आपातकाल में जीवनरक्षा हेतु आवश्यक तैयारी : भाग – ५

आपातकाल से पार होने के लिए साधना सिखानेवाली सनातन संस्था !

भाग ४ पढने हेतु देखें : आपातकाल में जीवनरक्षा हेतु आवश्यक तैयारी भाग – ४

आपातकाल में अखिल मानवजाति की प्राणरक्षा हेतु आवश्यक तैयारी
करने के विषय में मार्गदर्शन करनेवाले एकमात्र परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी !

आपातकालीन लेखमाला में अबतक हमने अन्न के अभाव में भूखमरी से बचने के लिए क्या करना चाहिए तथा अनाज की खेती, गोपालन, पानी की सुविधा करना, पानी का भंडारण तथा उसके शुद्धीकरण की पद्धतियां, बिजली के विकल्प आदि विषय देखे । इस लेख में यात्रा अथवा परिवहन के उपयुक्त साधनों की जानकारी दी है ।

 

३. आपातकाल की दृष्टि से शारीरिक स्तर पर करनी विविध तैयारियां

३ ई. पेट्रोल आदि ईंधन अथवा बिजली के अभाव में यात्रा की व्यवस्था

३ ई १. यात्रा अथवा परिवहन हेतु उपयुक्त साधन खरीदना

आपातकाल में पेट्रोल, डीजल आदि ईंधन का संकट अनुभव होगा । आगे तो ये ईंधन मिलेंगे भी नहीं । तब ईंधन पर चलनेवाले दुपहिया और चारपहिया वाहन अनुपयोगी हो जाएंगे । ऐसी स्थिति में यात्रा करना, रोगी को वैद्य के पास ले जाना, अनाज अथवा भारी वस्तुएं लाना-ले जाना आदि हेतु उपयोगी साधनों के विषय में आगे बताया है ।

३ ई १ अ. साइकिल

आगे साइकिल के अनेक प्रकार बताए हैं । अपनी आवश्यकता और आर्थिक क्षमता के अनुसार तथा साइकिल से होनेवाले लाभ ध्यान में रखकर आप अपने लिए उपयुक्त विकल्प चुनें ।

३ ई १ अ १. साधारण साइकिल

इसमें, ‘टायर-ट्यूब’ वाली साइकिल और ‘ट्यूबलेस (बिना ट्यूब की) टायर’ वाली साइकिल, ये दो प्रकार होते हैं ।

३ ई १ अ २. विद्युद्धारित्र (बैटरी) से चलनेवाली साइकिल
३ ई १ अ ३. साइकिल-रिक्शा

आपातकाल में रोगी को वैद्य के पास ले जाना, वस्तुओं के परिवहन आदि हेतु साइकिल-रिक्शा उपयोगी है ।

३ ई १ आ. विद्युद्धारित्र (बैटरी) से चलनेवाले दुपहिया और चार पहिया वाहन

आपातकाल में पेट्रोल, डीजल आदि ईंधनों का अभाव होने पर इस प्रकार के वाहन उपयोगी होंगे; परंतु ऐसे वाहनों में पेट्रोल, डीजल आदि से चलनेवाले वाहनों की तुलना में कुछ न्यूनता भी होती है । इस विषय में पाठकगण संबंधित विक्रेता से अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं ।

३ ई १ इ. ठेलागाडी (हाथठेला)

मार्ग के किनारे सब्जी, वडापाव आदि बेचनेवाले जिस गाडी का उपयोग करते हैं, उस ठेलागाडी का उपयोग आपातकाल में वस्तुओं के परिवहन हेतु किया जा सकता है ।

३ ई १ ई. बैलगाडी अथवा घोडागाडी

बैलगाडी के लिए बैल पालें । गाय और बैल दोनों पालने पर गाय का दूध मिलेगा तथा गाय-बैल की उत्पत्ति भी होती रहेगी । साधारणतः बैल की आयु ३ वर्ष होने के उपरांत उसे गाडी में जोता जा सकता है । बैलगाडी की भांति घोडागाडी भी खरीद सकते हैं । केवल घोडा खरीदने पर वह यात्रा के लिए उपयोगी होता है ।

गाय, बैल और घोडे के लिए चारा-पानी, उनके लिए गोठा-तबेला की व्यवस्था, उनकी देखभाल करना, उनके रोग और उपचार आदि के विषय में किसी जानकार व्यक्ति से समझ लें । घोडे पर बैठकर यात्रा करना तथा घोडागाडी अथवा बैलगाडी चलाना भी सीख लें ।

३ ई २. रात्रि में यात्रा करते समय बिजली के अभाव में पथदीप न होनेपर प्रकाश देनेवाले साधनों का उपयोग करना
३ ई २ अ. बिजली अथवा सौरऊर्जा से प्रभारित (चार्ज) होनेवाले विद्युद्धारित्र (बैटरी) पर चलनेवाले दीप (टॉर्च)

आपातकाल की दृष्टि से एक अथवा अनेक विद्युद्धारित्र पर चलनेवाले दीप (टॉर्च) खरीदकर रख लें । ऐसे दीपों का बीच-बीचमें उपयोग भी करते रहें ।

३ ई २ आ. लालटेन
लालटेन

लालटेन जलाने के लिए ‘केरोसिन’ का उपयोग किया जाता है । केरोसिन उपलब्ध न होने पर इसमें अन्य तेल (उदा. सरसों का तेल, तिल का तेल इत्यादि) भी डाल सकते हैं । लालटेन के अतिरिक्त केरोसिन से जलनेवाले अनेक प्रकार के दीप भी हाट में मिलते हैं ।

३ ई २ इ. मशाल
मशाल

‘मशाल दुकान में नहीं मिलती; परंतु इसे बढई अथवा संरचनाकार (फेब्रिकेटर) से बनवाया जा सकता है । मशाल के ऊपरी छोर पर बडी कटोरी के आकारका धातु (उदा. स्टील, पीतल) का एक पात्र होता है । यह पात्र लगभग आधा मीटर लंबी लकडी के डंडे से जुडा होता है । जिस प्रकार निरांजन में कपास की बाती होती है, उसी प्रकार मशाल में कपडे की चिन्दियों के गोले का बाती के रूप में उपयोग किया जाता है ।

मशाल खडी पकडकर उसके ऊपरी पात्र में चिन्दियों का एक गोला कसकर बिठाएं और उसे जलाने के लिए उसका एक सिरा गोले के बाहर निकालें । गोला तेल में पूर्णतः भीगने तक उसपर तेल (उदा. करंज तेल, बिनौला तेल) डालें । गोले के बाहर निकले सिरे को जलाने पर, तेल समाप्त होने तक मशाल जलती रहती है । मशाल का तेल समाप्त होने पर गोला जलकर राख हो जाता है । इसलिए तेल पूरा समाप्त होने के पहले मशाल में आवश्यकतानुसार बीच-बीच में तेल डालें । किसी जानकार व्यक्ति से मशाल बनाना सीख लें ।’

– श्री. अविनाश जाधव, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.
मशाल के गोले में कीले के चारों ओर बंधा कपडा और उसे जलाने के लिए निकाला हुआ कपडे का सिरा
३ ई २ ई. चूड
चूड

नारियल की सूखी टहनी के पत्तों से ‘चूड’ बनाई जाती है । चूड बनाने के लिए नारियल की टहनी के मुट्ठी भर पत्ते लेकर उन्हें अन्य पत्तों अथवा सुतली से बीच-बीच में कसकर बांधें । चूड धीरे-धीरे जले, इसके लिए उसे जलाने के पहले उसपर थोडा पानी छिडकें । नारियल के पत्तों में प्राकृतिकरूप से तेल होने के कारण चूड को जलाए रखने के लिए अलग से ईंधन की आवश्यकता नहीं होती । हम जिस प्रकार जलती हुई दियासलाई को तिरछा पकडते हैं, जिससे वह अधिक समय तक जले; उसी प्रकार ‘चूड ठीक से जले’, इसके लिए जलाते समय उसे तिरछा पकडें । लगभग ३ फुट लंबी चूड २० मिनट तक प्रकाश देती है ।’

– श्री. विवेक प्रभाकर नाफडे, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल.
३ ई ३. अपरिचित प्रदेश में यात्रा के समय दिशा ज्ञात करने हेतु दिशासूचक यंत्र (कम्पास) का उपयोग करना

आपातकाल में एक प्रदेश से दूसरे अपरिचित प्रदेश में जाना पड सकता है । उस समय मार्ग में मार्गदर्शक फलक होगा, यह निश्‍चितरूप से नहीं कहा जा सकता अथवा वहां मार्ग बताने के लिए लोग मिलेंगे, यह भी नहीं कहा जा सकता । यदि मार्गदर्शक फलक है, तो भी रात्रि के अंधेरे में वह दिखाई नहीं देगा । ऐसे समय हम मार्ग न भटकें, इसके लिए दिशासूचकयंत्र उपयोगी होता है । इसलिए भ्रमणभाष में दिशासूचकयंत्र का ‘एप’ डाउनलोड कर लें । इससे दिशा का ज्ञान होगा ।

होकायंत्र

‘भ्रमणभाष में दिशासूचकयंत्र ‘एप’ डाउनलोड होने पर भी भ्रमणभाष अप्रभारित (डिस्चार्ज) हो सकता है, यह ध्यान में रखकर अलग से भी एक दिशासूचकयंत्र अपने पास रखें । यह यंत्र बिना ‘सेल’ अथवा बिजली के कार्य करता है । इसकी सुइयां सदैव ‘उत्तर-दक्षिण’ दिशा दर्शाती हैं । इससे दिशा का ज्ञान होता है ।’ – श्री. विजय पाटील, जलगांव

(संदर्भ : सनातन की आगामी ग्रंथमाला ‘आपातकालमें जीवनरक्षा हेतु आवश्यक तैयारी’)

(प्रस्तुत लेखमाला के सर्वाधिकार (कॉपीराइट) सनातन भारतीय संस्कति संस्था के पास सुरक्षित है ।)

भाग ६ पढने के लिए देखें : आपातकाल में आपातकाल में जीवनरक्षा हेतु आवश्यक पूर्वतैयारी भाग – ६

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