लोकमान्य तिलक की प्रेरणा से आरंभ सार्वजनिक गणेशोत्सव का इतिहास और उससे मिली स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा !

१. देश के अनेक राज्यों में सार्वजनिक गणेशोत्सव आरंभ होने
में लोकमान्य तिलक की प्रेरणा तथा ग्वालियर के गणपति का अधिक योगदान

देश के अधिकांश भागों में जिसमें महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, गोवा, गुजरात, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु राज्य प्रमुख हैं, गणेशोत्सव राष्ट्रीय महोत्सव के रूप में मनाया जाता है ।

 

२. पुणे के वैद्य खाजगीवाले ग्वालियर का सार्वजनिक गणेशपूजन को देखकर
प्रभावित होना तथा अपने मित्रों से पुणे में सार्वजनिक गणेशोत्सव आरंभ करने
के लिए कहना और सर्वसम्मति से पुणे में पहली बार सार्वजनिक गणेशमूर्ति बैठाना

वर्ष १८९१ के आसपास पुणे के वैद्य खाजगीवाले ग्वालियर गए थे । तब उन्होंने वहां सार्वजनिक स्थान पर होनेवाली गणेशपूजा देखी और उससे बहुत प्रभावित हुए । उनकी इच्छा हुई कि यह उपक्रम पुणे में भी आरंभ करना चाहिए और उसके लिए लोकमान्य तिलक की अनुमति लेनी चाहिए । पुणे में उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम १५ – २० वर्ष को तिलक का ही वर्ष माना गया था । उस काल में प्रत्येक बात पर तिलक का अनुकरण करने की युवकों की प्रवृत्ति बन गई थी । वैद्य खासगीवाले ने गणेशोत्सव मनाने का अपना विचार अपने समवयस्क मित्रों दगडू हलवाई, भाऊ रंगारी आदि को बताया । पहले सबने सोचा कि यह बात तिलक को बताएंगे । परंतु, हाल ही में लोकमान्य का भाषण हुआ था, जिसमें उन्होंने कहा था, पहल करों, पश्‍चात बताओ । इसलिए, इन मित्रों ने पहले सार्वजनिक गणपति की मूर्ति बैठाई, कुछ कार्यक्रम निश्‍चित किए, पश्‍चात लोकमान्य से मिलने गए ।

 

३. सार्वजनिक गणेशोत्सव मनाने का विचार लोकमान्य तिलक को भाना,
उनका मूर्ति-विसर्जन यात्रा में उपस्थित रहना और यह समाचार वन की
आग की भांति शीघ्र ही दूर तक फैलना तथा इस यात्रा में आगे भारी भीड उमडना

लोकमान्य तिलक को सार्वजनिक गणेशोत्सव का विचार बहुत अच्छा लगा । उस समय उन्होंने कहा, मूर्ति-विसर्जन यात्रा में मैं आऊंगा । गणेश विसर्जन की यात्रा में लोकमान्य आए हैं, यह समाचार वन में लगी आग की भांति आसपास के भागों में फैल गई, जिससे विसर्जनयात्रा में भारी भीड उमड पडी ।

४. विसर्जन-यात्रा से लौटने पर तिलक के लिखे
संपादकीय से स्वतंत्रता आंदोलन का नया अध्याय
आरंभ होना और इस आंदोलन के लिए अनेक उपक्रमों का श्रीगणेश होना

विसर्जन-यात्रा से लौटने पर उन्होंने साप्ताहिक संपादकीय लिखा, हमारे राष्ट्रीय उत्सव ! उनके उस  संपादकीय से स्वतंत्रता आंदोलन का एक नया ही अध्याय आरंभ हुआ । गणेशमंडलों के माध्यम से लोग इकट्ठा होने लगे और इससे स्वतंत्रता आंदोलन को बढाने के लिए अनेक उपक्रम खडे हुए ।

 

५. लोकमान्य तिलक की दूरदर्शिता !

लोकमान्य ने एक शब्द कहा और उससे एक आंदोलन खडा हुआ, क्या यह संभव है ? यह अनुमान आज नहीं किया जा सकता । परंतु, उस काल में लोकमान्य कोई शब्द कहते थे, तो वह इतिहास बन जाता था, ऐसी अनेक घटनाएं हुई हैं । लोकमान्य तिलक ने १९०० से १९१५ तक के काल में लिखा था कि अभी स्वतंत्रता मिलने में कितना समय लगेगा यह बता पाना संभव नहीं; परंतु जब स्वतंत्रता मिले, तब युवा पीढी बृहद् भारत की सीमा निश्‍चित करे । सीमा निश्‍चितीकरण का सूत्र ऐसा होगा कि जहां-जहां गणपति देवता पहुंचे हैं, वहां बृहद् भारत की सीमा के खूंटे गाडे जाएं । विदेशों में भी जहां तक गणपति पहुंचे हैं, वहां तक बृहद् भारत कभी फैला हुआ था । वर्तमान पराधीनता काल में यह बात असत्य लग सकती है और स्वतंत्रता मिलने पर भी तुरंत इसका अनुभव नहीं होगा; परंतु, उसके १०० वर्ष पश्‍चात, हम यह बात अनुभव कर पाएंगे !

– श्री. मोरेश्‍वर जोशी (संदर्भ : आध्यात्मिक चैतन्य, गुरुपूर्णिमा विशेेषांक २०१५)

(अनेक संत-महंतों के कहे अनुसार वर्ष २०२३ में भारत और आगे पूरे विश्‍व में हिन्दू राष्ट्र (रामराज्य) स्थापित होनेवाला है । उस समय दूसरे देशों के नागरिक भी धर्माचरण (श्री गणपति आदि देवताआें की उपासना) करेंगे । तात्पर्य यह कि सत्य, त्रेता और द्वापर युगों की भांति विश्‍वभर के नागरिक ईश्‍वरप्राप्ति के लिए साधना करेंगे । यह बात लोकमान्य तिलक को साधना से प्राप्त दूरदर्शिता के कारण वर्ष १९१५ के पहले से पता थी; यह बात उनके उपर्युक्त कथन से स्पष्ट होती है । – संकलनकर्ता)

संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात

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