ज्योतिष और वास्तुशास्त्र में शनि के विषय में विचार

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इस लेख में हम ज्योतिष और वास्तुशास्त्र के अनुसार शनि ग्रह का विचार करनेवाले हैं । चिंतन, कठोर अनुष्ठान, जप-तप, वैराग्य, संन्यास ये विषय शनि ग्रह के अधिकारक्षेत्र में आते हैं । वास्तुशास्त्र में दिशाओं का बहुत महत्त्व है । पश्चिम दिशा का स्वामी शनि ग्रह है । अंकशास्त्र के अनुसार 8 अंक शनि ग्रह के प्रभावक्षेत्र में आता है ।

श्रीमती प्राजक्ता जोशी, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय

 

१. ज्योतिष और वास्तुशास्त्र में समानताएं

वास्तुशास्त्र के अनुसार ज्योतिषशास्त्र, वास्तुशास्त्र, आयुर्वेद, धार्मिक अनुष्ठान, संगीतशास्त्र, मुहूर्तशास्त्र आदि सब भारतीय शास्त्र एक-दूसरे से जुडे हैं । प्रत्येक शास्त्र का अन्य शास्त्रों से थोडा-बहुत संबंध होता है । सब भारतीय तत्त्वज्ञान श्रेयस (कल्याणकारी) कार्य को महत्त्व देते हैं । यह कल्याणकारी कार्य आपको अच्छा लगे अथवा बुरा, यह प्रश्न नहीं है । जो आपके हित में है, कल्याणकारक है, वही बात हमारे शास्त्र दृढता से कहते हैं; उदा. आयुर्वेद के अनेक नियम अथवा अनेक धार्मिक बातें । आज का आधुनिक विज्ञान प्रेयस (अर्थात सुखकारक) क्या है ? वह बताती हैं ।

ज्योतिषशास्त्र में व्यक्ति की जन्मकुंडली के आधार पर बताया जाता है कि उसके जीवन में वास्तुसुख है अथवा नहीं और है, तो कब है?, वास्तुसुख में बाधाएं क्या हैं ? अनेक बार कुंडली में बताई दिशा और वास्तु की दिशा में समानता दिखाई देती है । कुंडली के आधार पर वास्तु के विषय में विचार करना अधिक उपयोगी होता है । वास्तु की किस दिशा में दोष है ?, इसका निर्णय कुंडली देखकर किया जा सकता है ।

 

२. वास्तुशास्त्रानुसार शनि ग्रह का महत्त्व

भारतीय वास्तुशास्त्र को १८ महर्षियों की परंपरा है । ऋग्वेद, अथर्ववेद, मत्स्यपुराण, अग्निपुराण, मानसारम्, समरांगण सूत्रधार, अपराजित पृच्छाः, मनुष्यालय चंद्रिका आदि ग्रंथों में वास्तुशास्त्र का विस्तृत विवेचन मिलता है । हमारी वास्तु का प्रभाव हमारे शरीर और मन पर होता है । भारतीय वास्तुशास्त्र ने प्रकाश, हवा, वास्तु निर्माण की दृढता, सौंदर्य, स्वास्थ्य और भौतिक सुख-समद्धि का विचार किया है । प्रत्येक दिशा शरीर और मन के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है । वास्तुशास्त्र, दिशा और ऊर्जा का शास्त्र है ।

वास्तुशास्त्र में प्रत्येक वस्तु और कक्ष की दिशा निश्चित रहती है । वास्तुपुरुषमंडल में जो देवताओं के स्थान बताए गए हैं, उन स्थानों से संबंधित देवतास्वरूप ऊर्जाओं का विचार करना पडता है । दस दिशाओं में से पश्चिम दिशा का स्वामी ‘शनि’ ग्रह है ।

 

३. वास्तुशास्त्रानुसार शनि ग्रह से संबंधित पश्चिम दिशा में क्या होना चाहिए ?

अ. वास्तुशास्त्रानुसार पश्चिम दिशा ऊंची होनी चाहिए; क्योंकि पश्चिम दिशा से ऋणात्मक (नकारात्मक, अशुभ) किरणें आती हैं । पश्चिम दिशा ऊंची और पूर्व दिशा में उतार होने पर पूर्व दिशा से आनेवाली शुभ किरणों का प्रभाव बढता है और वे वास्तु में अनेक वर्षाें तक रहती हैं ।

आ. वास्तु का निर्माण करते समय पहले चौहद्दी (कंपाउंड) की पश्चिमी और दक्षिणी भीत (दीवार) खडी करनी चाहिए । इससे वास्तु निर्माण में विलंब नहीं होता ।

इ. कंपाउंड की भीत बनाते समय मुख्य द्वार (मेन गेट) पश्चिम में रखना पडे, तो वह पश्चिम के चौथे ‘पुष्पदंत पद’ में और पाचवें ‘वरुण’ पद में (पद का अर्थ है खंड अथवा भाग) होना अत्यंत लाभदायक होता है ।

ई. पश्चिम दिशा में खिडकियां आवश्यक संख्या में और छोटी हों ।

उ. भोजन पटल (भोजनगृह) पश्चिम दिशा में होना उत्तम !

ऊ. पानी की ऊपर की टंकी (ओवरहेड वॉटर टैंक) पश्चिम दिशा में बैठानी पडे, तो पश्चिम दिशा के बीचोबीच बैठाना अच्छा रहेगा ।

ए. घर में ‘फर्नीचर’ और ‘लॉफ्ट’ पश्चिम अथवा दक्षिण दिशा की भीत में हो ।

ऐ. पश्चिम दिशा में अश्वत्थ (पीपल) का वृक्ष होना लाभदायक है ।

 

४. पश्चिम दिशा में शयनकक्ष न हो !

पश्चिम दिशा का स्वामी वायुतत्त्व बढानेवाला शनि ग्रह होने के कारण निराशा (डिप्रेशन) आना, छोटे-छोटे संकटों से मन घबराना, विचारों में निरंतर परिवर्तन, स्थिरता न आना’, इन सब बातों का प्रभाव पति-पत्नी के आपसी संबंधों पर पडता है, जिससे वैवाहिक जीवन में बाधाएं आ सकती हैं ।

‘हमारी वास्तु में प्राकृतिक ऊर्जा का अधिकाधिक उपयोग हो’, यह भारतीय वास्तुशास्त्र का मुख्य उद्देश्य है । दिशाओं का विचार न करने पर वास्तु में रहनेवालों का स्वास्थ्य ठीक न रहना और इस कारण भौतिक समृद्धि से वंचित रहना, कार्य में विफलता आना, संबंधियों से मनमुटाव होना आदि समस्याएं उत्पन्न होती हैं । वास्तु में सुख मिलने के लिए उसमें नियमित पूजा और धार्मिक कृत्य कराते रहना चाहिए । घर के सब सदस्य वयस्क लोगों का सम्मान रखें । प्रत्येक व्यक्ति अपने में अच्छे गुण लाने का प्रयत्न करे । ‘हमारा घर एक मंदिर है अथवा हमारे गुरु का आश्रम है’, इस भाव से अहंकार रहित रहने पर वास्तु में आनंद और शांति का अनुभव निश्चित होता है ।’

– श्रीमती प्राजक्ता जोशी, ज्योतिष फलित विशारद, वास्तु विशारद, अंक ज्योतिष विशारद, रत्नशास्त्र विशारद, अष्टकवर्ग विशारद, सर्टिफाइड डाऊसर, रमल पंडित, हस्ताक्षर मनोविश्लेषणशास्त्र विशारद, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, रामनाथी, फोंडा, गोवा (2.10.2020)

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