सनातन की साधिका स्व. (श्रीमती) प्रमिला रामदास केसरकरजी ने प्राप्त किया सनातन का १२१ वां संतपद एवं स्व. (श्रीमती) शालिनी प्रकाश मराठेजी ने १२२ वां संतपद !

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असाध्य बीमारी में भी ‘नाम ही तारेगा भवसागर से’
इस उक्ति अनुसार जीवनयापन कर ‘सनातन का १२१ वां संतपद’
प्राप्त करनेवालीं स्व. (श्रीमती) प्रमिला रामदास केसरकरजी (मृत्यु के समय आयु ६६ वर्ष) !

स्व. (श्रीमती) प्रमिला रामदास केसरकरजी

‘मूल ठाणे के दंपति अधिवक्ता रामदास केसरकर एवं श्रीमती प्रमिला केसरकर २७ वर्ष पूर्व सनातन संस्था के संपर्क में आए और उन्होंने साधना आरंभ की । वर्ष २००८ में वे दोनों रामनाथी (गोवा) के सनातन आश्रम में साधना के लिए आए ।

वर्ष २०१६ में श्रीमती प्रमिला केसरकर को कर्करोग होने का निदान हुआ । आगे उनकी बीमारी बढती ही गई और उसके साथ ही उनकी आंतरिक साधना भी बढने लगी । साधना एवं भगवान पर दृढ श्रद्धा के कारण श्रीमती केसरकर ने असाध्य बीमारी का धैर्य से सामना किया । इससे उनकी सहनशीलता के दर्शन होते हैं ।

अधिवक्ता रामदास केसरकर ने अपनी पत्नी की बीमारी में उनकी मन लगाकर सेवा की । उन्होंने पत्नी की बीमारी का धैर्य से सामना किया । अधि. रामदास केसरकर का आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत है और उनकी अगली प्रगति भी शीघ्र गति से हो रही है ।

साधना की तीव्र लगन एवं निरंतरता, इन गुणों के कारण कर्करोग जैसी बीमारी में भी श्रीमती केसरकर ने २०१७ में ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किया । १८.१०.२०२१ को उनका कर्करोग से निधन हुआ । उस समय उनका आध्यात्मिक स्तर ६८ प्रतिशत था । मृत्युपरांत उनकी देह से चैतन्य प्रक्षेपित हो रहा था । उनकी आंतरिक साधना के कारण निधन के उपरांत भी उनकी आध्यात्मिक प्रगति वेग से होती रही ।

असाध्य बीमारी में भी ‘नाम ही तारेगा भवसागर से’ प.पू. भक्तराज महाराजजी की उक्ति अनुसार जीवनयापन करनेवाली स्व. (श्रीमती) प्रमिला रामदास केसरकर ने ७१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर ‘व्यष्टि संत’ के रूप में ‘सनातन का १२१ वां संतपद’ प्राप्त किया है । ‘कर्करोग समान असाध्य बीमारी में पू. स्व. (श्रीमती) प्रमिला केसरकरजी द्वारा लगन से साधना कर केवल ५ वर्ष में ही संतपद प्राप्त करना’, यह एक अद्वितीय घटना है ।

पू. स्व. प्रमिला रामदास केसरकरजी की अगली प्रगति ऐसे ही शीघ्र गति से होगी’, इसका मुझे दृढ विश्वास है ।’

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले (१२.८.२०२२)

 

निरपेक्ष प्रीति, उत्कट भक्तिभाव एवं गंभीर बीमारी में भी
सतत कृतज्ञभाव में रहकर ‘सनातन का १२२ वां संतपद’ प्राप्त
करनेवालीं स्व. (श्रीमती) शालिनी प्रकाश मराठेजी (मृत्यु के समय आयु ७४ वर्ष) !

स्व. (श्रीमती) शालिनी प्रकाश मराठेजी

‘वर्ष १९९३ में गोवा में हुए एक साधना संबंधी अभ्यासवर्ग में मेरी सनातन की २१ वीं संत पू. स्व. (श्रीमती) सीताबाई मराठे, उनके सुपुत्र श्री. प्रकाश मराठे एवं पुत्रवधु श्रीमती शालिनी मराठे से प्रथम भेंट हुई । तदुपरांत उन्होंने साधना आरंभ की । आगे वर्ष २००८ में रामनाथी (गोवा) के सनातन के आश्रम में श्री. प्रकाश मराठे एवं श्रीमती शालिनी मराठे दंपति साधना के लिए आए । प्रशंसनीय बात यह है कि ढलती आयु में भी वे आश्रमजीवन से तुरंत एकरूप हो गए । दोनों ने सहजता एवं प्रेमभाव, इन गुणों के कारण आश्रम के साधकों को अपना बना लिया ।

श्रीमती शालिनी मराठे अर्थात भोले एवं उत्कट भाव की साक्षात मूर्ति ! उनके बोलने से, उनकी आंखों से एवं लेखन से साधकों को उनमें विद्यमान भाव की प्रतीति आती है । उनके लेखन की शैली भावपूर्ण एवं विशेष थी । ‘हृदयस्पर्शी एवं भावभक्ति से ओतप्रोत लेखन, उनके लेखन की विशेषता है ।

निर्मलता, प्रांजलता एवं साधना की लगन के कारण श्रीमती शालिनी मराठे ने वर्ष २०१६ में ६१ प्र्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किया । मार्च २०२२ में उन्हें कर्करोग होने का निदान हुआ । इस व्याधि का उन्होंने अत्यंत धैर्य से सामना किया । उनकी विशेषता थी कि वे गंभीर शारीरिक स्थिति में भी सतत अन्यों का विचार करती थीं । उनके चेहरे पर, उनके बोलने से सभी को आनंद एवं कृतज्ञभाव प्रतीत होता था । तत्पश्चात उनका स्वास्थ्य बिगडता ही गया और १६.७.२०२२ को कर्करोग से निधन हो गया । उस समय उनका आध्यात्मिक स्तर
६७ प्रतिशत था ।

श्रीमती शालिनी मराठे के पति श्री. प्रकाश मराठे (आध्यात्मिक स्तर ६८ प्रतिशत, आयु ७८ वर्ष) पत्नी की बीमारी एवं देहावसान के उपरांत अत्यंत स्थिर एवं शांत थे । इससे यह ध्यान में आता है कि ‘संतत्व की दिशा में उनका शीघ्र गति से मार्गक्रमण हो रहा है ।’

श्रीमती शालिनी मराठे के निधन के उपरांत उनका अंत्यदर्शन लेते समय अनेक साधकों को ऐसा लगा कि वे संत हो गई हैं । कर्करोग समान गंभीर बीमारी को स्थिरता से स्वीकारने वालीं एवं सतत कृतज्ञभाव में रहनेवालीं स्व. (श्रीमती) शालिनी प्रकाश मराठे ने ७१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किया है और ‘व्यष्टि संत’ के रूप में उन्होंने ‘सनातन का १२२ वां संतपद’ प्राप्त किया है । मृत्यु के उपरांत केवल २९ दिनों में उनका स्तर ४ प्रतिशत बढ गया । इतनी शीघ्र गति से आध्यात्मिक उन्नति, सनातन के इतिहास का यह एक अद्भुत उदाहरण है ।

पू. स्व. (श्रीमती) शालिनी प्रकाश मराठेजी की अगली प्रगति इसी प्रकार वेग से होगी’, इसका मुझे दृढ विश्वास है ।’

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले (१२.८.२०२२)

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