पाप की व्याख्या एवं प्रकार

१. व्याख्या

अ. कर्मयोगानुसार

अ. दुष्कर्म एवं कुछ समय पश्‍चात भोगे जानेवाले उसके दुःखद फलको  ‘पाप’ कहते हैं । महर्षि व्यासजीने बताया है कि ‘परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ।’ अर्थात ‘परोपकार पुण्य एवं परपीडा पाप है ।’

आ. धर्मशास्त्र द्वारा निषिद्ध बताए गए कर्म करने से अथवा किसी व्यक्ति द्वारा अपने कर्तव्य न निभाए जाने से जो निर्मित होता है, वह ‘पाप’ है ।

आ.भक्तियोगानुसार

ईश्‍वर का विस्मरण ही पाप है ।

 

२. पाप के प्रकार

अ. काया, वाचा एवं मन के अनुसार १० प्रकार

अ. तीन कायिक पाप : शरीर से किया गया पाप, उदा.

१. चोरी करना,

२. किसी की हत्या करना एवं

३. किसी की पत्नी से संभोग करना

आ. चार वाचिक पाप : वाचा अर्थात बोलने के कारण किया गया पाप, उदा.

१. अपमानजनक बोलना (पारुष्य),

२. निंदा करना,

३. असंबद्ध बोलना एवं

४. असत्य बोलना

इ.तीन मानसिक पाप : मन से किए गए पाप, उदा.

१. दूसरे के धन की अभिलाषा,

२. दूसरों का अनिष्ट सोचना तथा

३. मिथ्या अभिनिवेश, दुराग्रह

आ. देहानुसार होनेवाले पापकर्म

स्थूलदेहसहित सूक्ष्मदेह एवं कारणदेह (बुद्धि) से कर्म होते हैं ।

 

३. पाप के कारण

१.महान लोगों का न केवल निंदक, अपितु निंदा सुननेवाला भी पापी होता है !

२. स्वार्थ : मनुष्य जितना स्वार्थी, उतना उससे पाप होता है ।

३. भिखारियों से संबंधित पाप : भिखारी से तुच्छता से न बोलें । केवल ‘नहीं’ कहें, अन्यथा इस बात का शाप लगता है । भीख न दिए जाने के कारण भिखारी यदि शाप दे, तो वह उसे ही भुगतना पडता है ।

४. अधिवक्ताओंको लगनेवाला पाप : ‘वकालत के व्यवसाय में अधिकांशतः सत्यको असत्य एवं असत्यको सत्य प्रमाणित कर द्रव्यार्जन किया जाता है । ऐसे अर्जित धन से भी व्यक्तिको पाप लगता है, द्रव्य में दोष निर्मित होता है और उसके परिणाम भावी पीढीको भोगने पडते हैं । इस दोषको दूर करने के लिए अर्जित द्रव्य का कुछ भाग धार्मिक  कार्यों के लिए व्यय करना आवश्यक होता है । वैसा न करने से धन भी नामशेष हो जाता है । इसलिए नियति का एक नियम ही निश्‍चित है कि ‘अधिवक्ताओं की तीसरी पीढी सदैव दरिद्र होती है ।’

 

४. पाप कब नहीं लगता ?

अ. असत्य बोलकर भी पाप न लगना

अ. प्राण बचाने के लिए असत्य भाषण करना

अनृतं जीवितस्यार्थे वदन्न स्पृश्यतेऽनृतैः ॥

– महाभारत, द्रोणपर्व, अध्याय १६४, श्‍लोक ९९

अर्थ : प्राण बचाने के लिए असत्य भाषण करनेवालेको (सज्जन को) असत्य भाषण करने का दोष (पाप) नहीं लगता ।

आ. धर्म के लिए असत्य बोलना तथा आचरण करना

(महाभारत, शांतिपर्व, अध्याय ११०, श्‍लोक १८ के अनुसार)

आ. अज्ञानतावश घटित पाप

यदि कोई कसाई ब्राह्मण का वेश धारण कर दान ले जाए तथा उस दान का उपयोग अयोग्य कार्य के लिए करे, तो पाप किसे लगेगा ?

श्री गुलाबराव महाराज : कसाई को; क्योंकि शास्त्र में इतना ही बताया गया है कि वेश का सम्मान करें, और मनुष्य उतना ही पहचान पाता है ।

इ. अकर्म कर्म

जो नामजप करते हुए मार्गक्रमण करता है,
वह मनुष्य पग-पग पर यज्ञ करता है ॥ (संदर्भ : अज्ञात)

जो नामजप करते हुए अन्न ग्रहण करता है,
वह मनुष्य भोजन करके भी अभुक्त रहता है ।

– सन्त तुकाराम महाराजजी के वचनों का अनुवाद

नामजप करते हुए कोई भी कर्म करने से पाप नहीं लगता है । कष्ट देने में सक्षम मच्छर, तिलचटा (काक्रोच) मारते समय नामजप करने से पाप नहीं लगता; अपितु मच्छर, तिलचटा आदिको सद्गति प्राप्त होती है ।

 

५.  पति-पत्नी के पापों की भागीदारी

अ.पति का पाप पत्नीको नहीं लगता । पति के पाप में भागीदार पत्नीको पाप लगता ही है । इसके संदर्भ में आत्मपुराण में बताया गया है कि अति पापी पतिको न छोडनेवाली पत्नी उसके पाप की साझीदार होती है ।

आ.पत्नी का आधा पाप पति को लगता है; मात्र पत्नी का पुण्य पतिको नहीं मिलता । पत्नी पति के स्वाधीन होने के कारण वह उसके पाप के लिए उत्तरदायी होता है; मात्र सुख के लिए नहीं; क्योंकि अध्यात्म में अंत में सुख का भी त्याग ही करना होता है ।

‘सेवकसे जो बुरा काम करवाता है, उसका पातक स्वामीको लगता है । – श्री गुलाबराव महाराज’

अ. पापी मनुष्यसे प्राप्त पैसे का सर्वसामान्य व्यक्ति तथा (आध्यात्मिक दृष्टिसे) उन्नत पुरुषोंपर होनेवाला परिणाम

आध्यात्मिक कार्य के लिए लगनेवाला पैसा पापी मनुष्यसे न लें; क्योंकि उस पैसे के कारण कार्यमेें बाधा आ सकती है । संतों में कोई भी पाप पचाने की क्षमता होती है; इसलिए वे पापी व्यक्तिसे पैसा स्वीकार कर उसका पाप घटाने में सहायता करते हैं ।

संदर्भ : सनातन निर्मित ग्रंथ ‘पुण्य-पाप के प्रकार एवं उनके परिणाम’

Leave a Comment