आपातकालमें जीवनरक्षा हेतु आवश्यक तैयारी : भाग – ७

आपातकाल से पार होने के लिए साधना सिखानेवाली सनातन संस्था !

भाग ६ पढनेके लिए देखें आपातकालमें जीवनरक्षा हेतु आवश्यक तैयारी भाग  ६

आपातकाल में अखिल मानवजाति की जीवनरक्षा हेतु आवश्यक तैयारी
करने के विषय में मार्गदर्शन करनेवाले एकमात्र परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी !

आपातकालीन लेखमाला के पिछले भाग में हमने पारिवारिक स्तर पर आवश्यक नित्योपयोगी वस्तुओं के विषय में जानकारी देखी । अब कुछ नित्योपयोगी वस्तुओं के विकल्प के विषय में इस लेख में जानकारी दे रहे हैं ।

 

३. आपातकाल की दृष्टि से शारीरिक स्तर पर की जानेवाली तैयारी

३ ए. विविध नित्योपयोगी वस्तुओं के विकल्प का विचार करना

आपातकाल में हाट में अनेक नित्योपयोगी वस्तुओं का अभाव हो जाएगा, वे महंगी हो जाएंगी अथवा मिलेंगी ही नहीं । इस समय आगे बताए विकल्प (पर्याय) उपयोगी होंगे । इन विकल्पों में से जो आप कर सकते हैं, उनका उपयोग अभी से करने का अभ्यास करें ।

३ ए १. हाट में मिलनेवाले दंतमंजन और दंतलेप (टूथपेस्ट ) का विकल्प
नीम की टहनी (दातुन)

अ. नीम की कोमल टहनी के लगभग १५ सेंमी. लंबे टुकडे कर, उनका उपयोग दांत स्वच्छ करने के लिए करें ।

आ. रसोई में उपयोग किए जानेवाले पिसे हुए नमक से दांत स्वच्छ करें ।

– श्री. अविनाश जाधव, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा (२१.५.२०२०)

इ. १० भाग गेरू और १ भाग नमक (सेंधा नमक उत्तम है; अन्यथा खडा नमक पीसकर प्रयोग कर सकते हैं ।) मिला लें । इसका दंतमंजन के रूप में प्रयोग करें ।

ई. आम, अमरूद, नीम, आक (मदार), पीपल, खैर, करंज और अर्जुन में से जो भी उपलब्ध हो, उतने वृक्षों के सूखे पत्ते अथवा सूखी टहनी जलाकर उनकी राख बनाएं । यह राख कपडछन कर (कपडे से छानकर) दंतमंजन के रूप में उपयोग करें ।

– पू. वैद्य विनय भावे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा (१०.१२.२०१९)

उ. बबूल की सूखी फलियां जलाकर, उसकी कपडछन राख का प्रयोग दंतमंजन के रूप में करें ।

ऊ. कंडे से (गोबर के उपले से)  बना दंतमंजन
कंडे से (गोबर के उपले से)  बना दंतमंजन

कंडे से दंतमंजन बनाते समय उसपर मक्खियां अथवा कीडे न बैठें; इसके लिए नीम के ताजे पत्ते और धान (चावल) की भूसी गोबर में मिलाकर उनके पतले कंडे बनाएं । नीम के पत्तों के कारण मक्खियां कंडों पर नहीं बैठतीं । धान की भूसी के कारण कंडे शीघ्र जलते हैं । कंडे पतले बनाने से वे शीघ्र सूखते हैं । इन कंडों का छोटा-सा ढेर बना लें । इसे इस प्रकार बनाएं कि उसमें एक दीपक रखा जा सके । इस ढेर के भीतर घी का दीपक जलाने पर कंडे शीघ्र आग पकडते हैं । कुछ कंडों के आग पकड लेने पर, भीतर रखा घी का दीपक निकाल लें । कंडे का ढेर पूर्णतः जल जाने पर वह लाल दिखाई देने लगता है । ढेर पूर्णतः जल गया है, यह सुनिश्‍चित होने पर उसे उसी स्थिति में कोई बडा पतीला अथवा लोहे का तसला उस पर उलट कर उसे ढंक दें । ढंके हुए पतीले अथवा तसले की भूमि से सटी किनारों को मिट्टी से बंद कर दें । (कुछ स्थानों पर एक छोटा गड्ढा खोदकर, उसमें कंडे जलाते हैं । उनके जलकर लाल हो जाने पर, उस गड्ढे कोे सीमेंट अथवा टीन की चादर से ढंककर उसके किनारों को मिट्टी से मूंद देते हैं ।) इससे पतीले के भीतर जल रहे कंडों को प्राणवायु (आक्सीजन) नहीं मिलती और वे बुझ जाते हैं । अगले दिन पतीले को हटाकर कंडों के कोयले को बारीक कर उसे कपडे से छान लें । यदि कंडों की राख का कपडछन चूर्ण १० कटोरी हो, तो उसमें ५ छोटे चम्मच (टीस्पून) सेंधा नमक और आधा चम्मच फिटकरी का चूर्ण अच्छे से मिला दें । इस मिश्रण का उपयोग दंतमंजन के रूप में करें ।

– श्री. अविनाश जाधव (२१.५.२०२०)

ए. धान की भूसी के ढेर पर जलते कोयले रखें । इससे भूसी जलने लगती है । यह ढेर जब पूर्णतः जल जाए, तब उसकी राख बनती है । इस ठंडी राख को कपडे से छान लें । (इस जली हुई भूसी के बाहर का कुछ भाग जलने पर केवल काला पडता है; परंतु उसकी राख नहीं बनती । वह काला भाग हल्के हाथ से हटा दें और केवल भीतर की राख का उपयोग करें ।) उस राख को दंतमंजन के समान प्रयोग करें ।

– पू. वैद्य विनय भावे (१०.१२.२०१९)

ऐ. नारियल का ऊपरी कठोर भाग अथवा बदाम के ऊपरी कडे छिलके जलाएं । इस राख के कपडछन चूर्ण का दंतमंजन के रूप में उपयोग करें । – श्री. अविनाश जाधव (२१.५.२०२०)

उपर्युक्त उपसूत्र ‘इ’से आगे के सब प्रकार के दंतमंजन प्लास्टिक की थैली में अथवा छोटे हवाबंद डब्बों में रखने पर लगभग एक वर्ष तक रहते हैं ।

३ ए २. दाढी बनाने के साबुन और लेपी (शेविंग क्रीम) का विकल्प

अ. गालों पर गरम पानी लगाकर दाढी कर सकते हैं अथवा उष्ण (गरम) जल से स्नान करने के तुरंत पश्‍चात भी दाढी कर सकते हैं ।

आ. दाढी पर नारियल का अथवा तिल का तेल मलकर दाढी कर सकते हैं ।

उपर्युक्त वैकल्पिक साधनों से (चिकनी नहीं) कामचलाऊ दाढी बनती है ।  इस प्रकार दाढी बनाने से कष्ट हो, तब ऐसा न करें ।

– पू. वैद्य विनय भावे (१०.१२.२०१९)
३ ए ३. स्नान के साबुन का विकल्प
मुलतानी मिट्टी

‘स्नान का साबुन न मिले, तब बेसन अथवा मसूर की दाल का आटा, मुलतानी मिट्टी, बमीठा (बांबी) की मिट्टी अथवा अच्छे स्थान की छनी हुई मिट्टी (उदा. काली मिट्टी, लाल मिट्टी) का उपयोग करें । ये वस्तुएं पहले थोडे पानी में भिगोकर, आगे उनका उबटन समान उपयोग करें । [अनेक बार बमीठा में स्थानदेवता का वास होता है । इसलिए, आसपास के स्थानीय लोगों से पूछकर पता करें कि वह बमीठा स्थान देवता का तो नहीं है ? पश्‍चात, एक लंबे डंडे से बमीठाुफोडें और उसकी मिट्टी इकट्ठा कर, बारीक कूटकर, चलनी से छान लें ।]

यदि उपर्युक्त कोई वस्तु उपलब्ध न हो, तब स्नान करते समय हाथ से शरीर को रगडना भी पर्याप्त है । – वैद्य मेघराज पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा (१३.३.२०१९)

३ ए ४. केश धोने के साबुन और दुकान में मिलनेवाले द्रव साबुन (शैंपू) का विकल्प
३ ए ४ अ. शिकाकाई चूर्ण घर पर बनाना

‘आंवला चूर्ण २ भाग, शिकाकाई और रीठा का चूर्ण १-१ भाग लेकर ठीक से मिला लें । इसका २ से ४ चम्मच चूर्ण रातभर लोहे की कढाही में भिगोकर रखें । (लोहे की कढाही न होने पर यह मिश्रण स्टील के बर्तन में भिगोकर उसमें लोहे के कुछ टुकडे, उदा. ४ – ५ लोहे की कीलें, डाल दें । अगले दिन इस घोल का उपयोग करने से पहले कीलें निकाल कर रख लें । – संकलनकर्ता) आवले का रंग लोहे के संपर्क में काला पड जाता है । इससे केश काले होने में सहायता होती है । सवेरे स्नान से एक घंटा पहले इस भिगोए चूर्ण का पतला लेप केश को लगाएं और स्नान के समय उन्हें गुनगुने पानी से धो लें । सप्ताह में १ – २ बार ऐसा करने से केश स्वस्थ, काले और कोमल बनते हैं । – वैद्या (श्रीमती) गायत्री संदेश चव्हाण, कुर्ला, मुंबई (२०.६.२०२०)

‘उपर्युक्त चूर्ण में २ भाग मेथी, १ भाग नागरमोथा, १ भाग जटामांसी और हो सके, तो गुडहल के फूल, ब्राह्मी के पत्ते और भृंगराज (भंगरैया) के पत्ते सुखाकर उनका चूर्ण भी मिला सकते हैं । आंवला, शिकाकाई, नागरमोथा आदि वस्तुएं हाट में उपलब्ध रहती हैं । उनके चूर्ण हवाबंद डिब्बे में भरकर रखने पर लगभग १ वर्ष टिकते हैं । परंतु यदि इन वस्तुओं को मूलरूप में (बिना चूर्ण बनाए) कडी धूप में ठीक से सुखाकर हवाबंद डिब्बों में भरा जाए, तो ये लगभग ३ वर्ष टिकती हैं । हवा की आर्द्रता (नमी) के संपर्क में ये वस्तु मुलायम पड जाती हैं; इसलिए इन्हें धूप में पुन: सुखाकर उपयोग में ला सकते हैं ।

– वैद्य मेघराज पराडकर (२०.६.२०२०)
३ ए ४ आ. रीठा

रीठा के फल सुखाकर रखें । ५ – ६ रीठा उष्ण (गरम) पानी में रातभर भीगने दें । सवेरे स्नान के समय वह पानी केश पर मलकर उससे केश धो लें ।

३ ए ५. कपडे धोने का साबुन अथवा साबुन चूर्ण (पाउडर) का विकल्प
रीठा पाउडर
३ ए ५ अ. रीठा

रीठा कडी धूप में सुखाएं । कभी कभी वे सूखकर फट जाते हैं और उनके बीज अपनेआप बाहर आ जाते हैं । बीज अपनेआप बाहर न आने पर, सूखे रीठे खलबत्ते में धीरे-धीरे कूटकर उनमें से बीज निकाल लें । अब छिलके खलबत्ते में कूटकर बारीक चूर्ण बना लें । इस चूर्ण का साबुन की भांति प्रयोग करते समय इतना ही पानी लें कि वह थोडा गीला हो जाए । थोडा-सा पानी मिलाकर गीला किया हुआ यह चूर्ण २० से २५ मिनट वैसे ही बर्तन में रहने दें । तदुपरांत वह गीला चूर्ण साबुन समान गीले कपडों पर मसलकर उसका उपयोग कपडे धोने के लिए करें ।

३ ए ५ आ. काली मिट्टी

काली मिट्टी से कपडे धोते समय उसे साबुन की टिकिया की भांति गीले कपडों पर रगडें और बहते पानी में धो लें । (कपडे धोने के लिए लाल मिट्टी का उपयोग न करें; क्योंकि इससे कपडों पर दाग पडते हैं ।)

– श्री. अविनाश जाधव (मई २०२०)

३ ए ५ इ. केले के पत्तों की डंडियों की राख

केले के पत्तों की डंडियां सुखाएं । पश्‍चात, उन्हें जलाकर राख बना लें । इस राख में क्षार होता है । इसलिए इस राख से साबुन की भांति गीले कपडे धो सकते हैं । [संदर्भग्रंथ : व्यापारोपयोगी वनस्पतीवर्णन (भाग १) (मराठी ग्रंथ), लेखक – गणेश रंगनाथ दिघे, वर्ष १९१३]

३ ए ६. बरतन मांजने का साबुन, साबुन चूर्ण आदि का विकल्प

३ ए ६ अ. चूल्हे की राख : चूल्हे से राख निकालें और ठंडा होने पर उसका उपयोग बरतन धोने के लिए करें ।

३ ए ६ आ. मिट्टी : राख उपलब्ध न हो, तब किसी भी मिट्टी (उदा. काली मिट्टी, लाल मिट्टी) से बरतन मांजें । यदि मिट्टी में कंकड हैं, तब बरतन पर खरोंचें पड सकती हैं । इसलिए बरतन मांजने की मिट्टी को चलनी से छान लें  ।

३ ए ७. हाथ धोने के साबुन अथवा द्रवसाबुन का विकल्प

३ ए ७ अ. चूल्हे की राख : चूल्हे की ठंडी राख से हाथ धोएं ।

३ ए ७ आ. मिट्टी : किसी भी प्रकार की मिट्टी से हाथ धोएं ।

– श्री. अविनाश जाधव (मई २०२०)

३ ए ८. दियासलाई अथवा प्रज्वलिका (लाइटर) का विकल्प
३ ए ८ अ. सूर्यप्रकाश से अग्नि उत्पन्न करने के लिए ‘अवतल ’ का उपयोग करें
अवतल

सूर्यप्रकाश की उपस्थिति में अग्नि प्रज्वलित करने के लिए अवतल दर्पण (Convex lens अथवा Magnifying lens) का उपयोग कर सकते हैं । यह उस दुकान में मिलेगा, जिसमें प्रयोगशाला की वस्तुएं मिलती हैं । अवतल से केंद्रीभूत सूर्यकिरणें कपास, नारियल की जटा, सूखी घास, सूखे पत्ते अथवा कागद के एक स्थान पर लगातार १ से ५ मिनट (यह समय सूर्यकिरणों की प्रखरता पर निर्भर करता है) स्थित करने पर अग्नि प्रज्वलित होकर धुआं उठने लगता है ।

३ ए ८ आ. चूल्हे की अग्नि प्रज्वलित रखना

१. चूल्हे पर रसोई आदि बनाने के पश्‍चात चूल्हे की आग को राख से ढंक दें । इससे चूल्हे की आग पूर्णतः नहीं बुझती, थोडी सुलगती रहती है । ३-४ घंटे पश्‍चात उन्हीं कोयलों पर कागद अथवा सूखे पत्ते डालकर फुंकनी से फूंककर, अग्नि पुन: प्रज्वलित करें । – श्री. अविनाश जाधव (मई २०२०)

२. मिट्टी के दो चूल्हे बनाएं । उनके भीतर की भूमि में एक-एक छोटा गड्ढा बनाएं । एक चूल्हे के गड्ढे में गोबर का एक गोला रखें और उसे राख से ढंक दें । उस चूल्हे में सदा की भांति अग्नि प्रज्वलित करें । ऐसा करने से भूमि गोबर के गोले का पानी सोख लेती है और वह गोला चूल्हे की अग्नि से भीतर-ही-भीतर सुलगता रहता है । अगले दिन दूसरे चूल्हे का उपयोग करें । उस चूल्हे के गढ्ढे में भी गोबर का गोला रखकर, चूल्हे का उपयोग दिनभर करें । तीसरे दिन, पहले चूल्हे के गढ्ढे में रखा गोबर का गोला, जो अब सुलग रहा है, उसे चिमटे से निकाल लें । पश्‍चात, उसपर कागद अथवा सूखे पत्ते डालकर फुंकनी से फूंककर अग्नि प्रज्वलित करें । इस प्रकार, बारी-बारी से दोनों चूल्हों काउपयोग करें ।

– श्री. विवेक नाफडे, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल. (मई २०२०)
३ ए ८ इ. अग्नि-प्रस्तर (चकमक पत्थर) की सहायता से अग्नि उत्पन्न करना
चकमक

नींबू के आकार के २ चकमक पत्थर एक-दूसरे पर इस प्रकार टकराएं कि उनकी चिंगारी नीचे रखे कपास पर पडे । इससे कपास जलने लगेगा । – श्री. कोंडिबा जाधव, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा (७.१.२०१९)

३ ए ९. नमक का विकल्प

‘केले के तने की सूखी परतें जलाकर बनाई गई राख में क्षार होता है । बंगाल में निर्धन (गरीब) लोग नमक के विकल्प के रूप में इसका उपयोग करते हैं । [संदर्भग्रंथ : व्यापारोपयोगी वनस्पतीवर्णन (भाग १) (मराठी ग्रंथ), लेखक – गणेश रंगनाथ दिघे, वर्ष १९१३]

३ ए १०. भोजन की थाली और कटोरी का विकल्प

भोजन की थाली के स्थान पर केले के पत्तों का उपयोग करें । उसी प्रकार, बरगद और महुआ के पत्तों से बने पत्तलों और द्रोणों (दोनों) का भी उपयोग थाली और कटोरी की भांति कर सकते हैं ।

३ ए ११. दुकान की मच्छर भगाने की अगरबत्तियां, द्रव रसायन (लिक्विड) आदि का विकल्प
३ ए ११ अ. मच्छर प्रतिबंधक अगरबत्ती घर में बनाना

गाय का लगभग एक किलो ताजा गोबर लें । पश्‍चात, लगभग १ मुट्ठी तमालपत्र, २ मुट्ठी नीम के पत्ते, आधा मुट्ठी पुदीना, आधी मुट्ठी तुलसी के पत्ते लेकर इकट्ठा पीस लें । अब इस मिश्रण में २ छोटे चम्मच (टीस्पून) नीम का तेल और आधा चम्मच कर्पूर चूर्ण डालकर, गोबर में ठीक से मिला दें । इस मिश्रण को धूपबत्ती का आकार देकर उन्हें सुखा लें ।

३ ए ११ आ. अन्य विकल्प

१. कक्ष के मच्छरों को भगाने के लिए  –

अ. मैट (मच्छर प्रतिबंधक कागदी टिकिया) जलाने के यंत्र पर लहसुन की एक कली रखकर जलाएं । एक कली का उपयोग १ – २ दिन किया जा सकता है ।

आ. नीम का तेल और नारियल का तेल समान मात्रा में लेकर उसके मिश्रण का दीया घर में जलाएं ।

इ. नीम के पत्ते कोयले के अंगारों पर डालकर धुआं करें । यदि पत्ते बहुत सूखे हों, तब उनपर थोडा पानी छिडक दें । इससे वे बहुत समय तक धुआं छोडते रहेंगे ।

ई. संतरों के सूखे मुट्ठीभर छिलके कोयले के अंगारों पर डालकर धुआं करें ।

२. नीम के पत्तों का रस और पुदीने का तेल समान मात्रा में मिलाकर शरीर के खुले भाग पर मलें । ऐसा करने से मच्छर पास नहीं आएंगे ।

३. मच्छर कम होने के लिए घर के आस-पास गेंदे के पौधे लगाएं ।

– श्री. अविनाश जाधव (१६.६.२०२०)
– संकलनकर्ता : परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी
संदर्भ : सनातन की आगामी ग्रंथमाला ‘आपातकाल में जीवनरक्षा हेतु आवश्यक तैयारी’

(प्रस्तुत लेखमाला के सर्वाधिकार (कॉपीराईट) ‘सनातन भारतीय संस्कृति संस्था’के पास हैं ।)

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