नैसर्गिक आपत्तियों में संगठितरूप से आपत्कालीन सहायता कैसे करें ?

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आपत्कालीन सहायता करते हुए कार्यकर्ता

 

आपत्कालीन सहायता करते हुए कार्यकर्ता

 

१. आपत्तियों का सखोल अध्ययन करना आवश्यक

१ अ. आपत्कालीन घटना का स्वरूप और व्याप्ति समझकर लेना

आपदाग्रस्त लोगों को सहायता करने की दृष्टि से सर्वप्रथम घटना का स्वरूप और उसकी व्याप्ति जानकर लें, उदा. भूकंप होने पर वह कितनी तीव्रता का है ?, कितने गांव जलप्रलय (बाढ) की चपेट में हैं ? इत्यादि । ऐसी जानकारी विविध प्रसारमाध्यम और शासकीय जालस्थल के आधार पर समझ सकते हैं । आपत्तियों की व्याप्ति बडी होने पर व्यक्तिगत अथवा संगठनात्मक स्तर पर किए जानेवाले सहायताकार्य को मर्यादा आती है । ऐसे समय पर प्रशासन अथवा लष्कर की सहायता कर सकते हैं । मध्यम और मंद स्वरूप की घटनाओं में संगठितरूप से आपत्कालीन सहायता अधिक सक्षम ढंग से कर सकते हैं ।

१ आ. आपत्कालीन सहायताकार्य करने के विषय में प्राधान्यक्रम निश्चित करना

उत्तराखंड में जलप्रलय आने पर मार्गपर पत्थर आ गए थे । इससे वहां शासकीय यंत्रणा और लष्कर को सहायता पहुंचाना कठिन था । ऐसे समय पर रास्ते से बडे-बडे पत्थर हटाकर महामार्ग खोल दिया । परिणामस्वरूप खाद्यान्न का ट्रक, लष्कर की गाडियां, रुग्णवाहिका आदि की सहायता मिलना आरंभ हो गया । नेपाल में भूकंप के कारण घर ध्वस्त हुए थे । उस समय गिरी हुई इमारतों का मलबा हटाने का काम भी करना पडा ।

१ इ. पूर्वतैयारी के लिए घटनास्थल की भौगोलिक स्थिति का अंदाज लेना

घाटियों और पहाडी भागों में नैसर्गिक आपदाएं आने से वहां की भौगोलिक स्थिति बिकट होती है । ऐसे समय पर वहां जाने के लिए कौन-सी पूर्वतैयारी करनी है, इसका पहले ही नियोजन करना पडता है । उत्तराखंड में हमें रोप क्लायबिंग के उपकरण ले जाने से लाभ हुआ । नेपाल में भूकंपप्रवण स्थिति होने से वहां रहने के लिए तंबू का उपयोग हुआ ।

 

२. आपत्कालीन सहायता करने की पद्धति

२ अ. एक संगठन द्वारा अथवा अनेक संगठनों द्वारा एकत्र आकर सहायताकार्य करना

२ आ. प्रशासन के सहायता कार्य में संगठन का अथवा अनेक संगठनों का सहभागी होना

 

३. सहायताकार्य करनेवाले स्वयंसेवकों में आवश्यक गुण और कौशल

संगठनों द्वारा सहायता कार्य के लिए स्वयंसेवकों का चयन करते समय उनकी शारीरिक अथवा मानसिक क्षमता उत्तम है अथवा नहीं, यह देखना आवश्यक होता है । आपदा के प्रसंगों में हमें स्वयं को ही वहां जाकर बडे प्रमाण में अंत्यसंस्कार करने का समय आ सकता है । कार्य के लिए स्वयंसेवकों के मन की तैयारी होनी चाहिए । नेतृत्वगुण, निर्णयक्षमता, सतर्कता, नियोजनकौशल्य, आत्मविश्वास, भावनाप्रधानता न होना, आत्मीयता साधना आना और ईश्वर पर श्रद्धा होना, ये महत्त्वपूर्ण गुण स्वयंसेवक में होने चाहिए । इसके साथ ही उसे वाहन चलाना आना, भोजन बनाना, प्रथमोपचार करना आदि कुशलताएं भी होनी चाहिए ।

 

४. आपत्कालीन सहायताकार्य के लिए जाते समय
स्वयंसेवक को अपने साथ ले जानेवाली वस्तुएं

पी.वी.सी. सोल के जूते, मोजे, पीठ पर बैग, पानी की बोतल, न फटनेवाले कपडे (न्यूनतम संख्या हो) कैमरा, टॉर्च, स्वयं को लगनेवाली औषधि, छोटी प्रथमोपचारपेटी, बिस्तर-चादर, सूखा नाश्ता जो पांच-छ: दिन के लिए पर्याप्त हो, मोटी रस्सी के साथ आवश्यक व्यक्तिगत साहित्य स्वयंसेवक साथ में लें ।

५. आपदग्रस्तों को प्रत्यक्ष सहायता करना

५ अ. आपत्कालीन सहायता करनेवालों और वस्तुओं के लिए कार्यालय स्थापित करना

५ आ. आपद्ग्रस्ताेंं को सुरक्षित स्थान पर ले जाना

५ इ. आपद्ग्रस्तों को मानसिक आधार देना
आपत्तिग्रस्त लोगों को मानसिक आधार मिलेगा, ऐसा प्रोत्साहन दें । मानसिक आधार देने के लिए उनके सगे-संबंधियों से संपर्क कर दें ।

५ इ १. आपदग्रस्तों को उपास्यदेवता का नामजप करने के लिए बताएं

५ ई. आपदग्रस्तों को जीवनावश्यक वस्तुओं का वितरण करना

 

६. आपत्कालीन सहायताकार्य संगठितरूप से करने का महत्त्व और उसकी दिशा !

जीवन में आपत्ति का सामना कब करना होगा, यह समय बताकर नहीं आता । आगामी काल में हमें कभी भी आपत्कालीन सहायता कार्य करने का समय आ सकता है । भारत में कहीं भी आपत्ति आई, तब भी हम सभी संगठनों को अपने धर्मबंधुओं की सहायता के लिए संगठित होकर कार्य करना है । आगामी काल में जहां आपत्ति आएगी, वहां हिन्दू संगठनों को भारतभर के हिन्दू संगठनों को बुलाकर सहायताकार्य करने का नियोजन करना है । हिन्दू जनजागृति समिति भी इस नियोजन में हमें सहयोग करेेगी ।

– एक कार्यकर्ता

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