पना होती हैं, जिसका किसी भी धर्म अथवा कला को अभिमान होना चाहिए ।’’

 

३. निर्मिति और संहार का चक्र निर्जीवों में भी कार्यरत !

कुछ समय पूर्वही फिट्जॉफ काप्राजी ने ऐसा मत व्यक्त किया हैं कि ‘आधुनिक भौतिकशास्त्र ने यह दिखा दिया हैं कि निर्मिति और संहार का चक्र केवल ऋतुओं अथवा जन्म-मृत्युके चक्र से ही व्यक्त होता हैं ऐसा नहीं हैं, अपितु निर्जीवों में भी वही तत्त्व हैं । इसलिए आधुनिक भौतिक शास्त्र के वैज्ञानिकों के लिए अब शिवशंकरजी का नृत्य सबएटॉमिक कणों का नृत्य हैं ।

सहस्रों वर्ष पूर्व भारतीय कलाकारों ने नृत्य करनेवाले शिवजी की सुंदर मूर्तियां ब्रॉन्ज से बनाई । वर्तमान समय में भौतिक शास्त्र के वैज्ञानिकों ने उस वैश्‍विक नृत्य का चित्र अत्याधुनिक तकनीकी सहायता से हमारे सामने प्रस्तुत किया हैं । इस प्रकार से वैश्‍विक नृत्य के रूपक के कारण प्राचीन पुराणकथाएं, धर्म, कला और आधुनिक भौतिक शास्त्र का एकीकरण हुआ हैं ।’’

 

४. नटराज मूर्ति अर्थात उत्पत्ति-स्थिति-लय का स्रोत एक ही होने का संकेत

सर्न की प्रयोगशाला में ‘देवकणों’ का (गॉड पार्टिकल्स का) अस्तित्व सिद्ध हुआ हैं । इन देवकणों के अस्तित्व से ही उत्पत्ति, स्थिति तथा लय का स्रोत एक ही हैं, ऐसे संकेत मिल रहे हैं । यही सूत्र बडे कलात्मक ढंग से नटराज की इस मूर्ति से प्रकट होता हैं । इसलिए सर्न के मुख्यालय के बाहर स्थित नटराज की मूर्ति का अस्तित्व अर्थपूर्ण बन गया हैं ।

 

५. फिट्जॉफ का प्राजी द्वारा कणों की निर्मिति एवं लय की प्रक्रिया को नृत्य की उपमा !

नटराजजी के तांडव नृत्य का संबंध फिट्जॉफ काप्राजी ने मूल कणों से कैसे जोडा हैं, यह देखते हैं । हमारे आसपास के सभी पदार्थ तथा उनमें स्थित अणु, केवल तीन बडे कणों से बने होते हैं – प्रोटॉन, इलेक्ट्रॉन एवं न्यूट्रॉन । इसके अतिरिक्त चौथा भी कण हैं, वह हैं फोटॉन । वह भाररहित हैं तथा विद्युतचुंबकीय प्रारण की ईकाई हैं । इनमें से प्रोटॉन, इलेक्ट्रॉन और फोटॉन स्थिर कण हैं । जब तक दूसरे कणों से टकराकर उनका नाश नहीं होता, तब तक वे असीमित समय तक वैसे ही रहेंगे ।

न्यूट्रॉन कणों की कथा इसके विपरीत हैं । किसी से टकराए बिना ही स्वयंप्रेरणा से उनके टुकडे-टुकडे होते हैं अर्थात वे ‘डिसइंटिग्रेट’ होते हैं । इस ‘डिसइंटिग्रेशन’ को ‘बिटा डीके’ कहते हैं । यह विषेश प्रकार के अणुविकिरण की (रेडियो एक्टिविटी की) एक प्रक्रिया हैं । इस प्रक्रिया में न्यूट्रॉन का रूपांतरण प्रोटॉन में होता हैं । साथ ही उससे एक इलेक्ट्रॉन और एक भाररहित कण की निर्मिति होती हैं । उसे ‘न्युट्रिनो’ कहते हैं । इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन के समान न्युट्रिनो भी एक स्थिर कण हैं ।

सभी मूल कण अस्थिर होते हैं । कुछ ही समय में उनका ह्रास होता हैं । ऐसे अस्थिर कणों का अध्ययन करने में धन का अत्यधिक व्यय होता हैं । ‘पार्टिकल एक्सिलरेटर’ जैसे उपकरण में कणों को जानबूझकर टकराकर उनकी जानकारी ‘बबल चेंबर’ जैसे उपकरण में ली जाती हैं । कणों के इस निर्मिति एवं लय के खेल को कईयोंने नृत्य की उपमा दी हैं ।

 

६. गतिविधियां, लय एवं ताल; पदार्थ के इन
महत्त्वपूर्ण गुणधर्मों का आधुनिक भौतिक शास्त्र द्वारा स्वीकार

केनेथ फोर्ड नामक लेखक ने उसके ‘द वर्ल्ड ऑफ एलिमेंटरी पार्टिकल्स’ ग्रंथ में एक ऐसे ही जटिल, किन्तु वास्तविक रेखाचित्र के विषय में कहा हैं कि प्रत्येक प्रोटॉन कभी न कभी ऐसी निर्मिति तथा संहार का नृत्याविष्कार दिखाता ही हैं । ‘ऊर्जा का नृत्य’ अथवा ‘निर्मिति और संहार का नृत्य’ ऐसे शब्दों का प्रयोग करनेवाला फोर्ड अकेला ही भौतिक शास्त्र वैज्ञानिक नहीं हैं ।

फिट्जॉॅफ काप्राजी के कथन के अनुसार कणों के विश्‍व से ऊर्जा प्रवाहित होते समय का चित्र आंखों के सामने आनेपर किसी के भी मन में लय-तालयुक्त नृत्य ही आंखों के सामने आएगा । आधुनिक भौतिक शास्त्र ने हमें यही सिखाया हैं कि गतिविधियां, लय एवं ताल; पदार्थ के महत्त्वपूर्ण गुणधर्म हैं । पृथ्वी पर हो अथवा अवकाश में – पदार्थ नित्य वैश्‍विक नृत्य में मग्न रहते हैं ।

 

७. वैश्‍विक नृत्य का रूपक, विज्ञान और धर्म का एकत्रीकरण

भूगर्भशास्त्र में भी इसका उदाहरण हैं । पृथ्वी के इतिहास के २५ लक्ष वर्षो में १७ बार हिमयुग आए थे । प्रत्येक बार पृथ्वी पर निर्मिति और लय के उतने ही आवर्तन हुए हैं । हिन्दू मान्यता के अनुसार पूरा जीवन एक बडे वैश्‍विक प्रक्रिया का अर्थात निर्मिति और संहार के तालबद्ध प्रक्रिया का भाग होता हैं । शिवजी का तांडव नृत्य यही दर्शाता हैं । वह केवल वैश्‍विक निर्मिति और संहार का ही नहीं, अपितु जन्म-मृत्युका भी चक्र दर्शाता हैं । इस विश्‍व के असंख्य सजीवों तथा निर्जीवों में नित्य परिवर्तन होता रहता हैं अर्थात वह भ्रामक हैं ।

‘‘बबल चेंबर’ में दिखनेवाले पैटर्न, जो अखंड चल रहे वैश्‍विक नृत्य के साक्षी हैं, वह हैं हमारी आंख को न दिखनेवाला शिवजी के नृत्य का आधुनिक तकनीक ने दिखाया रूप ! वैश्‍विक नृत्य का रूपक, प्राचीन पुराणकथाएं और धर्म के आधार पर जीवित कला एवं आधुनिक विज्ञान का एकीकरण हैं ।’

– लीना दामले (मराठी दैनिक लोकसत्ता, १४.८.२०१६)

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