सहजन, जोडों में वेदना एवं भारतीय खेती

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कहते हैं ‘जहां होता है वहां बिकता नहीं !’, यह कहावत सहजन की फलियों पर लागू होती है । भारत में सहजन का उत्पादन अच्छा होता है; परंतु उसका दैनंदिन आहार में उपयोग करने के विषय में भारतीय उदासीन हैं । वास्तव में सहजन की फलियां पौष्टिक होने से उनका सेवन करने पर उसका हमारे स्वास्थ्य पर अच्छा परिणाम होता है । सहजन की फलियों के गुणधर्म बतानेवाली जानकारी अगले लेख में दी है । कैल्शियम की गोलियां खरीद कर, कैल्शियम बढाने के स्थान पर सहजन की फलियां खाकर प्राकृतिक रूप से कैल्शियम बढाने पर उसका शरीर पर अवश्य ही अच्छा परिणाम होगा ।

लेखक : डॉ. ज्ञानेश्वर जाधव, आंतरराष्ट्रीय कृषितज्ञ

 

१. सहजन की फलियों में विद्यमान औषधीय गुणधर्म की उपेक्षा !

१ अ. भारतीय नागरिक कैल्शियम बढाने के लिए
गोलियां खाते हैं; परंतु कैल्शियम से भरपूर सहजन की फलियां खाने के प्रति उदासीनता दिखाते हैं !

भारत में वर्ष २०१७ में सहजन की फलियों की फसल अच्छी होने पर उसे निर्यात किया गया । इससे किसानों को अच्छा भाव मिला; इसलिए किसानों ने पुन: अच्छी गुणवत्तावाली सहजन की फलियों का उत्पादन कर, उसे बाजार में उपलब्ध किया । सहजन की फलियों के निर्यात की मांग उतनी ही है; परंतु उत्पादन ४ गुना अधिक होने से बाजारभाव गिर गया । भारतीय ग्राहक ने उसकी उपेक्षा की । एक ओर ‘कैल्शियम’ की कमतरता बढने से घुटनों, रीढ और जोडों में वेदनावाले रोगियों की संख्या बढती जा रही है । इसलिए समुद्र के सीपों को पीसकर कैल्शियम निर्माण किया जा रहा है और उससे बनी मंहगी गोलियां खाकर नागरिक ‘किडनी स्टोन’जैसे दूसरे रोगों की बलि चढ रहे हैं । दूसरी ओर जानवरों में कैल्शियम न्यून होने से उनके भी आरोग्य की समस्या बढ गई है । इससे दूध की गुणवत्ता गिर गई है । उसके परिणामस्वरूप बच्चों के दांत खराब हो रहे हैं ।

१ आ. किसानों को सहजन की फसल के लिए प्रोत्साहन देना आवश्यक !

आज बाजार में किसान २ से ५ रुपये किलो के दर से सहजन की फलियां बेच रहे हैं, तब भी ग्राहक नाक सिकोड रहे हैं । किसानों को यदि उचित दाम नहीं मिले, तो आगे से वे सहजन उगाना बंद कर देंगे । फिर यही सहजन इस्रायल से भारत में १५० से २०० रुपये किलो की दर से आयात होगा और तब नागरिकों को लंबी-लंबी कतारों में खडे होकर, मंहगे दामों पर उसे खरीदना होगा ।

 

२. सहजन की फलियों से बनाए जानेवाले विविध पदार्थ !

अ. महिलाएं सहजन के पदार्थ तैयार कर बच्चों को दें, इसके साथ ही उसका सूप बनाकर भी दे सकती हैं ।

आ. सहजन का आहार सप्ताह में कम से कम ३-४ बार लेना चाहिए ।

इ. सहजन के फलियों की सब्जी बना सकते हैं, इसके साथ ही शरबत भी तैयार कर उसे शीतपेटिका (फ्रिज) में रख सकते हैं ।

ई. सहजन की चटनी, पराठे, पापड ऐसे विविध पदार्थ बना सकते हैं । इसके लिए सामाजिक संस्थाओं को आगे आना चाहिए ।

उ. निसर्ग उपचार में फलियों का बडा महत्त्व है । उससे गाजर की तुलना में १० गुना ‘अ’ जीवनसत्त्व, दूध की तुलना में १७ गुना कैल्शियम, केले की तुलना में १५ गुना पोटेशियम, पालक की तुलना में २५ गुना लोहा और दही की तुलना में ९ गुना प्रोटीन मिलता है ।

ऊ. सहजन पकाकर उसका गुदा निकालकर उसे सुखा भी सकते हैं । यह सेंद्रिय कैल्शियम पचन के लिए अच्छा होता है । अधिक पका हुआ सहजन लेने से उसमें अधिक कैल्शियम मिलता है; परंतु उसे छाया में सुखाना पडता है ।

 

३. पश्चिमी देशों में हड्डियों के विकार बढने से सहजन की मांग बढना !

पश्चिमी देशों में ‘जंकफूड’के कारण हड्डियों के विकार आयु के १५ वें वर्ष से ही आरंभ होते दिखाई देते हैं । हड्डियों का घिसना और कैल्शियम की कमतरता आदि को रोकने के लिए वहां सहजन का उपयोग आरंभ हुआ है । इसलिए पाश्चात्य देशों में सहजन की मांग बढ जाने से अपने देश से सहजन की निर्यात बढ गई है ।

 

४. किसान सहजन की फसल व्यर्थ न करें, अपितु जानवरों के लिए इसका उपयोग करें !

जिस किसान के पास जानवर हैं, उन्हें सहजन की पत्तियां एवं सहजन पीसकर, उसका पाउडर प्रतिदिन २५० से ५०० ग्राम तक, जानवरों को खाने के लिए दें और दूध की गुणबत्ता बढाएं । किसान स्वयं भी इस पौष्टिक दूध का सेवन कर सकते हैं और अन्यों को भी वैसा बताकर ५ रुपये अधिक दर से दूध की विक्री कर सकते हैं । किसान को उसके परिश्रम का उचित मूल्य मिलने और उसे टिकाए रखने हेतु यह दायित्व केवल अकेले किसान का ही नहीं, हम सभी का है । किसान भी इस फसल को व्यर्थ न जाने देते हुए इसे जानवरों के लिए पोषक तत्त्व के रूप में इसका विचार करें ।

 

५. अपने परिवार का आरोग्य अबाधित रखने के लिए सहजन खरीदें !

महाराष्ट्र की जनता को अपने किसानों का उत्साह बढाने के लिए और अपने कुटुंब का आरोग्य अबाधित रखने के लिए बाजार से सहजन खरीदकर सहयोग करें ।

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