विश्‍वयुद्ध, भूकंप इत्‍यादि आपदाओं का प्रत्‍यक्षरूप से सामना कैसे करें ? (भाग ६)

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आपातकाल में विश्‍वयुद्ध, भूकंप, सुनामी की भांति गर्मी की लहर के आने की भी संभावना है । आज के समय में केवल भारत में ही नहीं, अपितु यूरोप में भी तापमान में बडी मात्रा में वृद्धि होने लगी है । तापमानवृद्धि के कारण विगत अनेक वर्षों से अंटार्क्‍टिक प्रदेश में बर्फ पिघलने की घटनाएं हो रही हैं; परंतु प्रत्‍यक्ष गर्मी के कारण अनेक बीमारियां होती हैं । भारत में लू लगने से सैकडों लोगों की मृत्‍यु होती है । गर्मी की लहर और लू क्‍या होती हैं ? गर्मी की लहर से होनेवाले परिणाम, उसके कारण होनेवाली बीमारियां, नए घर का निर्माण करते समय गर्मी से रक्षा होने हेतु क्‍या करना चाहिए ? भविष्‍य में विविध कारणों से गर्मी की लहर आने पर कौन से उपाय करने चाहिए ?, इस लेख में इसकी जानकारी देने का प्रयास किया गया है ।

 

५. गर्मी की लहर

५ अ. गर्मी की लहर क्‍या होती है ?

भारतीय मौसम विभाग के अनुसार मैदानी प्रदेश के किसी स्‍थान का तापमान ४० डिग्री सेल्‍सियस अथवा उससे भी अधिक, समुद्रतट के भाग का ३७ डिग्री सेल्‍सियस अथवा उससे अधिक और पर्वतीय प्रदेश के स्‍थान का तापमान ३० डिग्री सेल्‍सियस अथवा उससे अधिक होता है और तापमान में औसत तापमान की अपेक्षा ४.५ से ६.४ डिग्री सेल्‍सियस की वृद्धि होती है, तब गर्मी की लहरें उत्‍पन्‍न होती हैं । गर्मी की लहर के कारण मानव शरीर के स्‍वयं के तापमान को नियंत्रित रखने की क्षमता धीमी पड जाती है और उसी के कारण यह संकटकारी सिद्ध होता है ।

५ अ १. गर्मी की लहर के परिणाम

वर्ष २००३ में आई गर्मी की लहर में उससे पूर्व आई लहर की अपेक्षा लू लगने से ७० सहस्र लोगों की मृत्‍यु हुई थी । इसके कारण अकस्‍मात बाढ आना (फ्‍लैश फ्‍लड्‍स), जंगलों में आग लगना, विमानों की उडानें बाधित होना, रेल की पटरियों का पिघल जाना जैसी घटनाएं हुई थीं ।

५ अ १ अ. गर्मी की लहर के कारण लू लगने की संभावना होती है । लू लगने का अर्थ कडी धूप में लंबे समय तक घूमने के कारण अथवा जहां तापमान में बडी मात्रा में परिवर्तन आते हैं, ऐसे स्‍थानों पर विचरण करने से (उदा. वातानुकूलित कक्ष से कडी धूप अथवा उसके विरुद्ध तापमान में जाने से) होनेवाली बीमारी । इसमें शरीर का तापमान अकस्‍मात ही १०४ फॉरेनहाइट से अधिक बढ जाता है और उस पर नियंत्रण नहीं पाया गया, तो मृत्‍यु हो जाती है । इसे अंग्रेजी में ‘सनस्‍ट्रोक’ अथवा ‘हिटस्‍ट्रोक’ कहते हैं ।

५ अ २. आनेवाले आपातकाल में गर्मी की लहर क्‍यों एक बडी आपत्ति सिद्ध हो सकती है ?

विश्‍व में सर्वत्र ही तापमान परिवर्तन का परिणाम दिखाई दे रहा है, पृथ्‍वी के तापमान में वृद्धि हो रही है । अंटार्क्‍टिका में बर्फ पिघल रही है । यूरोप का तापमान ३० डिग्री सेल्‍सियस तक पहुंच गया था । आनेवाले समय में इसमें वृद्धि होने की संभावना है । ‘एन्‍वायरमेंटल रिसर्च लेटर’ नाम की शोधपत्रिका में प्रकाशित निबंध के अनुसार वर्ष २१०० तक इसके कारण प्रतिवर्ष १२० करोड लोग लू की चपेट में आ सकते हैं ।

५ अ ३. गर्मी के कारण होनेवाली बीमारियां

‘गर्मी के दिनों में, अति गर्म वातावरण में अथवा गर्मी की लहर में व्‍यक्‍ति को गर्मी से संबंधित शारीरिक स्तर के आपातकाल का सामना करना पड सकता है । इसके ३ स्‍तर निम्‍न प्रकार से हैं –

अ. गर्मी से गोले आना (Heat Cramps)

आ. गर्मी से थकान (Heat Exhaustion)

इ. लू लगना (Heat Stroke)

गर्मी से गोले आना आरंभ होने के उपरांत उचित उपचार न मिलने से उक्‍त क्रम में किसी को गंभीर संकट का सामना करना पड सकता है । कभी-कभी पहले अथवा दूसरे स्‍तर का अनुभव न होकर सीधे थकान होना अथवा लू लगना भी हो सकता है । इन तीनों स्‍तरों को गंभीरता से लेना होगा । ऐसे व्‍यक्‍ति को चिकित्‍सकीय सहायता मिले, इसके लिए प्रयास करने चाहिए । चिकित्‍सकीय सहायता मिलने तक यथासंभव प्राथमिक उपचार करने चाहिए ।

अ. गर्मी से गोले आना (Heat Cramps) : हाथों, पिंडलियों, पैर के तलवे तथा पेट की मांसपेशियों में गोले आना, इसमें बहुत पसीना आना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं । अनेक बार श्रम का काम करते समय अथवा करने के उपरांत कुछ घंटों के बाद ऐसा हो सकता है ।

चिकित्‍सकीय सहायता मिलने तक ऐसे रोगी को …

१. ठंडे वातावरण में ले जाएं । उस पर सीधा सूर्यप्रकाश न आए, इसका ध्‍यान रखें ।
२. गोले आ रहे हों, तो उसकी मांसपेशियों को धीरे-धीरे रगडें । जिन मांसपेशियों में गोले आ रहे हों, उन्‍हें धीरे से खींचें ।
३. प्रति १५ मिनट उपरांत रोगी को क्षारयुक्‍त जल (इलेक्‍ट्रॉल) दें ।

आ. गर्मी से होनेवाली थकान (Heat Exhaustion) : इसमें शरीरगर्भ का तापमान (Core temperature) १०१ से १०४ अंश फॉरेनहाइट तक बढ सकता है ।
इसमें बहुत पसीना आता है । त्‍वचा गीली होकर ठंडी एवं फीकी पड जाती है । त्‍वचा का रंग काला हो, तो नाखून, होंठ और निचली पलक को खींचकर देखने से वहां की त्‍वचा का सामान्य रंग बदला हुआ दिखाई देता है । मस्‍तकशूल, मिचली अथवा उल्‍टियां होना, भूख न लगना, बहुत प्यास लगना, शक्‍तिहीनता, निरुत्‍साह, मांसपेशियों में पीडा होना अथवा मांसपेशियों में गोले आना, चिडचिडाहट होना, चिंताग्रस्‍त होना, मूर्च्‍छा आना आदि लक्षण दिखाई देते हैं ।

चिकित्‍सकीय सहायता मिलने तक ऐसे रोगी को –

१. ठंडे वातावरण में रखें । उसके शरीर पर सीधे सूर्यप्रकाश नहीं आए, इसकी ओर ध्‍यान दें ।
२. उसके वस्‍त्रों को ढीला करें ।
३. रोगी का चेहरा, गर्दन, छाती और पैरों पर गीला टॉवेल अथवा ठंडा वस्‍त्र रखें ।
४. उसे हवा लगे, इस प्रकार से पंखा चलाएं ।
५. प्रति १५ मिनट उपरांत रोगी को उचित क्षारयुक्‍त जल (५०० मि.ली. पानी में १ चम्‍मच नमक) दें । (एक बार में पानी की अधिक मात्रा न दें ।)

इ. लू लगना (Heat Stroke) : यह गर्मी के कारण उत्‍पन्‍न स्‍वास्‍थ्‍यजन्‍य आपातकाल का संकेत है । इस संदर्भ में तुरंत चिकित्‍सकीय उपचार न मिलने पर रोगी की मृत्‍यु हो जाती है । इसमें रोगी के शरीरगर्भ का तापमान (Core temperature) १०४ अंश फॉरेनहाइट अथवा उससे भी अधिक बढ जाता है । इसमें रोगी का बहुत भ्रमित होना, उसे उसके आसपास की स्‍थिति का भान न रहना, त्‍वचा का गर्म, लाल अथवा सूख जाना, पसीना न आना, नाडी तीव्र गति से चलना, रक्‍तचाप अल्‍प होना, सांस तीव्र गति से और ऊपर की ओर चलना, मूर्च्‍छा के झटके आना, मूर्च्‍छित होना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं ।

चिकित्‍सकीय सहायता मिलने तक ऐसे रोगी को –

१. ठंडे वातावरण में ले जाएं । उसके शरीर पर सीधे सूर्यप्रकाश नहीं आए, इसकी ओर ध्‍यान दें ।
२. उसके वस्‍त्र ढीले करें ।
३. रोगी का चेहरा, गर्दन, छाती और पैरों पर गीला टॉवेल अथवा ठंडा वस्‍त्र रखें । संभव हो, तो संपूर्ण शरीर को ठंडे पानी से पोंछते रहें अथवा ठंडे पानी का स्नान कराते रहें ।
४. मस्‍तक पर, माथे पर, जांघों में, कलाईयों पर और -कांख में बर्फ रखें ।’

– डॉ. दुर्गेश सामंत, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.

५ अ ४. लू लगने की विभीषिका

वर्ष २०१५ में आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्‍यों में लू लगने से १ सहस्र ४०० से भी अधिक लोगों की मृत्‍यु हुई थी ।

५ अ ५. गर्मी से रक्षा होने हेतु करनी आवश्‍यक तैयारी

हम जिस प्रदेश में रहते हैं, वहां यदि गर्मी की लहर आनेवाली हो अथवा वहां की गर्मी अधिक तीव्र हो, तो गर्मी से बचने हेतु निम्‍न तैयारी करें –

५ अ ५ अ. घर की छत और दीवारों को ठंडा रखना : ‘घर में स्‍लैब की छत हो, तो उसे ठंडे रखने की पद्धतियों का उपयोग किया जा सकता है । छत पर सब्‍जियों अथवा फूलों के पौधे लगाए जा सकते हैं । उसके लिए गमलों और क्‍यारियों का उपयोग किया जा सकता है । उसके कारण धूप से होनेवाली गर्मी अल्‍प होने में सहायता मिलेगी । घर की दीवार पर बेलें चढा सकते हैं । उससे कुछ मात्रा में दीवारें ठंडी रहेंगी ।

५ अ ५ आ. खिडकियों के कांच तत्‍कालीन वेष्‍टित करना ! : घर की खिडकियों से घर में कडी धूप न पहुंचे; इसके लिए बाहर से खस के पर्दे, कार्डबोर्ड आदि  वेष्‍टन के रूप में लगाए जा सकते हैं, साथ ही धूप को रोकनेवाले कांच भी लगाए जा सकते हैं ।

५ अ ५ ई. घर में वातानुकूलन यंत्र चलाना ! : गर्मी की लहर में घर का वातावरण ठंडा रखने हेतु संभव हो, तो वातानुकूलन यंत्र लगाया जा सकता है ।
(संदर्भ : पुस्‍तक – तैयारी में ही समझदारी : आपदा से बचने के सरल उपाय)

५ अ ५ उ. नए घर के निर्माण के समय यह कीजिए ! : ‘नए घर के निर्माण के समय गर्मी से बचानेवाली कुछ बातों का उपयोग किया जा सकता है । इसके लिए मोटी दीवारें बनाएं । उसके लिए ‘कैविटी वॉल’ के कारण (इसमें बाहरी दीवार और अंदर की दीवार जैसी २ समांतर दीवारों में कुछ इंच गैप (अवकाश) रखकर ऐसी दीवारें बनाई जाती हैं । उसके कारण इन दीवारों में गैप होने से धूप से आनेवाली गर्मी का परिणाम अंदर की दीवार पर नहीं होता ।) इससे अंदर की दीवार ठंडी रहकर घर में शीतलता बनी रहती है । दीवारों को रंग देते समय चूना अथवा मिट्टी का उपयोग करें । पहले मिट्टी के घर होते थे । उसके कारण घर में ठंडक रहती थी । संभव हो, तो कांचों का उपयोग कहीं पर भी न करें । घर के निर्माण के समय इस क्षेत्र के विशेषज्ञों से परामर्श लिया जा सकता है ।’

५ अ ६. गर्मी से बचने हेतु ये करें !

५ अ ६ अ. आवश्‍यक मात्रा में पानी तुरंत पीएं : गर्मी के दिनों में मुंह सूखने तक रुकना नहीं चाहिए । थोडी सी भी प्‍यास लगे, तो आवश्‍यक पानी तुरंत पीएं । प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति की प्रकृति के अनुसार पानी पीने की मात्रा अलग होती है । पानी पीकर संतुष्‍टि प्रतीत हो, प्‍यास बुझे और थकान न हो; इतनी मात्रा में पानी पीएं ।

५ अ ६ आ. फ्रीज का पानी पीना टालें : फ्रीज का पानी न पीकर मटकी में रखा हुआ पानी, साथ ही खस और गुलाब की पंखुडियां डालकर प्राकृतिक रूप से ठंडा किया हुआ पानी पीएं । फ्रीज अथवा कूलर का ठंडा पानी पीने से गला, दांत और आंतें प्रभावित होती हैं; इसलिए सामान्‍य अथवा मटकी में रखा पानी, खीरा, तरबूज तथा अनार जैसे मौसमी फल खाएं ।

५ अ ६ इ. तरल पदार्थों का आवश्‍यक मात्रा में सेवन करें ! : नींबू का शरबत, लस्‍सी, पना, छाछ, चावल की मांड, ओआरएस (ओरल डिहायड्रेशन सोल्‍यूशन), नारियल पानी, कोकम शरबत, फलों का रस आदि पेय आवश्‍यक मात्रा में पीएं । जिन लोगों को चिकित्‍सकों द्वारा कुछ कारणवश अतिरिक्‍त तरल पदार्थ न लेने का सुझाव दिया हो, ऐसे लोग अथवा जिन्‍हें लीवर से संबंधित बीमारियां, हृदयरोग, मूर्च्‍छा आना जैसी बीमारियां हों, वे लोग वैद्य से परामर्श लें ।

५ अ ६ ई. खस का पानी पीना ! : खस के जडों की २ गट्ठियां लें । उनमें से एक गट्ठी पेयजल में डालें और दूसरी को धूप में सुखाने के लिए रखें । दूसरे दिन धूप में सुखाई हुई जडों की गट्ठियों को पेयजल में और पानी में रखी हुई जडों को धूप में रखें । प्रतिदिन ऐसा करें । खस का पानी गर्मी दूर करनेवाला होता है ।

५ अ ६ उ. हलके रंग के कपडे पहने : गाढे रंग अपनी ओर गर्मी खींचते हैं; इसलिए हलके रंग के, सूती और ढीले वस्‍त्र पहनें ।

५ अ ६ ऊ. घर से बाहर जाते समय सावधानी लें : घर से बाहर निकलना हो, तो सिर पर टोपी पहनें, कपडा लपेटें अथवा छाता लें । साथ ही धूप से आंखों की रक्षा होने हेतु चश्‍मा (गॉगल), साथ ही त्‍वचा के लिए सनस्‍क्रीन क्रीम लगाएं ।

५ अ ६ ए. इस अवधि में छोटे बच्‍चे, बीमार, अधिक वजनवाले एवं प्रौढ लोगों का विशेष ध्‍यान रखें । इन व्‍यक्‍तियों को गर्मी सहन नहीं होती । गर्मी के कारण उन्‍हें अस्‍वस्‍थता लग सकती है । अतः उन्‍हें गर्मी का दंश न झेलना पडे, इसकी ओर ध्‍यान दें ।

५ अ ६ ऐ. बाहर काम करनेवाले कडी धूप में काम करना टालें । कडी धूप के समय विश्राम करें ।

५ अ ६ ओ. लू लगे व्‍यक्‍ति के शरीर का तापमान न्‍यून करने हेतु उसके माथे पर कपडे की गीली पट्टियां रखें । उस पर निरंतर पानी डालते रहें । मूर्च्‍छा आ रही हो अथवा अस्‍वस्‍थ लग रहा हो, तो तुरंत डॉक्‍टर से संपर्क करें ।

संदर्भ : पुस्‍तक – तैयारी में ही समझदारी : आपदा से बचने के सरल उपाय

५ अ ६ औ. ‘सवेरे दांत मांजने के उपरांत गाय के घी अथवा नारियल तेल की २-२ बूंदें नाक में डालें । इसे ‘नस्‍य’ कहते है । इसके कारण सिर एवं आंखों में निहित गर्मी का शमन होता है ।’

५ अ ६ अं. गर्म वातावरण से ठंडे वातावरण में आने के उपरांत तुरंत पानी न पीएं । १०-१५ मिनट उपरांत ही पानी पीएं ।

५ अ ६ अः. पैर में दरारें आना तथा गर्मी का कष्‍ट हो रहा हो, तो हाथ-पैरों में मेहंदी लगाएं ।’ – वैद्य मेघराज पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (८.४.२०१४)

५ अ ७. गर्मी से बचने हेतु निम्‍न कृत्‍य करना टालें !

५ अ ७ अ. ‘संभवतः घर से बाहर निकलना टालें । नंगे पैर बाहर न जाएं, विशेषरूप से दोपहर १२ से ३ की अवधि में घर से बाहर न निकलें ।

५ अ ७ आ. दोपहर के समय भोजन अथवा अन्‍य कोई पदार्थ न पकाएं, वैसा करने से घर में बढनेवाली उष्‍णता का टाला जा सकता है । रसोईघर में भोजन पकाते समय खिडकियां खुली रखें ।

५ अ ७ इ. चाय, कॉफी एवं मदिरापान करना टालें ।

५ अ ७ ई. अधिक गर्मी प्रक्षेपित करनेवाले उच्‍च वॅट के दीप अथवा हैलोजन दीप जलाना टालें ।’

संदर्भ : पुस्‍तक – तैयारी में ही समझदारी : आपदा से बचने के सरल उपाय

५ अ ७ उ. ‘अधिक व्‍यायाम, अधिक परिश्रम, अधिक उपवास, धूप में घूमना एवं प्‍यास-भूख को रोककर रखना इत्‍यादि कृत्‍य टालें ।

५ अ ७ ऊ. स्‍वादिष्‍ट, सूखे, बासी, खारा, अति तीखे, मसालेदार एवं तले हुए पदार्थ, साथ ही आमचूर, अचार, ईमली इत्‍यादि खट्टे पदार्थ सेवन करने से आम्‍लता बढती है । आम्‍लता बढने से गर्मी का कष्‍ट बढता है । अतः इन पदार्थों का सेवन टालें ।

५ अ ७ ए. ठंडेपेय (कोल्‍डड्रिंक्‍स), आईस्‍क्रीम, रसायनों का उपयोग किए हुए फलों के डिब्‍बाबंद रसों का सेवन न करें । ये पदार्थ पाचनशक्‍ति को बिगाड देते हैं । इनके अति सेवन के कारण रक्‍तधातु दूषित होने से त्‍वचारोग उत्‍पन्‍न होते हैं ।

५ अ ७ ऐ. इस ऋतु में दही न खाएं । उसके स्‍थान पर चीनी एवं जीरा डालकर मीठा छाछ लिया जा सकता है ।

५ अ ७ ओ. कडी धूप में जाना हो, तो पानी पीकर जाएं । सिर एवं आंखों का धूप से बचाव करने हेतु टोपी एवं गॉगल का उपयोग करें । प्‍लास्‍टिक की चप्‍पलों का उपयोग न करें ।

५ अ ७ औ. मैथुन करना टालें । करना हो, तो १५ दिन में एक बार करें ।

५ अ ७ अं. देररात तक जागना और सवेरे सूर्योदय के उपरांत भी सोए रहना टालें ।’

– वैद्य मेघराज पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (८.४.२०१४)

५ अ ७ अः. पालतु पशुओं के बचाव के लिए निम्‍न कृत्‍य करें !

५ अ ७ अः १. पशुओं को छाया में बांधकर रखें और उन्‍हें पीने के लिए स्‍वच्‍छ, ठंडा एवं प्रचुर मात्रा में पानी दें ।

५ अ ७ अः २. सवेरे ११ से दोपहर ४ बजे की अवधि में उनसे काम न करवाएं अथवा उन्‍हें बाहर न छोडें ।

५ अ ७ अः ३. गोशाला अथवा पशुओं के लिए शेड हो, तो उसकी छत ठंडी रखने का प्रयास करें । छत पर नारियल के पत्ते अथवा गीली घास रखकर उसे पानी से भिगोने से छत ठंडी रहती है ।

५ अ ७ अः ४. संभव हो, तो ऐसे स्‍थानों पर पंखा अथवा कूलर चलाया जा सकता है ।

५ अ ७ अः ५. गर्मी अधिक बढे, तो पशुओं के शरीर पर पानी का छिडकाव करें ।

संदर्भ : पुस्‍तक – तैयारी में ही समझदारी : आपदा से बचने के सरल उपाय

1 thought on “विश्‍वयुद्ध, भूकंप इत्‍यादि आपदाओं का प्रत्‍यक्षरूप से सामना कैसे करें ? (भाग ६)”

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