साधकों को ज्ञान देने की तडपवाले जगद्गुरु योगऋषी डॉ. स्वामी सत्यप्रकाशजी !

जगद्गुरु योगऋषी डॉ. स्वामी सत्यप्रकाश एवं उनकी शिष्या डॉ. प्रीती मिश्रा का जब रामनाथी आश्रम में निवास था, तब साधिका को प्रतीत उनकी गुणविशेषताएं तथा जगद्गुरु डॉ. स्वामी सत्य प्रकाश का परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति के भाव के संदर्भ में सूत्र यहां दिए गए हैं –

जगद्गुरु योगऋषी डॉ. स्वामी सत्य प्रकाश

 

१. विनम्रता और परेच्छा से आचरण करना

स्वामीजी ने कहा कि मैं यहां सीखने के लिए आया हूं । स्वामीजी बडे ज्ञानी होते हुए भी सदैव विनम्रता के साथ और परेच्छा से आचरण करते हैं । वे अपने विचार न बताकर ‘आप जैसा कहेंगे, वैसे मैं करूंगा’, ऐसा कहते हैं ।

– कु. तेजल पात्रीकर

 

२. प्रेमभाव

उन्हें भोजन परोसनेवाली एक साधिका शारीरिकरूप से अस्वस्थ है, यह ज्ञात होनेपर उन्होंने उस साधिका के संदर्भ में बहुत ही प्रेमभाव से पूछताछ की और उन्होंने साधिका को उसके द्वारा ले जा रही औषधियों के संदर्भ में पूछा ।

 

३. साधकों को ज्ञान प्रदान करने की तडप

अ. रामनाथी आश्रम में स्वामीजी ने योग, संगीत आदि विषयोंपर मार्गदर्शन किया । उन्हों ने किस विषयपर मार्गदर्शन करना है, यह स्वयं सुनिश्‍चित न कर उसे संबंधित साधकों के पूछ लिया । स्वामीजी ने हमें बताया कि आपको जिन विषयों का मार्गदर्शन आवश्यक है, वह मुझे बताईए; क्योंकि मुझे जो बतानेयोग्य लगेगा, वह भले कितना भी अच्छा हो; परंतु उससे आपको कोई लाभ नहीं होता हो, तो उसे आपको बताना उचित नहीं है ।

आ. स्वामीजी योग, संगीत आदि विषयों का मार्गदर्शन करने से पहले विषय का अध्ययन करते हैं । वे निरंतर लेखन करते रहते हैं ।

इ. स्वामीजी ने साधकों का निम्नांकित विषयोंपर मार्गदर्शन किया ।

१. कुंडलिनी, सप्तचक्र, उनके बीजमंत्र एवं संगीत के सप्तसूर

२. संगीत चिकित्सा के अंतर्गत जाए जानेवाले विविध राग एवं स्वर

३. योग अध्यात्म एवं संगीत

४. वेद एवं संगीत

 

४. स्वभावदोष एवं अहंनिर्मूलन प्रक्रिया के संदर्भ में जिज्ञासा के साथ जानकर लेना

साधक आश्रम के फलकपर अपनी चूकें लिखते हैं । स्वामीजी ने इन फलकों को पढकर संबंधित साधकों से स्वभावदोष और अहं निर्मूलन प्रक्रिया के संदर्भ में जानकर लिया ।

 

५. भावपूर्ण संगीत प्रस्तुत करना

उन्हें उत्स्फूर्तता से गीत सुझते हैं और वे स्वयं उन्हें स्वरबद्ध कर उन्हें गाते हैं । उन्होंने साधकों के सामने ये गीत गाए । उन्होंने पुराण के कुछ कथाओं का आध्यात्मिक स्तरपर भावार्थ बताकर उसपर आधारित गीत गाए ।

 

६. भाव

स्वामीजी ने कहा, ‘‘यह आश्रम तो गुरुदेवजी के अमृत (चैतन्य) का सागर है । हम यहां आकर धन्य हुए । (उन्होंने अभी परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को देखा भी नहीं है ।)

– कु. तेजल पात्रीकर, संगीत समन्वयक, महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय, गोवा (१९.८.२०१९)

 

७. जगद्गुरु योगऋषी डॉ. स्वामी सत्यप्रकाशजी
द्वारा जानी गई परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की महानता !

१. स्वामीजी ने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को देखा भी नहीं है; परंतु केवल उनकी गुणविशेषताओं को पढकर उन्होंने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीपर आधारित एक रचना लिखकर उसे मालकंस राग में गाया ।

२. ‘महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय में १४ विद्या एवं ६४ कलाओं के माध्यम से ईश्‍वरप्राप्ति’ इस कार्य के संदर्भ में स्वामीजी ने काव्यरचना कर उसे भावपूर्ण पद्धति से गाया । उस गीत में ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चरणों में शरणागत होकर कार्य करेंगे’, यह आशय था ।

 

८. जगद्गुरु योगऋषी डॉ. स्वामी सत्यप्रकाशजी की
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ध्यान में आईं गुणविशेषताएं

१६.८.२०१९ को कनाडा के ‘विश्‍व’ संगठन के संस्थापक जगद्गुरु योगऋषी डॉ. स्वामी सत्य प्रकाशजी का रामनाथी आश्रम में आगमन हुआ । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को उनकी प्रतीत हुईं गुणविशेषताएं यहां दे रहे हैं ।

अ. १०० प्रतिशत परेच्छा से आचरण करना तथा वर्तमानकाल में रहना ।

आ. अपना नवीनतापूर्ण ज्ञान अन्यों में अधिकाधिक बांटने की तडप

इ. आश्रम में प्रतिदिन १४-१५ घंटे साधकों को विविध विषय सिखाए । साधकों को सिखाने हेतु देहली में १० सहस्र से भी अधिक उपस्थितिवाले एक कार्यक्रम को रद्द कर वे रामनाथी आश्रम में एक दिन अधिक रहे ।

ई. उन्होंने अध्यात्म के कई विषयों का शोधकार्य किया है, उदा. रागचिकित्सा

उ. डॉ. स्वामीजी किसी भी विषयपर आधारित तुरंत कविता लिख सकते हैं तथा उसे गा भी सकते हैं । आश्रम में अपने निवास की कालावधि में उन्होंने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी एवं महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालयपर आधारित कविताओं की रचना कर उन्हें गाकर दिखाया ।

ऊ. अधिकांश आश्रम में रहनेवाले शिष्यों की उन्नति हुई दिखाई नहीं देती; परंतु पू. स्वामीजी के आश्रम के शिष्यों की उन्नति हुई दिखाई देती है । उनके शिष्यों में से एक डॉ. प्रीती शर्मा इसका एक अप्रतिम उदाहरण हैं ।

ए. इन विशेषताओं के कारण ‘स्वामीजी और हम एक ही हैं’, ऐसा लगता है ।

– परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

 

९. डॉ. प्रीती मिश्रा का जगद्गुरु योगऋषी
डॉ. स्वामी सत्य प्रकाशजीं आश्रम के प्रति भाव !

डॉ. प्रीती मिश्रा

 

९ अ. स्वामीजी द्वारा दिए गए ज्ञान को समष्टितक पहुंचानेकी तडप

डॉ. प्रीती मिश्रा में जगद्गुरु योगऋषी डॉ. स्वामी सत्य प्रकाशजी के प्रति तथा उनके पास उपलब्ध ज्ञान के प्रति अपार आदर की भावना है । स्वामीजी के पास जो ज्ञान है, वह जिज्ञासुओं को मिले, इसकी उनमें तीव्र तडप है । उन्होंने आश्रम के साधकों में विद्यमान सिखने की क्षमता तथा ज्ञानप्राप्ति की इच्छा को जान लिया । उनकी इस तडप के कारण ही स्वामीजी ने साधकों का विविध विषयोंपर मार्गदर्शन किया । उसके लिए उन्होंने देहली में अपना एक नियोजित भव्य कार्यक्रम रद्द किया और वे आश्रम में ही रुके ।

 

९ आ. सिखने की वृत्ति

अ. डॉ. प्रीतीजी ने स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन प्रक्रिया के संदर्भ में जानकर लेते समय २ साधिकाओं को चूक कैसे पहचानी जाती है ?, इसका प्रसंग के साथ वर्णन करने के लिए कहा ।

आ. उन्होंने उनके आश्रम में स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन की प्रक्रिया को सिखाने के संदर्भ में पूछा ।

 

९ इ. भाव

साधिका ने डॉ. प्रीतीजी से जब यह पूछा कि क्या आपको आश्रम अच्छा लगा ?, तब उन्होंने कहा, ‘‘आश्रम तो बहुत अच्छा है । यहां सभी साधक घुल-मिलकर रहते हैं । ऐसा आश्रम कहीं भी देखने के लिए नहीं मिलेगा । हमारा यह सौभाग्य है कि हमें यहां आने का अवसर मिला ।’’

– कु.तेजल पात्रीकर, संगीत समन्वयक, महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय, गोवा (१९.८.२०१९)

 

१०. जगद्गुरु योगऋषी डॉ. स्वामी सत्य प्रकाशजी की
निरंतर अन्यों का विचार करने की वृत्ति तथा उनकी अहंशून्यता !

कनाडा के ‘विश्‍व’ संगठन के संस्थापक तथा जगद्गुरु योगऋषी डॉ. स्वामी सत्यप्रकाशजी में विद्यमान कुछ गुणों के मुझे हुए दर्शन तथा उनके द्वारा बताए गए कुछ बोधजन्य सूत्र यहां दे रहे हैं ।

 

११. जगद्गुरु योगऋषी डॉ. स्वामी सत्य प्रकाशजी की प्रतीत गुणविशेषताएं

११ अ. अपनी सुविधा के अनुसार महाप्रसाद ग्रहण न कर
साधकों को असुविधा न हो; इसके लिए आश्रम के नियोजन के अनुसार ही महाप्रसाद ग्रहण करना

स्वामीजी से जब वे महाप्रसाद कब ग्रहण करेंगे, यह पूछा गया, तब उन्होंने कहा, ‘‘मैं आश्रम के नियोजन के अनुसार प्रसाद और महाप्रसाद ग्रहण करूंगा । मेरे कारण आश्रम के अन्य साधकों को असुविधा न हो; इसके लिए उन्होंने आश्रम के समय के अनुसार ही प्रसाद और महाप्रसाद ग्रहण करने की सिद्धता दर्शाई । स्वामीजी ब्राह्ममुहूर्तपर जागते हैं; इसलिए वे अपने आश्रम में भी शीघ्र ही प्रसाद और महाप्रसाद ग्रहण करते होंगे । वे सूर्यास्त के पश्‍चात अन्नग्रहण नहीं करते ।

११ आ. उन्होंने बताया, ‘‘भावनाजी ने (एस्.एस्.आर्.एफ्. की संत पू. (श्रीमती) भावना शिंदेजी) ने मुझे आश्रम में जाने के लिए कहा है; इसलिए अब मैं आपकी आज्ञा के अनुसार आचरण करूंगा । ‘आप को बताना है और मुझे सुनना है’, केवल यही मुझे ज्ञात है ।

११ इ. स्वयं के अलग अस्तित्व को न संजोना

एक दिन प्रसाद ग्रहण करने के पश्‍चात जब स्वामीजी से पूछा गया कि ‘‘क्या हाथ धोने के लिए पात्र और पानी पटलपर रखूं ?’’ तब वे कहने लगें, ‘‘ऐसा करने से आश्रम की जो साधिका मेरे लिए पानी और पात्र लेकर आएगी, वह और मैं अलग हैं, यह उसका अर्थ होगा ।’’

 

१२. जगद्गुरु योगऋषी डॉ. स्वामी सत्य प्रकाशजी द्वारा बताए गए बोधपर सूत्र !

१२ अ. मनुष्य को केवल स्वयं का विचार करने से उसके द्वारा पापकर्म होना
तथा उसके द्वारा सामने के व्यक्ति का विचार किया गया, तो उसे स्वास्थ्यलाभ होना

उन्होंने बताया, ‘‘ जहां I अर्थात ‘मैं’ आता है, वहां शारीरिक अस्वस्थता अथवा असुविधा (i+llness = illenss) आती है; परंतु जहां ‘हम’ अर्थात we आता है, वहां Wellness (We+llness = Welleness), अर्थात स्वास्थ्यलाभ आता है । मनुष्य जब केवल स्वयं का अर्थात I का विचार करता है, तब Sin अर्थात पाप होता है । तो दूसरी ओर जब मनुष्य सामनेवाले व्यक्ति का विचार करता है, तब वहां U आकर Sin का Sun होता है अर्थात तब वह सूर्य की भांति परोपकारी होता है ।

१२ आ. समदृष्टि से देखने का महत्त्व

हमने किसी व्यक्ति को तुच्छ समझा, तो उससे हमारा ही मूल्य न्यून होता है और हमने उस व्यक्ति को अपने जैसा ही मानो, तो उससे हमारा मूल्य बढता है । प्रत्येक व्यक्ति ईश्‍वर का अंश है, इसे ध्यान में लिया, तो हम सर्वत्र समदृष्टि से देख सकते हैं ।

– श्री. महावीर श्रीश्रीमाळ, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा (१८.८.२०१९)

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