स्मृतिकार एवं गोत्रप्रवर्तक पराशर ॠषि का तपोस्थल एवं ‘पराशर ताल’

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श्रीचित्‌शक्‍ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ

देवभूमि हिमाचल

श्री. विनायक शानभाग

हिमाचल प्रदेश को ‘देवभूमि हिमाचल’ कहा जाता है । युग-युग से हिमाचल प्रदेश देवताओं एवं ऋषि-मुनियों का निवासस्थान रहा है । यहां वसिष्ठ, पराशर, व्यास, जमदग्नि, भृगु, मनु, विश्वामित्र, अत्री आदि अनेक ऋषियों की तपोस्थली, साथ ही शिव-पार्वती से संबंधित अनेक दिव्य स्थान हैं । कुछ ऐसे क्षेत्र में हैं, जहां मनुष्य पहुंच पाता है; तो कुछ स्थान गुप्त हैं । ऐसे दिव्य स्थानों में ही एक तपोस्थली है ‘पराशर ताल !’ ऋषि पराशर वसिष्ठ ऋषि के प्रपौत्र एवं महर्षि व्यास के पिता थे । इस स्थान पर द्वापरयुग में पांडवों के आने का भी उल्लेख है । ऐसे चैतन्यमय स्थान पर जाकर श्रीचित्‌शक्‍ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने पराशर ऋषि से सभी साधकों के अच्छे स्वास्थ्य और हिन्दू राष्ट्र-स्थापना हेतु प्रार्थना की ।

 

‘पराशर ताल’ के संदर्भ में विशेषतापूर्ण जानकारी

पराशर ताल का दैवी तालाब, उसमें विद्यमान छोटा द्वीप एवं उसके निकट लकडी से बना श्रीविष्णु, शिव एवं पराशर ऋषि का मंदिर

‘पराशर ताल’ स्थान हिमाचल प्रदेश राज्य के कुल्लु जनपद में स्थित पराशर अरण्य में है । यह स्थान समुद्रतल से ९ सहस्र फीट की ऊंचाई पर है । ‘पराशर ताल’ एक रहस्य ही बना हुआ है । यहां एक तालाब है और उसके मध्य भाग में एक छोटा सा द्वीप है । यह द्वीप तैरता रहता है एवं तालाब में अपना स्थान बदलता रहता है । इससे पूर्व इस तालाब की गहराई नापने के अनेक प्रयास किए गए; परंतु उसमें किसी को भी सफलता नहीं मिली है । वर्ष के ४ माह यहां सर्वत्र बर्फ होने से यह तालाब जम जाता है ।

 

६ वर्ष के दैवी बालक द्वारा एक रात में
निर्माण किया हुआ श्रीविष्णु, शिव एवं पराशर ऋषि का लकडी का मंदिर

श्रीचित्‌शक्‍ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी एवं पीछे दैवी तालाब के निकट ६ वर्ष बालक द्वारा निर्मित मंदिर

तालाब के निकट १३ वीं शताब्दी में निर्मित एक बडा मंदिर है । यहां के पुजारियों ने बताया कि ६ वर्ष के एक दैवी बालक ने एक देवदार वृक्ष की लकडी से एक रात में इस संपूर्ण मंदिर का निर्माण किया है । इस मंदिर में बहुत पहले स्थापित श्रीविष्णु की मूर्ति एवं शिवलिंग हैं । कुछ वर्ष पूर्व स्थानीय लोगों ने इस मंदिर में पराशर ऋषि की एक सुंदर मूर्ति की स्थापना की है ।

विशेषतापूर्ण अनुभूति

१. पराशर ताल में पहुंचने से १० कि.मी. पूर्व से ही निरंतर अगरबत्ती की सुगंध आ रही थी । इसकी विशेषता यह थी कि यह सुगंध बाहर के वातावरण में भी आ रही थी । इस संदर्भ में श्रीचित्‌शक्‍ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने कहा कि सिद्धपुरुषों और ऋषि-मुनियों के यहां होने से यह उनके दैवी अस्तित्व की सुगंध है ।

२. श्रीचित्‌शक्‍ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी जब पराशर ताल पहुंचीं, तब उन्होंने उस तालाब में स्थित छोटे द्वीप से प्रार्थना की । उनके प्रार्थना करते ही पानी का रंग तुरंत नीला हो गया और सुंदर दिव्य ज्योतियां उभरकर ऊपर आईं । वे दिव्य ज्योतियां फिटकरी की भांति दिखाई दे रही थीं । ये दिव्य ज्योतियां वहां स्थित दिव्य शक्तियां ही थीं । श्रीचित्‌शक्‍ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने बताया कि साक्षात श्रीविष्णु के अवतार पराशर ऋषि ने ज्योतिरूप में दर्शन दिए । श्रीचित्‌शक्‍ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को स्थूल से भी दिखाई दे रहा था । उन्होंने उनके साथ गए साधक सर्वश्री विनीत देसाई एवं वाल्मिक भुवन से कहा, ‘आप भी दर्शन कीजिए ।’ उनके कहने पर उन साधकों को भी उस दिव्य ज्योति के दर्शन हुए ।

– श्री. विनायक शानभाग, हिमाचल प्रदेश

 

पराशर ऋषि की महिमा !

पराशर ऋषि की मंदिर में स्थापित सुंदर मूर्ति

‘पराशर ऋषि’ स्मृतिकर्ता एवं गोत्रप्रवर्तक ऋषि थे । ‘शाक्ति’ ऋषि उनके पिता, तथा वसिष्ठ ऋषि उनके दादाजी थे । पराशर ऋषि के सुपुत्र महर्षि व्यास ने वेद, उपनिषद, पुराण एवं महाभारत आदि ग्रंथ लिखे और वेदों का विभाजन किया । पराशर ऋषि वर्तमान युग के सप्तर्षियों में से एक हैं । उन्होंने ज्योतिष, कृषि एवं आयुर्वेद पर आधारित अनेक ग्रंथ लिखे हैं; उनमें ‘बृहत्पराशर होराशास्त्र’ अत्यंत प्रसिद्ध है । यह ग्रंथ ज्योतिषशास्त्र के अध्ययनकर्ताओं के लिए मूल ग्रंथ माना जाता है । आज जो जन्मकुंडली बनाई जाती है, उसके जनक पराशर ऋषि हैं । सनातन संस्था की ओर से पराशर ऋषि के चरणों में कृतज्ञतापूर्वक त्रिवार वंदन !’

– श्री. विनायक शानभाग
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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